Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001635 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 635 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाते–अह पुरिसे दक्खिणाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणिं, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। तं च एत्थ एगं पुरिसजाय पासइ पहीणतीरं, अपत्तपउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए ‘नो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णं’। तए णं से पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी–अहो! णं इमे पुरिसे ‘अदेसकालण्णे अखेत्तण्णे अकुसले अपंडिए अविअत्ते अमेधावी बाले नो मग्गण्णे नो मग्गविदू नो मग्गस्स गति-आगतिण्णे नो परक्क-मण्णू’, जण्णं एस पुरिसे ‘अहं देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खि-स्सामि’ नो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एस पुरिसे मण्णे। अहमंसि पुरिसे देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू, अहमेत पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पोक्खरणि। जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीए, नो हव्वाए नो पाराए, ‘अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे’ – दोच्चे पुरिसजाते। | ||
Sutra Meaning : | अब दूसरे पुरुष का वृत्तान्त बताया जाता है। दूसरा पुरुष दक्षिण दिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर दक्षिण किनारे पर ठहर कर उस श्रेष्ठ पुण्डरीक को देखता है, जो विशिष्ट क्रमबद्ध रचना से युक्त है, यावत् अत्यन्त सुन्दर है। वहाँ वह उस पुरुष को देखता है, जो किनारे से बहुत दूर हट चूका है, और उस प्रधान श्वेत – कमल तक पहुँच नहीं पाया है; जो न इधर का रहा है, न उधर का, बल्कि उस पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़ में फँस गया है। तदनन्तर दक्षिण दिशा से आये हुए इस दूसरे पुरुष ने उस पहले पुरुष के विषय में कहा कि – ‘‘अहो ! यह पुरुष खेदज्ञ नहीं है, यह अकुशल है, पण्डित नहीं है, परिपक्व बुद्धि वाला तथा चतुर नहीं है, यह सभी बाल – अज्ञानी है। यह सत्पुरुषों के मार्ग में स्थित नहीं है, न ही यह व्यक्ति मार्गवेत्ता है। जिस मार्ग में चलकर उद्देश्य को प्राप्त करता है, उस मार्ग की गतिविधि तथा पराक्रम को यह नहीं जानता। जैसा कि इस व्यक्ति ने यह समझा था कि मैं बड़ा खेदज्ञ या क्षेत्रज्ञ हूँ, कुशल हूँ, यावत् पूर्वोक्त विशेषताओं से युक्त हूँ, मैं इस पुण्डरीक को उखाड़ कर ले आऊंगा, किन्तु यह पुण्डरीक इस तरह उखाड़ कर नहीं लाया जा सकता जैसा कि यह व्यक्ति समझ रहा है।’’ ‘‘मैं खेदज्ञ पुरुष हूँ, कुशल हूँ, हिताहित विज्ञ हूँ, परिपक्वबुद्धिसम्पन्न प्रौढ़ हूँ, तथा मेघावी हूँ, मैं नादान बच्चा नहीं हूँ, पूर्वज आचरित मार्ग पर स्थित हूँ, उस पथ का ज्ञाता हूँ; उस मार्ग की गतिविधि और पराक्रम को जानता हूँ। मैं अवश्य ही इस उत्तम श्वेतकमल को उखाड़ कर बाहर निकाल लाऊंगा, यों कहकर वह द्वितीय पुरुष उस पुष्करिणी में उतर गया। ज्यों ज्यों वह आगे बढ़ता गया, त्यों – त्यों उसे अधिकाधिक जल और अधिकाधिक कीचड़ मिलता गया। इस तरह वह भी किनारे से दूर हट गया और उस प्रधान पुण्डरीक कमल को भी प्राप्त न कर सका। यों वह न इस पार का रहा और न उस पार का रहा। यह पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़ में फँस कर रह गया और दुःखी हो गया। यह दूसरे पुरुष का वृत्तान्त है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavare dochche purisajate–aha purise dakkhinao disao agamma tam pukkharanim, tise pukkharanie tire thichcha pasati tam maham egam paumavarapomdariyam anupuvvatthiyam usiyam ruilam vannamamtam gamdhamamtam rasamamtam phasamamtam pasadiyam darisaniyam abhiruvam padiruvam. Tam cha ettha egam purisajaya pasai pahinatiram, apattapaumavarapomdariyam, no havvae ‘no parae, amtara pokkharanie seyamsi visannam’. Tae nam se purise tam purisam evam vayasi–aho! Nam ime purise ‘adesakalanne akhettanne akusale apamdie aviatte amedhavi bale no magganne no maggavidu no maggassa gati-agatinne no parakka-mannu’, jannam esa purise ‘aham desakalanne khettanne kusale pamdite viatte medhavi abale magganne maggavidu maggassa gati-agatinne parakkamannu, ahameyam paumavarapomdariyam unnikkhi-ssami’ no ya khalu etam paumavarapomdariyam evam unnikkheyavvam jaha nam esa purise manne. Ahamamsi purise desakalanne khettanne kusale pamdite viatte medhavi abale magganne maggavidu maggassa gati-agatinne parakkamannu, ahameta paumavarapomdariyam unnikkhissami tti vachcha se purise abhikkame tam pokkharani. Java-javam cha nam abhikkamei tava-tavam cha nam mahamte udae mahamte see pahine tiram, apatte paumavarapomdarie, no havvae no parae, ‘amtara pokkharanie seyamsi visanne’ – dochche purisajate. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aba dusare purusha ka vrittanta bataya jata hai. Dusara purusha dakshina disha se usa pushkarini ke pasa akara dakshina kinare para thahara kara usa shreshtha pundarika ko dekhata hai, jo vishishta kramabaddha rachana se yukta hai, yavat atyanta sundara hai. Vaham vaha usa purusha ko dekhata hai, jo kinare se bahuta dura hata chuka hai, aura usa pradhana shveta – kamala taka pahumcha nahim paya hai; jo na idhara ka raha hai, na udhara ka, balki usa pushkarini ke bicha mem hi kichara mem phamsa gaya hai. Tadanantara dakshina disha se aye hue isa dusare purusha ne usa pahale purusha ke vishaya mem kaha ki – ‘‘aho ! Yaha purusha khedajnya nahim hai, yaha akushala hai, pandita nahim hai, paripakva buddhi vala tatha chatura nahim hai, yaha sabhi bala – ajnyani hai. Yaha satpurushom ke marga mem sthita nahim hai, na hi yaha vyakti margavetta hai. Jisa marga mem chalakara uddeshya ko prapta karata hai, usa marga ki gatividhi tatha parakrama ko yaha nahim janata. Jaisa ki isa vyakti ne yaha samajha tha ki maim bara khedajnya ya kshetrajnya hum, kushala hum, yavat purvokta visheshataom se yukta hum, maim isa pundarika ko ukhara kara le aumga, kintu yaha pundarika isa taraha ukhara kara nahim laya ja sakata jaisa ki yaha vyakti samajha raha hai.’’ ‘‘maim khedajnya purusha hum, kushala hum, hitahita vijnya hum, paripakvabuddhisampanna praurha hum, tatha meghavi hum, maim nadana bachcha nahim hum, purvaja acharita marga para sthita hum, usa patha ka jnyata hum; usa marga ki gatividhi aura parakrama ko janata hum. Maim avashya hi isa uttama shvetakamala ko ukhara kara bahara nikala laumga, yom kahakara vaha dvitiya purusha usa pushkarini mem utara gaya. Jyom jyom vaha age barhata gaya, tyom – tyom use adhikadhika jala aura adhikadhika kichara milata gaya. Isa taraha vaha bhi kinare se dura hata gaya aura usa pradhana pundarika kamala ko bhi prapta na kara saka. Yom vaha na isa para ka raha aura na usa para ka raha. Yaha pushkarini ke bicha mem hi kichara mem phamsa kara raha gaya aura duhkhi ho gaya. Yaha dusare purusha ka vrittanta hai. |