Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000360 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
Section : | उद्देशक-५ | Translated Section : | उद्देशक-५ |
Sutra Number : | 360 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे–अंतरा से वप्पाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा– सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा, ‘पक्खलेज्ज वा’, पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, ‘पक्खलमाणे वा’, पवडमाणे वा, तत्थ से काये उच्चारेण वा, पासवणेण वा, खेलेण वा, सिंघाणेण वा, वंतेण वा, पित्तेण वा, पूएण वा, सुक्केण वा, सोणिएण वा उवलित्ते सिया। तहप्पगारं कायं नो अनंतरहियाए पुढवीए, नो ससिणिद्धाए पुढवीए, नो ससरक्खाए पुढवीए, नो चित्तमंताए सिलाए, नो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए नो आमज्जेज्ज वा, नो पमज्जेज्ज वा, नो संलिहेज्ज वा, ‘नो णिल्लिहेज्ज वा’, नो उव्वलेज्ज वा, नो उवट्टेज्ज वा, नो आयावेज्ज वा, नो पयावेज्ज वा। से पुव्वामेव अप्पससरक्खं तणं वा, पत्तं वा, कट्ठं वा, सक्करं वा जाइज्जा, जाइत्ता से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे ज्झामथंडिलंसि वा, अट्ठि-रासिंसि वा, किट्ट-रासिंसि वा, तुस-रासिंसि वा, गोमय-रासिंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्प-गारंसि थंडिलंसि, पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवट्टेज्ज वा, आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा। | ||
Sutra Meaning : | वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के यहाँ आहारार्थ जाते समय रास्ते के बीच में ऊंचे भू – भाग या खेत की क्यारियाँ हों या खाईयाँ हों, अथवा बाँस की टाटी हो, या कोट हो, बाहर के द्वार (बंद) हों, आगल हों, अर्गला – पाशक हों तो उन्हें जानकर दूसरा मार्ग हो तो संयमी साधु उसी मार्ग से जाए, उस सीधे मार्ग से न जाए; क्योंकि केवली भगवान कहते हैं – यह कर्मबन्ध का मार्ग है। उस विषय – मार्ग से जाते हुए भिक्षु फिसल जाएगा या डिग जाएगा, अथवा गिर जाएगा। फिसलने, डिगने या गिरने पर उस भिक्षु का शरीर मल, मूत्र, कफ, लींट, वमन, पित्त, मवाद, शुक्र और रक्त से लिपट सकता है। अगर कभी ऐसा हो जाए तो वह भिक्षु मल – मूत्रादि से उपलिप्त शरीर को सचित्त पृथ्वी से, सचित्त चिकनी मिट्टी से, सचित्त शिलाओं से, सचित्त पथ्थर या ढ़ेले से, या धुन लगे हुए काष्ठ से, जीवयुक्त काष्ठ से एवं अण्डे या प्राणी या जालों आदि से युक्त काष्ठ आदि से अपने शरीर को न एक बार साफ करे और न अनेक बार घिसकर साफ करे। न एक बार रगड़े या घिसे और न बार – बार घिसे, उबटन आदि की तरह मले नहीं, न ही उबटन की भाँति लगाए। एक बार या अनेक बार धूप में सुखाए नहीं। वह भिक्षु पहले सचित्त – रज आदि से रहित तृण, पत्ता, काष्ठ, कंकर आदि की याचना करे। याचना से प्राप्त करके एकान्त स्थान में जाए। वहाँ अग्नि आदि के संयोग से जलकर जो भूमि अचित्त हो गई है, उस भूमि की या अन्यत्र उसी प्रकार की भूमि का प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करके यत्नाचारपूर्वक संयमी साधु स्वयमेव अपने शरीर को पोंछे, मले, घिसे यावत् धूप में एक बार व बार – बार सुखाए और शुद्ध करे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane–amtara se vappani va, pagarani va, toranani va, aggalani va, aggala-pasagani va– sai parakkame samjayameva parakkamejja, no ujjuyam gachchhejja. Kevali buya ayanameyam–se tattha parakkamamane payalejja va, ‘pakkhalejja va’, pavadejja va, se tattha payalamane va, ‘pakkhalamane va’, pavadamane va, tattha se kaye uchcharena va, pasavanena va, khelena va, simghanena va, vamtena va, pittena va, puena va, sukkena va, soniena va uvalitte siya. Tahappagaram kayam no anamtarahiyae pudhavie, no sasiniddhae pudhavie, no sasarakkhae pudhavie, no chittamamtae silae, no chittamamtae lelue, kolavasamsi va darue jivapaitthie saamde sapane sabie saharie sause saudae sauttimga-panaga-daga-mattiya-makkada samtanae no amajjejja va, no pamajjejja va, no samlihejja va, ‘no nillihejja va’, no uvvalejja va, no uvattejja va, no ayavejja va, no payavejja va. Se puvvameva appasasarakkham tanam va, pattam va, kattham va, sakkaram va jaijja, jaitta se ttamayae egamtamavakkamejja, egamtamavakkametta ahe jjhamathamdilamsi va, atthi-rasimsi va, kitta-rasimsi va, tusa-rasimsi va, gomaya-rasimsi va, annayaramsi va tahappa-garamsi thamdilamsi, padilehiya-padilehiya pamajjiya-pamajjiya tao samjayameva amajjejja va, pamajjejja va, samlihejja va, nillihejja va, uvvalejja va, uvattejja va, ayavejja va, payavejja va. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha bhikshu ya bhikshuni grihastha ke yaham aharartha jate samaya raste ke bicha mem umche bhu – bhaga ya kheta ki kyariyam hom ya khaiyam hom, athava bamsa ki tati ho, ya kota ho, bahara ke dvara (bamda) hom, agala hom, argala – pashaka hom to unhem janakara dusara marga ho to samyami sadhu usi marga se jae, usa sidhe marga se na jae; kyomki kevali bhagavana kahate haim – yaha karmabandha ka marga hai. Usa vishaya – marga se jate hue bhikshu phisala jaega ya diga jaega, athava gira jaega. Phisalane, digane ya girane para usa bhikshu ka sharira mala, mutra, kapha, limta, vamana, pitta, mavada, shukra aura rakta se lipata sakata hai. Agara kabhi aisa ho jae to vaha bhikshu mala – mutradi se upalipta sharira ko sachitta prithvi se, sachitta chikani mitti se, sachitta shilaom se, sachitta paththara ya rhele se, ya dhuna lage hue kashtha se, jivayukta kashtha se evam ande ya prani ya jalom adi se yukta kashtha adi se apane sharira ko na eka bara sapha kare aura na aneka bara ghisakara sapha kare. Na eka bara ragare ya ghise aura na bara – bara ghise, ubatana adi ki taraha male nahim, na hi ubatana ki bhamti lagae. Eka bara ya aneka bara dhupa mem sukhae nahim. Vaha bhikshu pahale sachitta – raja adi se rahita trina, patta, kashtha, kamkara adi ki yachana kare. Yachana se prapta karake ekanta sthana mem jae. Vaham agni adi ke samyoga se jalakara jo bhumi achitta ho gai hai, usa bhumi ki ya anyatra usi prakara ki bhumi ka pratilekhana tatha pramarjana karake yatnacharapurvaka samyami sadhu svayameva apane sharira ko pomchhe, male, ghise yavat dhupa mem eka bara va bara – bara sukhae aura shuddha kare. |