Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011026 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग) |
Translated Chapter : |
2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग) |
Section : | 3. भेद-रत्नत्रय | Translated Section : | 3. भेद-रत्नत्रय |
Sutra Number : | 25 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | प्रवचनसार। २३७; तुलना: देखो आगे गाथा ३७। | ||
Mool Sutra : | ण हि आगमेण सिज्झदि, सद्दहणं जदि वि णत्थि अत्थेसु। सद्दहमाणो अत्थे, असंजदो वा ण णिव्वादि ।। | ||
Sutra Meaning : | तत्त्वों में सम्यक् श्रद्धा, रुचि, प्रेम या भक्ति के बिना केवल शास्त्र-ज्ञान से मुक्ति नहीं होती। और श्रद्धा या भक्ति हो जाने पर भी यदि संयम न पाला जाय अर्थात् प्रवृत्ति व निवृत्तिरूप शास्त्रविहित कर्म न किया जाय तो भी निर्वाण प्राप्त नहीं होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Na hi agamena sijjhadi, saddahanam jadi vi natthi atthesu. Saddahamano atthe, asamjado va na nivvadi\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tattvom mem samyak shraddha, ruchi, prema ya bhakti ke bina kevala shastra-jnyana se mukti nahim hoti. Aura shraddha ya bhakti ho jane para bhi yadi samyama na pala jaya arthat pravritti va nivrittirupa shastravihita karma na kiya jaya to bhi nirvana prapta nahim hota hai. |