Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003656 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Translated Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा |
Sutra Number : | 156 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि तीसए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि-पुण्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सामानियदेवत्ताए उववन्ने। तए णं तीसए देवे अहुणीववण्णमेत्ते समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं० आहारपज्जत्तीए, सरीरपज्जत्तीए, इंदियपज्जत्तीए, आणापाणुपज्जत्तीए, भासामन पज्जत्तीए तए णं तं तीसयं देवं पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयं समाणं सामानिय परिसोव- वण्णया देवा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धाविंति वद्धावित्ता एवं वयासी– अहो णं देवानुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। जारिसिया णं देवानुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, तारिसिया णं सक्केण वि देविंदेण देवरण्णा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमन्नागए। जारिसिया णं सक्केणं देविं-देणं देवरण्णा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमन्नागए। जारिसिया णं देवानुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमन्नागए। से णं भंते! तीसए देवे केमहिड्ढीए जाव केवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! महिड्ढीए जाव महानुभागे। से णं तत्थ सयस्स विमानस्स, चउण्हं सामानियसाहस्सीणं, चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अनियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, सोलसण्हं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाणं, देवीण य जाव विहरइ। एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए। से जहानामए जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, जहेव सक्कस्स तहेव जाव एस णं गोयमा! तीसयस्स देवस्स अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वति वा विकुव्विस्सति वा जइ णं भंते! तीसए देवे महिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिड्ढीया? तहेव सव्वं जाव एस णं गोयमा! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो एगमेगस्स सामानियस्स देवस्स इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वति वा विकुव्विस्सति वा। तावत्तीसय–लोगपालग्गमहिसी णं जहेव चमरस्स, नवरं–दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अन्नं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति दोच्चे गोयमे जाव विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र ऐसी महान ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने मे समर्थ है, तो आप देवानुप्रिय का शिष्य ‘तिष्यक’ नामक अनगार, जो प्रकृति से भद्र, यावत् विनीत था निरन्तर छठ – छठ की तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, पूरे आठ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना से अपनी आत्मा को संयुक्त करके, तथा साठ भक्त अनशन का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण करके, मृत्यु के अवसर पर मृत्यु प्राप्त करके सौधर्मदेवलोक में गया है। वह वहाँ अपने विमान में, उपपातसभा में, देव – शयनीय में देवदूष्य से ढँके हुए अंगुल के असंख्यात भाग जितनी अवगाहना में देवेन्द्र देवराज शक्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ है। फिर तत्काल उत्पन्न हुआ वह तिष्यक देव पाँच प्रकार की पर्याप्तियों अर्थात् – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति और भाषामनपर्याप्ति से पर्याप्तिभाव को प्राप्त हुआ। तब सामानिक परीषद् के देवों ने दोनों हाथों को जोड़कर एवं दसों अंगुलियों के दसों नखों को इकट्ठे करके मस्तक पर अंजलि करके जय – विजय शब्दों से बधाई दी। इसके बाद वे इस प्रकार बोले – अहो ! आप देवानुप्रिय ने यह दिव्य देव – ऋद्धि, दिव्य देव – द्युति उपलब्ध की है, प्राप्त की है और दिव्य देव – प्रभाव उपलब्ध किया है, सम्मुख किया है। जैसी दिव्य देव – ऋद्धि, दिव्य देव – कान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है; जैसी दिव्य ऋद्धि दिव्य देवकान्ति और दिव्यप्रभाव देवेन्द्र देवराज शक्र ने लब्ध, प्राप्त एवं अभिमुख किया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय ने उपलब्ध, प्राप्त और अभिमुख किया है। (अतः अग्निभूति अनगार भगवान से पूछते हैं – ) भगवन् ! वह तिष्यक देव कितनी महाऋद्धि वाला है, यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! वह तिष्यक देव महाऋद्धि वाला है, यावत् महाप्रभाव वाला है। वह वहाँ अपने विमान पर, चार हजार सामानिक देवों पर, सपरिवार चार अग्रमहिषियों पर, तीन परीषदों पर, सात सैन्यों पर, सात सेनाधिपतियों पर एवं सोलह हजार आत्मरक्षक देवों पर, तथा अन्य बहुत – से वैमानिक देवों और देवियों पर आधिपत्य, स्वामित्व एवं नेतृत्व करता हुआ विचरण करता है। यह तिष्यकदेव ऐसी महाऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, जैसे कि कोई युवती युवा पुरुष का हाथ दृढ़ता से पकड़कर चलती है, प्रथवा गाड़ी के पहिये की धूरी आरों से गाढ़ संलग्न होती है, इन्हीं दो दृष्टान्तों के अनुसार वह शक्रेन्द्र जितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है। हे गौतम ! यह जो तिष्यकदेव की इस प्रकार की विकुर्वणाशक्ति कही है, वह उसका सिर्फ विषय है, विषयमात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा कभी उसने इतनी विकुर्वणा की नहीं, करता भी नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं। भगवन् ! यदि तिष्यक देव इतनी महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने की शक्ति रखता है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के दूसरे सब सामानिक देव कितनी महाऋद्धि वाले हैं यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है ? हे गौतम ! तिष्यकदेव के समान शक्रेन्द्र के समस्त सामानिक देवों की ऋद्धि एवं विकुर्वणा शक्ति आदि के विषय में जानना चाहिए, किन्तु हे गौतम ! यह विकुर्वणाशक्ति देवेन्द्र देवराज शक्र के प्रत्येक सामानिक देव का विषय है, विषयमात्र है, सम्प्राप्ति द्वारा उन्होंने कभी इतनी विकुर्वणा की नहीं, करते नहीं और भविष्य में करेंगे भी नहीं। शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल और अग्रमहिषियों के विषय में चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए। किन्तु इतना विशेष कि वे अपने वैक्रियकृत रूपोंसे दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीपों को भरने में समर्थ है। शेष समग्र वर्णन चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए। भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर द्वीतिय गौतम अग्निभूत अनगार यावत् विचरण करते हैं | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Sakke devimde devaraya emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae, evam khalu devanuppiyanam amtevasi tisae namam anagare pagaibhaddae pagaiuvasamte pagaipayanukohamanamayalobhe miumaddavasampanne alline vinie chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam appanam bhavemane bahupadi-punnaim attha samvachchharaim samannapariyagam paunitta, masiyae samlehanae attanam jjhusetta, satthim bhattaim anasanae chhedetta aloiya-padikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha sohamme kappe sayamsi vimanamsi uvavayasabhae devasayanijjamsi devadusamtarie amgulassa asamkhejjaibhagamettie ogahanae sakkassa devimdassa devaranno samaniyadevattae uvavanne. Tae nam tisae deve ahunivavannamette samane pamchavihae pajjattie pajjattibhavam gachchhai, tam0 aharapajjattie, sarirapajjattie, imdiyapajjattie, anapanupajjattie, bhasamana pajjattie Tae nam tam tisayam devam pamchavihae pajjattie pajjattibhavam gayam samanam samaniya parisova- vannaya deva karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavimti vaddhavitta evam vayasi– Aho nam devanuppiehim divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae. Jarisiya nam devanuppiehim divva deviddhi divva devajjui divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae, tarisiya nam sakkena vi devimdena devaranna divva deviddhi java abhisamannagae. Jarisiya nam sakkenam devim-denam devaranna divva deviddhi java abhisamannagae. Jarisiya nam devanuppiehim divva deviddhi java abhisamannagae. Se nam bhamte! Tisae deve kemahiddhie java kevatiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Mahiddhie java mahanubhage. Se nam tattha sayassa vimanassa, chaunham samaniyasahassinam, chaunham aggamahisinam saparivaranam, tinham parisanam, sattanham aniyanam, sattanham aniyahivainam, solasanham ayarakkha-devasahassinam, annesim cha bahunam vemaniyanam devanam, devina ya java viharai. Emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae. Se jahanamae juvati juvane hatthenam hatthe genhejja, jaheva sakkassa taheva java esa nam goyama! Tisayassa devassa ayameyaruve visae visayamette buie, no cheva nam sampattie vikuvvimsu va vikuvvati va vikuvvissati va Jai nam bhamte! Tisae deve mahiddhie java evaiyam cha nam pabhu vikuvvittae, sakkassa nam bhamte! Devimdassa devaranno avasesa samaniya deva kemahiddhiya? Taheva savvam java esa nam goyama! Sakkassa devimdassa devaranno egamegassa samaniyassa devassa imeyaruve visae visayamette buie, no cheva nam sampattie vikuvvimsu va vikuvvati va vikuvvissati va. Tavattisaya–logapalaggamahisi nam jaheva chamarassa, navaram–do kevalakappe jambuddive dive, annam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti dochche goyame java viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Yadi devendra devaraja shakra aisi mahana riddhi vala hai, yavat itani vikurvana karane me samartha hai, to apa devanupriya ka shishya ‘tishyaka’ namaka anagara, jo prakriti se bhadra, yavat vinita tha nirantara chhatha – chhatha ki tapasya se apani atma ko bhavita karata hua, pure atha varsha taka shramanyaparyaya ka palana karake, eka masa ki samlekhana se apani atma ko samyukta karake, tatha satha bhakta anashana ka chhedana kara, alochana aura pratikramana karake, mrityu ke avasara para mrityu prapta karake saudharmadevaloka mem gaya hai. Vaha vaham apane vimana mem, upapatasabha mem, deva – shayaniya mem devadushya se dhamke hue amgula ke asamkhyata bhaga jitani avagahana mem devendra devaraja shakra ke samanika deva ke rupa mem utpanna hua hai. Phira tatkala utpanna hua vaha tishyaka deva pamcha prakara ki paryaptiyom arthat – aharaparyapti, shariraparyapti, indriyaparyapti, shvasochchhvasaparyapti aura bhashamanaparyapti se paryaptibhava ko prapta hua. Taba samanika parishad ke devom ne donom hathom ko jorakara evam dasom amguliyom ke dasom nakhom ko ikatthe karake mastaka para amjali karake jaya – vijaya shabdom se badhai di. Isake bada ve isa prakara bole – aho ! Apa devanupriya ne yaha divya deva – riddhi, divya deva – dyuti upalabdha ki hai, prapta ki hai aura divya deva – prabhava upalabdha kiya hai, sammukha kiya hai. Jaisi divya deva – riddhi, divya deva – kanti aura divya devaprabhava apa devanupriya ne upalabdha, prapta aura abhimukha kiya hai, vaisi hi divya devariddhi, divya devakanti aura divya devaprabhava devendra devaraja shakra ne upalabdha, prapta aura abhimukha kiya hai; jaisi divya riddhi divya devakanti aura divyaprabhava devendra devaraja shakra ne labdha, prapta evam abhimukha kiya hai, vaisi hi divya devariddhi, divya devakanti aura divya devaprabhava apa devanupriya ne upalabdha, prapta aura abhimukha kiya hai. (atah agnibhuti anagara bhagavana se puchhate haim – ) bhagavan ! Vaha tishyaka deva kitani mahariddhi vala hai, yavat kitani vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Vaha tishyaka deva mahariddhi vala hai, yavat mahaprabhava vala hai. Vaha vaham apane vimana para, chara hajara samanika devom para, saparivara chara agramahishiyom para, tina parishadom para, sata sainyom para, sata senadhipatiyom para evam solaha hajara atmarakshaka devom para, tatha anya bahuta – se vaimanika devom aura deviyom para adhipatya, svamitva evam netritva karata hua vicharana karata hai. Yaha tishyakadeva aisi mahariddhi vala hai, yavat itani vikurvana karane mem samartha hai, jaise ki koi yuvati yuva purusha ka hatha drirhata se pakarakara chalati hai, prathava gari ke pahiye ki dhuri arom se garha samlagna hoti hai, inhim do drishtantom ke anusara vaha shakrendra jitani vikurvana karane mem samartha hai. He gautama ! Yaha jo tishyakadeva ki isa prakara ki vikurvanashakti kahi hai, vaha usaka sirpha vishaya hai, vishayamatra hai, kintu samprapti dvara kabhi usane itani vikurvana ki nahim, karata bhi nahim aura bhavishya mem karega bhi nahim. Bhagavan ! Yadi tishyaka deva itani mahariddhi vala hai yavat itani vikurvana karane ki shakti rakhata hai, to he bhagavan ! Devendra devaraja shakra ke dusare saba samanika deva kitani mahariddhi vale haim yavat unaki vikurvanashakti kitani hai\? He gautama ! Tishyakadeva ke samana shakrendra ke samasta samanika devom ki riddhi evam vikurvana shakti adi ke vishaya mem janana chahie, kintu he gautama ! Yaha vikurvanashakti devendra devaraja shakra ke pratyeka samanika deva ka vishaya hai, vishayamatra hai, samprapti dvara unhomne kabhi itani vikurvana ki nahim, karate nahim aura bhavishya mem karemge bhi nahim. Shakrendra ke trayastrimshaka, lokapala aura agramahishiyom ke vishaya mem chamarendra ki taraha kahana chahie. Kintu itana vishesha ki ve apane vaikriyakrita rupomse do sampurna jambudvipom ko bharane mem samartha hai. Shesha samagra varnana chamarendra ki taraha kahana chahie. Bhagavan ! Yaha isi prakara hai, yom kahakara dvitiya gautama agnibhuta anagara yavat vicharana karate haim |