Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003766
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-५

Translated Chapter :

शतक-५

Section : उद्देशक-९ राजगृह Translated Section : उद्देशक-९ राजगृह
Sutra Number : 266 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अत्थि णं भंते! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेण भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं तत्थगयाणं नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? गोयमा! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं तेसिं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। से तेणट्ठेणं जाव नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। अत्थि णं भंते! मनुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायते, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं? गोयमा! इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं, इहं चेव तेसिं एवं पण्णायते, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। से तेणट्ठेणं। वाणमंतर-जोइस-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! क्या वहाँ (नरकक्षेत्र में) रहे हुए नैरयिकों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, जैसे कि – समय, आवलिका, यावत्‌ उत्सर्पिणी काल (या) अवसर्पिणी काल ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से नरकस्थ नैरयिकों को काल का प्रज्ञान नहीं होता ? गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए यहाँ ऐसा प्रज्ञान होता है कि – यह समय है, यावत्‌ यह उत्सर्पिणीकाल है, (किन्तु नरक में न तो समयादि का मान है, न प्रमाण है और न ही प्रज्ञान है) इस कारण से कहा जाता है कि नरकस्थित नैरयिकों को इस प्रकार से यावत्‌ उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल का प्रज्ञान नहीं होता। जिस प्रकार नरकस्थित नैरयिकों के विषय में कहा गया है; उसी प्रकार यावत्‌ पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों तक कहना। भगवन्‌ ! क्या यहाँ (मनुष्यलोक में) रहे हुए मनुष्यों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, कि समय (है), अथवा यावत्‌ (यह) उत्सर्पिणीकाल (है) ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन्‌ ! किस कारण से (ऐसा कहा जाता है) ? गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) उनका (समयादि का) मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए यहाँ उनको उनका (समयादि का) इस प्रकार से प्रज्ञान होता है, यथा – यह समय है, या यावत्‌ यह उत्सर्पिणीकाल है। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यहाँ रहे हुए मनुष्यों को समयादि का प्रज्ञान होता है। जिस प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों के (समयादिप्रज्ञान के) विषय में कहना चाहिए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] atthi nam bhamte! Neraiyanam tatthagayanam evam pannayae, tam jaha–samaya i va, avaliya i va java osappini i va, ussappini i va? No tinatthe samatthe. Se kenatthena bhamte! Evam vuchchai–neraiyanam tatthagayanam no evam pannayae, tam jaha–samaya i va, avaliya i va java osappini i va, ussappini i va? Goyama! Iham tesim manam, iham tesim pamanam, iham tesim evam pannayae, tam jaha–samaya i va java ussappini i va. Se tenatthenam java no evam pannayae, tam jaha–samaya i va java ussappini i va. Evam java pamchimdiyatirikkhajoniyanam. Atthi nam bhamte! Manussanam ihagayanam evam pannayate, tam jaha–samaya i va java ussappini i va? Hamta atthi. Se kenatthenam? Goyama! Iha tesim manam, iha tesim pamanam, iham cheva tesim evam pannayate, tam jaha–samaya i va java ussappini i va. Se tenatthenam. Vanamamtara-joisa-vemaniyanam jaha neraiyanam.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Kya vaham (narakakshetra mem) rahe hue nairayikom ko isa prakara ka prajnyana hota hai, jaise ki – samaya, avalika, yavat utsarpini kala (ya) avasarpini kala\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Kisa karana se narakastha nairayikom ko kala ka prajnyana nahim hota\? Gautama ! Yaham (manushyaloka mem) samayadi ka mana hai, yaham unaka pramana hai, isalie yaham aisa prajnyana hota hai ki – yaha samaya hai, yavat yaha utsarpinikala hai, (kintu naraka mem na to samayadi ka mana hai, na pramana hai aura na hi prajnyana hai) isa karana se kaha jata hai ki narakasthita nairayikom ko isa prakara se yavat utsarpini – avasarpini kala ka prajnyana nahim hota. Jisa prakara narakasthita nairayikom ke vishaya mem kaha gaya hai; usi prakara yavat pamchendriya tiryagyonika jivom taka kahana. Bhagavan ! Kya yaham (manushyaloka mem) rahe hue manushyom ko isa prakara ka prajnyana hota hai, ki samaya (hai), athava yavat (yaha) utsarpinikala (hai)\? Ham, gautama ! Hota hai. Bhagavan ! Kisa karana se (aisa kaha jata hai)\? Gautama ! Yaham (manushyaloka mem) unaka (samayadi ka) mana hai, yaham unaka pramana hai, isalie yaham unako unaka (samayadi ka) isa prakara se prajnyana hota hai, yatha – yaha samaya hai, ya yavat yaha utsarpinikala hai. Isa karana se aisa kaha jata hai ki yaham rahe hue manushyom ko samayadi ka prajnyana hota hai. Jisa prakara nairayika jivom ke vishaya mem kaha gaya hai, usi prakara vanavyantara, jyotishka evam vaimanika devom ke (samayadiprajnyana ke) vishaya mem kahana chahie.