Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002345 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-४ |
Translated Chapter : |
स्थान-४ |
Section : | उद्देशक-३ | Translated Section : | उद्देशक-३ |
Sutra Number : | 345 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा– १.अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, से णं मानुस्सए कामभोगे नो आढाइ, नो परियाणाति, नो अट्ठं बंधइ, नो नियाणं पगरेति, नो ठितिपगप्पं पगरेति। २. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्सए कामभोगे पेमे वोच्छिन्ने दिव्वे संकंते भवति। ३. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवति–इण्हिं गच्छं मुहुत्तेणं गच्छं, तेणं कालेणमप्पाउया मनुस्सा कालधम्मुणा संजुत्ता भवति। ४. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्सए गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवति, उड्ढंपि य णं मानुस्सए गंधे जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं हव्वमागच्छति। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। चउहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा– १. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवति–अत्थि खलु मम मानुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति गणावच्छेदेति वा, जेसिं पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागते, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि नमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि। २. अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणज्झोववन्ने, तस्स णमेवं भवति–एस णं मानुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अइदुक्कर-दुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि नमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि। ३. अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणज्झोववन्ने, तस्स णमेवं भवति–अत्थि णं मम मानुस्सए भवे माताति वा, पियाति वा भायाति वा भगिनीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता मे इममेतारूवं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवानुभावं लद्धं पत्तं अभिसमन्नागतं। ४. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणज्झोववन्ने, तस्स णमेवं भवति–अत्थि णं मम मानुस्सए भवे मित्तेति वा सहाति वा सुहीति वा सहाएति वा संगइएति वा, तेसिं च णं अम्हे अन्नमन्नस्स संगारे पडिसुते भवति–जो मे पुव्विं चयति से संबोहेतव्वे। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोएसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए संचाएति हव्वमागच्छित्तए। | ||
Sutra Meaning : | देवलोक में उत्पन्न होते ही कोई देवता मनुष्य लोक में आना चाहता है किन्तु चार कारणों से वह नहीं आ सकता। यथा – १. देवलोक में उत्पन्न होते ही एक देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध एवं आसक्त हो जाता है, अतः वह मानव कामभोगों को न प्राप्त करना चाहता है और न उन्हें श्रेष्ठ मानता है। मानव कामभोगों से मुझे कोई लाभ नहीं है – ऐसा निश्चय कर लेता है। मुझे मानव कामभोग मिले ऐसी कामना भी नहीं करता और मानव कामभोगों में मैं कुछ समय लगा रहूँ – ऐसा विकल्प भी मन में नहीं लाता। २. देवलोक में उत्पन्न होते ही एक देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् – आसक्त हो जाता है, अतः उसका मानव प्रेम दैवी प्रेम में परिणत हो जाता है। ३. देवलोक में उत्पन्न होते ही एक देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् – आसक्त हो जाता है, अतः उसके मन में यह विकल्प आता है कि ‘‘मैं अभी जाऊंगा या एक मुहूर्त्त पश्चात् जाऊंगा’’ ऐसा सोचते – सोचते उसके पूर्व जन्म के प्रेमी कालधर्म को प्राप्त हो जाते हैं। ४. देवलोक में उत्पन्न होते हुए ही एक देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् – आसक्त हो जाता है, अतः उसे मनुष्य लोक की गन्ध भी अच्छी नहीं लगती। क्योंकि मनुष्य लोक की गन्ध चारसो पाँच योजन तक जाती है। देवलोक से उत्पन्न होते ही देवता मनुष्य लोक में आना चाहता है और इन चार कारणों से आ भी सकता है। १. देवलोक में उत्पन्न होते ही देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् – आसक्त नहीं होता क्योंकि उसके मन में यह विकल्प आता है कि मेरे मनुष्य भव क आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर और गणावच्छेदक है उनकी कृपा से मुझे यह दिव्य देवसृष्टि, दिव्य देवद्युति प्राप्त हुई है, अतः मैं जाऊं और उन्हें वन्दना करूँ – यावत् पर्युपासना करूँ। २. देवलोक में उत्पन्न होते ही देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् आसक्त नहीं होता, क्योंकि मन में यह विकल्प आता है कि इस मनुष्य में जो ज्ञानी या दुष्कर तप करने वाले तपस्वी हैं उन भगवंतों की वन्दना करूँ – यावत् पर्युपासना करूँ। ३. देवलोक में उत्पन्न होते ही देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् – आसक्त नहीं होता क्योंकि उसके मन में यह विकल्प आता है कि – मेरे मनुष्य भव के माता – पिता यावत् – पुत्रवधू है, उनके समीप जाऊं और उन्हें दिखाऊं कि मुझे ऐसी दिव्य देवसृष्टि और दिव्य देवद्युति प्राप्त हुई है। ४. देवलोक में उत्पन्न होते ही देवता दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित यावत् आसक्त नहीं होता क्योंकि उसके मन में यह विकल्प आता है कि – मेरे मनुष्यभव के मित्र, सखी, सुहृत, सखा या संगी हैं उनके और मेरे साथ यह वादा हो चूका है कि – जो पहले मरेगा वह कहने के लिए आयेगा। इन चार कारणों से देवता देवलोक में उत्पन्न होते ही मूर्च्छित यावत् – आसक्त नहीं होता है और मनुष्य लोक में आ सकता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] chauhim thanehim ahunovavanne deve devalogesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaeti havvamagachchhittae, tam jaha– 1.Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu muchchhite giddhe gadhite ajjhovavanne, se nam manussae kamabhoge no adhai, no pariyanati, no attham bamdhai, no niyanam pagareti, no thitipagappam pagareti. 2. Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu muchchhite giddhe gadhite ajjhovavanne, tassa nam manussae kamabhoge peme vochchhinne divve samkamte bhavati. 3. Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu muchchhite giddhe gadhite ajjhovavanne, tassa nam evam bhavati–inhim gachchham muhuttenam gachchham, tenam kalenamappauya manussa kaladhammuna samjutta bhavati. 4. Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu muchchhite giddhe gadhite ajjhovavanne, tassa nam manussae gamdhe padikule padilome yavi bhavati, uddhampi ya nam manussae gamdhe java chattari pamcha joyanasayaim havvamagachchhati. Ichchetehim chauhim thanehim ahunovavanne deve devaloesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, no cheva nam samchaeti havvamagachchhittae. Chauhim thanehim ahunovavanne deve devaloesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae, samchaeti havvamagachchhittae, tam jaha– 1. Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu amuchchhite agiddhe agadhite anajjhovavanne, tassa nam evam bhavati–atthi khalu mama manussae bhave ayarieti va uvajjhaeti va pavattiti va thereti va ganiti va ganadhareti ganavachchhedeti va, jesim pabhavenam mae ima etaruva divva deviddhi divva devajuti divve devanubhave laddhe patte abhisamannagate, tam gachchhami nam te bhagavamte vamdami namamsami sakkaremi sammanemi kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasami. 2. Ahunovavanne deve devaloesu divvesu kamabhogesu amuchchhite agiddhe agadhite anajjhovavanne, tassa namevam bhavati–esa nam manussae bhave naniti va tavassiti va aidukkara-dukkarakarage, tam gachchhami nam te bhagavamte vamdami namamsami sakkaremi sammanemi kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasami. 3. Ahunovavanne deve devaloesu divvesu kamabhogesu amuchchhite agiddhe agadhite anajjhovavanne, tassa namevam bhavati–atthi nam mama manussae bhave matati va, piyati va bhayati va bhaginiti va bhajjati va puttati va dhuyati va sunhati va, tam gachchhami nam tesimamtiyam paubbhavami, pasamtu ta me imametaruvam divvam deviddhim divvam devajutim divvam devanubhavam laddham pattam abhisamannagatam. 4. Ahunovavanne deve devalogesu divvesu kamabhogesu amuchchhite agiddhe agadhite anajjhovavanne, tassa namevam bhavati–atthi nam mama manussae bhave mitteti va sahati va suhiti va sahaeti va samgaieti va, tesim cha nam amhe annamannassa samgare padisute bhavati–jo me puvvim chayati se sambohetavve. Ichchetehim chauhim thanehim ahunovavanne deve devaloesu ichchhejja manusam logam havvamagachchhittae samchaeti havvamagachchhittae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Devaloka mem utpanna hote hi koi devata manushya loka mem ana chahata hai kintu chara karanom se vaha nahim a sakata. Yatha – 1. Devaloka mem utpanna hote hi eka devata divya kamabhogom mem murchchhita, griddha, baddha evam asakta ho jata hai, atah vaha manava kamabhogom ko na prapta karana chahata hai aura na unhem shreshtha manata hai. Manava kamabhogom se mujhe koi labha nahim hai – aisa nishchaya kara leta hai. Mujhe manava kamabhoga mile aisi kamana bhi nahim karata aura manava kamabhogom mem maim kuchha samaya laga rahum – aisa vikalpa bhi mana mem nahim lata. 2. Devaloka mem utpanna hote hi eka devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat – asakta ho jata hai, atah usaka manava prema daivi prema mem parinata ho jata hai. 3. Devaloka mem utpanna hote hi eka devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat – asakta ho jata hai, atah usake mana mem yaha vikalpa ata hai ki ‘‘maim abhi jaumga ya eka muhurtta pashchat jaumga’’ aisa sochate – sochate usake purva janma ke premi kaladharma ko prapta ho jate haim. 4. Devaloka mem utpanna hote hue hi eka devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat – asakta ho jata hai, atah use manushya loka ki gandha bhi achchhi nahim lagati. Kyomki manushya loka ki gandha charaso pamcha yojana taka jati hai. Devaloka se utpanna hote hi devata manushya loka mem ana chahata hai aura ina chara karanom se a bhi sakata hai. 1. Devaloka mem utpanna hote hi devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat – asakta nahim hota kyomki usake mana mem yaha vikalpa ata hai ki mere manushya bhava ka acharya, upadhyaya, pravartaka, sthavira, gani, ganadhara aura ganavachchhedaka hai unaki kripa se mujhe yaha divya devasrishti, divya devadyuti prapta hui hai, atah maim jaum aura unhem vandana karum – yavat paryupasana karum. 2. Devaloka mem utpanna hote hi devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat asakta nahim hota, kyomki mana mem yaha vikalpa ata hai ki isa manushya mem jo jnyani ya dushkara tapa karane vale tapasvi haim una bhagavamtom ki vandana karum – yavat paryupasana karum. 3. Devaloka mem utpanna hote hi devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat – asakta nahim hota kyomki usake mana mem yaha vikalpa ata hai ki – mere manushya bhava ke mata – pita yavat – putravadhu hai, unake samipa jaum aura unhem dikhaum ki mujhe aisi divya devasrishti aura divya devadyuti prapta hui hai. 4. Devaloka mem utpanna hote hi devata divya kamabhogom mem murchchhita yavat asakta nahim hota kyomki usake mana mem yaha vikalpa ata hai ki – mere manushyabhava ke mitra, sakhi, suhrita, sakha ya samgi haim unake aura mere satha yaha vada ho chuka hai ki – jo pahale marega vaha kahane ke lie ayega. Ina chara karanom se devata devaloka mem utpanna hote hi murchchhita yavat – asakta nahim hota hai aura manushya loka mem a sakata hai. |