Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003521 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१ |
Translated Chapter : |
शतक-१ |
Section : | उद्देशक-१ चलन | Translated Section : | उद्देशक-१ चलन |
Sutra Number : | 21 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा– ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ | असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए से अनुसमयं अविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जइ। तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए से जहन्नेणं चउत्थ-भत्तस्स, उक्कोसेणं साइरेगस्स वाससहस्सस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ।असुरकुमारा णं भंते! किमाहारमाहारेंति? गोयमा! दव्वओ अनंतपएसियाइं दव्वाइं, खित्त-काल-भावा पन्नवणागमेणं। सेसं जहा नेरइयाणं जाव ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति? गोयमा! सोइंदियत्ताए सुरूवत्ताए सुवण्णत्ताए इट्ठत्ताए इच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए, उड्ढत्ताए, नो अहत्ताए, सुहत्ताए, नो दुहत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। असुरकुमाराणं पुव्वाहारिया पुग्गला परिणया? गोयमा! असुरकुमाराभिलावेणं जहा नेरइयाणं जाव चलियं कम्मं निज्जरंति। नागकुमाराणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं। नागकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा०? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहत्तस्स आणमंति वा०। नागकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, गोयमा! आहारट्ठी। नागकुमाराणं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! नागकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते। तं जहा- आभोगनिव्वत्तिए य अनाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जे से अनाभोगनिव्वत्तिए से अनुसमयं अविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जइ, तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए से जहन्नेणं चउत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं दिवसपुहत्तस्स आहारार्थे समुप्पज्जइ। सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव चलियं कम्मं निज्जरेंति, नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति। एवं सुवण्णकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं ति। पुढविक्काइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। पुढविक्काइया केवइकालस्स आणमंति वा०? गोयमा! वेमायाए आणमंति वा०। पुढविक्काइया आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी। पुढविक्काइयाणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! अनुसमयं अविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जइ। पुढविक्काइया किमाहारमाहारेंति? गोयमा! दव्वओ जहा नेरइयाणं जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं; वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउ-द्दिसिं सिय पंचदिसिं। वण्णओ काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किलाणि। गंधओ सुब्भिगंध २, रसओ तित्त ५, फासओ कक्खड ८। सेसं तहेव। नाणत्तंकतिभागं आहारेंति? कइभागं फासादेंति? गोयमा! असंखिज्जइभागं आहारेंति, अनंतभागं फासादेंति जाव ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति? गोयमा! फासिंदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। सेसं जहा नेरइयाणं जाव चलियं कम्मं निज्जरेंति, नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। नवरं ठिती वण्णेयव्वा जा जस्स, उस्सासो वेमायाए। बेइंदियाणं ठिई भाणियव्वा। ऊसासो वेमायाए। बेइंदियाणं आहारे पुच्छा। अनाभोगनिव्वत्तिओ तहेव। तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारट्ठे समुप्पज्जइ। सेसं तहेव जाव अनंतभागं आसायंति। बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति? नो सव्वे आहारेंति? गोयमा! बेइंदियाणं दुविहे आहारे पन्नत्ते। तं जहा-लोमाहारे पक्खेवाहारे य। जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेंति। जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हंति तेसिं णं पोग्गलाणं असंखिज्जभागं आहारेंति, अनेगाइं च णं भागसहस्साइं अनासाइज्जमाणाइं अफासाइज्जमाणाइं विद्धंसमावज्जंति। एतेसिं णं भंते! पोग्गलाणं अनासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा गोयमा! सव्वत्थोवा पुग्गला अनासाइज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अनंतगुणा। बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति ते णं तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति? गोयमा! जिब्भिंदिय-फासिंदिय वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। बेइंदियाणं भंते! पुव्वाहारिया पुग्गला परिणया तहेव जाव चलियं कम्मं निज्जरंति। तेइंदिय-चउरिंदियाणं नाणत्तं ठीतीए जाव नेगाइं च णं भागसहस्साइं अनाघाइज्जमाणाइं अनासाइज्जमाणाइं अफासाइज्जमाणाइं विद्धंसमागच्छंति। एतेसिं णं भंते! पोग्गलाणं अनासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा गोयमा! सव्वत्थोवा पोग्गला अनाघाइज्जमाणा, अनासाइज्जमाणा अनंतगुणा, अफा-साइज्जमाणा अनंतगुणा। तेइंदियाणं घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। चउरिंदियाणं चक्खिंदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ठितिं भाणिऊण ऊसासो वेमायाए। आहारो अनाभोग-निव्व-त्तिओ अनुसमयं अविरहिओ। आभोगनिव्वत्तिओ जहन्नेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स। सेसं जहा चउरिंदियाणं जाव चलियं कम्मं निज्जरेंति। एवं मनुस्साण वि। नवरं आभोगनिव्वत्तिओ जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स। सोइंदिय ५ वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। सेसं तहेव जाव निज्जरेंति। वाणमंतराणं ठिईए नाणत्तं। अवसेसं जहा नागकुमाराणं | एवं जोइसियाण वि। नवरं उस्सासो जहन्नेणं मुहुत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेण वि मुहुत्तपुहत्तस्स। आहारो जहन्नेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेण वि दिवसपुहत्तस्स। सेसं तहेव। वेमाणियाणं ठिती भाणियव्वा ओहिया। ऊसासो जहन्नेणं मुहुत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्ती-साए पक्खाणं। आहारो आभोगनिव्वत्तिओ जहन्नेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वास-सहस्साणं सेसं तहेव जाव निज्जरेंति।] | ||
Sutra Meaning : | इसी तरह स्थिति और आहार के विषय में भी समझ लेना। जिस तरह स्थिति पद में कहा गया है उसी तरह स्थिति विषय में कहना चाहिए। सर्व जीव संबंधी आहार भी पन्नवणा सूत्र के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी तरह कहना चाहिए। भगवन् ! असुरकुमारों की स्थिति कितने काल की है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से कुछ अधिक की है। भगवन् ! असुरकुमार कितने समय में श्वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं? गौतम ! जघन्य सात स्तोकरूप काल में और उत्कृष्ट एक पक्ष से (कुछ) अधिक काल में श्वास लेते और छोड़ते हैं। हे भगवन् ! क्या असुरकुमार आहार के अभिलाषी होते हैं ? हाँ, गौतम ! (वे) आहार के अभिलाषी होते हैं। हे भगवन् ! असुरकुमारों को कितने काल में आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है ? गौतम ! असुरकुमारों को आहार दो प्रकार का कहा गया है; जैसे कि – आभोगनिवर्त्तित और अनाभोग – निवर्त्तित। इन दोनों में से जो अनाभोग – निर्वर्त्तित आहार है, वह विरहरहित प्रतिसमय (सतत) होता रहता है। (किन्तु) आभोगनिवर्त्तित आहार की अभिलाषा जघन्य चतुर्थभक्त अर्थात् – एक अहोरात्र से और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष से कुछ अधिक काल में होती है। भगवन् ! असुरकुमार किन पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! द्रव्य से अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं। क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से प्रज्ञापनासूत्र का वही वर्णन जान लेना चाहिए, जो नैरयिकों के प्रकरण में कहा गया है। हे भगवन् ! असुरकुमारों द्वारा आहार किये हुए पुद्गल किस रूप में बार – बार परिणत होते हैं ? हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय रूप में यावत् स्पर्शेन्द्रिय रूप में, सुन्दर रूप में, सुवर्णरूप में, इष्ट रूप में, ईच्छित रूप में, मनोहर (अभिलषित) रूप में, ऊर्ध्वरूप में परिणत होते हैं, अधःरूप में नहीं; सुखरूप में परिणत होते हैं, किन्तु दुःखरूप में परिणत नहीं होते। हे भगवन् ! क्या असुरकुमारों द्वारा आहृत – पुद्गल परिणत हुए ? गौतम ! असुरकुमारों के अभिलाप में, अर्थात् – नारकों के स्थान पर ‘असुरकुमार’ शब्द का प्रयोग करके अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं, यहाँ तक सभी आलापक नारकों के समान ही समझना। हे भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट कुछ कम दो पल्योपम की है। हे भगवन् ! नागकुमार देव कितने समय में श्वास लेते हैं और छोड़ते हैं? गौतम ! जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः मुहूर्त्त – पृथक्त्व में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। भगवन् ! क्या नागकुमार देव आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! वे आहारार्थी होते हैं। भगवन् ! नागकुमार देवों को कितने काल के अनन्तर आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? गौतम ! नागकुमार देवों का आहार दो प्रकार का कहा गया है – आभोगनिवर्त्तित और अनाभोग – निवर्त्तित। इनमें जो अनाभोग – निवर्त्तित आहार है, वह प्रतिसमय विरहरहित (सतत) होता है; किन्तु आभोगनिवर्त्तित आहार की अभिलाषा जघन्यतः चतुर्थभक्त (एक अहोरात्र) पश्चात् और उत्कृष्टतः दिवस – पृथक्त्व के बाद उत्पन्न होती है। शेष ‘चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, किन्तु अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते’ यहाँ तक सारा वर्णन असुरकुमार देवों की तरह समझ लेना चाहिए। इसी तरह सुपर्णकुमार देवों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक के भी (स्थिति से लेकर चलित कर्म – निर्जरा तक के) सभी आलापक (पूर्ववत्) कह देने चाहिए। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में श्वास – निःश्वास लेते हैं ? गौतम ! (वे) विमात्रा से – विविध या विषम काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आहार के अभिलापी होते हैं? हाँ, गौतम ! वे आहारार्थी होते हैं। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? हे गौतम ! (उन्हें) प्रतिसमय विरहरहित निरन्तर आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या आहार करते हैं ? गौतम ! वे द्रव्य से अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि सब बातें नैरयिकों के समान जानना चाहिए। यावत् पृथ्वीकायिक जीव व्याघात न होतो छहों दिशाओं से आहार लेते हैं। व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच दिशाओं से आहार लेते हैं। वर्ण की अपेक्षा से काला, नीला, पीला, लाल, हारिद्र तथा शुक्ल वर्ण के द्रव्यों का आहार करते हैं। गन्ध की अपेक्षा से सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध, दोनों गन्ध वाले, रस की अपेक्षा से तिक्त आदि पाँचों रस वाले, स्पर्श की अपेक्षा से कर्कश आदि आठों स्पर्श वाले द्रव्यों का आहार करते हैं। शेष सब वर्णन पूर्ववत् ही समझना। सिर्फ भेद यह है – भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीव कितने भाग का आहार करते हैं और कितने भाग का स्पर्श – आस्वादन करते हैं ? गौतम ! वे असंख्यातवे भाग का आहार करते हैं और अनन्तवे भाग का स्पर्श – आस्वादन करते हैं। यावत् – ‘हे गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय के रूप में साता – असातारूप विविध प्रकार से बार – बार परिणत होते हैं। (यावत्) ‘अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते’, यहाँ तक का सब वर्णन नैरयिकों के समान समझना। इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय तक के जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए। अन्तर केवल इतना है कि जिसकी जितनी स्थिति हो उसकी उतनी स्थिति कह देनी चाहिए तथा इन सबका उच्छ्वास भी विमात्रा से – विविध प्रकार से – जानना चाहिए; द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कह लेनी चाहिए। उनका श्वासोच्छ्वास विमात्रा से कहना। द्वीन्द्रिय जीवों के आहार के विषय में (यों) पृच्छा करना। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? अनाभोग – निवर्त्तित आहार पहले के ही समान समझना। जो आभोग – निवर्त्तित आहार है, उसकी अभिलाषा विमात्रा से असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त्त में होती है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप से ग्रहण करते हैं, क्या वे उन सबका आहार कर लेते हैं? अथवा उन सबका आहार नहीं करते ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों का आहार दो प्रकार का कहा गया है, जैसे कि – रोमाहार और प्रक्षेपाहार। जिन पुद्गलों को वे रोमाहार द्वारा ग्रहण करते हैं, उन सबका सम्पूर्णरूप से आहार करते हैं; जिन पुद्गलों को वे प्रक्षेपाहाररूप से ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों में से असंख्यातवाँ भाग आहार ग्रहण किया जाता है, और (शेष) अनेक – सहस्त्रभाग बिना आस्वाद किये और बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं। हे भगवन् ! इन बिना आस्वादन किये हुए और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन – से पुद्गल, किन पुद्गलों से अल्प हैं, बहुत हैं, अथवा तुल्य हैं, या विशेषाधिक हैं ? हे गौतम ! आस्वाद में नहीं आए हुए पुद्गल सबसे थोड़े हैं, स्पर्श में नहीं आए हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनके किस रूप में बार – बार परिणत होते हैं ? गौतम ! वे पुद्गल उनके विविधतापूर्वक जिह्वेन्द्रिय रूप में और स्पर्शेन्द्रिय रूप में बार – बार परिणत होते हैं। हे भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को क्या पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए हैं ? ये ‘चलित कर्म की निर्जरा करते हैं’ यहाँ तक सारा वर्णन पहले की तरह समझना। त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति में भेद है। यावत् अनेक – सहस्रभाग बिना सूँघे, बिना चखे तथा बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं। भगवन् ! इन नहीं सूँघे हुए, नहीं चखे हुए और नहीं स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन किससे थोड़ा, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? नहीं सूँघे हुए पुद्गल सबसे थोड़े हैं, उनसे अनन्तगुने नहीं चखे हुए पुद्गल हैं, और उनसे भी अनन्तगुणे पुद्गल नहीं स्पर्श किये हुए हैं। त्रीन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहार घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार – बार परिणत होता है। चतुरिन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार – बार परिणत होता है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कहकर उनका उच्छ्वास विमात्रा से कहना चाहिए, उनका अनाभोगनिवर्त्तित आहार प्रतिसमय विरहरहित होता है। आभोगनिवर्त्तित आहार जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त में और उत्कृष्ट षष्ठभक्त होने पर होता है। शेष वक्तव्य ‘अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते,’ तक चतुरिन्द्रिय जीवों के समान समझना। मनुष्यों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही जानना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि उनका आभोगनिवर्त्तित आहार जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त में, उत्कृष्ट अष्टमभक्त अर्थात् तीन दिन बीतने पर होता है। पंचेन्द्रिय जीवों द्वारा गृहीत आहार श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, और स्पर्शनेन्द्रिय, इन पाँचों इन्द्रियों के रूप में विमात्रा से बार – बार परिणत होता है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए; यावत् वे ‘अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते।’ वाणव्यन्तर देवों की स्थिति में भिन्नता है। शेष समस्त वर्णन नागकुमारदेवों की तरह समझना चाहिए। इसी तरह ज्योतिष्क देवों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उनका उच्छ्वास जघन्य मुहूर्त्त – पृथक्त्व और उत्कृष्ट भी मुहूर्त्तपृथक्त्व के बाद होता है। उनका आहार जघन्य दिवसपृथक्त्व से और उत्कृष्ट दिवसपृथक्त्व के पश्चात् होता है। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। वैमानिक देवों की औघिक स्थिति कहनी चाहिए। उनका उच्छ्वास जघन्य मुहूर्त्तपृथक्त्व से, और उत्कृष्ट तैंतीस पक्ष के पश्चात् होता है। उनका आभोगनिवर्त्तित आहार जघन्य दिवसपृथक्त्व से और उत्कृष्ट ३३००० वर्ष के पश्चात् होता है। वे ‘चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते,’ इत्यादि, शेष वर्णन पूर्ववत् | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] evam thii aharo ya bhaniyavvo. Thiti jaha– Thitipade taha bhaniyavva savvajivanam. Aharo vi jaha pannavanae padhame aharuddesae taha bhaniyavvo, etto adhatto–neraiya nam bhamte! Aharatthi? Java dukkhattae bhujjo-bhujjo parinamamti. Asurakumara nam bhamte! Kevaikalassa anamamti va 4? Goyama! Jahannenam sattanham thovanam, ukkosenam sairegassa pakkhassa anamamti va 4 | Asurakumara nam bhamte! Aharatthi? Hamta, aharatthi. [asurakumara nam bhamte! Kevaikalassa aharatthe samuppajjai? Goyama! Asurakumaranam duvihe Ahare pannatte. Tamjaha-abhoganivvattie ya, anabhoganivvattie ya. Tattha nam je se anabhoga nivvattie se anusamayam avirahie aharatthe samuppajjai. Tattha nam je se abhoganivvattie se jahannenam chauttha-bhattassa, ukkosenam sairegassa vasasahassassa aharatthe samuppajjaI.Asurakumara nam bhamte! Kimaharamaharemti? Goyama! Davvao anamtapaesiyaim davvaim, khitta-kala-bhava pannavanagamenam. Sesam jaha neraiyanam java te nam tesim poggala kisattae bhujjo bhujjo parinamamti? Goyama! Soimdiyattae suruvattae suvannattae itthattae ichchhiyattae abhijjhiyattae, uddhattae, no ahattae, suhattae, no duhattae bhujjo bhujjo parinamamti. Asurakumaranam puvvahariya puggala parinaya? Goyama! Asurakumarabhilavenam jaha neraiyanam java chaliyam kammam nijjaramti. Nagakumaranam bhamte! Kevaiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam dasa vasasahassaim, ukkosenam desunaim do paliovamaim. Nagakumara nam bhamte! Kevaikalassa anamamti va0? Goyama! Jahannenam sattanham thovanam, ukkosenam muhuttapuhattassa anamamti va0. Nagakumara nam bhamte! Aharatthi? Hamta, goyama! Aharatthi. Nagakumaranam bhamte! Kevaikalassa aharatthe samuppajjai? Goyama! Nagakumaranam duvihe ahare pannatte. Tam jaha- abhoganivvattie ya anabhoganivvattie ya. Tattha nam je se anabhoganivvattie se anusamayam avirahie aharatthe samuppajjai, tattha nam je se abhoganivvattie se jahannenam chautthabhattassa, ukkosenam divasapuhattassa ahararthe samuppajjai. Sesam jaha asurakumaranam java chaliyam kammam nijjaremti, no achaliyam kammam nijjaremti. Evam suvannakumarana vi java thaniyakumaranam ti. Pudhavikkaiyanam bhamte! Kevaiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam bavisam vasasahassaim. Pudhavikkaiya kevaikalassa anamamti va0? Goyama! Vemayae anamamti va0. Pudhavikkaiya aharatthi? Hamta, aharatthi. Pudhavikkaiyanam kevaikalassa aharatthe samuppajjai? Goyama! Anusamayam avirahie aharatthe samuppajjai. Pudhavikkaiya kimaharamaharemti? Goyama! Davvao jaha neraiyanam java nivvaghaenam chhaddisim; vaghayam paduchcha siya tidisim, siya chau-ddisim siya pamchadisim. Vannao kala-nila-lohita-halidda-sukkilani. Gamdhao subbhigamdha 2, rasao titta 5, phasao kakkhada 8. Sesam taheva. Nanattamkatibhagam aharemti? Kaibhagam phasademti? Goyama! Asamkhijjaibhagam aharemti, anamtabhagam phasademti java te nam tesim poggala kisattae bhujjo bhujjo parinamamti? Goyama! Phasimdiyavemayattae bhujjo bhujjo parinamamti. Sesam jaha neraiyanam java chaliyam kammam nijjaremti, no achaliyam kammam nijjaremti. Evam java vanassaikaiyanam. Navaram thiti vanneyavva ja jassa, ussaso vemayae. Beimdiyanam thii bhaniyavva. Usaso vemayae. Beimdiyanam ahare puchchha. Anabhoganivvattio taheva. Tattha nam je se abhoganivvattie se nam asamkhejjasamaie amtomuhuttie vemayae aharatthe samuppajjai. Sesam taheva java anamtabhagam asayamti. Beimdiya nam bhamte! Je poggale aharattae genhamti te kim savve aharemti? No savve aharemti? Goyama! Beimdiyanam duvihe ahare pannatte. Tam jaha-lomahare pakkhevahare ya. Je poggale lomaharattae ginhamti te savve aparisesie aharemti. Je poggale pakkhevaharattae ginhamti tesim nam poggalanam asamkhijjabhagam aharemti, anegaim cha nam bhagasahassaim anasaijjamanaim aphasaijjamanaim viddhamsamavajjamti. Etesim nam bhamte! Poggalanam anasaijjamananam aphasaijjamanana ya kayare kayarehimto appa va goyama! Savvatthova puggala anasaijjamana, aphasaijjamana anamtaguna. Beimdiya nam bhamte! Je poggale aharattae ginhamti te nam tesim puggala kisattae bhujjo bhujjo parinamamti? Goyama! Jibbhimdiya-phasimdiya vemayattae bhujjo bhujjo parinamamti. Beimdiyanam bhamte! Puvvahariya puggala parinaya taheva java chaliyam kammam nijjaramti. Teimdiya-chaurimdiyanam nanattam thitie java negaim cha nam bhagasahassaim anaghaijjamanaim anasaijjamanaim aphasaijjamanaim viddhamsamagachchhamti. Etesim nam bhamte! Poggalanam anasaijjamananam aphasaijjamanana ya kayare kayarehimto appa va goyama! Savvatthova poggala anaghaijjamana, anasaijjamana anamtaguna, apha-saijjamana anamtaguna. Teimdiyanam ghanimdiya-jibbhimdiya-phasimdiyavemayattae bhujjo bhujjo parinamamti. Chaurimdiyanam chakkhimdiya-ghanimdiya-jibbhimdiya-phasimdiyattae bhujjo bhujjo parinamamti. Pamchidiyatirikkhajoniyanam thitim bhaniuna usaso vemayae. Aharo anabhoga-nivva-ttio anusamayam avirahio. Abhoganivvattio jahannenam amtomuhuttassa, ukkosenam chhatthabhattassa. Sesam jaha chaurimdiyanam java chaliyam kammam nijjaremti. Evam manussana vi. Navaram abhoganivvattio jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam atthamabhattassa. Soimdiya 5 vemayattae bhujjo bhujjo parinamamti. Sesam taheva java nijjaremti. Vanamamtaranam thiie nanattam. Avasesam jaha nagakumaranam | Evam joisiyana vi. Navaram ussaso jahannenam muhuttapuhattassa, ukkosena vi muhuttapuhattassa. Aharo jahannenam divasapuhattassa, ukkosena vi divasapuhattassa. Sesam taheva. Vemaniyanam thiti bhaniyavva ohiya. Usaso jahannenam muhuttapuhattassa, ukkosenam tetti-sae pakkhanam. Aharo abhoganivvattio jahannenam divasapuhattassa, ukkosenam tettisae vasa-sahassanam Sesam taheva java nijjaremti.] | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isi taraha sthiti aura ahara ke vishaya mem bhi samajha lena. Jisa taraha sthiti pada mem kaha gaya hai usi taraha sthiti vishaya mem kahana chahie. Sarva jiva sambamdhi ahara bhi pannavana sutra ke prathama uddeshaka mem kaha gaya hai usi taraha kahana chahie. Bhagavan ! Asurakumarom ki sthiti kitane kala ki hai\? He gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta eka sagaropama se kuchha adhika ki hai. Bhagavan ! Asurakumara kitane samaya mem shvasa lete haim aura nihshvasa chhorate haim? Gautama ! Jaghanya sata stokarupa kala mem aura utkrishta eka paksha se (kuchha) adhika kala mem shvasa lete aura chhorate haim. He bhagavan ! Kya asurakumara ahara ke abhilashi hote haim\? Ham, gautama ! (ve) ahara ke abhilashi hote haim. He bhagavan ! Asurakumarom ko kitane kala mem ahara ki ichchha utpanna hoti hai\? Gautama ! Asurakumarom ko ahara do prakara ka kaha gaya hai; jaise ki – abhoganivarttita aura anabhoga – nivarttita. Ina donom mem se jo anabhoga – nirvarttita ahara hai, vaha viraharahita pratisamaya (satata) hota rahata hai. (kintu) abhoganivarttita ahara ki abhilasha jaghanya chaturthabhakta arthat – eka ahoratra se aura utkrishta eka hajara varsha se kuchha adhika kala mem hoti hai. Bhagavan ! Asurakumara kina pudgalom ka ahara karate haim\? Gautama ! Dravya se anantapradeshi dravyom ka ahara karate haim. Kshetra, kala aura bhava ki apeksha se prajnyapanasutra ka vahi varnana jana lena chahie, jo nairayikom ke prakarana mem kaha gaya hai. He bhagavan ! Asurakumarom dvara ahara kiye hue pudgala kisa rupa mem bara – bara parinata hote haim\? He gautama ! Shrotrendriya rupa mem yavat sparshendriya rupa mem, sundara rupa mem, suvarnarupa mem, ishta rupa mem, ichchhita rupa mem, manohara (abhilashita) rupa mem, urdhvarupa mem parinata hote haim, adhahrupa mem nahim; sukharupa mem parinata hote haim, kintu duhkharupa mem parinata nahim hote. He bhagavan ! Kya asurakumarom dvara ahrita – pudgala parinata hue\? Gautama ! Asurakumarom ke abhilapa mem, arthat – narakom ke sthana para ‘asurakumara’ shabda ka prayoga karake achalita karma ki nirjara karate haim, yaham taka sabhi alapaka narakom ke samana hi samajhana. He bhagavan ! Nagakumara devom ki sthiti kitane kala ki kahi gai hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta kuchha kama do palyopama ki hai. He bhagavan ! Nagakumara deva kitane samaya mem shvasa lete haim aura chhorate haim? Gautama ! Jaghanyatah sata stoka mem aura utkrishtatah muhurtta – prithaktva mem shvasochchhvasa lete haim. Bhagavan ! Kya nagakumara deva ahararthi hote haim\? Ham, gautama ! Ve ahararthi hote haim. Bhagavan ! Nagakumara devom ko kitane kala ke anantara ahara ki abhilasha utpanna hoti hai\? Gautama ! Nagakumara devom ka ahara do prakara ka kaha gaya hai – abhoganivarttita aura anabhoga – nivarttita. Inamem jo anabhoga – nivarttita ahara hai, vaha pratisamaya viraharahita (satata) hota hai; kintu abhoganivarttita ahara ki abhilasha jaghanyatah chaturthabhakta (eka ahoratra) pashchat aura utkrishtatah divasa – prithaktva ke bada utpanna hoti hai. Shesha ‘chalita karma ki nirjara karate haim, kintu achalita karma ki nirjara nahim karate’ yaham taka sara varnana asurakumara devom ki taraha samajha lena chahie. Isi taraha suparnakumara devom se lekara stanitakumara devom taka ke bhi (sthiti se lekara chalita karma – nirjara taka ke) sabhi alapaka (purvavat) kaha dene chahie. Bhagavan ! Prithvikayika jivom ki sthiti kitane kala ki kahi gai hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta ki, aura utkrishta baisa hajara varsha ki hai. Bhagavan ! Prithvikayika jiva kitane kala mem shvasa – nihshvasa lete haim\? Gautama ! (ve) vimatra se – vividha ya vishama kala mem shvasochchhvasa lete haim. Bhagavan ! Prithvikayika jiva ahara ke abhilapi hote haim? Ham, gautama ! Ve ahararthi hote haim. Bhagavan ! Prithvikayika jivom ko kitane kala mem ahara ki abhilasha utpanna hoti hai\? He gautama ! (unhem) pratisamaya viraharahita nirantara ahara ki abhilasha utpanna hoti hai. Bhagavan ! Prithvikayika jiva kya ahara karate haim\? Gautama ! Ve dravya se anantapradeshi dravyom ka ahara karate haim, ityadi saba batem nairayikom ke samana janana chahie. Yavat prithvikayika jiva vyaghata na hoto chhahom dishaom se ahara lete haim. Vyaghata ho to kadachit tina dishaom se, kadachit chara aura kadachit pamcha dishaom se ahara lete haim. Varna ki apeksha se kala, nila, pila, lala, haridra tatha shukla varna ke dravyom ka ahara karate haim. Gandha ki apeksha se surabhigandha aura durabhigandha, donom gandha vale, rasa ki apeksha se tikta adi pamchom rasa vale, sparsha ki apeksha se karkasha adi athom sparsha vale dravyom ka ahara karate haim. Shesha saba varnana purvavat hi samajhana. Sirpha bheda yaha hai – bhagavan ! Prithvikaya ke jiva kitane bhaga ka ahara karate haim aura kitane bhaga ka sparsha – asvadana karate haim\? Gautama ! Ve asamkhyatave bhaga ka ahara karate haim aura anantave bhaga ka sparsha – asvadana karate haim. Yavat – ‘he gautama ! Sparshendriya ke rupa mem sata – asatarupa vividha prakara se bara – bara parinata hote haim. (yavat) ‘achalita karma ki nirjara nahim karate’, yaham taka ka saba varnana nairayikom ke samana samajhana. Isi prakara apkaya, tejaskaya, vayukaya aura vanaspatikaya taka ke jivom ke vishaya mem samajha lena chahie. Antara kevala itana hai ki jisaki jitani sthiti ho usaki utani sthiti kaha deni chahie tatha ina sabaka uchchhvasa bhi vimatra se – vividha prakara se – janana chahie; dvindriya jivom ki sthiti kaha leni chahie. Unaka shvasochchhvasa vimatra se kahana. Dvindriya jivom ke ahara ke vishaya mem (yom) prichchha karana. Bhagavan ! Dvindriya jivom ko kitane kala mem ahara ki abhilasha hoti hai\? Anabhoga – nivarttita ahara pahale ke hi samana samajhana. Jo abhoga – nivarttita ahara hai, usaki abhilasha vimatra se asamkhyata samaya vale antarmuhurtta mem hoti hai. Shesha saba varnana purvavat janana Bhagavan ! Dvindriya jiva jina pudgalom ko ahararupa se grahana karate haim, kya ve una sabaka ahara kara lete haim? Athava una sabaka ahara nahim karate\? Gautama ! Dvindriya jivom ka ahara do prakara ka kaha gaya hai, jaise ki – romahara aura prakshepahara. Jina pudgalom ko ve romahara dvara grahana karate haim, una sabaka sampurnarupa se ahara karate haim; jina pudgalom ko ve prakshepahararupa se grahana karate haim, una pudgalom mem se asamkhyatavam bhaga ahara grahana kiya jata hai, aura (shesha) aneka – sahastrabhaga bina asvada kiye aura bina sparsha kiye hi nashta ho jate haim. He bhagavan ! Ina bina asvadana kiye hue aura bina sparsha kiye hue pudgalom mem se kauna – se pudgala, kina pudgalom se alpa haim, bahuta haim, athava tulya haim, ya visheshadhika haim\? He gautama ! Asvada mem nahim ae hue pudgala sabase thore haim, sparsha mem nahim ae hue pudgala unase anantaguna haim. Bhagavan ! Dvindriya jiva jina pudgalom ko ahararupa mem grahana karate haim, ve pudgala unake kisa rupa mem bara – bara parinata hote haim\? Gautama ! Ve pudgala unake vividhatapurvaka jihvendriya rupa mem aura sparshendriya rupa mem bara – bara parinata hote haim. He bhagavan ! Dvindriya jivom ko kya pahale ahara kiye hue pudgala parinata hue haim\? Ye ‘chalita karma ki nirjara karate haim’ yaham taka sara varnana pahale ki taraha samajhana. Trindriya aura chaturindriya jivom ki sthiti mem bheda hai. Yavat aneka – sahasrabhaga bina sumghe, bina chakhe tatha bina sparsha kiye hi nashta ho jate haim. Bhagavan ! Ina nahim sumghe hue, nahim chakhe hue aura nahim sparsha kiye hue pudgalom mem se kauna kisase thora, bahuta, tulya ya visheshadhika hai\? Nahim sumghe hue pudgala sabase thore haim, unase anantagune nahim chakhe hue pudgala haim, aura unase bhi anantagune pudgala nahim sparsha kiye hue haim. Trindriya jivom dvara kiya hua ahara ghranendriya, jihvendriya aura sparshendriya ke rupa mem bara – bara parinata hota hai. Chaturindriya jivom dvara kiya hua ahara chakshurindriya, ghranendriya, jihvendriya aura sparshendriya ke rupa mem bara – bara parinata hota hai. Panchendriya tiryamchayonika jivom ki sthiti kahakara unaka uchchhvasa vimatra se kahana chahie, unaka anabhoganivarttita ahara pratisamaya viraharahita hota hai. Abhoganivarttita ahara jaghanya antarmuhurtta mem aura utkrishta shashthabhakta hone para hota hai. Shesha vaktavya ‘achalita karma ki nirjara nahim karate,’ taka chaturindriya jivom ke samana samajhana. Manushyom ke sambandha mem bhi aisa hi janana chahie; kintu itana vishesha hai ki unaka abhoganivarttita ahara jaghanya antarmuhurtta mem, utkrishta ashtamabhakta arthat tina dina bitane para hota hai. Pamchendriya jivom dvara grihita ahara shrotrendriya, chakshurindriya, ghranendriya, rasanendriya, aura sparshanendriya, ina pamchom indriyom ke rupa mem vimatra se bara – bara parinata hota hai. Shesha saba varnana purvavat samajha lena chahie; yavat ve ‘achalita karma ki nirjara nahim karate.’ Vanavyantara devom ki sthiti mem bhinnata hai. Shesha samasta varnana nagakumaradevom ki taraha samajhana chahie. Isi taraha jyotishka devom ke sambandha mem bhi janana chahie. Itani visheshata hai ki unaka uchchhvasa jaghanya muhurtta – prithaktva aura utkrishta bhi muhurttaprithaktva ke bada hota hai. Unaka ahara jaghanya divasaprithaktva se aura utkrishta divasaprithaktva ke pashchat hota hai. Shesha sara varnana purvavat samajha lena chahie. Vaimanika devom ki aughika sthiti kahani chahie. Unaka uchchhvasa jaghanya muhurttaprithaktva se, aura utkrishta taimtisa paksha ke pashchat hota hai. Unaka abhoganivarttita ahara jaghanya divasaprithaktva se aura utkrishta 33000 varsha ke pashchat hota hai. Ve ‘chalita karma ki nirjara karate haim, achalita karma ki nirjara nahim karate,’ ityadi, shesha varnana purvavat |