Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003655 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Translated Section : | उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा |
Sutra Number : | 155 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से तच्चे गोयमे वायुभूति अनगारे दोच्चे णं गोयमेणं अग्गिभूतिणा अनगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–जइ णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, बली णं भंते! वइरोयणिंदे वइरोयणराया केमहिड्ढीए? जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि नेयव्वं, नवरं–सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं भाणियव्वं, सेसं तं चेव निरवसेसं नेयव्वं, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं भवणेहिं सामाणिएहि य। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति तच्चे गोयमे वायुभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासइ। तते णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जइ णं भंते! बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, धरणे णं भंते! नागकुमारिंदे नागकुमारराया केमहिड्ढीए? जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं छण्हं सामानियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, छण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अनियाणं, सत्तण्हं अनियाहिवईणं, चउव्वीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं, च जाव विहरइ। एवतियं च णं पभू विउव्वित्तए। से जहानामए जुवती जुवाणे जाव पभू केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं जाव तिरियं संखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं नागकुमारीहिं जाव विकुव्विस्सति वा। सामाणिया तायत्तीस-लोगपालग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स, नवरं– संखेज्जे दीव-समुद्दे भाणियव्वे। एवं जाव थणियकुमारा, वाणमंतरा, जोईसिया वि, नवरं–दाहिणिल्ले सव्वे अग्गिभूई पुच्छइ, उत्तरिल्ले सव्वे वायु भूई पुच्छइ। भंतेत्ति! भगवं दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी –जइ णं भंते! जोइसिंदे जोइसराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, सक्के णं भंते! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए? जाव केवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए? गोयमा! सक्के णं देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। से णं बत्तीसाए विमानावाससय-सहस्साणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं अट्ठणहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अनियाणं, सत्तण्हं अनियाहिवईणं, चउण्हं चउ-रासीणं आयरक्खसाहस्सीणं, अन्नेसिं च जाव विहरइ। एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वि-त्तए, एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियव्वं, नवरं– दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तं चेव। एस णं गोयमा! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वति वा विकुव्विस्सति वा। | ||
Sutra Meaning : | इसके पश्चात् तीसरे गौतम ( – गोत्रीय) वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार किया, और फिर यों बोले – भगवन् ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्व – णाशक्ति से सम्पन्न है, तब हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महाऋद्धिसम्पन्न है, यावत् महानुभाग है। वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का तथा साठ हजार सामानिक देवों का अधिपति है। चमरेन्द्र के समान बलि के विषय में भी शेष वर्णन जान लेना। अन्तर इतना ही है कि बलि वैरोचनेन्द्र दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत – से (उत्तरदिशावासी असुरकुमार देव – देवियों का) आधिपत्य यावत् उपभोग करता हुआ विचरता है। चमरेन्द्र की विकुर्वणाशक्ति की तरह बलीन्द्र के विषय में भी युवक युवती का हाथ दृढ़ता से पकड़कर चलता है, तब वे जैसे संलग्न होते हैं, अथवा जैसे गाड़ी के पहिये की धूरी में आरे संलग्न होते हैं, ये दोनों दृष्टान्त जानने चाहिए। विशेषता यह है कि बलि अपनी विकुर्वणा – शक्ति से सातिरेक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भर देता है। शेष पूर्ववत् समझ लेना। भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इतनी महाऋद्धि वाला है, यावत् उसकी इतनी विकुर्वणाशक्ति है तो उस वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सामानिक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं, यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है ? (गौतम !) बलि के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों की ऋद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के सामानिक देवों की तरह समझना चाहिए। विशेषता यह है कि इतनी विकुर्वणाशक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप के स्थान तक को भर देने की है; यावत् प्रत्येक अग्रमहिषी की इतनी विकुर्वणा – शक्ति विषयमात्र कही है; यावत् वे विकुर्वणा करेंगी भी नहीं; यहाँ तक पूर्ववत् समझना। हे भगवन् ! जैसा आप कहते हैं, वह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह उसी प्रकार है, यों कहकर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया और फिर न अति दूर, न अति निकट रहकर वे यावत् पर्युपासना करने लगे तत्पश्चात् द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महाऋद्धि वाला है, यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तैंतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर, चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभाओं पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर और चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक दाक्षिणात्य कुमार देवों और देवियों पर आधिपत्य, नेतृत्व, स्वामित्व यावत् करता हुआ रहता है। उसकी विकुर्वणाशक्ति इतनी है कि जैसे युवापुरुष युवती स्त्री के करग्रहण के अथवा गाड़ी के पहिये की धूरी में संलग्न आरों के दृष्टान्त से यावत् वह अपने द्वारा वैक्रियकृत बहुत – से नागकुमार देवों और नागकुमारदेवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तिर्यग्लोक के संख्येय द्वीप – समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है। परन्तु यावत् ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं। धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि तथा वैक्रिय शक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कह लेना चाहिए। विशेषता इतनी ही है कि इन सबकी विकुर्वणाशक्ति संख्यात द्वीप – समुद्रों तक के स्थल को भरने की समझनी चाहिए। इसी तरह यावत् स्तनितकुमारों तक सभी भवनपतिदेवों के सम्बन्ध में कहना चाहिए। इसी तरह समस्त वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों के विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि दक्षिण दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में द्वीतिय गौतम अग्निभूति अनगार पूछते हैं और उत्तरदिशा के सभी इन्द्रों के विषय में गौतम वायुभूति अनगार पूछते हैं द्वीतिय गणधर भगवान गौतमगोत्रीय अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और (पूछा – ) भगवन् ! यदि ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज ऐसी महाऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी महाऋद्धि वाला है और कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र महान् ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभावशाली है। वह वहाँ बत्तीस लाख विमानावासों पर तथा चौरासी हजार सामानिक देवों पर यावत् तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवों पर एवं दूसरे बहुत – से देवों पर आधिपत्य – स्वामित्व करता हुआ विचरण करता है। (अर्थात् – ) शक्रेन्द्र ऐसी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विक्रिया करने में समर्थ है। उसकी वैक्रिय शक्ति के विषय में चमरेन्द्र की तरह सब कथन करना चाहिये; विशेष यह है कि दो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप जितने स्थल को भरने में समर्थ है; और शेष सब पूर्ववत् है। हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की यह इस रूप की वैक्रियशक्ति तो केवल शक्तिरूप है। किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा उसने ऐसी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और न भविष्य में करेगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se tachche goyame vayubhuti anagare dochche nam goyamenam aggibhutina anagarenam saddhim jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai java pajjuvasamane evam vayasi–jai nam bhamte! Chamare asurimde asuraraya emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae, bali nam bhamte! Vairoyanimde vairoyanaraya kemahiddhie? Java kevaiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Bali nam vairoyanimde vairoyanaraya mahiddhie java mahanubhage. Jaha chamarassa taha balissa vi neyavvam, navaram–satiregam kevalakappam jambuddivam divam bhaniyavvam, sesam tam cheva niravasesam neyavvam, navaram–nanattam janiyavvam bhavanehim samaniehi ya. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti tachche goyame vayubhui anagare samanam bhagavam mahaviram vamdati namamsati, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliyade pajjuvasai. Tate nam se dochche goyame aggibhui anagare samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–jai nam bhamte! Bali vairoyanimde vairoyanaraya emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae, dharane nam bhamte! Nagakumarimde nagakumararaya kemahiddhie? Java kevaiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Dharane nam nagakumarimde nagakumararaya mahiddhie java mahanubhage. Se nam tattha choyalisae bhavanavasasayasahassanam chhanham samaniyasahassinam, tayattisae tavattisaganam, chaunham logapalanam, chhanham aggamahisinam saparivaranam, tinham parisanam, sattanham aniyanam, sattanham aniyahivainam, chauvvisae ayarakkhadevasahassinam annesim, cha java viharai. Evatiyam cha nam pabhu viuvvittae. Se jahanamae juvati juvane java pabhu kevalakappam jambuddivam divam java tiriyam samkhejje diva-samudde bahuhim nagakumarihim java vikuvvissati va. Samaniya tayattisa-logapalaggamahisio ya taheva jaha chamarassa, navaram– samkhejje diva-samudde bhaniyavve. Evam java thaniyakumara, vanamamtara, joisiya vi, navaram–dahinille savve aggibhui puchchhai, uttarille savve vayu bhui puchchhai. Bhamtetti! Bhagavam dochche goyame aggibhui anagare samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi –jai nam bhamte! Joisimde joisaraya emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvittae, sakke nam bhamte! Devimde devaraya kemahiddhie? Java kevatiyam cha nam pabhu vikuvvittae? Goyama! Sakke nam devimde devaraya mahiddhie java mahanubhage. Se nam battisae vimanavasasaya-sahassanam, chaurasie samaniyasahassinam, tayattisae tavattisaganam, chaunham logapalanam atthanaham aggamahisinam saparivaranam, tinham parisanam sattanham aniyanam, sattanham aniyahivainam, chaunham chau-rasinam ayarakkhasahassinam, annesim cha java viharai. Emahiddhie java evatiyam cha nam pabhu vikuvvi-ttae, evam jaheva chamarassa taheva bhaniyavvam, navaram– do kevalakappe jambuddive dive, avasesam tam cheva. Esa nam goyama! Sakkassa devimdassa devaranno imeyaruve visae visayamette buie, no cheva nam sampattie vikuvvimsu va vikuvvati va vikuvvissati va. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake pashchat tisare gautama ( – gotriya) vayubhuti anagara ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya, aura phira yom bole – bhagavan ! Yadi asurendra asuraraja chamara itani bari riddhi vala hai, yavat itani vikurva – nashakti se sampanna hai, taba he bhagavan ! Vairochanendra vairochanaraja bali kitani bari riddhi vala hai\? Yavat vaha kitani vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Vairochanendra vairochanaraja bali mahariddhisampanna hai, yavat mahanubhaga hai. Vaha vaham tisa lakha bhavanavasom ka tatha satha hajara samanika devom ka adhipati hai. Chamarendra ke samana bali ke vishaya mem bhi shesha varnana jana lena. Antara itana hi hai ki bali vairochanendra do lakha chalisa hajara atmarakshaka devom ka tatha anya bahuta – se (uttaradishavasi asurakumara deva – deviyom ka) adhipatya yavat upabhoga karata hua vicharata hai. Chamarendra ki vikurvanashakti ki taraha balindra ke vishaya mem bhi yuvaka yuvati ka hatha drirhata se pakarakara chalata hai, taba ve jaise samlagna hote haim, athava jaise gari ke pahiye ki dhuri mem are samlagna hote haim, ye donom drishtanta janane chahie. Visheshata yaha hai ki bali apani vikurvana – shakti se satireka sampurna jambudvipa ko bhara deta hai. Shesha purvavat samajha lena. Bhagavan ! Yadi vairochanendra vairochanaraja bali itani mahariddhi vala hai, yavat usaki itani vikurvanashakti hai to usa vairochanendra vairochanaraja bali ke samanika deva kitani bari riddhi vale haim, yavat unaki vikurvanashakti kitani hai\? (gautama !) bali ke samanika deva, trayastrimshaka evam lokapala tatha agramahishiyom ki riddhi evam vikurvanashakti ka varnana chamarendra ke samanika devom ki taraha samajhana chahie. Visheshata yaha hai ki itani vikurvanashakti satireka jambudvipa ke sthana taka ko bhara dene ki hai; yavat pratyeka agramahishi ki itani vikurvana – shakti vishayamatra kahi hai; yavat ve vikurvana karemgi bhi nahim; yaham taka purvavat samajhana. He bhagavan ! Jaisa apa kahate haim, vaha isi prakara hai, bhagavan ! Yaha usi prakara hai, yom kahakara tritiya gautama vayubhuti anagara ne shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara kiya aura phira na ati dura, na ati nikata rahakara ve yavat paryupasana karane lage Tatpashchat dvitiya gautama agnibhuti anagara ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Vandana – namaskara karake isa prakara kaha – bhagavan ! Yadi vairochanendra vairochanaraja bali isa prakara ki mahariddhi vala hai yavat itani vikurvana karane mem samartha hai, to bhagavan ! Nagakumarendra nagakumararaja dharana kitani bari riddhi vala hai\? Yavat kitani vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Vaha nagakumarendra nagakumararaja dharanendra mahariddhi vala hai, yavat vaha chavalisa lakha bhavanavasom para, chhaha hajara samanika devom para, taimtisa trayastrimshaka devom para, chara lokapalom para, parivara sahita chhaha agramahishiyom para, tina sabhaom para, sata senaom para, sata senadhipatiyom para aura chaubisa hajara atmarakshaka devom para tatha anya aneka dakshinatya kumara devom aura deviyom para adhipatya, netritva, svamitva yavat karata hua rahata hai. Usaki vikurvanashakti itani hai ki jaise yuvapurusha yuvati stri ke karagrahana ke athava gari ke pahiye ki dhuri mem samlagna arom ke drishtanta se yavat vaha apane dvara vaikriyakrita bahuta – se nagakumara devom aura nagakumaradeviyom se sampurna jambudvipa ko bharane mem samartha hai aura tiryagloka ke samkhyeya dvipa – samudrom jitane sthala ko bharane ki shakti vala hai. Parantu yavat aisa usane kabhi kiya nahim, karata nahim aura bhavishya mem karega bhi nahim. Dharanendra ke samanika deva, trayastrimshaka deva, lokapala aura agramahishiyom ki riddhi adi tatha vaikriya shakti ka varnana chamarendra ke varnana ki taraha kaha lena chahie. Visheshata itani hi hai ki ina sabaki vikurvanashakti samkhyata dvipa – samudrom taka ke sthala ko bharane ki samajhani chahie. Isi taraha yavat stanitakumarom taka sabhi bhavanapatidevom ke sambandha mem kahana chahie. Isi taraha samasta vanavyantara aura jyotishka devom ke vishaya mem kahana chahie. Vishesha yaha hai ki dakshina disha ke sabhi indrom ke vishaya mem dvitiya gautama agnibhuti anagara puchhate haim aura uttaradisha ke sabhi indrom ke vishaya mem gautama vayubhuti anagara puchhate haim Dvitiya ganadhara bhagavana gautamagotriya agnibhuti anagara ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya aura (puchha – ) bhagavan ! Yadi jyotishkendra jyotishkaraja aisi mahariddhi vala hai, yavat itani vikurvana karane mem samartha hai, to he bhagavan ! Devendra devaraja shakra kitani mahariddhi vala hai aura kitani vikurvana karane mem samartha hai\? Gautama ! Devendra devaraja shakra mahan riddhi vala hai yavat mahaprabhavashali hai. Vaha vaham battisa lakha vimanavasom para tatha chaurasi hajara samanika devom para yavat tina lakha chhattisa hajara atmarakshaka devom para evam dusare bahuta – se devom para adhipatya – svamitva karata hua vicharana karata hai. (arthat – ) shakrendra aisi bari riddhi vala hai, yavat itani vikriya karane mem samartha hai. Usaki vaikriya shakti ke vishaya mem chamarendra ki taraha saba kathana karana chahiye; vishesha yaha hai ki do sampurna jambudvipa jitane sthala ko bharane mem samartha hai; aura shesha saba purvavat hai. He gautama ! Devendra devaraja shakra ki yaha isa rupa ki vaikriyashakti to kevala shaktirupa hai. Kintu samprapti dvara usane aisi vikriya ki nahim, karata nahim aura na bhavishya mem karega. |