Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1000172 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Section : | उद्देशक-४ अव्यक्त | Translated Section : | उद्देशक-४ अव्यक्त |
Sutra Number : | 172 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से पभूयदंसी पभूयपरिण्णाणे उवसंते समिए सहिते सया जए दट्ठुं विप्पडिवेदेति अप्पाणं– किमेस जनो करिस्सति? ‘एस से’ परमारामो, जाओ लोगम्मि इत्थीओ। मुनिणा हु एतं पवेदितं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहिं– अवि निब्बलासए। अवि ओमोयरियं कुज्जा। अवि उड्ढंठाणं ठाइज्जा। अवि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। अवि आहारं वोच्छिंदेज्जा। अवि चए इत्थीसु मणं। पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा। इच्चेते कलहासंगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासे वणाए से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारए नो ममाए नो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्प-संवुडे परिवज्जए सदा पावं। एतं मोणं समणुवासिज्जासि। | ||
Sutra Meaning : | वह प्रभूतदर्शी, प्रभूत परिज्ञानी, उपशान्त, समिति से युक्त, सहित, सदा यतनाशील या इन्द्रियजयी अप्रमत्त मुनि (उपसर्ग करने) के लिए उद्यत स्त्रीजन को देखकर अपने आपका पर्यालोचन करता है – ‘यह स्त्रीजन मेरा क्या कर लेगा ?’ वह स्त्रियाँ परम आराम हैं। (किन्तु मैं तो सहज आत्मिक – सुख से सुखी हूँ, ये मुझे क्या सुख देंगी?) ग्रामधर्म – (इन्द्रिय – विषयवासना) से उत्पीड़ित मुनि के लिए मुनिन्द्र तीर्थंकर महावीर भगवान ने यह उपदेश दिया है कि – वह निर्बल आहार करे, ऊनोदरिका भी करे, ऊर्ध्व स्थान होकर कायोत्सर्ग करे – (आतापना ले), ग्रामानुग्राम विहार भी करे, आहार का परित्याग करे, स्त्रियों के प्रति आकृष्ट होने वाले मन का परित्याग करे। (स्त्री – संग में रत अतत्त्वदर्शियों को कहीं – कहीं) पहले दण्ड मिलता है और पीछे (दुःखों का) स्पर्श होता है, अथवा कहीं – कहीं पहले (स्त्री – सुख) स्पर्श मिलता है, बाद में उसका दण्ड (मार – पीट, आदि) मिलता है। इसलिए ये काम – भोग कलह और आसक्ति पैदा करने वाले होते हैं। स्त्री – संग से होने वाले ऐहिक एवं पार – लौकिक दुष्परिणामों को आगम के द्वारा तथा अनुभव द्वारा समझकर आत्मा को उनके अनासेवन की आज्ञा दे। ऐसा मैं कहता हूँ। ब्रह्मचारी कामकथा – न करे, वासनापूर्वक द्रष्टि से स्त्रियों के अंगोपांगों को न देखे, परस्पर कामुक भावों का प्रसारण न करे, उन पर ममत्व न करे, शरीर की साज – सज्जा से दूर रहे, वचनगुप्ति का पालक वाणी से कामुक आलाप न करे, मन को भी कामवासना की ओर जाते हुए नियंत्रित करे, सतत पाप का परित्याग करे। इस (अब्रह्मचर्य – विरति रूप) मुनित्व को जीवन में सम्यक् प्रकार से बसा ले। ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se pabhuyadamsi pabhuyaparinnane uvasamte samie sahite saya jae datthum vippadivedeti appanam– Kimesa jano karissati? ‘esa se’ paramaramo, jao logammi itthio. Munina hu etam paveditam, ubbahijjamane gamadhammehim– Avi nibbalasae. Avi omoyariyam kujja. Avi uddhamthanam thaijja. Avi gamanugamam duijjejja. Avi aharam vochchhimdejja. Avi chae itthisu manam. Puvvam damda pachchha phasa, puvvam phasa pachchha damda. Ichchete kalahasamgakara bhavamti. Padilehae agametta anavejja anase vanae Se no kahie no pasanie no sampasarae no mamae no kayakirie vaigutte ajjhappa-samvude parivajjae sada pavam. Etam monam samanuvasijjasi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha prabhutadarshi, prabhuta parijnyani, upashanta, samiti se yukta, sahita, sada yatanashila ya indriyajayi apramatta muni (upasarga karane) ke lie udyata strijana ko dekhakara apane apaka paryalochana karata hai – ‘yaha strijana mera kya kara lega\?’ vaha striyam parama arama haim. (kintu maim to sahaja atmika – sukha se sukhi hum, ye mujhe kya sukha demgi?) Gramadharma – (indriya – vishayavasana) se utpirita muni ke lie munindra tirthamkara mahavira bhagavana ne yaha upadesha diya hai ki – vaha nirbala ahara kare, unodarika bhi kare, urdhva sthana hokara kayotsarga kare – (atapana le), gramanugrama vihara bhi kare, ahara ka parityaga kare, striyom ke prati akrishta hone vale mana ka parityaga kare. (stri – samga mem rata atattvadarshiyom ko kahim – kahim) pahale danda milata hai aura pichhe (duhkhom ka) sparsha hota hai, athava kahim – kahim pahale (stri – sukha) sparsha milata hai, bada mem usaka danda (mara – pita, adi) milata hai. Isalie ye kama – bhoga kalaha aura asakti paida karane vale hote haim. Stri – samga se hone vale aihika evam para – laukika dushparinamom ko agama ke dvara tatha anubhava dvara samajhakara atma ko unake anasevana ki ajnya de. Aisa maim kahata hum. Brahmachari kamakatha – na kare, vasanapurvaka drashti se striyom ke amgopamgom ko na dekhe, paraspara kamuka bhavom ka prasarana na kare, una para mamatva na kare, sharira ki saja – sajja se dura rahe, vachanagupti ka palaka vani se kamuka alapa na kare, mana ko bhi kamavasana ki ora jate hue niyamtrita kare, satata papa ka parityaga kare. Isa (abrahmacharya – virati rupa) munitva ko jivana mem samyak prakara se basa le. Aisa maim kahata hum. |