Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011647 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Translated Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Section : | 4. कर्मयोग-रहस्य | Translated Section : | 4. कर्मयोग-रहस्य |
Sutra Number : | 145 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | सूत्र कृतांग । १.८.३; तुलना: भगवती आराधना । ८०३ | ||
Mool Sutra : | प्रमादं कर्म आहुः, अप्रमादं तथाऽपरम्। तद्भावादेशतो वाऽपि, बालं पण्डितमेव वा ।। | ||
Sutra Meaning : | (इसका कारण यह है) कि प्रमाद को ही कर्म कहा गया है और अप्रमाद को अकर्म। प्रमाद व अप्रमाद की अपेक्षा ही व्यक्ति को अज्ञानी व ज्ञानी कहा जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Pramadam karma ahuh, apramadam tathaparam. Tadbhavadeshato vapi, balam panditameva va\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (isaka karana yaha hai) ki pramada ko hi karma kaha gaya hai aura apramada ko akarma. Pramada va apramada ki apeksha hi vyakti ko ajnyani va jnyani kaha jata hai. |