Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )

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Sr No : 1000510
Scripture Name( English ): Acharang Translated Scripture Name : आचारांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Section : Translated Section :
Sutra Number : 510 Category : Ang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवानंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए सीहोब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिंसि गब्भं वक्कंते। समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए यावि होत्था–चइस्सामित्ति जाणइ, चुएमित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते। तओ णं ‘समणस्स भगवओ महावीरस्स’ अनुकंपए णं देवे णं ‘जीयमेयं’ ति कट्टु जे से वासाणं तच्चे मासे, पंचमे पक्खे–आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेहिं जोगमुवागएणं बासीतिहिं राइंदिएहिं वीइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहण-कुंडपुर-सन्निवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसंसि नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठ-सगोत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करेत्ता, सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता कुच्छिंसि गब्भं साहरइ। जेवि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भे, तंपि य दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवानंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए कुच्छिंसि साहरइ। समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था–साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, समणाउसो! तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अद्धट्ठमाणं राइंदियाणं वीतिक्कंताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे– चेत्तसुद्धे, तस्सणं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खेणं, हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया। जण्णं राइं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं राइं भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहिं य देवीहिं य ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सन्निवाते देव-कहक्कहे उप्पिंजलगभूए यावि होत्था। जण्णं रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च, गंधवासं च, चुण्णवासं च, हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु। जण्णं रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रयणिं भवनवइ-वाणमंतर-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स कोउगभूइकम्माइं तित्थयराभिसेयं च करिंसु। जओ णं पभिइ समणे भगवं महावीरे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भं आहुए, तओ णं पभिइ तं कुलं विपु-लेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्ढइ। तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो एयमट्ठं जानेत्ता णिव्वत्त-दसाहंसि वोक्कंतंसि सुचिभूयंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेंति, मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेत्ता बहवे समण-माहण-किवण-वणिमग-भिच्छुंडग-पंडरगातीण विच्छड्डेंति विगोवेंति विस्साणेंति, दायारे[ए?] सु णं दायं पज्जभाएंति, विच्छुड्डिता विगोवित्ता विस्साणित्ता दायारे[ए?] सु णं दायं पज्जभाएत्ता मित्त-नाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावेंति, मित्त-नाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावेत्ता मित्त-नाइ-सयण-संबंधिवग्गेणं इमेयारूवं नाम-धेज्जं करेंति– जओ णं पभिइ इमे कुमारे तिसलाए खत्तिया-णीए कुच्छिंसि गब्भे आहुए, तओ णं पभिइ इमं कुलं, विउलेणं हिर-ण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णेणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्ढइ, तो होउ णं कुमारे ‘वद्धमाणे’। तओ णं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवुडे, [तं जहा–खीरधाईए, मज्जणधाईए, मंडावनधाईए, खेल्लावन-धाईए, अंकधाईए] अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणे रम्मे मणिकोट्ठिमतले गिरिकंदरमल्लीणे व चंपयपायवे अहाणुपुव्वीए संवड्ढइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणये विणियत्तबाल-भावे अप्पुस्सुयाइं उरालाइं माणुस्सगाइं पंचलक्ख-णाइं कामभोगाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं परियारेमाणे, एवं च णं विहरइ।
Sutra Meaning : श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर महाविजयसिद्धार्थ पुष्पोत्तरवर पुण्डरीक, दिक्‌स्वस्तिक वर्द्धमान महाविमान से बीस सागरोपम की आयु पूर्ण करके देवायु, देवभव और देवस्थिति को समाप्त करके वहाँ से च्यवन किया। च्यवन करके इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष के दक्षिणार्द्ध, भारत के दक्षिण – ब्राह्मणकुण्डपुर सन्निवेश में कुडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालंधर गोत्रीया देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी की कुक्षि में सिंह की तरह गर्भ में अवतरित हुए। श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञान से युक्त थे। वे यह जानते थे कि मैं स्वर्ग से च्यवकर मनुष्यलोक में जाऊंगा। मैं वहाँ से च्यवकर गर्भ में आया हूँ, परन्तु वे च्यवन समय को नहीं जानते थे, क्योंकि वह काल अत्यन्त सूक्ष्म होता है। देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आने के बाद श्रमण भगवान महावीर के हीत और अनुकम्पा से प्रेरित होकर ‘यह जीत आचार है’, यह कहकर वर्षाकाल के तीसरे मास, पंचम पक्ष अर्थात्‌ – आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, ८२ वी रात्रिदिन के व्यतीत होने पर और ८२ वे दिन की रात को दक्षिण ब्राह्मणकुण्डपुर सन्निवेश से उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश में ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यप गोत्रीय सिद्धार्थ राजा की वाशिष्ठगोत्रीय पत्नी त्रिशला के अशुभ पुद्‌गलों को हटाकर उनके स्थान पर शुभ पुद्‌गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में गर्भ को स्थापित किया और त्रिशाला का गर्भ लेकर दक्षिणब्राह्मणकुण्डपुर सन्निवेश में कुडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालंधरगोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में रखा। आयुष्मन्‌ श्रमणों! श्रमण भगवान महावीर गर्भावासमें तीन ज्ञानसे युक्त थे। मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊंगा, यह वे जानते थे, मैं संहृत किया जा चूका हूँ, यह भी जानते थे, यह भी जानते थे कि मेरा संहरण हो रहा है। उस काल और उस समय में त्रिशला क्षत्रियाणी ने अन्यदा किसी समय नौ मास साढ़े सात अहोरात्र प्रायः पूर्ण व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वीतिय पक्ष में अर्थात्‌ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर सुखपूर्वक (श्रमण भगवान महावीर को) जन्म दिया। जिस रात्रि को त्रिशला क्षत्रियाणीने सुखपूर्वक जन्म दिया, उसी रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों के स्वर्ग से आने और मेरूपर्वत पर जाने – यों ऊपर – नीचे आवागमन से एक महान्‌ दिव्य देवोद्योत हो गया, देवों के एकत्र होने से लोकमें एक हलचल मच गई, देवों के परस्पर हास परिहास के कारण सर्वत्र कलकल नाद व्याप्त हो गया। जिस रात्रि त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्वस्थ श्रमण भगवान महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में बहुत से देवों और देवियों ने एक बड़ी भारी अमृतवर्षा, सुगन्धित पदार्थों की वृष्टि और सुवासित चूर्ण, पुष्प, चाँदी और सोने की वृष्टि की। जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने आरोग्यसम्पन्न श्रमण भगवान महावीर को सुखपूर्वक जन्म दिया, उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों ने श्रमण भगवान महावीर का कौतुक मंगल, शुचिकर्म तथा तीर्थंकराभिषेक किया। जब से श्रमण भगवान महावीर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में आए, तभी से उस कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक्य, मोती, शंख, शिला और प्रवाल (मूँगा) आदि की अत्यंत अभिवृद्धि होने लगी। तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर के माता – पिता ने भगवान महावीर के जन्म के दस दिन व्यतीत हो जाने के बाद ग्यारहवे दिन अशुचि निवारण करके शुचीभूत होकर, प्रचुर मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पदार्थ बनवाए उन्होंने अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धी – वर्ग को आमंत्रित किया। उन्होंने बहुत – से शाक्य आदि श्रमणों, ब्राह्मणों, दरिद्रों, भिक्षाचरों, भिक्षाभोजी, शरीर पर भस्म रमाकर भिक्षा माँगने वालों आदि को भी भोजन कराया, उनके लिए भोजन सुरक्षित रखाया, कईं लोगों को भोजन दिया, याचकों में दान बाँटा। अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धीजन आदि को भोजन कराया। पश्चात्‌ उनके समक्ष नामकरण के सम्बन्ध में कहा – जिस दिन से यह बालक त्रिशलादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप में आया, उसी दिन से हमारे कुल में प्रचुर मात्रा में चाँदी, सोना, धन, धान्य, माणिक, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि पदार्थों की अतीव अभिवृद्धि हो रही है। अतः इस कुमार का गुण – सम्पन्न नाम ‘वर्द्धमान’ हो। जन्म के बाद श्रमण भगवान महावीर का लालन – पालन पाँच धाय माताओं द्वारा होने लगा। जैसे कि – क्षीरधात्री, मज्जनधात्री, मंडनधात्री, क्रीड़ाधात्री, और अंकधात्री। वे इस प्रकार एक गोद से दूसरी गोद में संहृत होते हुए एवं मणिमण्डित रमणीय आँगन में (खेलते हुए) पर्वतीय गुफा में स्थित चम्पक वृक्ष की तरह कुमार वर्द्धमान क्रमशः सुखपूर्वक बढ़ने लगे। भगवान महावीर बाल्यावस्था को पार कर युवावस्था में प्रविष्ट हुए। उनका परिणय सम्पन्न हुआ और वे मनुष्य सम्बन्धी उदार शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श से युक्त पाँच प्रकार के कामभोगों का उदासीनभाव से उपभोग करते हुए त्यागभाव पूर्वक विचरण करने लगे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] samane bhagavam mahavire imae osappinie-susamasusamae samae viikkamtae, susamae samae vitikkamtae, susamadusamae samae vitikkamtae, dusamasusamae samae bahu vitikkamtae–pannahattarie vasehim, masehim ya addhanavamehim sesehim, je se gimhanam chautthe mase, atthame pakkhe–asadhasuddhe, tassanam asadhasuddhassa chhatthipakkhenam hatthuttarahim nakkhattenam jogamuvagaenam, mahavi-jaya-siddhattha-pupphuttara-pavara-pumdariya-disasovatthiya-vaddhamanao mahavimanao visam sagarovamaim auyam palaitta aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam chue chaitta iha khalu jabuddive dive, bharahe vase, dahinaddhabharahe dahinamahanakumdapura-sannivesamsi usabhadattassa mahanassa kodala-sagottassa devanamdae mahanie jalamdharayana-sagottae sihobbhavabhuenam appanenam kuchchhimsi gabbham vakkamte. Samane bhagavam mahavire tinnanovagae yavi hottha–chaissamitti janai, chuemitti janai, chayamane na janai, suhume nam se kale pannatte. Tao nam ‘samanassa bhagavao mahavirassa’ anukampae nam deve nam ‘jiyameyam’ ti kattu je se vasanam tachche mase, pamchame pakkhe–asoyabahule, tassa nam asoyabahulassa terasipakkhenam hatthuttarahim nakkhattehim jogamuvagaenam basitihim raimdiehim viikkamtehim tesiimassa raimdiyassa pariyae vattamane dahinamahana-kumdapura-sannivesao uttarakhattiyakumdapura-sannivesamsi nayanam khattiyanam siddhatthassa khattiyassa kasavagottassa tisalae khattiyanie vasittha-sagottae asubhanam puggalanam avaharam karetta, subhanam puggalanam pakkhevam karetta kuchchhimsi gabbham saharai. Jevi ya se tisalae khattiyanie kuchchhimsi gabbhe, tampi ya dahinamahanakumdapura-sannivesamsi usabhadattassa mahanassa kodala-sagottassa devanamdae mahanie jalamdharayana-sagottae kuchchhimsi saharai. Samane bhagavam mahavire tinnanovagae yavi hottha–saharijjissamitti janai, sahariemitti janai, saharijjamane vi janai, samanauso! Tenam kalenam tenam samaenam tisala khattiyani aha annaya kayai navanham masanam bahupadipunnanam, addhatthamanam raimdiyanam vitikkamtanam, je se gimhanam padhame mase, dochche pakkhe– chettasuddhe, tassanam chettasuddhassa terasipakkhenam, hatthuttarahim nakkhattenam jogovagaenam samanam bhagavam mahaviram aroya aroyam pasuya. Jannam raim tisala khattiyani samanam bhagavam mahaviram aroya aroyam pasuya, tannam raim bhavanavai-vanamamtara-joisiya-vimanavasidevehim ya devihim ya ovayamtehi ya uppayamtehi ya ege maham divve devujjoe deva-sannivate deva-kahakkahe uppimjalagabhue yavi hottha. Jannam rayanim tisala khattiyani samanam bhagavam mahaviram aroya aroyam pasuya, tannam rayanim bahave deva ya devio ya egam maham amayavasam cha, gamdhavasam cha, chunnavasam cha, hirannavasam cha, rayanavasam cha vasimsu. Jannam rayanim tisala khattiyani samanam bhagavam mahaviram aroya aroyam pasuya, tannam rayanim bhavanavai-vanamamtara-vimanavasino deva ya devio ya samanassa bhagavao mahavirassa kougabhuikammaim titthayarabhiseyam cha karimsu. Jao nam pabhii samane bhagavam mahavire tisalae khattiyanie kuchchhimsi gabbham ahue, tao nam pabhii tam kulam vipu-lenam hirannenam suvannenam dhanenam dhannenam manikkenam mottienam samkha-sila-ppavalenam aiva-aiva parivaddhai. Tao nam samanassa bhagavao mahavirassa ammapiyaro eyamattham janetta nivvatta-dasahamsi vokkamtamsi suchibhuyamsi vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavemti, vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavetta mitta-nati-sayana-sambamdhivaggam uvanimamtemti, mitta-nati-sayana-sambamdhivaggam uvanimamtetta bahave samana-mahana-kivana-vanimaga-bhichchhumdaga-pamdaragatina vichchhaddemti vigovemti vissanemti, dayare[e?] su nam dayam pajjabhaemti, vichchhuddita vigovitta vissanitta dayare[e?] su nam dayam pajjabhaetta mitta-nai-sayana-sambamdhivaggam bhumjavemti, mitta-nai-sayana-sambamdhivaggam bhumjavetta mitta-nai-sayana-sambamdhivaggenam imeyaruvam nama-dhejjam karemti– jao nam pabhii ime kumare tisalae khattiya-nie kuchchhimsi gabbhe ahue, tao nam pabhii imam kulam, viulenam hira-nnenam suvannenam dhanenam dhannenam manikkenam mottienam samkha-sila-ppavalenam aiva-aiva parivaddhai, to hou nam kumare ‘vaddhamane’. Tao nam samane bhagavam mahavire pamchadhatiparivude, [tam jaha–khiradhaie, majjanadhaie, mamdavanadhaie, khellavana-dhaie, amkadhaie] amkao amkam saharijjamane ramme manikotthimatale girikamdaramalline va champayapayave ahanupuvvie samvaddhai. Tao nam samane bhagavam mahavire vinnayaparinaye viniyattabala-bhave appussuyaim uralaim manussagaim pamchalakkha-naim kamabhogaim sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhaim pariyaremane, evam cha nam viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Shramana bhagavana mahavira ne isa avasarpini kala ke sushama – sushama namaka araka, sushama araka aura sushama – dushama araka ke vyatita hone para tatha dushama – sushama namaka araka ke adhikamsha vyatita ho jane para aura jaba kevala 75 varsha sarhe atha maha shesha raha gae the, taba grishma ritu ke chauthe masa, athave paksha, asharha shukla shashthi ki ratri ko; uttaraphalguni nakshatra ke satha chandrama ka yoga hone para mahavijayasiddhartha pushpottaravara pundarika, diksvastika varddhamana mahavimana se bisa sagaropama ki ayu purna karake devayu, devabhava aura devasthiti ko samapta karake vaham se chyavana kiya. Chyavana karake isa jambudvipa mem bharatavarsha ke dakshinarddha, bharata ke dakshina – brahmanakundapura sannivesha mem kudalagotriya rishabhadatta brahmana ki jalamdhara gotriya devananda nama ki brahmani ki kukshi mem simha ki taraha garbha mem avatarita hue. Shramana bhagavana mahavira tina jnyana se yukta the. Ve yaha janate the ki maim svarga se chyavakara manushyaloka mem jaumga. Maim vaham se chyavakara garbha mem aya hum, parantu ve chyavana samaya ko nahim janate the, kyomki vaha kala atyanta sukshma hota hai. Devananda brahmani ke garbha mem ane ke bada shramana bhagavana mahavira ke hita aura anukampa se prerita hokara ‘yaha jita achara hai’, yaha kahakara varshakala ke tisare masa, pamchama paksha arthat – ashvina krishna trayodashi ke dina uttaraphalguni nakshatra ke satha chandrama ka yoga hone para, 82 vi ratridina ke vyatita hone para aura 82 ve dina ki rata ko dakshina brahmanakundapura sannivesha se uttara kshatriyakundapura sannivesha mem jnyatavamshiya kshatriyom mem prasiddha kashyapa gotriya siddhartha raja ki vashishthagotriya patni trishala ke ashubha pudgalom ko hatakara unake sthana para shubha pudgalom ka prakshepana karake usaki kukshi mem garbha ko sthapita kiya aura trishala ka garbha lekara dakshinabrahmanakundapura sannivesha mem kudala gotriya rishabhadatta brahmana ki jalamdharagotriya devananda brahmani ki kukshi mem rakha. Ayushman shramanom! Shramana bhagavana mahavira garbhavasamem tina jnyanase yukta the. Maim isa sthana se samharana kiya jaumga, yaha ve janate the, maim samhrita kiya ja chuka hum, yaha bhi janate the, yaha bhi janate the ki mera samharana ho raha hai. Usa kala aura usa samaya mem trishala kshatriyani ne anyada kisi samaya nau masa sarhe sata ahoratra prayah purna vyatita hone para grishma ritu ke prathama masa ke dvitiya paksha mem arthat chaitra shukla trayodashi ke dina uttaraphalguni nakshatra ke satha chandrama ka yoga hone para sukhapurvaka (shramana bhagavana mahavira ko) janma diya. Jisa ratri ko trishala kshatriyanine sukhapurvaka janma diya, usi ratri mem bhavanapati, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika devom aura deviyom ke svarga se ane aura meruparvata para jane – yom upara – niche avagamana se eka mahan divya devodyota ho gaya, devom ke ekatra hone se lokamem eka halachala macha gai, devom ke paraspara hasa parihasa ke karana sarvatra kalakala nada vyapta ho gaya. Jisa ratri trishala kshatriyani ne svastha shramana bhagavana mahavira ko sukhapurvaka janma diya, usa ratri mem bahuta se devom aura deviyom ne eka bari bhari amritavarsha, sugandhita padarthom ki vrishti aura suvasita churna, pushpa, chamdi aura sone ki vrishti ki. Jisa ratri mem trishala kshatriyani ne arogyasampanna shramana bhagavana mahavira ko sukhapurvaka janma diya, usa ratri mem bhavanapati, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika devom aura deviyom ne shramana bhagavana mahavira ka kautuka mamgala, shuchikarma tatha tirthamkarabhisheka kiya. Jaba se shramana bhagavana mahavira trishala kshatriyani ki kukshi mem garbharupa mem ae, tabhi se usa kula mem prachura matra mem chamdi, sona, dhana, dhanya, manikya, moti, shamkha, shila aura pravala (mumga) adi ki atyamta abhivriddhi hone lagi. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke mata – pita ne bhagavana mahavira ke janma ke dasa dina vyatita ho jane ke bada gyarahave dina ashuchi nivarana karake shuchibhuta hokara, prachura matra mem ashana, pana, khadya aura svadya padartha banavae unhomne apane mitra, jnyati, svajana aura sambandhi – varga ko amamtrita kiya. Unhomne bahuta – se shakya adi shramanom, brahmanom, daridrom, bhikshacharom, bhikshabhoji, sharira para bhasma ramakara bhiksha mamgane valom adi ko bhi bhojana karaya, unake lie bhojana surakshita rakhaya, kaim logom ko bhojana diya, yachakom mem dana bamta. Apane mitra, jnyati, svajana, sambandhijana adi ko bhojana karaya. Pashchat unake samaksha namakarana ke sambandha mem kaha – jisa dina se yaha balaka trishaladevi ki kukshi mem garbha rupa mem aya, usi dina se hamare kula mem prachura matra mem chamdi, sona, dhana, dhanya, manika, moti, shamkha, shila, pravala adi padarthom ki ativa abhivriddhi ho rahi hai. Atah isa kumara ka guna – sampanna nama ‘varddhamana’ ho. Janma ke bada shramana bhagavana mahavira ka lalana – palana pamcha dhaya mataom dvara hone laga. Jaise ki – kshiradhatri, majjanadhatri, mamdanadhatri, kriradhatri, aura amkadhatri. Ve isa prakara eka goda se dusari goda mem samhrita hote hue evam manimandita ramaniya amgana mem (khelate hue) parvatiya gupha mem sthita champaka vriksha ki taraha kumara varddhamana kramashah sukhapurvaka barhane lage. Bhagavana mahavira balyavastha ko para kara yuvavastha mem pravishta hue. Unaka parinaya sampanna hua aura ve manushya sambandhi udara shabda, rupa, rasa, gamdha aura sparsha se yukta pamcha prakara ke kamabhogom ka udasinabhava se upabhoga karate hue tyagabhava purvaka vicharana karane lage.