Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001659 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 659 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरे एक्कारसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिए त्ति आहिज्जइ–जे इमे भवंति गूढायारा तमोकासिया उलूगपत्तलहुया पव्वयगुरुया, ते आरिया वि संता अनारियाओ भासाओ पउंजंति, अन्नहा संतं अप्पाणं अन्नहा मण्णंति, अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरेंति, अन्नं आइक्खियव्वं अन्नं आइक्खंति। से जहानामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं नो सयं णीहरति, नो अन्नेन णीहरावेति, नो पडिविद्धंसेति, एवमेव णिण्हवेति, अविउट्टमाणे अंतो-अंतो रियाति, एवमेव माई मायं कट्टु नो आलोएइ, नो पडिक्कमेइ, नो णिंदइ, नो गरहइ, नो विउट्टइ, नो विसोहेइ, नो अकरणाए अब्भुट्ठेइ, नो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जइ। माई अस्सिं लोए पच्चायाति, माई परंसि लोए पच्चायाति, णिंदइ, पसंसति, णिच्चरति, न णियट्टति, णिसिरिया दंडं छाएइ, माई असमाहडसुहलेस्से यावि भवइ। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ। एक्कारसमे किरियाट्ठाणे मायावत्तिए त्ति आहिए। | ||
Sutra Meaning : | ग्यारहवाँ क्रियास्थान है, मायाप्रत्ययिक है। ऐसे व्यक्ति, जो किसी को पता न चल सके, ऐसे गूढ़ आचार वाले होते हैं, लोगों को अंधेरे में रखकर कायचेष्टा या क्रिया करते हैं, तथा उल्लू के पंख के समान हलके होते हुए भी अपने आपको पर्वत के समान बड़ा भारी समझते हैं, वे आर्य्य होते हुए भी अनार्यभाषाओं का प्रयोग करते हैं, वे अन्य रूप में होते हुए भी स्वयं को अन्यथा मानते हैं; वे दूसरी बात पूछने पर दूसरी बात का व्याख्यान करने लगते हैं, दूसरी बात कहने के स्थान पर दूसरी बात का वर्णन करने पर उतर जाते हैं। (उदाहरणार्थ – ) जैसे किसी पुरुष के अन्तर में शल्य गड़ गया हो, वह उस शल्य को स्वयं नहीं नीकालता न किसी दूसरे से नीकलवाता है, और न उस शल्य को नष्ट करवाता है, प्रत्युत निष्प्रयोजन ही उसे छिपाता है, तथा उसकी वेदना से अंदर ही अंदर पीड़ित होता हुआ उसे सहता रहता है, इसी प्रकार मायी व्यक्ति भी माया करके उस मायाशल्य को निन्दा के भय से स्वयं आलोचना नहीं करता, न उसका अतिक्रमण करता है, न निन्दा करता है, न गर्हा करता है, न वह उसको प्रायश्चित्त आदि उपायों से तोड़ता है, और न उसकी शुद्धि करता है, उसे पुनः पुनः न करने के लिए भी उद्यत नहीं होता, तथा उस पापकर्म के अनुरूप यथायोग्य तपश्चरण के रूप में प्रायश्चित्त भी स्वीकार नहीं करता। इस प्रकार मायी इस लोक में प्रख्यात हो जाता है, अविश्वसनीय हो जाता है; परलोक में भी पुनः पुनः जन्म – मरण करता रहता है। वह दूसरे की निन्दा करता है, दूसरे से धृणा करता है, अपनी प्रशंसा करता है, निश्चिन्त होकर बूरे कार्यों में प्रवृत्त होता है, असत् कार्यों से निवृत्त नहीं होता, प्राणियों को दण्ड दे कर भी उसे स्वीकारता नहीं, छिपाता है। ऐसा मायावी शुभ लेश्याओं को अंगीकार भी नहीं करता। ऐसा मायी पुरुष पूर्वोक्त प्रकार की माया युक्त क्रियाओं के कारण पापकर्म का बन्ध करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavare ekkarasame kiriyatthane mayavattie tti ahijjai–je ime bhavamti gudhayara tamokasiya ulugapattalahuya pavvayaguruya, te ariya vi samta anariyao bhasao paumjamti, annaha samtam appanam annaha mannamti, annam puttha annam vagaremti, annam aikkhiyavvam annam aikkhamti. Se jahanamae kei purise amtosalle tam sallam no sayam niharati, no annena niharaveti, no padividdhamseti, evameva ninhaveti, aviuttamane amto-amto riyati, evameva mai mayam kattu no aloei, no padikkamei, no nimdai, no garahai, no viuttai, no visohei, no akaranae abbhutthei, no ahariham tavokammam payachchhittam padivajjai. Mai assim loe pachchayati, mai paramsi loe pachchayati, nimdai, pasamsati, nichcharati, na niyattati, nisiriya damdam chhaei, mai asamahadasuhalesse yavi bhavai. Evam khalu tassa tappattiyam savajjam ti ahijjai. Ekkarasame kiriyatthane mayavattie tti ahie. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Gyarahavam kriyasthana hai, mayapratyayika hai. Aise vyakti, jo kisi ko pata na chala sake, aise gurha achara vale hote haim, logom ko amdhere mem rakhakara kayacheshta ya kriya karate haim, tatha ullu ke pamkha ke samana halake hote hue bhi apane apako parvata ke samana bara bhari samajhate haim, ve aryya hote hue bhi anaryabhashaom ka prayoga karate haim, ve anya rupa mem hote hue bhi svayam ko anyatha manate haim; ve dusari bata puchhane para dusari bata ka vyakhyana karane lagate haim, dusari bata kahane ke sthana para dusari bata ka varnana karane para utara jate haim. (udaharanartha – ) jaise kisi purusha ke antara mem shalya gara gaya ho, vaha usa shalya ko svayam nahim nikalata na kisi dusare se nikalavata hai, aura na usa shalya ko nashta karavata hai, pratyuta nishprayojana hi use chhipata hai, tatha usaki vedana se amdara hi amdara pirita hota hua use sahata rahata hai, isi prakara mayi vyakti bhi maya karake usa mayashalya ko ninda ke bhaya se svayam alochana nahim karata, na usaka atikramana karata hai, na ninda karata hai, na garha karata hai, na vaha usako prayashchitta adi upayom se torata hai, aura na usaki shuddhi karata hai, use punah punah na karane ke lie bhi udyata nahim hota, tatha usa papakarma ke anurupa yathayogya tapashcharana ke rupa mem prayashchitta bhi svikara nahim karata. Isa prakara mayi isa loka mem prakhyata ho jata hai, avishvasaniya ho jata hai; paraloka mem bhi punah punah janma – marana karata rahata hai. Vaha dusare ki ninda karata hai, dusare se dhrina karata hai, apani prashamsa karata hai, nishchinta hokara bure karyom mem pravritta hota hai, asat karyom se nivritta nahim hota, praniyom ko danda de kara bhi use svikarata nahim, chhipata hai. Aisa mayavi shubha leshyaom ko amgikara bhi nahim karata. Aisa mayi purusha purvokta prakara ki maya yukta kriyaom ke karana papakarma ka bandha karata hai. |