Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002360 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-४ |
Translated Chapter : |
स्थान-४ |
Section : | उद्देशक-३ | Translated Section : | उद्देशक-३ |
Sutra Number : | 360 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] चउव्विहे नाते पन्नत्ते, तं जहा–आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए। आहरणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अवाए, उवाए, ठवनाकम्मे, पडुप्पन्नविणासी। आहरणतद्देसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अनुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे। आहरणतद्दोसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवनीते, दुरुवनीते। उवण्णासोवणए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–तव्वत्थुते, तदन्नवत्थुते, पडिनिभे, हेतू। हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–जावए, थावए, वंसए, लूसए। अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पच्चक्खे, अनुमाने, ओवम्मे, आगमे। अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थित्तं अत्थि सो हेऊ, अत्थित्तं नत्थि सो हेऊ, नत्थित्तं अत्थि सो हेऊ, नत्थित्तं नत्थि सो हेऊ। | ||
Sutra Meaning : | ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के हैं। यथा – जिस दृष्टान्त से अव्यक्त अर्थ व्यक्त किया जाए। जिस दृष्टान्त से वस्तु के एकदेश का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से वादी द्वारा स्थापित सिद्धान्त का निराकरण किया जाए। अव्यक्त अर्थ को व्यक्त करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं। यथा – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। विघ्न – बाधा बताने वाले दृष्टान्त। द्रव्यादि से कार्यसिद्धि बताने वाले दृष्टान्त। जिस दृष्टान्त से परमत को दूषित सिद्ध करके स्वमत को निर्दोष सिद्ध किया जाए। जिस दृष्टान्त से तत्काल उत्पन्न वस्तु का विनाश सिद्ध किया जाए। वस्तु के एक देश का प्रतिपादन करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं। यथा – सद्गुणों की स्तुति से गुणवान के गुणों की प्रशंसा करना। असत्कार्य में प्रवृत्त मुनि को दृष्टान्त द्वारा उपालम्भ देना। किसी जिज्ञासु का दृष्टान्त द्वारा प्रश्न पूछना। एक व्यक्ति का उदाहरण देकर दूसरे को प्रतिबोध देना। सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं। यथा – जिस दृष्टान्त से पाप कार्य करने का संकल्प पैदा हो। जिस दृष्टान्त ‘‘जैसे को तैसा करना’’ सिखाया जाए। परमत को दूषित सिद्ध करने के लिए जो दृष्टान्त दिया जाए, उसी दृष्टान्त से स्वमत भी दूषित सिद्ध हो जाए। जिस दृष्टान्त में दुर्वचनों का या अशुद्ध वाक्यों का प्रयोग किया जाए। वादी के सिद्धान्त का निराकरण करने वाले दृष्टान्त चार प्रकार के हैं। यथा – वादी जिस दृष्टान्त से अपने पक्ष की स्थापना करे, प्रतिवादी भी उसी दृष्टान्त से अपने पक्ष की स्थापना करे। वादी दृष्टान्त से जिस वस्तु को सिद्ध करे प्रतिवादी उस दृष्टान्त से भिन्न वस्तु सिद्ध करे। वादी जैसा दृष्टान्त कहे प्रतिवादी को भी वैसा ही दृष्टान्त देने के लिए कहे। प्रश्नकर्ता जिस दृष्टान्त का प्रयोग करता है उत्तरदाता भी उसी दृष्टान्त का प्रयोग करता है। हेतु चार प्रकार के हैं। यथा – वादी का समय बिताने वाला हेतु। वादी द्वारा स्थापित हेतु के सदृश हेतु की स्थापना करने वाला हेतु। शब्द छल से दूसरे को व्यामोह पैदा करने वाला हेतु। धूर्त द्वारा अपहृत वस्तु को पुनः प्राप्त कर सके ऐसा हेतु। हेतु चार प्रकार के हैं। यथा – जो हेतु आत्मा द्वारा जाना जाए और जो हेतु इन्द्रियों द्वारा माना जाए। जिसके देखने से व्याप्ति का बोध हो ऐसा हेतु। यथा – धूआं देखने से अग्नि और धूएं की व्याप्ति का स्मरण होना। उपमा द्वारा समानता का बोध कराने वाला हेतु। आप्त – पुरुष कथित वचन। हेतु चार प्रकार के हैं। यथा – धूम के अस्तित्व से अग्नि का अस्तित्व सिद्ध करने वाला हेतु। अग्नि के अस्तित्व से विरोधी शीत का नास्तित्व सिद्ध करने वाला हेतु। अग्नि के अभाव में शीत का सद्भाव सिद्ध करने वाला हेतु। वृक्ष के अभाव में शाखा का अभाव सिद्ध करने वाला हेतु। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] chauvvihe nate pannatte, tam jaha–aharane, aharanataddese, aharanataddose, uvannasovanae. Aharane chauvvihe pannatte, tam jaha–avae, uvae, thavanakamme, paduppannavinasi. Aharanataddese chauvvihe pannatte, tam jaha–anusitthi, uvalambhe, puchchha, nissavayane. Aharanataddose chauvvihe pannatte, tam jaha–adhammajutte, padilome, attovanite, duruvanite. Uvannasovanae chauvvihe pannatte, tam jaha–tavvatthute, tadannavatthute, padinibhe, hetu. Heu chauvvihe pannatte, tam jaha–javae, thavae, vamsae, lusae. Ahava–heu chauvvihe pannatte, tam jaha–pachchakkhe, anumane, ovamme, agame. Ahava–heu chauvvihe pannatte, tam jaha–atthittam atthi so heu, atthittam natthi so heu, natthittam atthi so heu, natthittam natthi so heu. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jnyata (drishtanta) chara prakara ke haim. Yatha – jisa drishtanta se avyakta artha vyakta kiya jae. Jisa drishtanta se vastu ke ekadesha ka pratipadana kiya jae. Jisa drishtanta se sadosha siddhanta ka pratipadana kiya jae. Jisa drishtanta se vadi dvara sthapita siddhanta ka nirakarana kiya jae. Avyakta artha ko vyakta karane vale drishtanta chara prakara ke haim. Yatha – dravya, kshetra, kala aura bhava. Vighna – badha batane vale drishtanta. Dravyadi se karyasiddhi batane vale drishtanta. Jisa drishtanta se paramata ko dushita siddha karake svamata ko nirdosha siddha kiya jae. Jisa drishtanta se tatkala utpanna vastu ka vinasha siddha kiya jae. Vastu ke eka desha ka pratipadana karane vale drishtanta chara prakara ke haim. Yatha – sadgunom ki stuti se gunavana ke gunom ki prashamsa karana. Asatkarya mem pravritta muni ko drishtanta dvara upalambha dena. Kisi jijnyasu ka drishtanta dvara prashna puchhana. Eka vyakti ka udaharana dekara dusare ko pratibodha dena. Sadosha siddhanta ka pratipadana karane vale drishtanta chara prakara ke haim. Yatha – jisa drishtanta se papa karya karane ka samkalpa paida ho. Jisa drishtanta ‘‘jaise ko taisa karana’’ sikhaya jae. Paramata ko dushita siddha karane ke lie jo drishtanta diya jae, usi drishtanta se svamata bhi dushita siddha ho jae. Jisa drishtanta mem durvachanom ka ya ashuddha vakyom ka prayoga kiya jae. Vadi ke siddhanta ka nirakarana karane vale drishtanta chara prakara ke haim. Yatha – vadi jisa drishtanta se apane paksha ki sthapana kare, prativadi bhi usi drishtanta se apane paksha ki sthapana kare. Vadi drishtanta se jisa vastu ko siddha kare prativadi usa drishtanta se bhinna vastu siddha kare. Vadi jaisa drishtanta kahe prativadi ko bhi vaisa hi drishtanta dene ke lie kahe. Prashnakarta jisa drishtanta ka prayoga karata hai uttaradata bhi usi drishtanta ka prayoga karata hai. Hetu chara prakara ke haim. Yatha – vadi ka samaya bitane vala hetu. Vadi dvara sthapita hetu ke sadrisha hetu ki sthapana karane vala hetu. Shabda chhala se dusare ko vyamoha paida karane vala hetu. Dhurta dvara apahrita vastu ko punah prapta kara sake aisa hetu. Hetu chara prakara ke haim. Yatha – jo hetu atma dvara jana jae aura jo hetu indriyom dvara mana jae. Jisake dekhane se vyapti ka bodha ho aisa hetu. Yatha – dhuam dekhane se agni aura dhuem ki vyapti ka smarana hona. Upama dvara samanata ka bodha karane vala hetu. Apta – purusha kathita vachana. Hetu chara prakara ke haim. Yatha – dhuma ke astitva se agni ka astitva siddha karane vala hetu. Agni ke astitva se virodhi shita ka nastitva siddha karane vala hetu. Agni ke abhava mem shita ka sadbhava siddha karane vala hetu. Vriksha ke abhava mem shakha ka abhava siddha karane vala hetu. |