Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001634 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 634 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अह पुरिसे पुरत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणिं, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासंति तं महं एगं पउमवर-पोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। तए णं से पुरिसे एवं वयासी–अहमंसि पुरिसे ‘देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू। अहमेतं पउमवरपोंडरीयं ‘उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा’ से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणिं। जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए ‘णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे–पढमे पुरिसजाते’। | ||
Sutra Meaning : | अब कोई पुरुष पूर्वदिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर उस पुष्करिणी के तीर पर खड़ा होकर उस महान उत्तम एक पुण्डरीक को देखता है, जो क्रमशः सुन्दर रचना से युक्त यावत् बड़ा ही मनोहर है। इसके पश्चात् उस श्वेतकमल को देखकर उस पुरुष ने इस प्रकार कहा – ‘‘मैं पुरुष हूँ, खेदज्ञ हूँ, कुशल हूँ, पण्डित, व्यक्त, मेघावी तथा अबाल हूँ। मैं मार्गस्थ हूँ, मार्ग का ज्ञाता हूँ, मार्ग की गति एवं पराक्रम का विशेषज्ञ हूँ। मैं कमलों में श्रेष्ठ इस पुण्डरीक कमल को बाहर नीकाल लूँगा। इस ईच्छा से यहाँ आया हूँ – यह कहकर वह पुरुष उस पुष्करिणी में प्रवेश करता है। वह ज्यों – ज्यों उस पुष्करिणी में आगे बढ़ता जाता है, त्यों – त्यों उसमें अधिकाधिक गहरा पानी और कीचड़ का उसे सामना करना पड़ता है। अतः वह व्यक्ति तीर से भी हट चूका और श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल के पास भी नहीं पहुँच पाया। वह न इस पार का रहा, न उस पार का। अपितु उस पुष्करिणी के बीच में ही गहरे कीचड़ में फँस कर अत्यन्त क्लेश पाता है। यह प्रथम पुरुष की कथा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] aha purise puratthimao disao agamma tam pukkharanim, tise pukkharanie tire thichcha pasamti tam maham egam paumavara-pomdariyam anupuvvatthiyam usiyam ruilam vannamamtam gamdhamamtam rasamamtam phasamamtam pasadiyam darisaniyam abhiruvam padiruvam. Tae nam se purise evam vayasi–ahamamsi purise ‘desakalanne khettanne kusale pamdite viatte medhavi abale magganne maggavidu maggassa gati-agatinne parakkamannu. Ahametam paumavarapomdariyam ‘unnikkhissami tti vachcha’ se purise abhikkame tam pukkharanim. Java-javam cha nam abhikkamei tava-tavam cha nam mahamte udae mahamte see pahine tiram, apatte paumavarapomdariyam, no havvae ‘no parae, amtara pokkharanie seyamsi visanne–padhame purisajate’. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aba koi purusha purvadisha se usa pushkarini ke pasa akara usa pushkarini ke tira para khara hokara usa mahana uttama eka pundarika ko dekhata hai, jo kramashah sundara rachana se yukta yavat bara hi manohara hai. Isake pashchat usa shvetakamala ko dekhakara usa purusha ne isa prakara kaha – ‘‘maim purusha hum, khedajnya hum, kushala hum, pandita, vyakta, meghavi tatha abala hum. Maim margastha hum, marga ka jnyata hum, marga ki gati evam parakrama ka visheshajnya hum. Maim kamalom mem shreshtha isa pundarika kamala ko bahara nikala lumga. Isa ichchha se yaham aya hum – yaha kahakara vaha purusha usa pushkarini mem pravesha karata hai. Vaha jyom – jyom usa pushkarini mem age barhata jata hai, tyom – tyom usamem adhikadhika gahara pani aura kichara ka use samana karana parata hai. Atah vaha vyakti tira se bhi hata chuka aura shreshtha pundarika kamala ke pasa bhi nahim pahumcha paya. Vaha na isa para ka raha, na usa para ka. Apitu usa pushkarini ke bicha mem hi gahare kichara mem phamsa kara atyanta klesha pata hai. Yaha prathama purusha ki katha hai. |