Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011782 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 13. उत्तम त्याग | Translated Section : | 13. उत्तम त्याग |
Sutra Number : | 279 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार । ३४; तुलना: विशेषावश्यक भाष्य । २६३४ | ||
Mool Sutra : | ज्ञानं सर्वान्भावान्, प्रत्याख्याति परानिति ज्ञात्वा। तस्मात् प्रत्याख्यानं, ज्ञानं नियमात् मन्तव्यम् ।। | ||
Sutra Meaning : | अपने से अतिरिक्त सभी पदार्थों को `ये मुझसे पर हैं' ऐसा जानकर, ज्ञान ही प्रत्याख्यान करता है, इसलिए ज्ञान या आत्मा ही स्वयं स्वभाव से प्रत्याख्यान या त्याग स्वरूप है, ऐसा जानना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Jnyanam sarvanbhavan, pratyakhyati paraniti jnyatva. Tasmat pratyakhyanam, jnyanam niyamat mantavyam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Apane se atirikta sabhi padarthom ko `ye mujhase para haim aisa janakara, jnyana hi pratyakhyana karata hai, isalie jnyana ya atma hi svayam svabhava se pratyakhyana ya tyaga svarupa hai, aisa janana chahie. |