Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1018184 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Translated Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1484 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे सुज्जसिवे नाम धिज्जाई अहेसि। तस्स य धूया सुज्जसिरी। सा य अपरितुलिय-सयल तिहुयण नर नारिगणा लावन्न कंति दित्ति रूव सोहग्गाइसएणं अणोवमा अत्तगा, तीए अन्नभवंतरम्मि इणमो हियएण दुच्चिं तियं अहेसि जहा णं सोहणं हवेज्जा जइ णं इमस्स बालगस्स माया वावज्जे, तओ मज्झ असवक्कं भवे। एसो य बालगो दुज्जीविओ भवइ। ताहे मज्झ सुयस्स य रायलच्छी परिणमेज्ज त्ति, तक्कम्म-दोसेणं तु जायमेत्ताए चेव पंचत्तमुवगया जननी। तओ गोयमा ते णं सुज्झसिवेणं महया किलेसेणं छंदमाराहमाणेणं बहूणं अहिणव पसूय जुवतीणं घराघरिं थन्नं पाऊणं जीवाविया सा बालिया। अहन्नया जाव णं बाल भावमुत्तिन्ना सा सुज्जसिरी ताव णं आगयं अमायापुत्तं महारोरवं दुवालस-संवच्छरियं दुभिक्खं ति, जाव णं फेट्टा-फेट्टीए जाउमारद्धे सयले वि णं जणसमूहे। अहन्नया बहु दिवस खुहत्तेणं विसायमुवगएणं तेण चिंतियं जहा–किमेयं वावाइऊणं समुद्दिसामि किं वा णं इमीए पोग्गलं विक्किणिऊणं चेव अन्नं किंचिवि वणिमग्गाओ पडिगाहित्ताणं पाणवित्तिं करेमि नो णं अन्ने केइ जीव-संधारणोवाए संपयं मे हवेज्ज त्ति, अहवा हद्धी हा हा न जुत्तमिणं ति, किंतु जीवमाणिं चेव विक्किणामि त्ति, चिंतिऊणं विक्किया सुज्जसिरी महा रिद्धी जुयस्स चोद्दस विज्जा ट्ठाण पारगयस्स णं माहण गोविंदस्स गेहे। तओ बहुजणेहिं धिद्धी सद्दोवहओ तं देसं परिचिच्चाणं गओ अन्न-देसंतरं सुज्जसिवो, तत्था वि णं पयट्टो सो गोयमा इत्थेव विण्णाणे। जाव णं अन्नेसिं कन्नगाओ अवहरित्ताणं अवहरित्ताणं अन्नत्थ विक्कणिऊणं चामेलियं सुज्जसिवेण बहुं दविणजायं। एयावसरम्मि उ समइक्कंते साइरेगे अट्ठ संवच्छरे दुब्भिक्खस्स जाव णं वियलियमसेसविहवं तस्सावि णं गोविंद-माहणस्स। तं च वियाणिऊणं विसायमुवगएणं चिंतियं गोयमा ते णं गोविंद-माहणेणं जहा णं होही संघारकालं मज्झ कुडुंबस्स, नाहं विसीयमाणे बंधवे खणद्धमवि दट्ठूणं सक्कुणोमि। ता किं कायव्वं संपयमम्हेहिं ति, चिंतियमाणस्सेव आगया गोउलाहिवइणो भज्जा खइयग-विक्किणत्थं तस्स गेहे। जाव णं गोविंदस्स भज्जाए तंडुल मल्लगेणं पडिगाहियाओ चउरो घन विगइ मीस खइयगं गोलियाओ, तं च पडिगाहियमेत्तमेव परिभुत्तं डिंभेहिं। भणियं च महयरीए जहा णं–भट्टिदारिगे, पयच्छाहि णं तमम्हाणं तंदुल-मल्लगं, चिरं वट्टे जेणम्हे गोउलं वयामो। तओ समाणत्ता गोयमा तीए माहणीए सा सुज्जसिरी जहा णं हला तं जं अम्हाण नरवइणा निसावयं पहियं पेहियं तत्थ जं तं तंदुल-मल्लगं तमाणेहि लहुं, जेणाहमिमीए पयच्छामि, जाव ढुंढिऊण नीहरिया मंदिरं सा सुज्जसिरी, नोवलद्धं तंदुलमल्लगं। साहियं च माहणीए। पुणो वि भणियं माहणीए जहा–हला, अमुगं अमुगं थामनुद्दुया अन्नेसिऊणमाणेहि। पुणो वि पइट्टा अलिंदगे जाव णं न पेच्छे ताहे समुट्ठिया सयमेव सा माहणी। जाव णं तीए वि न दिट्ठं। तओ णं सुविम्हिय माणसा निउणं अन्नेसिउं पयत्ता, जाव णं पेच्छे गणिगा-सहायं पढमसुयं पइरिक्के ओदनं समुद्दिसमाणं। तेणावि पडिदट्ठुं जणणीं आगच्छमाणी चिंतियं अह-न्नेणं जहा, णं चलिया अम्हाणं ओयणं अवहरिउकामा पायमेसा, ता जइ इहासन्नमागच्छिही तओ अहमेयं वावाइस्सामि त्ति चिंतियं तेणं भणिया दूरासन्ना चेव महया सद्देणं सा माहणी जहा णं भट्टिदारगे जइ तुमं इहयं समागच्छिहिसि तओ मा एवं तं वोच्चिया जहा णं नो परिकहियं, निच्छयं अहयं ते वावाइस्सामि। एवं च अनिट्ठ-वयणं सोच्चाणं वज्जासणि पहया इव धसत्ति मुच्छिऊणं निवडिया धरणिवट्ठे गोयमा सा माहणी त्ति। तओ णं तीए महयरिए परिवालिऊणं कंचि कालक्खणं वुत्ता सा सुज्जसिरी जहा णं हला हला कन्नगे, अम्हाणं चिरं वट्टे, ता भणसु सिग्घं नियजणणिं जहा णं एह लहुं। पयच्छसु तमम्हाणं तंदुल मल्लगं। अहा णं तंदुल मल्लगं विप्पणट्ठं तओ णं मुग्ग-मल्लगमेव पयच्छसु। ताहे पविट्ठा सा सुज्जसिरि अलिंदगे जाव णं दट्ठूणं तमवत्थंतरगयं निच्चेट्ठं मुच्छिरं तं माहणी महया हा-हा रवेणं धाहाविउं पयत्ता सा सुज्जसिरि। तं चायन्निऊणं सह परिवग्गेणं वाइओ सो माहणो महयरी य। तओ पवणजलेण आसासि-ऊणं पुट्ठा सा तेहिं जहा भट्टिदारगे किमेयं किमेयं ति। तीए भणियं जहा णं मा मा अत्ताणगं दरमएणं दीहेण खावेह, मा मा विगय जलाए सरीए वुब्भेह, मा मा अर-ज्जुएहिं पासेहिं नियंतिए मज्झमाहेणाणप्पेह जहा णं किल एस पुत्ते, एसा धूया, एस णं णत्तुगे, एसा णं सुण्हा, एस णं जामाउगे, एसा णं माया, एस णं जणगे, एसो भत्ता, एस णं इट्ठे, मिट्ठे पिए कंते, सुही सयण मित्त बंधु परिवग्गे। इहइं पच्चक्खमेवेयं वि दिट्ठे अलिय-मलिया चेवेसा बंधवासा। स कज्जत्थी चेव संभयए लोओ, परमत्थओ न केइ सुही। जाव णं सकज्जं ताव णं माया ताव णं जणगे, ताव णं धूया, ताव णं जामाउगे, ताव णं णत्तुगे, ताव णं पुत्ते, ताव णं सुण्हा, ताव णं कंता, ताव णं इट्ठे, मिट्ठे पिए, कंते सुही सयण जण मित्त बंधु परिवग्गे। सकज्जसिद्धी विरहेणं तु न कस्सई काइ माया, न कस्सई केइ जणगे, न कस्सई काइ धूया, न कस्सई केइ जामाउगे, न कस्सई केइ पुत्ते, न कस्सई काइ सुण्हा, न कस्सई केइ भत्ता, न कस्सई केइ कंता, न कस्सई केइ इट्ठे मिट्ठे, पिए कंते सुही सयणजण मित्त बंधु परिवग्गे। जे णं ता पेच्छ मए अणेगोवाइयसउवलद्धे साइरेग नव मासे कुच्छीए वि धारिऊणं च अनेग मिट्ठ महुर उसिण तिक्ख गुलिय सणिद्ध आहार पयाण सिणाण उव्वट्टण धूयकरण संबाहण थन्न पयाणाईहि णं एमहंत मनुस्सीकए जहा किल अहं पुत्त रज्जम्मि पुन्न पुन्न मनोरहा सुहं सुहेण पणइयण पूरियासा कालं गमिहामि, ता एरिसं एयं वइयरं ति एयं च णाऊणं मा धवाईसुं करेह खणद्धमवि अणुं पि पडिबंधं। जहा णं इमे मज्झ सुए संवुत्ते तहा णं गेहे गेहे जे केइ भूए, जे केई वट्टंति, के केई भविंसु सुए तहा वि एरिसे वि बंधुवग्गे। केवलं तु स कज्ज लुद्धे चेव घडिया मुहुत्त परिमाणमेव कंचि कालं भएज्जा वा, ता भो भो जणा, न किंचि कज्जं एतेणं कारिम बंधु संताणेणं अनंत संसार घोर दुक्ख पदायगेणं ति एगे चेवाहन्निसाणुसमयं सययं सुविसुद्धा-सए भयह धम्मे। धम्मे य णं इट्ठे पिए कंते परमत्थे सुही सयण जण मित्त बंधु परिवग्गे। धम्मे य णं हिट्ठिकरे, धम्मे य णं पुट्ठिकरे, धम्मे य णं बलकरे, धम्मे य णं उच्छाहकरे, धम्मे य णं निम्मल जस कित्तीपसाहगे, धम्मे य णं माहप्पजणगे, धम्मे य णं सुट्ठु सोक्ख परंपरदायगे, से णं सेव्वे, से णं आराहणिज्जे, से य णं पोसणिज्जे, से य णं पालणिज्जे, से य णं करणिज्जे, से य णं चरणिज्जे, से य णं अणुट्ठणिज्जे, से य णं उवइस्सणिज्जे, से य णं कहणिज्जे, से य णं भणणिज्जे, से य णं पन्नवणिज्जे से य णं कारवणिज्जे, से य णं धुवे, सासए, अक्खए, अव्वए, सयल सोक्ख निहीधम्मे, से य णं अलज्ज-णिज्जे, से य णं अउल बल वीरिए, सरिय सत्त परक्कम संजुए पवरे वरे इट्ठे पिये कंते दइए सयल दुक्ख दारिद्द संतावुव्वेग अयस अब्भक्खाण जम्म जरा मरणाइ असेस भय निन्नासगे, अनन्नं सरिसे सहाए तेलोक्केक्कसामिसाले। ता अलं सुही सयण जण मित्त बंधुगण धण धन्न सुवन्न हिरन्न रयणोह निही कोस संचयाइ सक्कचाव विज्जुल-याडोवचंचलाए, सुमिणिंदजाल सरिसाए खण दिट्ठ नट्ठ भंगुराए, अधुवाए, असासयाए, संसार वुड्ढि कारिगाए, निरयावयारहेउभू-याए सोग्गइ मग्ग विग्घ दायगाए, अनंत दुक्ख पदायगाए रिद्धीए, सुदुल्लहा खलु भो धम्मस्स साहणी, सम्म दंसण णाण चारि-त्ताराहणी निरुत्ताइ सामग्गी अनवरय महन्निसाणुसमएहि णं खंड खंडेहिं तु परिसडइ आउं, दढ घोर निट्ठुरासज्झ चंडा जरासणिस-ण्णिवाया संचुण्णिए सयजज्जरभंडगे इव अकिंचिकरे भवइ उ दियहाणुदियहेणं इमे तणू किसलय दलग्ग परिसंठिय जल बिंदुमिवाकंडे, निमिसद्धब्भंतरेणेव लहुं ढलइ जीविए, अविढत्त परलोगपत्थयणाणं तु निप्फले चेव मनुयजम्मे, ता भो न खमे तणु तणुय तरे वि ईसिंपि पमाए। जओ णं एत्थं खलु सव्वकालमेव समसत्तु मित्त भावेहिं भवेयव्वं-अप्पमत्तेहिं च पंच महव्वए धारियव्वे। तं जहा– कसिणपाणाइवायविरती, अणलिय भासित्तं, दंतसोहणमेत्तस्सवि अदिन्नस्स वज्जणं, मणो वइ काय जोगेहिं तु अखंडिय अविरा-हिय णव गुत्ती परिवेढियस्स णं परम पवित्तस्स सव्वकालमेव दुद्धर बंभचेरस्स धारणं, वत्थ पत्त संजमोवगरणेसुं पि णिम्मत्तया, असण पाणाईणं तु चउव्विहेणेव राईभोयणच्चाओ, उग्गमुप्पायणेऽसणाईसु णं सुविसुद्धपिंडग्गहणं, संजोयणाइ पंच दोस विरहिएणं परिमिएणं काले भिन्ने पंच समिति विसोहणं, ति गुत्ती गुत्तया, इरिया समिईमाइओ भावनाओ, अणसणाइतवोवहाणाणुट्ठाणं, मासाइभिक्खुपडिमाओ, विचित्ते दव्वाई अभिग्गहे, अहो णं भूमी सयणे, केसलोए, निप्पडिकम्म सरीरया, सव्वकालमेव गुरुनिओगकरणं, खुहा पिवासाइ-परिसहाहियासणं, दिव्वाइउवसग्गविजओ, लद्धावलद्धवित्तिया,... ...किं बहुना अच्चंत दुव्वहे भो वहियव्वे अवीसामंतेहिं चेव सिरिमहापुरिसत्तवूढे अट्ठारस सीलंग सहस्सभारे, तरियव्वे य भो बाहाहिं महासमुद्दे, अविसाईहिं च णं भो भक्खियव्वे, णिरासाए वालुयाकवले, परिसक्केयव्वं च भो णिसियसुतिक्खदारुण करवालधाराए, पायव्वा य णं भो सुहुय हुयवह जालावली, भरीयव्वे णं भो सुहुम पवण कोत्थलगे, गमियव्वं च णं भो गंगा पवाह पडिसोएणं, तोलेयव्वं भो साहसतुलाए मंदर-गिरिं, जेयव्वे य णं भो एगागिएहिं चेव धीरत्ताए सुदुज्जए चाउरंगबले, विंधेयव्वा णं भो परोप्पर विवरीय भमंत अट्ठ चक्कोवरिं, वामच्छिम्मि उ धीउल्लिया, गहेयव्वा णं भो सयल तिहुयण विजया निम्मला जस कित्ति जय पडागा। ता भो भो जणा एयाओ धम्माणुट्ठाणाओ सुदुक्करं नत्थि किंचि मन्नं ति। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत वर्ष में अवन्ति नामका देश है। वहाँ संबुक्क नाम का एक छोटा गाँव था। उस गाँव में जन्म दरिद्र मर्यादा – लज्जा रहित, कृपा रहित, कृपण अनुकंपा रहित, अतिक्रूर, निर्दय, रौद्र परीणामवाला, कठिन, शिक्षा करनेवाला, अभिग्रहिक मिथ्यादृष्टि जिसका नाम भी लेना पाप है, ऐसा सुज्ञशिव नामका ब्राह्मण था, सुज्ञश्री उसकी बेटी थी। समग्र तीन भुवन में नर और नारी समुदाय के लावण्य कान्ति तेज समान सौभायातिशय करने से उस लड़की के लावण्य रूप कान्ति आदि अनुपम और बढ़ियाँ थे वो सुज्ञश्री ने किसी अगले दूसरे भव में ऐसा दुष्ट सोचा था कि यदि इस बच्चे की माँ मर जाए तो अच्छा तो में शोक रहित बनूँ। फिर यह बच्चा दुःखी होकर जी सकेगा। और राजलक्ष्मी मेरे पुत्र को प्राप्त होगी। उस दुष्ट चिन्तवन के फलरूप वो कर्म के दोष से उत्पन्न होने के साथ ही उसकी माँ मर गइ उसके बाद हे गौतम ! उस सुज्ञशिव पिताने काफी क्लेश से बिनती करके नए बच्चों को जन्म देनेवाली माता ने घर – घर घूमकर आराधना की। उस पुत्री का बचपन पूर्ण हुआ। उतने में माँ – पुत्र का सम्बन्ध टालनेवाले महा भयानक बारह वर्ष के लम्बे अरसे का अकाल समय आ पहुँचा। जितने में रिश्तेदारी का त्याग करके समग्र जनसमूह चला गया तब कसी दिन कईं दिन का भूखा, विषाद पाया हुआ वो सुज्ञशिव सोचने लगा कि क्या अब इस बच्ची को मार डाल के भूख पूरी करूँ या उसका माँस बेचकर किसी वणिक के पास से राशन खरीदकर अपने प्राण को धरूँ। अब जीने के लिए दूसरा कोई भी उपाय मेरे पास नहीं बचा, या तो वाकई मुझे धिक्कार है। ऐसा करना उचित नहीं है। लेकिन उसे जिन्दा ही बेच दूँ। ऐसा सोचकर महाऋद्धि वाले चौदह विद्यास्थान के पारगामी ऐसे गोविंद, ब्राह्मण के घर सुज्ञश्री को बेच दी इसलिए कईं लोगों को नफरत के शब्द से घायल वो अपने देश का त्याग करके सुज्ञशिव दूसरे देशान्तर में चला गया। वहाँ जाकर भी उसी के अनुसार दूसरी कन्या का अपहरण करके दूसरी जगह बेच – बेचकर सुज्ञशिव ने काफी द्रव्य उपार्जन किया। उस अवसर पर अकाल के समय के कुछ ज्यादा आँठ वर्ष पसार हुए तब वो गोविंद शेठ का समग्र वैभव का क्षय हुआ। हे गौतम ! वैभाव विनाश पाने की वजह से विषाद पाए हुए गोविंद ब्राह्मण ने चिन्तवन किया कि अब मेरे परिवार का विनाशकाल नजदीक है। विषाद पानेवाले मेरे बँधु को आधा पल भी देखने के लिए समर्थ नहीं है। तो अब मैं क्या करूँ ? ऐसा सोचते हुए एक गौकुल के स्वामी की भार्या आई खाने की चीजे बेचनेवाली उस गोवालण के पास से उस ब्राह्मण की भार्या ने डाँगर के नाप से भी घी और शक्कर के बनाए हुए चार लड्डू खरीद किए। खरीद करते ही बच्चे लड्डू खा गए। महीयारी ने कहा कि अरे शेठानी ! हमें बदले में देने की डाँगर की पाली दे दो। हमें जल्द गोकुल में पहुँचना है। हे गौतम ! उसके बाद ब्राह्मणी ने सुज्ञश्री को आज्ञा दी कि अरे ! राजाने जो कुछ भेजा है, उसमें जो डाँगर की मटकी है उसे जल्द ढूँढ़कर लाओ जिससे यह गोवालण को दूँ। सुज्ञश्री जितने में वो ढूँढ़ने के लिए घर में गई लेकिन उस तंदुल का भाजन न देखा। ब्राह्मणी ने कहा कि नहीं है। फिर ब्राह्मणी न कहा, अरे ! कुछ भाजन ऊपर करके उसमें देखो और ढूँढ़कर लाओ। फिर से देखने के लिए आँगन में गई और न देखा तब ब्राह्मणी ने खुद वहाँ आकर देखा तो उसको भी भाजन न मिला। काफी विस्मय पानेवाली उसने फिर से हरएक जगह पर देखने लगी। दोहरान एकान्त जगह में वेश्या के साथ ओदन का भोजन करनेवाले बड़े पुत्र को देखा। उस पुत्रने भी उनकी ओर नजर की। सामने आनेवाली माता को देखकर अधन्य पुत्रने चिन्तवन किया कि आम तोर पर माता हमारे चावल छिन लेने के लिए आती हुई दिखती है, यदि वो पास आएगी तो मैं उसे मार डालूँगा – ऐसा चिन्तवन करते पुत्रने दूर रहे और पास आनेवाली ब्राह्मणी माँ को कड़े शब्द में कहा कि – हे भट्टीदारिका ! यदि तू यहाँ आएगी तो फिर तुम ऐसा मत कहना कि मुझे पहले न कहा। यकीनन मैं तुम्हें मार डालूँगा। ऐसा अनिष्ट वचन सुनकर उल्कापात से वध की हुई हो वैसे धस करते हुए भूमि पर गिर पड़ी। मूर्च्छावश ब्राह्मणी बाहर से वापस न आई इसलिए महीयारी ने कुछ देर राह देखने के बाद सुज्ञश्री को कहा कि अरे बालिका ! हमें देर हो रही है, इसलिए तुम्हारी माँ को कहो कि तुम हमे डाँगर का पाला दो। यदि डाँगर का पाला न दिखे या न मिले तो उसके बजाय मुग का पाला दो। तब सुज्ञश्री धान्य रखने के कोठार में पहुँची और देखती है तो दूसरी अवस्था पाई हुई ब्राह्मणी को देखकर सुज्ञश्री हाहारव करके शोर मचाने लगी। वो सुनकर परिवार सहित वो गोविंद ब्राह्मण और महियारी आ पहुँचे। पवन और जल से आश्वासन पाकर उन्होंने पूछा कि – हे भट्टीदारिका ! यह तुम्हें अचानक क्या हो गया ? तब सावध हुई ब्राह्मणी ने प्रत्युत्तर में बताया कि अरे ! तुम रक्षा रहित ऐसी मुझे झहरीले साँप के डंख मत दिलाओ। निर्जल नदी में मुझे मत खड़ा करो। अरे रस्सी रहित स्नेहपाश में जकड़ी हुई ऐसी मुझे मोह में स्थापित मत करो। जैसे कि यह मेरे पुत्र, पुत्री, भतीजे हैं। यह पुत्रवधू, यह जमाई, यह माता, यह पिता है, यह मेरे भर्तार है, यह मुझे इष्ट प्रिय मनचाहे परिवारवर्ग, स्वजन, मित्र, बन्धुवर्ग है। वो यहाँ प्रत्यक्ष झूठी मायावाले हैं। उनकी ओर से बन्धुपन की आशा मृगतृष्णा है,अपनेपन का झूठा भ्रम होता है; परमार्थ से सोचा जाए तो कोई सच्चे स्वजन नहीं है जब तक स्वार्थ पूरा होता है तब तक माता, पिता, पुत्री, पुत्र, जमाई, भतीजा, पुत्रवधू आदि सम्बन्ध बनाए रखते हैं। तब तक ही हर एक को अच्छा लगता है। इष्ट मिष्ट प्रिय स्नेही परिवार के स्वजन वर्ग मित्र बन्धु परिवार आदि तब तक ही सम्बन्ध रखते हैं कि जब तक हरएक का अपना मतलब पूरा होता है। अपने कार्य की सिद्धि में, विरह में कोई किसी की माता नहीं, न कोई किसी के पिता, न कोई किसी की पुत्री, न कोई किसी का जमाई, न कोई कसी का पुत्र, न कोई किसी की पत्नी, न कोई किसी का भर्तार, न कोई किसी का स्वामी, न कोई किसी के इष्ट मिष्ट प्रियकान्त परिवार स्वजन वर्ग मित्र बन्धु परिवार वर्ग हैं। क्योंकि देखो तब प्राप्त हुए कुछ ज्यादा नौ वर्ष तक कुक्षि में धारण करके कईं मिष्ट मधुर उष्ण तीखे सूखे स्निग्ध आहार करवाए, स्नान पुरुषन किया, उसका शरीर कपड़े धोए, शरीर दबाया, धन – धान्यादिक दिए। उसे उछेरने की महाकोशीश की। उस समय ऐसी आशा रखी थी कि पुत्र के राज में मेरे मनोरथ पूर्ण होंगे। और स्नेहीजन की आशा पूरी करके मैं काफी सुख में मेरा समय पसार करूँगी। मैंने सोचा था उससे बिलकुल विपरीत हकीकत बनी है। अब इतना जानने और समझने के बाद पति आदि पर आधा पल भी स्नेह रखना उचित नहीं है। जिस अनुसार मेरे पुत्र का वृत्तान्त बना है उसके अनुसार घर – घर भूतकाल में वृत्तान्त बने हैं। वर्तमान में बनते हैं और भावि में भी बनते रहेंगे। वो बन्धुवर्ग भी केवल अपने कार्य सिद्ध करने के लिए घटिका मुहूर्त्त उतना समय और स्नेह परीणाम टिकाकर सेवा करता है। इसलिए हे लोग ! अनन्त संसार के घोर दुःख देनेवाले ऐसे यह कृत्रिम बन्धु और संतान का मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। इसलिए अब रात – दिन हंमेशा उत्तम विशुद्ध आशय से धर्म का सेवन करो। धर्म ही धन, इष्ट, प्रिय, कान्त, परमार्थ से हितकारी, स्वजन वर्ग, मित्र, बन्धुवर्ग है। धर्म ही सुन्दर दर्शनीय रूप करनेवाला, पुष्टि करनेवाला, बल देनेवाला है। धर्म ही उत्साह करवानेवाला, धर्म ही निर्मल, यश, कीर्ति की साधना करनेवाला है। धर्म ही प्रभावना करवानेवाला, श्रेष्ठतम सुख की परम्परा देनेवाला हो तो वो धर्म है। धर्म ही सर्व तरह के निधान स्वरूप है। आराधनीय है। पोषने के लायक है, पालनीय है। करणीय है, आचरणीय है, सेवनीय है, उपदेशनीय है, कथनीय है, पढ़ने के लायक है, प्ररूपणीय है, करवाने के लायक है, धर्म ध्रुव है, शाश्वत है, अक्षय है, स्थिर रहनेवाला है। समग्र सुख का भंड़ार है, धर्म अलज्जनीय है, धर्म अतुल बल, वीर्य, सम्पूर्ण सत्त्व, पराक्रम सहितपन दिलानेवाला होता है। प्रवर, श्रेष्ठ, इष्ट, प्रिय, कान्त दृष्टिजन का संयोग करवानेवाला हो तो वो धर्म है। समग्र असुख, दारिद्र्य, संताप, उद्वेग, अपयश, झूठे आरोप, बुढ़ापा, मरण आदि समग्र भय को सर्वथा नष्ट करनेवाला, जिसकी तुलना में कोई न आ सके वैसा सहायक, तीन लोक में बेजोड़ नाथ हो तो केवल एक धर्म है। इसलिए अब परिवार, स्वजनवर्ग, मित्र, बन्धु वर्ग, भंड़ार आदि आलोक की चीजों से प्रयोजन नहीं है। और फिर यह ऋद्धि – समृद्धि इन्द्र धनुष, बीजली, लत्ता के आटोप से ज्यादा चंचल, स्वप्न और इन्द्र जल समान देखने के साथ ही पल में गुम होनेवाली, नाशवंत, अध्रुव, अशाश्वत, संसार की परम्परा बढ़ानेवाला, नारक में उत्पन्न होने के कारण रूप, सद्गति के मार्ग में विघ्न करनेवाला, अनन्त दुःख देनेवाला है। अरे लोगो ! धर्म के लिए यह समय काफी दुर्लभ है। सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप धर्म को साधनेवाला, आराधना करवानेवाला, अनुपम सामग्रीयुक्त ऐसा समय फिर नहीं मिलेगा। और फिर मिला हुआ यह शरीर हंमेशा रात – दिन हरएक पल में और हरएक समय में टुकड़े टुकड़े होकर सड़ गया है। दिन – प्रतिदिन शिथिल होता जाता है। घोर, निष्ठुर, असभ्य, चंड़, जरा समान, वज्र शिला के प्रतिघात से टुकड़े – टुकड़े होकर सैंकड़ो पड़वाले जीर्ण मिट्टी के हांड़ी समान, किसी काम में न आए ऐसा, पूरी तरह बिनजरुरी बन गया है। नए अंकुर पर लगे जलबिन्दु की तरह अचानक अर्धपल के भीतर एकदम यह जीवित पेड़ पर से उड़ते हुए पंछी की तरह उड़ जाते हैं। परलोक के लिए भाथा उपार्जन न करनेवाले को यह मानव जन्म निष्फल है तो अब छोटे – से छोटा प्रमाद भी करने के लिए मैं समर्थ नहीं हूँ। यह मनुष्य रूप में सर्वकाल मित्र और शत्रु के प्रति समान भाववाले बनना चाहिए। वो इस प्रकार समग्र जीव के प्राण के अतिपात की त्रिविध – त्रिविध से विरति, सत्य वचन बोलना, दाँत खुतरने की शलाका समान या लोच करने की भस्म समान निर्मुल्य चीज भी बिना दिए ग्रहण न करना। मन, वचन, काया के योग सहित अखंडित अविराधित नवगुप्ति सहित परम पवित्र, सर्वकाल दुर्धर ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करना। वस्त्र, पात्र, संयम के उपकरण पर भी निर्ममत्व, अशन – पानादिक चार आहार का रात को त्याग करना, उद्गम – उत्पादना एषणादिक में पाँच दोष से मुक्त होना, परिमित समय भोजन करना, पाँच समिति का शोधन करना, तीन गुप्ति से गुप्त होना, इर्यासमिति आदि भावना, अशनादिक तप के उपधान का अनुष्ठान करना। मासादिक भिक्षु की बारह प्रतिमा, विचित्र तरह के द्रव्यादिक अभिग्रह, अस्नान, भूमिशयन, केशलोच, शरीर की टापटीप न करना, हंमेशा सर्वकाल गुरु की आज्ञा के अनुसार व्यवहार करना। क्षुधा प्यास आदि परिषह सहना। दिव्यादिक उपसर्ग पर विजय पाना। मिले या न मिले दोनों में समभाव रखना। या मिले तो धर्मवृद्धि, न मिले तो तपोवृद्धि वैसी भावना रखना। ज्यादा कितना बयाँ करे ? अरे लोगों ! यह अठ्ठारह हजार शीलांग के बोझ बिना विश्रान्ति से श्री महापुरुष से वहन कर सके वैसा काफी दुर्धर मार्ग वहन करने के लायक है। विशाद पाए बिना तो बाहा से यह महासागर तैरने के समान यह मार्ग है। यह साधुधर्म स्वाद रहित मिट्टी के नीवाले का भक्षण करने के समान है। काफी तीक्ष्ण पानीदार भयानक तलवार की धार पर चलने के समान संयम धर्म है। घी आदि से अच्छी तरह से सींचन किए गए अग्नि की ज्वाला श्रेणी का पान करने के समान चारित्र धर्म है। सूक्ष्म पवन से बँटवा भरने के जैसा कठिन संयम धर्म है। गंगा के प्रवाह के सामने गमन करना, साहस के तराजू से मेरु पर्वत नापना, एकाकी मानव धीरता से दुर्जय चातुरंग सेना को जीतना, आपसी उल्टी दिशा में भ्रमण करते आँठ चन्द्र के ऊपर रही पूतली की दाँई आँख बाँधना, समग्र तीन भुवन में विजय प्राप्त करके निर्मल, यश, कीर्ति की जयपताका ग्रहण करना, इन सबसे भी धर्मानुष्ठान से किसी भी अन्य चीज दुष्कर नहीं है यानि उससे सभी चीजों को सिद्धि होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kenam atthenam evam vuchchai te nam kale nam te nam samaenam susadhanamadhejje anagare habhuyavam. Tenam cha egegassa nam pakkhassamto pabhuya-tthanio aloyanao vidinnao sumahamtaim cha. Achchamta ghora sudukkaraim payachchhittaim samanuchinnaim. Taha vi tenam viraenam visohipayam na samuvaladdham ti etenam atthenam evam vuchchai. Se bhayavam kerisa u nam tassa susadhassa vattavvaya goyama atthi iham cheva bharahevase, avamti nama janavao. Tattha ya sambukke namam khedage. Tammi ya jammadaridde nimmere nikkive kivine niranukampe aikure nikkalune nittimse rodde chamdarodde payamdadamde pave abhiggahiya michchhaditthi anuchchariya namadhejje sujjasive nama dhijjai ahesi. Tassa ya dhuya sujjasiri. Sa ya aparituliya-sayala tihuyana nara narigana lavanna kamti ditti ruva sohaggaisaenam anovama attaga, tie annabhavamtarammi inamo hiyaena duchchim tiyam ahesi jaha nam sohanam havejja jai nam imassa balagassa maya vavajje, tao majjha asavakkam bhave. Eso ya balago dujjivio bhavai. Tahe majjha suyassa ya rayalachchhi parinamejja tti, takkamma-dosenam tu jayamettae cheva pamchattamuvagaya janani. Tao goyama te nam sujjhasivenam mahaya kilesenam chhamdamarahamanenam bahunam ahinava pasuya juvatinam gharagharim thannam paunam jivaviya sa baliya. Ahannaya java nam bala bhavamuttinna sa sujjasiri tava nam agayam amayaputtam maharoravam duvalasa-samvachchhariyam dubhikkham ti, java nam phetta-phettie jaumaraddhe sayale vi nam janasamuhe. Ahannaya bahu divasa khuhattenam visayamuvagaenam tena chimtiyam jaha–kimeyam vavaiunam samuddisami kim va nam imie poggalam vikkiniunam cheva annam kimchivi vanimaggao padigahittanam panavittim karemi no nam anne kei jiva-samdharanovae sampayam me havejja tti, ahava haddhi ha ha na juttaminam ti, kimtu jivamanim cheva vikkinami tti, chimtiunam vikkiya sujjasiri maha riddhi juyassa choddasa vijja tthana paragayassa nam mahana govimdassa gehe. Tao bahujanehim dhiddhi saddovahao tam desam parichichchanam gao anna-desamtaram sujjasivo, tattha vi nam payatto so goyama ittheva vinnane. Java nam annesim kannagao avaharittanam avaharittanam annattha vikkaniunam chameliyam sujjasivena bahum davinajayam. Eyavasarammi u samaikkamte sairege attha samvachchhare dubbhikkhassa java nam viyaliyamasesavihavam tassavi nam govimda-mahanassa. Tam cha viyaniunam visayamuvagaenam chimtiyam goyama te nam govimda-mahanenam jaha nam hohi samgharakalam majjha kudumbassa, naham visiyamane bamdhave khanaddhamavi datthunam sakkunomi. Ta kim kayavvam sampayamamhehim ti, chimtiyamanasseva agaya goulahivaino bhajja khaiyaga-vikkinattham tassa gehe. Java nam govimdassa bhajjae tamdula mallagenam padigahiyao chauro ghana vigai misa khaiyagam goliyao, tam cha padigahiyamettameva paribhuttam dimbhehim. Bhaniyam cha mahayarie jaha nam–bhattidarige, payachchhahi nam tamamhanam tamdula-mallagam, chiram vatte jenamhe goulam vayamo. Tao samanatta goyama tie mahanie sa sujjasiri jaha nam hala tam jam amhana naravaina nisavayam pahiyam pehiyam tattha jam tam tamdula-mallagam tamanehi lahum, jenahamimie payachchhami, java dhumdhiuna nihariya mamdiram sa sujjasiri, novaladdham tamdulamallagam. Sahiyam cha mahanie. Puno vi bhaniyam mahanie jaha–hala, amugam amugam thamanudduya annesiunamanehi. Puno vi paitta alimdage java nam na pechchhe tahe samutthiya sayameva sa mahani. Java nam tie vi na dittham. Tao nam suvimhiya manasa niunam annesium payatta, java nam pechchhe ganiga-sahayam padhamasuyam pairikke odanam samuddisamanam. Tenavi padidatthum jananim agachchhamani chimtiyam aha-nnenam jaha, nam chaliya amhanam oyanam avahariukama payamesa, ta jai ihasannamagachchhihi tao ahameyam vavaissami tti chimtiyam tenam bhaniya durasanna cheva mahaya saddenam sa mahani jaha nam bhattidarage jai tumam ihayam samagachchhihisi tao ma evam tam vochchiya jaha nam no parikahiyam, nichchhayam ahayam te vavaissami. Evam cha anittha-vayanam sochchanam vajjasani pahaya iva dhasatti muchchhiunam nivadiya dharanivatthe goyama sa mahani tti. Tao nam tie mahayarie parivaliunam kamchi kalakkhanam vutta sa sujjasiri jaha nam hala hala kannage, amhanam chiram vatte, ta bhanasu siggham niyajananim jaha nam eha lahum. Payachchhasu tamamhanam tamdula mallagam. Aha nam tamdula mallagam vippanattham tao nam mugga-mallagameva payachchhasu. Tahe pavittha sa sujjasiri alimdage java nam datthunam tamavatthamtaragayam nichchettham muchchhiram tam mahani mahaya ha-ha ravenam dhahavium payatta sa sujjasiri. Tam chayanniunam saha parivaggenam vaio so mahano mahayari ya. Tao pavanajalena asasi-unam puttha sa tehim jaha bhattidarage kimeyam kimeyam ti. Tie bhaniyam jaha nam ma ma attanagam daramaenam dihena khaveha, ma ma vigaya jalae sarie vubbheha, ma ma ara-jjuehim pasehim niyamtie majjhamahenanappeha jaha nam kila esa putte, esa dhuya, esa nam nattuge, esa nam sunha, esa nam jamauge, esa nam maya, esa nam janage, eso bhatta, esa nam itthe, mitthe pie kamte, suhi sayana mitta bamdhu parivagge. Ihaim pachchakkhameveyam vi ditthe aliya-maliya chevesa bamdhavasa. Sa kajjatthi cheva sambhayae loo, paramatthao na kei suhi. Java nam sakajjam tava nam maya tava nam janage, tava nam dhuya, tava nam jamauge, tava nam nattuge, tava nam putte, tava nam sunha, tava nam kamta, tava nam itthe, mitthe pie, kamte suhi sayana jana mitta bamdhu parivagge. Sakajjasiddhi virahenam tu na kassai kai maya, na kassai kei janage, na kassai kai dhuya, na kassai kei jamauge, na kassai kei putte, na kassai kai sunha, na kassai kei bhatta, na kassai kei kamta, na kassai kei itthe mitthe, pie kamte suhi sayanajana mitta bamdhu parivagge. Je nam ta pechchha mae anegovaiyasauvaladdhe sairega nava mase kuchchhie vi dhariunam cha anega mittha mahura usina tikkha guliya saniddha ahara payana sinana uvvattana dhuyakarana sambahana thanna payanaihi nam emahamta manussikae jaha kila aham putta rajjammi punna punna manoraha suham suhena panaiyana puriyasa kalam gamihami, ta erisam eyam vaiyaram ti eyam cha naunam ma dhavaisum kareha khanaddhamavi anum pi padibamdham. Jaha nam ime majjha sue samvutte taha nam gehe gehe je kei bhue, je kei vattamti, ke kei bhavimsu sue taha vi erise vi bamdhuvagge. Kevalam tu sa kajja luddhe cheva ghadiya muhutta parimanameva kamchi kalam bhaejja va, ta bho bho jana, na kimchi kajjam etenam karima bamdhu samtanenam anamta samsara ghora dukkha padayagenam ti ege chevahannisanusamayam sayayam suvisuddha-sae bhayaha dhamme. Dhamme ya nam itthe pie kamte paramatthe suhi sayana jana mitta bamdhu parivagge. Dhamme ya nam hitthikare, dhamme ya nam putthikare, dhamme ya nam balakare, dhamme ya nam uchchhahakare, dhamme ya nam nimmala jasa kittipasahage, dhamme ya nam mahappajanage, dhamme ya nam sutthu sokkha paramparadayage, se nam sevve, se nam arahanijje, se ya nam posanijje, se ya nam palanijje, se ya nam karanijje, se ya nam charanijje, se ya nam anutthanijje, se ya nam uvaissanijje, se ya nam kahanijje, se ya nam bhananijje, se ya nam pannavanijje se ya nam karavanijje, se ya nam dhuve, sasae, akkhae, avvae, sayala sokkha nihidhamme, se ya nam alajja-nijje, se ya nam aula bala virie, sariya satta parakkama samjue pavare vare itthe piye kamte daie sayala dukkha daridda samtavuvvega ayasa abbhakkhana jamma jara maranai asesa bhaya ninnasage, anannam sarise sahae telokkekkasamisale. Ta alam suhi sayana jana mitta bamdhugana dhana dhanna suvanna hiranna rayanoha nihi kosa samchayai sakkachava vijjula-yadovachamchalae, suminimdajala sarisae khana dittha nattha bhamgurae, adhuvae, asasayae, samsara vuddhi karigae, nirayavayaraheubhu-yae soggai magga viggha dayagae, anamta dukkha padayagae riddhie, sudullaha khalu bho dhammassa sahani, samma damsana nana chari-ttarahani niruttai samaggi anavaraya mahannisanusamaehi nam khamda khamdehim tu parisadai aum, dadha ghora nitthurasajjha chamda jarasanisa-nnivaya samchunnie sayajajjarabhamdage iva akimchikare bhavai u diyahanudiyahenam ime tanu kisalaya dalagga parisamthiya jala bimdumivakamde, nimisaddhabbhamtareneva lahum dhalai jivie, avidhatta paralogapatthayananam tu nipphale cheva manuyajamme, ta bho na khame tanu tanuya tare vi isimpi pamae. Jao nam ettham khalu savvakalameva samasattu mitta bhavehim bhaveyavvam-appamattehim cha pamcha mahavvae dhariyavve. Tam jaha– kasinapanaivayavirati, analiya bhasittam, damtasohanamettassavi adinnassa vajjanam, mano vai kaya jogehim tu akhamdiya avira-hiya nava gutti parivedhiyassa nam parama pavittassa savvakalameva duddhara bambhacherassa dharanam, vattha patta samjamovagaranesum pi nimmattaya, asana panainam tu chauvviheneva raibhoyanachchao, uggamuppayanesanaisu nam suvisuddhapimdaggahanam, samjoyanai pamcha dosa virahienam parimienam kale bhinne pamcha samiti visohanam, ti gutti guttaya, iriya samiimaio bhavanao, anasanaitavovahananutthanam, masaibhikkhupadimao, vichitte davvai abhiggahe, aho nam bhumi sayane, kesaloe, nippadikamma sariraya, savvakalameva guruniogakaranam, khuha pivasai-parisahahiyasanam, divvaiuvasaggavijao, laddhavaladdhavittiya,.. ..Kim bahuna achchamta duvvahe bho vahiyavve avisamamtehim cheva sirimahapurisattavudhe attharasa silamga sahassabhare, tariyavve ya bho bahahim mahasamudde, avisaihim cha nam bho bhakkhiyavve, nirasae valuyakavale, parisakkeyavvam cha bho nisiyasutikkhadaruna karavaladharae, payavva ya nam bho suhuya huyavaha jalavali, bhariyavve nam bho suhuma pavana kotthalage, gamiyavvam cha nam bho gamga pavaha padisoenam, toleyavvam bho sahasatulae mamdara-girim, jeyavve ya nam bho egagiehim cheva dhirattae sudujjae chauramgabale, vimdheyavva nam bho paroppara vivariya bhamamta attha chakkovarim, vamachchhimmi u dhiulliya, gaheyavva nam bho sayala tihuyana vijaya nimmala jasa kitti jaya padaga. Ta bho bho jana eyao dhammanutthanao sudukkaram natthi kimchi mannam ti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Kisa karana se aisa kaha\? Usa samaya mem usa samaya yaham susarha nama ka eka anagara tha. Usane eka – eka paksha ke bhitara kaim asamyama sthanaka ki alochana di aura kaphi mahana ghora dushkara prayashchitta ka sevana kiya. To bhi usa bechare ko vishuddhi prapta nahim hui. Isa karana se aisa kaha. He bhagavamta ! Usa susarha ki vaktavyata kisa taraha ki hai\? He gautama ! Isa bharata varsha mem avanti namaka desha hai. Vaham sambukka nama ka eka chhota gamva tha. Usa gamva mem janma daridra maryada – lajja rahita, kripa rahita, kripana anukampa rahita, atikrura, nirdaya, raudra parinamavala, kathina, shiksha karanevala, abhigrahika mithyadrishti jisaka nama bhi lena papa hai, aisa sujnyashiva namaka brahmana tha, sujnyashri usaki beti thi. Samagra tina bhuvana mem nara aura nari samudaya ke lavanya kanti teja samana saubhayatishaya karane se usa laraki ke lavanya rupa kanti adi anupama aura barhiyam the vo sujnyashri ne kisi agale dusare bhava mem aisa dushta socha tha ki yadi isa bachche ki mam mara jae to achchha to mem shoka rahita banum. Phira yaha bachcha duhkhi hokara ji sakega. Aura rajalakshmi mere putra ko prapta hogi. Usa dushta chintavana ke phalarupa vo karma ke dosha se utpanna hone ke satha hi usaki mam mara gai usake bada he gautama ! Usa sujnyashiva pitane kaphi klesha se binati karake nae bachchom ko janma denevali mata ne ghara – ghara ghumakara aradhana ki. Usa putri ka bachapana purna hua. Utane mem mam – putra ka sambandha talanevale maha bhayanaka baraha varsha ke lambe arase ka akala samaya a pahumcha. Jitane mem rishtedari ka tyaga karake samagra janasamuha chala gaya taba kasi dina kaim dina ka bhukha, vishada paya hua vo sujnyashiva sochane laga ki kya aba isa bachchi ko mara dala ke bhukha puri karum ya usaka mamsa bechakara kisi vanika ke pasa se rashana kharidakara apane prana ko dharum. Aba jine ke lie dusara koi bhi upaya mere pasa nahim bacha, ya to vakai mujhe dhikkara hai. Aisa karana uchita nahim hai. Lekina use jinda hi becha dum. Aisa sochakara mahariddhi vale chaudaha vidyasthana ke paragami aise govimda, brahmana ke ghara sujnyashri ko becha di isalie kaim logom ko napharata ke shabda se ghayala vo apane desha ka tyaga karake sujnyashiva dusare deshantara mem chala gaya. Vaham jakara bhi usi ke anusara dusari kanya ka apaharana karake dusari jagaha becha – bechakara sujnyashiva ne kaphi dravya uparjana kiya. Usa avasara para akala ke samaya ke kuchha jyada amtha varsha pasara hue taba vo govimda shetha ka samagra vaibhava ka kshaya hua. He gautama ! Vaibhava vinasha pane ki vajaha se vishada pae hue govimda brahmana ne chintavana kiya ki aba mere parivara ka vinashakala najadika hai. Vishada panevale mere bamdhu ko adha pala bhi dekhane ke lie samartha nahim hai. To aba maim kya karum\? Aisa sochate hue eka gaukula ke svami ki bharya ai khane ki chije bechanevali usa govalana ke pasa se usa brahmana ki bharya ne damgara ke napa se bhi ghi aura shakkara ke banae hue chara laddu kharida kie. Kharida karate hi bachche laddu kha gae. Mahiyari ne kaha ki are shethani ! Hamem badale mem dene ki damgara ki pali de do. Hamem jalda gokula mem pahumchana hai. He gautama ! Usake bada brahmani ne sujnyashri ko ajnya di ki are ! Rajane jo kuchha bheja hai, usamem jo damgara ki mataki hai use jalda dhumrhakara lao jisase yaha govalana ko dum. Sujnyashri jitane mem vo dhumrhane ke lie ghara mem gai lekina usa tamdula ka bhajana na dekha. Brahmani ne kaha ki nahim hai. Phira brahmani na kaha, are ! Kuchha bhajana upara karake usamem dekho aura dhumrhakara lao. Phira se dekhane ke lie amgana mem gai aura na dekha taba brahmani ne khuda vaham akara dekha to usako bhi bhajana na mila. Kaphi vismaya panevali usane phira se haraeka jagaha para dekhane lagi. Doharana ekanta jagaha mem veshya ke satha odana ka bhojana karanevale bare putra ko dekha. Usa putrane bhi unaki ora najara ki. Samane anevali mata ko dekhakara adhanya putrane chintavana kiya ki ama tora para mata hamare chavala chhina lene ke lie ati hui dikhati hai, yadi vo pasa aegi to maim use mara dalumga – aisa chintavana karate putrane dura rahe aura pasa anevali brahmani mam ko kare shabda mem kaha ki – he bhattidarika ! Yadi tu yaham aegi to phira tuma aisa mata kahana ki mujhe pahale na kaha. Yakinana maim tumhem mara dalumga. Aisa anishta vachana sunakara ulkapata se vadha ki hui ho vaise dhasa karate hue bhumi para gira pari. Murchchhavasha brahmani bahara se vapasa na ai isalie mahiyari ne kuchha dera raha dekhane ke bada sujnyashri ko kaha ki are balika ! Hamem dera ho rahi hai, isalie tumhari mam ko kaho ki tuma hame damgara ka pala do. Yadi damgara ka pala na dikhe ya na mile to usake bajaya muga ka pala do. Taba sujnyashri dhanya rakhane ke kothara mem pahumchi aura dekhati hai to dusari avastha pai hui brahmani ko dekhakara sujnyashri haharava karake shora machane lagi. Vo sunakara parivara sahita vo govimda brahmana aura mahiyari a pahumche. Pavana aura jala se ashvasana pakara unhomne puchha ki – he bhattidarika ! Yaha tumhem achanaka kya ho gaya\? Taba savadha hui brahmani ne pratyuttara mem bataya ki are ! Tuma raksha rahita aisi mujhe jhaharile sampa ke damkha mata dilao. Nirjala nadi mem mujhe mata khara karo. Are rassi rahita snehapasha mem jakari hui aisi mujhe moha mem sthapita mata karo. Jaise ki yaha mere putra, putri, bhatije haim. Yaha putravadhu, yaha jamai, yaha mata, yaha pita hai, yaha mere bhartara hai, yaha mujhe ishta priya manachahe parivaravarga, svajana, mitra, bandhuvarga hai. Vo yaham pratyaksha jhuthi mayavale haim. Unaki ora se bandhupana ki asha mrigatrishna hai,apanepana ka jhutha bhrama hota hai; paramartha se socha jae to koi sachche svajana nahim hai jaba taka svartha pura hota hai taba taka mata, pita, putri, putra, jamai, bhatija, putravadhu adi sambandha banae rakhate haim. Taba taka hi hara eka ko achchha lagata hai. Ishta mishta priya snehi parivara ke svajana varga mitra bandhu parivara adi taba taka hi sambandha rakhate haim ki jaba taka haraeka ka apana matalaba pura hota hai. Apane karya ki siddhi mem, viraha mem koi kisi ki mata nahim, na koi kisi ke pita, na koi kisi ki putri, na koi kisi ka jamai, na koi kasi ka putra, na koi kisi ki patni, na koi kisi ka bhartara, na koi kisi ka svami, na koi kisi ke ishta mishta priyakanta parivara svajana varga mitra bandhu parivara varga haim. Kyomki dekho taba prapta hue kuchha jyada nau varsha taka kukshi mem dharana karake kaim mishta madhura ushna tikhe sukhe snigdha ahara karavae, snana purushana kiya, usaka sharira kapare dhoe, sharira dabaya, dhana – dhanyadika die. Use uchherane ki mahakoshisha ki. Usa samaya aisi asha rakhi thi ki putra ke raja mem mere manoratha purna homge. Aura snehijana ki asha puri karake maim kaphi sukha mem mera samaya pasara karumgi. Maimne socha tha usase bilakula viparita hakikata bani hai. Aba itana janane aura samajhane ke bada pati adi para adha pala bhi sneha rakhana uchita nahim hai. Jisa anusara mere putra ka vrittanta bana hai usake anusara ghara – ghara bhutakala mem vrittanta bane haim. Vartamana mem banate haim aura bhavi mem bhi banate rahemge. Vo bandhuvarga bhi kevala apane karya siddha karane ke lie ghatika muhurtta utana samaya aura sneha parinama tikakara seva karata hai. Isalie he loga ! Ananta samsara ke ghora duhkha denevale aise yaha kritrima bandhu aura samtana ka mujhe koi prayojana nahim hai. Isalie aba rata – dina hammesha uttama vishuddha ashaya se dharma ka sevana karo. Dharma hi dhana, ishta, priya, kanta, paramartha se hitakari, svajana varga, mitra, bandhuvarga hai. Dharma hi sundara darshaniya rupa karanevala, pushti karanevala, bala denevala hai. Dharma hi utsaha karavanevala, dharma hi nirmala, yasha, kirti ki sadhana karanevala hai. Dharma hi prabhavana karavanevala, shreshthatama sukha ki parampara denevala ho to vo dharma hai. Dharma hi sarva taraha ke nidhana svarupa hai. Aradhaniya hai. Poshane ke layaka hai, palaniya hai. Karaniya hai, acharaniya hai, sevaniya hai, upadeshaniya hai, kathaniya hai, parhane ke layaka hai, prarupaniya hai, karavane ke layaka hai, dharma dhruva hai, shashvata hai, akshaya hai, sthira rahanevala hai. Samagra sukha ka bhamrara hai, dharma alajjaniya hai, dharma atula bala, virya, sampurna sattva, parakrama sahitapana dilanevala hota hai. Pravara, shreshtha, ishta, priya, kanta drishtijana ka samyoga karavanevala ho to vo dharma hai. Samagra asukha, daridrya, samtapa, udvega, apayasha, jhuthe aropa, burhapa, marana adi samagra bhaya ko sarvatha nashta karanevala, jisaki tulana mem koi na a sake vaisa sahayaka, tina loka mem bejora natha ho to kevala eka dharma hai. Isalie aba parivara, svajanavarga, mitra, bandhu varga, bhamrara adi aloka ki chijom se prayojana nahim hai. Aura phira yaha riddhi – samriddhi indra dhanusha, bijali, latta ke atopa se jyada chamchala, svapna aura indra jala samana dekhane ke satha hi pala mem guma honevali, nashavamta, adhruva, ashashvata, samsara ki parampara barhanevala, naraka mem utpanna hone ke karana rupa, sadgati ke marga mem vighna karanevala, ananta duhkha denevala hai. Are logo ! Dharma ke lie yaha samaya kaphi durlabha hai. Samyag darshana, jnyana, charitra rupa dharma ko sadhanevala, aradhana karavanevala, anupama samagriyukta aisa samaya phira nahim milega. Aura phira mila hua yaha sharira hammesha rata – dina haraeka pala mem aura haraeka samaya mem tukare tukare hokara sara gaya hai. Dina – pratidina shithila hota jata hai. Ghora, nishthura, asabhya, chamra, jara samana, vajra shila ke pratighata se tukare – tukare hokara saimkaro paravale jirna mitti ke hamri samana, kisi kama mem na ae aisa, puri taraha binajaruri bana gaya hai. Nae amkura para lage jalabindu ki taraha achanaka ardhapala ke bhitara ekadama yaha jivita pera para se urate hue pamchhi ki taraha ura jate haim. Paraloka ke lie bhatha uparjana na karanevale ko yaha manava janma nishphala hai to aba chhote – se chhota pramada bhi karane ke lie maim samartha nahim hum. Yaha manushya rupa mem sarvakala mitra aura shatru ke prati samana bhavavale banana chahie. Vo isa prakara samagra jiva ke prana ke atipata ki trividha – trividha se virati, satya vachana bolana, damta khutarane ki shalaka samana ya locha karane ki bhasma samana nirmulya chija bhi bina die grahana na karana. Mana, vachana, kaya ke yoga sahita akhamdita aviradhita navagupti sahita parama pavitra, sarvakala durdhara brahmacharya vrata ko dharana karana. Vastra, patra, samyama ke upakarana para bhi nirmamatva, ashana – panadika chara ahara ka rata ko tyaga karana, udgama – utpadana eshanadika mem pamcha dosha se mukta hona, parimita samaya bhojana karana, pamcha samiti ka shodhana karana, tina gupti se gupta hona, iryasamiti adi bhavana, ashanadika tapa ke upadhana ka anushthana karana. Masadika bhikshu ki baraha pratima, vichitra taraha ke dravyadika abhigraha, asnana, bhumishayana, keshalocha, sharira ki tapatipa na karana, hammesha sarvakala guru ki ajnya ke anusara vyavahara karana. Kshudha pyasa adi parishaha sahana. Divyadika upasarga para vijaya pana. Mile ya na mile donom mem samabhava rakhana. Ya mile to dharmavriddhi, na mile to tapovriddhi vaisi bhavana rakhana. Jyada kitana bayam kare\? Are logom ! Yaha aththaraha hajara shilamga ke bojha bina vishranti se shri mahapurusha se vahana kara sake vaisa kaphi durdhara marga vahana karane ke layaka hai. Vishada pae bina to baha se yaha mahasagara tairane ke samana yaha marga hai. Yaha sadhudharma svada rahita mitti ke nivale ka bhakshana karane ke samana hai. Kaphi tikshna panidara bhayanaka talavara ki dhara para chalane ke samana samyama dharma hai. Ghi adi se achchhi taraha se simchana kie gae agni ki jvala shreni ka pana karane ke samana charitra dharma hai. Sukshma pavana se bamtava bharane ke jaisa kathina samyama dharma hai. Gamga ke pravaha ke samane gamana karana, sahasa ke taraju se meru parvata napana, ekaki manava dhirata se durjaya chaturamga sena ko jitana, apasi ulti disha mem bhramana karate amtha chandra ke upara rahi putali ki dami amkha bamdhana, samagra tina bhuvana mem vijaya prapta karake nirmala, yasha, kirti ki jayapataka grahana karana, ina sabase bhi dharmanushthana se kisi bhi anya chija dushkara nahim hai yani usase sabhi chijom ko siddhi hoti hai. |