Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )

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Sr No : 1002347
Scripture Name( English ): Sthanang Translated Scripture Name : स्थानांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

स्थान-४

Translated Chapter :

स्थान-४

Section : उद्देशक-३ Translated Section : उद्देशक-३
Sutra Number : 347 Category : Ang-03
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] चत्तारि दुहसेज्जाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– १. तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए निग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेयसमावन्ने कलुससमावन्ने निग्गंथं पावयणं नो सद्दहति नो पत्तियति नो रोएइ, निग्गंथं पावयणं असद्दहमाने अपत्तियमाने अरोएमाने मणं उच्चावयं नियच्छति, विनिघात-मावज्जति–पढमा दुहसेज्जा। २. अहावरा दोच्चा दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए सएणं लाभेणं नो तुस्सति, परस्स लाभमासाएति पीहेति पत्थेति अभिलसति, परस्स लाभमासाएमाने पीहेमाने पत्थे-माने अभिलसमाने मणं उच्चावयं नियच्छइ, विनिघातमावज्जति–दोच्चा दुहसेज्जा। ३. अहावरा तच्चा दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए दिव्वे मानुस्सए कामभोगे आसाएइ पीहेति पत्थेति अभिलसति, दिव्वे मानुस्सए कामभोगे आसाएमाने पीहेमाने पत्थेमाने अभिलसमाने मणं उच्चावयं नियच्छति, विनिघातमावज्जति–तच्चा दुहसेज्जा। ४. अहावरा चउत्था दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तस्स णं एवं भवति–जया णं अहमगारवासमावसामि तदा णमहं संवाहण-परिमद्दण-गातब्भंग-गातुच्छोलणाइं लभामि, जप्पभिइं च णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए तप्पभिइं च णं अहं संवाहण परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाइं नो लभामि। से णं संवाहण परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाइं आसाएति पीहेति पत्थेति अभिलसति, से णं परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाइं आसाएमाने पीहेमाने पत्थेमाने अभिलसमाने मणं उच्चावयं नियच्छति, विनिघातमावज्जेति–चउत्था दुहसेज्जा। चत्तारि सुहसेज्जाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– १. तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए निग्गंथे पावयणे निस्संकिते निक्कंखिते णिव्वितिगिच्छिए नो भेदसमावन्ने नो कलुससमावन्ने निग्गंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ रोएति, निग्गंथं पावयणं सद्दहमाने पत्तियमाने रोएमाने नो मणं उच्चावयं नियच्छति, नो विणिघातमावज्जेति– पढमा सुहसेज्जा। २. अहावरा दोच्चा सुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए सएणं लाभेणं तुस्सति परस्स लाभं नो आसाएति नो पीहेति नो पत्थेति नो अभिलसति, परस्स लाभमनासाएमाने अपीहेमाने अपत्थेमाने अनभिलसमाने नो मणं उच्चावयं नियच्छति, नो विनिघातमावज्जति– दोच्चा सुह-सेज्जा। ३. अहावरा तच्चा सुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए दिव्वमानुस्सए कामभोगे नो आसाएति नो पीहेति नो पत्थेति नो अभिलसति, दिव्वमानुस्सए कामभोगे अणासा-एमाने अपीहेमाने अपत्थेमाने अनभिलसमाने नो मणं उच्चावयं नियच्छति, नो विनिघातमावज्जति–तच्चा सुहसेज्जा। ४. अहावरा चउत्था सुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तस्स णं एवं भवति–जइ ताव अरहंता भगवंतो हट्ठा अरोगा बलिया कल्लसरीरा अन्नयराइं ओरालाइं कल्लाणाइं विउलाइं पयताइं पग्गहिताइं महाणुभागाइं कम्मक्खय-करणाइं तवोकम्माइं पडिवज्जंति, किमंग पुण अहं अब्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं नो सम्मं सहामि खमामि तितिक्खेमि अहियासेमि? ममं च णं अभ्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं सम्ममसहमाणस्स अक्खममाणस्स अतितिक्खेमाणस्स अणहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जति? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति। ममं च णं अब्भोवगमिओ वक्कमियं वेयणं सम्मं सहमाणस्स खममाणस्स तितिक्खेमाणस्स अहिया-सेमाणस्स किं मन्नेकज्जति? एगंतसो मे निज्जरा कज्जति–चउत्था सुहसेज्जा।
Sutra Meaning : दुखशय्या चार प्रकार की है। उनमें यह प्रथम दुख शय्या है। यथा – एक व्यक्ति मुण्डित होकर यावत्‌ प्रव्रजित होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा करता है तो वह मानसिक दुविधा में धर्म विपरीत विचारों से निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि नहीं रखता है। निर्ग्रन्थ प्रवचन में अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि रखने पर श्रमण का मन सदा ऊंचा नीचा रहता है अतः वह धर्म भ्रष्ट हो जाता है। यह दूसरी सुख शय्या है। यथा – ‘‘एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ – प्रव्रजित होकर स्वयं को जो आहार आदि प्राप्त है, उससे सन्तुष्ट नहीं होता है और दूसरे को जो आहार आदि प्राप्त है, उनकी ईच्छा करता है’’ ऐसे श्रमण का मन सदा ऊंचा – नीचा रहता है अतः वह धर्म भ्रष्ट हो जाता है। यह तीसरी दुख शय्या है – एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ – प्रव्रजित होकर जो दिव्य मानवी कामभोगों का आस्वादन – यावत्‌ – अभिलाषा करता है। उस श्रमण का मन सदा डांवाडोल रहता है अतः वह धर्मभ्रष्ट हो जाता है। यह चौथी दुःख शय्या है – एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित होकर ऐसा सोचता है कि मैं जब घर पर था तब मालिश, मर्दन, स्नान आदि नियमित करता था और जब से मैं मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित हुआ हूँ तब से मैं मालिश, मर्दन आदि नहीं कर पाता हूँ – इस प्रकार श्रमण जो मालिश यावत्‌ स्नान आदि की ईच्छा यावत्‌ अभिलाषा करता है उसका मन सदा डांवाडोल रहता है अतः वह धर्म भ्रष्ट हो जाता है। सुखशय्या चार प्रकार की है उनमें से यह प्रथम सुख शय्या है। यथा – एक व्यक्ति मुण्डित होकर यावत्‌ – प्रव्रजित होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा नहीं करता है तो वह न दुविधा में पड़ता है और न धर्म विपरीत विचार रखता है। निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि रखने पर श्रमण का मन डांवाडोल नहीं होता, अतः वह धर्म भ्रष्ट भी नहीं होता। यह दूसरी सुख शय्या है – एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित होकर स्वयं को प्राप्त आहार आदि से संतुष्ट रहता है और अन्य को प्राप्त आहार आदि की अभिलाषा नहीं रखता है – ऐसे श्रमण का मन कभी ऊंचा नीचा नहीं होता और न वह धर्म – भ्रष्ट होता है। यह तीसरी सुख शय्या है – एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित होकर दिव्य मानवी कामभोगों का आस्वादन – यावत्‌ अभिलाषा नहीं करता है उसका मन डांवाडोल नहीं होता है, अतः धर्म भ्रष्ट भी नहीं होता। यह चौथी सुख शय्या है – एक व्यक्ति मुण्डित यावत्‌ प्रव्रजित होकर ऐसा सोचता है कि – ‘अरिहंत भगवंत आरोग्यशाली, बलवान शरीर के धारक, उदार कल्याण विपुल कर्मक्षयकारी तपःकर्म को अंगीकार करते हैं, तो मुझे तो जो वेदना आदि उपस्थित हुई है उसे सम्यक्‌ प्रकार से सहन करना चाहिए। यदि मैं आगत वेदनी कर्मों को सम्यक्‌ प्रकार से सहन नहीं करूँगा तो एकान्त पापकर्म का भागी होऊंगा। यदि सम्यक्‌ प्रकार से सहन करूँगा तो एकान्त कर्म निर्जरा कर सकूँगा।’ इस प्रकार धर्म में स्थिर रहता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] chattari duhasejjao pannattao, tam jaha– 1. Tattha khalu ima padhama duhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie niggamthe pavayane samkite kamkhite vitigichchhite bheyasamavanne kalusasamavanne niggamtham pavayanam no saddahati no pattiyati no roei, niggamtham pavayanam asaddahamane apattiyamane aroemane manam uchchavayam niyachchhati, vinighata-mavajjati–padhama duhasejja. 2. Ahavara dochcha duhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie saenam labhenam no tussati, parassa labhamasaeti piheti pattheti abhilasati, parassa labhamasaemane pihemane patthe-mane abhilasamane manam uchchavayam niyachchhai, vinighatamavajjati–dochcha duhasejja. 3. Ahavara tachcha duhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie divve manussae kamabhoge asaei piheti pattheti abhilasati, divve manussae kamabhoge asaemane pihemane patthemane abhilasamane manam uchchavayam niyachchhati, vinighatamavajjati–tachcha duhasejja. 4. Ahavara chauttha duhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, tassa nam evam bhavati–jaya nam ahamagaravasamavasami tada namaham samvahana-parimaddana-gatabbhamga-gatuchchholanaim labhami, jappabhiim cha nam aham mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie tappabhiim cha nam aham samvahana parimaddana-gatabbhamga gatuchchholanaim no labhami. Se nam samvahana parimaddana-gatabbhamga gatuchchholanaim asaeti piheti pattheti abhilasati, se nam parimaddana-gatabbhamga gatuchchholanaim asaemane pihemane patthemane abhilasamane manam uchchavayam niyachchhati, vinighatamavajjeti–chauttha duhasejja. Chattari suhasejjao pannattao, tam jaha– 1. Tattha khalu ima padhama suhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie niggamthe pavayane nissamkite nikkamkhite nivvitigichchhie no bhedasamavanne no kalusasamavanne niggamtham pavayanam saddahai pattiyai roeti, niggamtham pavayanam saddahamane pattiyamane roemane no manam uchchavayam niyachchhati, no vinighatamavajjeti– padhama suhasejja. 2. Ahavara dochcha suhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie saenam labhenam tussati parassa labham no asaeti no piheti no pattheti no abhilasati, parassa labhamanasaemane apihemane apatthemane anabhilasamane no manam uchchavayam niyachchhati, no vinighatamavajjati– dochcha suha-sejja. 3. Ahavara tachcha suhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie divvamanussae kamabhoge no asaeti no piheti no pattheti no abhilasati, divvamanussae kamabhoge anasa-emane apihemane apatthemane anabhilasamane no manam uchchavayam niyachchhati, no vinighatamavajjati–tachcha suhasejja. 4. Ahavara chauttha suhasejja–se nam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, tassa nam evam bhavati–jai tava arahamta bhagavamto hattha aroga baliya kallasarira annayaraim oralaim kallanaim viulaim payataim paggahitaim mahanubhagaim kammakkhaya-karanaim tavokammaim padivajjamti, kimamga puna aham abbhovagamiovakkamiyam veyanam no sammam sahami khamami titikkhemi ahiyasemi? Mamam cha nam abhbhovagamiovakkamiyam veyanam sammamasahamanassa akkhamamanassa atitikkhemanassa anahiyasemanassa kim manne kajjati? Egamtaso me pave kamme kajjati. Mamam cha nam abbhovagamio vakkamiyam veyanam sammam sahamanassa khamamanassa titikkhemanassa ahiya-semanassa kim mannekajjati? Egamtaso me nijjara kajjati–chauttha suhasejja.
Sutra Meaning Transliteration : Dukhashayya chara prakara ki hai. Unamem yaha prathama dukha shayya hai. Yatha – eka vyakti mundita hokara yavat pravrajita hokara nirgrantha pravachana mem shamka, kamksha, vichikitsa karata hai to vaha manasika duvidha mem dharma viparita vicharom se nirgrantha pravachana mem shraddha, pratiti evam ruchi nahim rakhata hai. Nirgrantha pravachana mem ashraddha, apratiti aura aruchi rakhane para shramana ka mana sada umcha nicha rahata hai atah vaha dharma bhrashta ho jata hai. Yaha dusari sukha shayya hai. Yatha – ‘‘eka vyakti mundita yavat – pravrajita hokara svayam ko jo ahara adi prapta hai, usase santushta nahim hota hai aura dusare ko jo ahara adi prapta hai, unaki ichchha karata hai’’ aise shramana ka mana sada umcha – nicha rahata hai atah vaha dharma bhrashta ho jata hai. Yaha tisari dukha shayya hai – eka vyakti mundita yavat – pravrajita hokara jo divya manavi kamabhogom ka asvadana – yavat – abhilasha karata hai. Usa shramana ka mana sada damvadola rahata hai atah vaha dharmabhrashta ho jata hai. Yaha chauthi duhkha shayya hai – eka vyakti mundita yavat pravrajita hokara aisa sochata hai ki maim jaba ghara para tha taba malisha, mardana, snana adi niyamita karata tha aura jaba se maim mundita yavat pravrajita hua hum taba se maim malisha, mardana adi nahim kara pata hum – isa prakara shramana jo malisha yavat snana adi ki ichchha yavat abhilasha karata hai usaka mana sada damvadola rahata hai atah vaha dharma bhrashta ho jata hai. Sukhashayya chara prakara ki hai unamem se yaha prathama sukha shayya hai. Yatha – eka vyakti mundita hokara yavat – pravrajita hokara nirgrantha pravachana mem shamka, kamksha, vichikitsa nahim karata hai to vaha na duvidha mem parata hai aura na dharma viparita vichara rakhata hai. Nirgrantha pravachana mem shraddha, pratiti evam ruchi rakhane para shramana ka mana damvadola nahim hota, atah vaha dharma bhrashta bhi nahim hota. Yaha dusari sukha shayya hai – eka vyakti mundita yavat pravrajita hokara svayam ko prapta ahara adi se samtushta rahata hai aura anya ko prapta ahara adi ki abhilasha nahim rakhata hai – aise shramana ka mana kabhi umcha nicha nahim hota aura na vaha dharma – bhrashta hota hai. Yaha tisari sukha shayya hai – eka vyakti mundita yavat pravrajita hokara divya manavi kamabhogom ka asvadana – yavat abhilasha nahim karata hai usaka mana damvadola nahim hota hai, atah dharma bhrashta bhi nahim hota. Yaha chauthi sukha shayya hai – eka vyakti mundita yavat pravrajita hokara aisa sochata hai ki – ‘arihamta bhagavamta arogyashali, balavana sharira ke dharaka, udara kalyana vipula karmakshayakari tapahkarma ko amgikara karate haim, to mujhe to jo vedana adi upasthita hui hai use samyak prakara se sahana karana chahie. Yadi maim agata vedani karmom ko samyak prakara se sahana nahim karumga to ekanta papakarma ka bhagi houmga. Yadi samyak prakara se sahana karumga to ekanta karma nirjara kara sakumga.’ isa prakara dharma mem sthira rahata hai.