Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011645 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Translated Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Section : | 3. चारित्र (कर्म) में सम्यक्त्व व ज्ञान का स्थान | Translated Section : | 3. चारित्र (कर्म) में सम्यक्त्व व ज्ञान का स्थान |
Sutra Number : | 143 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | सन्मति तर्क। ३.६७; तुलना: देखो पिछली गाथा १४२। | ||
Mool Sutra : | चरणकरणप्रधानाः, स्वसमय-परसमयमुक्तव्यापाराः। चरण-करणस्य सारं, निश्चयशुद्धं न जानन्ति ।। | ||
Sutra Meaning : | जो स्व व पर सिद्धान्त का चिन्तन छोड़ बैठे हैं, वे व्रत व नियम करते हुए भी परमार्थतः उनके फल को नहीं जानते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Charanakaranapradhanah, svasamaya-parasamayamuktavyaparah. Charana-karanasya saram, nishchayashuddham na jananti\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo sva va para siddhanta ka chintana chhora baithe haim, ve vrata va niyama karate hue bhi paramarthatah unake phala ko nahim janate haim. |