Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000171 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Section : | उद्देशक-४ अव्यक्त | Translated Section : | उद्देशक-४ अव्यक्त |
Sutra Number : | 171 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे। एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति। इहलोग-वेयण वेज्जावडियं। जं ‘आउट्टिकयं कम्मं’, तं परिण्णाए विवेगमेति। एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी। | ||
Sutra Meaning : | वह भिक्षु जाता हुआ, वापस लौटता हुआ, अंगों को सिकोड़ता हुआ, फैलाता समस्त अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर, सम्यक् प्रकार से परिमार्जन करता हुआ समस्त क्रियाएं करे। किसी समय (यतनापूर्वक) प्रवृत्ति करते हुए गुणसमित अप्रमादी मुनि के शरीर का संस्पर्श पाकर प्राणी परिताप पाते हैं। कुछ प्राणी ग्लानि पाते हैं अथवा कुछ प्राणी मर जाते हैं, तो उसके इस जन्म में वेदन करने योग्य कर्म का बन्ध हो जाता है। (किन्तु) आकुट्टि से प्रवृत्ति करते हुए जो कर्मबन्ध होता है, उसका (क्षय) ज्ञपरिज्ञा से जानकर दस प्रकार के प्रायश्चित्त में से किसी प्रायश्चित्त से करे। इस प्रकार उसका (कर्मबन्ध का) विलय अप्रमाद (से यथोचित प्रायश्चित्त से) होता है, ऐसा आगमवेत्ता</em> शास्त्रकार कहते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se abhikkamamane padikkamamane samkuchemane pasaremane viniyattamane sampalimajjamane. Egaya gunasamiyassa riyato kayasamphasamanuchinna egatiya pana uddayamti. Ihaloga-veyana vejjavadiyam. Jam ‘auttikayam kammam’, tam parinnae vivegameti. Evam se appamaenam, vivegam kittati veyavi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha bhikshu jata hua, vapasa lautata hua, amgom ko sikorata hua, phailata samasta ashubha pravrittiyom se nivritta hokara, samyak prakara se parimarjana karata hua samasta kriyaem kare. Kisi samaya (yatanapurvaka) pravritti karate hue gunasamita apramadi muni ke sharira ka samsparsha pakara prani paritapa pate haim. Kuchha prani glani pate haim athava kuchha prani mara jate haim, to usake isa janma mem vedana karane yogya karma ka bandha ho jata hai. (kintu) akutti se pravritti karate hue jo karmabandha hota hai, usaka (kshaya) jnyaparijnya se janakara dasa prakara ke prayashchitta mem se kisi prayashchitta se kare. Isa prakara usaka (karmabandha ka) vilaya apramada (se yathochita prayashchitta se) hota hai, aisa agamavetta shastrakara kahate haim. |