Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )

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Sr No : 1017542
Scripture Name( English ): Mahanishith Translated Scripture Name : महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-५ नवनीतसार

Translated Chapter :

अध्ययन-५ नवनीतसार

Section : Translated Section :
Sutra Number : 842 Category : Chheda-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तओ गोयमा अप्प संकिएणं चेव चिंतियं तेण सावज्जायरिएणं जहा णं– जइ इह एयं जहट्ठियं पन्नवेमि तओ जं मम वंदनगं दाउमाणीए तीए अज्जाए उत्तिमंगेण चलणग्गे पुट्ठे तं सव्वेहिं पि दिट्ठमेएहिं ति। ता जहा मम सावज्जायरियाहिहाणं कयं तहा अन्नमवि किंचि एत्थ मुद्दंकं काहिंति। अहन्नहा सुत्तत्थं पन्नवेमि ता णं महती आसायणा। ता किं करियव्वमेत्थं ति। किं एयं गाहं पओवयामि किं वा णं अन्नहा पन्नवेमि अहवा हा हा न जुत्तमिणं उभयहा वि। अच्चंतगरहियं आयहियट्ठीणमेयं, जओ न मेस समयाभिप्पाओ जहा णं जे भिक्खू दुवालसंगस्स णं सुयनाणस्स असई चुक्कखलियपमायासंकादी सभयत्तेणं पयक्खरमत्ता बिंदुमवि एक्कं पओवेज्जा अन्नहा वा पन्नवेज्जा, संदिद्धं वा सुत्तत्थं वक्खाणेज्जा। अविहीए अओगस्स वा वक्खाणेज्जा। से भिक्खू अनंतसंसारी भवेज्जा। ता किं रेत्थं, जं होही तं च भवउ, जहट्ठियं चेव गुरुवएसाणुसारेणं सुत्तत्थं पवक्खामि त्ति चिंतिऊणं गोयमा पवक्खाया निखिलावयवविसुद्धा सा तेण गाहा। एयावसरम्मि चोइओ गोयमा सो तेहिं दुरंत पंत लक्खणेहिं जहा जइ एवं ता तुमं पि ताव मूल गुणहीणो। जाव णं संभरेसु तं जं तद्दिवसं तीए अज्जाए तुज्झं वंदनगं दाउकामाए पाए उत्तिमंगेणं पुट्ठे। ताहे इहलोइगायस हीरू खरसत्थरीहूओ। गोयमा सो सावज्जायरिओ चिंतिओ जहा जं मम सावज्जायरियाहिहाणं कयं इमेहिं तहा तं किं पि संपयं काहिंति। जे णं तु सव्व लोए अपुज्जो भविस्सं, ता किमेत्थं पारिहारगं दाहामि त्ति चिंतमाणेणं संभरियं तित्थयर वयणं जहा णं जे केई आयरिए, इ वा मयहरए, इ वा गच्छाहिवई सुयहरे भवेज्जा। से णं जं किंचि सव्वण्णू अनंत नाणीहिं पावाववाय ट्ठाणं पडिसेहियं तं सव्वं सुयाणुसारेणं विन्नायं सव्वहा सव्व पयारेहि णं नो समायरेज्जा, नो णं समायरिज्जमाणं समनुजाणेज्जा। से कोहेण वा, माणेण वा, मायाए वा, लोभेण वा, भएण वा, हासेण वा, गारवेण वा, दप्पेण वा, पमाएण वा, असती चुक्क खलिएण वा, दिया वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं एतेसिमेवपयाणं। जे केइ विराहगे भवेज्जा से णं भिक्खू भूओ भूओ णिंदणिज्जे, गरहणिज्जे, खिंसणिज्जे, दुगुंछणिज्जे, सव्व लोग परिभूए बहू वाहि वेयणा परिगय सरीरे उक्कोसट्ठितीए अनंत संसार सागरं परिभमेज्जा। तत्थ णं परिभममाणे खणमेक्कं पि न कहिंचि कयाइ निव्वुई संपावेज्जा। ता पमाय गोयर गयस्स णं मे पावाहमाहम हीन सत्त काउरिसस्स इहइं चेव समुट्ठियाए महंता आवई। जेणं न सक्को अहमेत्थं जुत्ती-खमं किंचि पडिउत्तरं पयाउं जे। तहा परलोगे य अनंत भव परंपरं भममाणो घोर दारुणानंत सोय दुक्खस्स भागी भवीहामि हं मंदभागो त्ति। चिंतयंतोऽवलक्खिओ सो सावज्जायरिओ गोयमा तेहिं दुरायार पाव कम्म दुट्ठ सोयारेहिं जहा णं अलिय खर सत्थरीभूओ एस। तओ संखुद्धमणं खर सत्थरीभूयं कलिऊणं च भणियं तेहिं दुट्ठ सोयारेहिं जहा– जाव णं नो छिन्नमिणमो संसयं ताव णं उड्ढं वक्खाणं अत्थि। ता एत्थं तं परिहारगं वायरेज्जा। जं पोढ जुत्ती खमं कुग्गाह णिम्महण पच्चलं ति। तओ तेण चिंतियं जहा नाहं अदिन्नेणं पारिहारगेणं चुक्किमोमेसिं, ता किमेत्थ पारिहारगं दाहामि त्ति चिंतयंतो पुणो वि गोयमा भणिओ सो तेहिं दुरायारेहिं जहा किमट्ठं चिंतासागरे णिमज्जि-ऊणं ठिओ सिग्घमेत्थं किंचि पारिहारगं वयाहि, नवरं तं पारिहारगं भणेज्जा। जं जहुत्तत्थकियाए अव्वभिचारी। ताहे सुइरं परितप्पिऊणं हियएणं भणियं सावज्जारिएणं जहा एएण अत्थेणं जग गुरूहिं वागरियं जं अओगस्स सुत्तत्थं न दायव्वं, । जहा–
Sutra Meaning : तब अपनी शंकावाला उन्होंने सोचा कि यदि यहाँ मैं यथार्थ प्ररूपणा करूँगा तो उस समय वंदना करती उस आर्या ने अपने मस्तक से मेरे चरणाग्र का स्पर्श किया था, वो सब इस चैत्यवासी ने मुझे देखा था। तो जिस तरह मेरा सावद्याचार्य नाम बना है, उस प्रकार दूसरा भी वैसा कुछ अवहेलना करनेवाला नाम रख देंगे जिससे सर्व लोक में मै अपूज्य बनूँगा। तो अब मैं सूत्र और अर्थ अन्यथा प्रखण करूँ। लेकिन ऐसा करने में महा आशातना होगी तो अब मुझे क्या करना ? तो इस गाथा की प्ररूपणा करे कि न करे ? अगर अलग – अलग रूप से प्ररूपणा करे ? या अरेरे यह युक्त नहीं है। दोनों तरह से काफी गर्हणीय है। आत्महित में रहे, विरुद्ध प्ररूपणा करना वो उचित नहीं है। क्योंकि शास्त्र का यह अभिप्राय है कि जो भिक्षु बारह अंग रूप श्रुतवचन को बार – बार चूक जाए, स्खलना पाने में प्रमाद करे। शंकादिक के भय से एक भी पद – अक्षर, बुँद, मात्रा को अन्यथा रूप से खिलाफ प्ररूपणा करे, संदेहवाले सूत्र और अर्थ की व्याख्या करे। अविधि से अनुचित को वाचना दे, वो भिक्षु अनन्त संसारी होता है। तो अब यहाँ मैं क्या करूँ ? जो होना है वो हो। गुरु के उपदेश अनुसार यथार्थ सूत्रार्थ को बताऊं ऐसा सोचकर हे गौतम ! समग्र अवयव विशुद्ध ऐसी उस गाथा का यथार्थ व्याख्यान किया। इस अवसर पर हे गौतम ! दुरन्त प्रान्त अधम लक्षणवाले उस वेशधारी ने सावद्याचार्य को सवाल किया कि – यदि ऐसा है तो तुम भी मुल गुण रहित हो। क्योंकि तुम वो दिन याद करे तो वो आर्य उन्हें वंदन करने की इच्छावाली थी तब वंदन करते करते मस्तक से पाँव का स्पर्श किया। उस समय इस लोक के अपयश से भयभीत अति अभिमान पानेवाले उस सावद्याचार्य का नाम रख दिया वैसे अभी कुछ भी वैसा नाम रखेंगे तो सर्व लोक में मैं अपूज्य बनूँगा। तो अब यहाँ मैं क्या समाधान दूँ ? ऐसा सोचते हुए सावद्याचार्य को तीर्थंकर का वचन याद आया कि – जो किसी आचार्य का गच्छनायक या गच्छाधिपति श्रुत धारण करनेवाला हो उसने जो कुछ भी सर्वज्ञ अनन्तज्ञानी भगवंत ने पाप और अपवाद स्थानक को प्रतिषेधे हो वो सर्व श्रुत अनुसार जानकर सर्व तरह से आचरण करे, आचरण करनेवाले को अच्छा न माने, उसकी अनुमोदना न करे, क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, भय से, हँसी से, गारव से, दर्प से, प्रमाद से बार – बार चूक जाने या स्खलना होने से दिन में या रात को अकेला हो या पर्षदा में हो, सोते हुए या जागते हुए। त्रिविध त्रिविध से मन, वचन या काया से यह सूत्र या अर्थ के एक भी पद के यदि कोई विराधक हो। वो भिक्षु बार – बार निंदनीय, गर्हणीय, खींसा करने के लायक, दुगंछा करने के लायक, सर्वलोक से पराभव – पानेवाला, कईं व्याधि वेदना से व्याप्त शरीरवाला, उत्कृष्ट दशावाले अनन्त संसार सागर में परिभ्रमण करनेवाले होते हैं, उसमें परिभ्रमण करने से एक पल भी कईं शायद भी शान्ति नहीं पा सकता। तो प्रमादाधीन हुआ पापी अधमाधम हीन सत्त्ववाले कायर पुरुष समान मुझे यहीं यह बड़ी आपत्ति पैदा हुई है कि जिससे मैं यहाँ युक्तिवाला किसी समाधान देने के लिए समर्थ नहीं हो सकता। और परलोक में भी अनन्त भव परम्परा में भ्रमणा करते हुए अनन्ती बार के घोर भयानक दुःख भुगतनेवाला बनूँगा। वाकई मैं मंद भाग्यवाला हूँ। इस प्रकार सोचनेवाले ऐसे सावद्याचार्य को दुराचारी पापकर्म करनेवाले दुष्ट श्रोता ने अच्छी तरह से पहचान लिया कि, यह झूठा काफी अभिमान करनेवाला है। उसके बाद क्षोभ पाए हुए मनवाले उसे जानकर उस दुष्ट श्रोताओं ने कहा कि जब तक इस संशय का छेदन नहीं होगा तब तक व्याख्यान मत उठाना, इसलिए इसका समाधान दुराग्रह को दूर करने के लिए समर्थ प्रौढ़युक्ति सहित दो। तब उसने सोचा कि अब उसका समाधान पाए बिना वो यहाँ से नहीं जाएंगे। तो अब मैं उसका समाधान किस तरह दूँ ? ऐसा सोचते हुए फिर से हे गौतम ! उस दुराचारी ने उसे कहा कि तुम ऐसे चिन्ता सागर में क्यों डूब गए हो ? जल्द ही इस विषय का कुछ समाधान दो। और फिर ऐसा समाधान दो कि जिससे बताई हुई आस्तिकता में तुम्हारी युक्ति एतराज बिना – अव्यक्तचारी हो। उसके बाद लम्बे अरसे तक हृदय में परिताप महसूस करके सावद्याचार्य ने मन से चिन्तवन किया और कहा कि इस कारण से जगद्‌गुरु ने कहा है कि –
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tao goyama appa samkienam cheva chimtiyam tena savajjayarienam jaha nam– jai iha eyam jahatthiyam pannavemi tao jam mama vamdanagam daumanie tie ajjae uttimamgena chalanagge putthe tam savvehim pi ditthameehim ti. Ta jaha mama savajjayariyahihanam kayam taha annamavi kimchi ettha muddamkam kahimti. Ahannaha suttattham pannavemi ta nam mahati asayana. Ta kim kariyavvamettham ti. Kim eyam gaham paovayami kim va nam annaha pannavemi ahava ha ha na juttaminam ubhayaha vi. Achchamtagarahiyam ayahiyatthinameyam, jao na mesa samayabhippao jaha nam je bhikkhu duvalasamgassa nam suyananassa asai chukkakhaliyapamayasamkadi sabhayattenam payakkharamatta bimdumavi ekkam paovejja annaha va pannavejja, samdiddham va suttattham vakkhanejja. Avihie aogassa va vakkhanejja. Se bhikkhu anamtasamsari bhavejja. Ta kim rettham, jam hohi tam cha bhavau, jahatthiyam cheva guruvaesanusarenam suttattham pavakkhami tti chimtiunam goyama pavakkhaya nikhilavayavavisuddha sa tena gaha. Eyavasarammi choio goyama so tehim duramta pamta lakkhanehim jaha jai evam ta tumam pi tava mula gunahino. Java nam sambharesu tam jam taddivasam tie ajjae tujjham vamdanagam daukamae pae uttimamgenam putthe. Tahe ihaloigayasa hiru kharasattharihuo. Goyama so savajjayario chimtio jaha jam mama savajjayariyahihanam kayam imehim taha tam kim pi sampayam kahimti. Je nam tu savva loe apujjo bhavissam, ta kimettham pariharagam dahami tti chimtamanenam sambhariyam titthayara vayanam jaha nam je kei ayarie, i va mayaharae, i va gachchhahivai suyahare bhavejja. Se nam jam kimchi savvannu anamta nanihim pavavavaya tthanam padisehiyam tam savvam suyanusarenam vinnayam savvaha savva payarehi nam no samayarejja, no nam samayarijjamanam samanujanejja. Se kohena va, manena va, mayae va, lobhena va, bhaena va, hasena va, garavena va, dappena va, pamaena va, asati chukka khaliena va, diya va, rao va, egao va, parisagao va, sutte va, jagaramane va, tiviham tivihenam manenam vayae kaenam etesimevapayanam. Je kei virahage bhavejja se nam bhikkhu bhuo bhuo nimdanijje, garahanijje, khimsanijje, dugumchhanijje, savva loga paribhue bahu vahi veyana parigaya sarire ukkosatthitie anamta samsara sagaram paribhamejja. Tattha nam paribhamamane khanamekkam pi na kahimchi kayai nivvui sampavejja. Ta pamaya goyara gayassa nam me pavahamahama hina satta kaurisassa ihaim cheva samutthiyae mahamta avai. Jenam na sakko ahamettham jutti-khamam kimchi padiuttaram payaum je. Taha paraloge ya anamta bhava paramparam bhamamano ghora darunanamta soya dukkhassa bhagi bhavihami ham mamdabhago tti. Chimtayamtovalakkhio so savajjayario goyama tehim durayara pava kamma duttha soyarehim jaha nam aliya khara sattharibhuo esa. Tao samkhuddhamanam khara sattharibhuyam kaliunam cha bhaniyam tehim duttha soyarehim jaha– java nam no chhinnaminamo samsayam tava nam uddham vakkhanam atthi. Ta ettham tam pariharagam vayarejja. Jam podha jutti khamam kuggaha nimmahana pachchalam ti. Tao tena chimtiyam jaha naham adinnenam pariharagenam chukkimomesim, ta kimettha pariharagam dahami tti chimtayamto puno vi goyama bhanio so tehim durayarehim jaha kimattham chimtasagare nimajji-unam thio sigghamettham kimchi pariharagam vayahi, navaram tam pariharagam bhanejja. Jam jahuttatthakiyae avvabhichari. Tahe suiram paritappiunam hiyaenam bhaniyam savajjarienam jaha eena atthenam jaga guruhim vagariyam jam aogassa suttattham na dayavvam,. Jaha–
Sutra Meaning Transliteration : Taba apani shamkavala unhomne socha ki yadi yaham maim yathartha prarupana karumga to usa samaya vamdana karati usa arya ne apane mastaka se mere charanagra ka sparsha kiya tha, vo saba isa chaityavasi ne mujhe dekha tha. To jisa taraha mera savadyacharya nama bana hai, usa prakara dusara bhi vaisa kuchha avahelana karanevala nama rakha demge jisase sarva loka mem mai apujya banumga. To aba maim sutra aura artha anyatha prakhana karum. Lekina aisa karane mem maha ashatana hogi to aba mujhe kya karana\? To isa gatha ki prarupana kare ki na kare\? Agara alaga – alaga rupa se prarupana kare\? Ya arere yaha yukta nahim hai. Donom taraha se kaphi garhaniya hai. Atmahita mem rahe, viruddha prarupana karana vo uchita nahim hai. Kyomki shastra ka yaha abhipraya hai ki jo bhikshu baraha amga rupa shrutavachana ko bara – bara chuka jae, skhalana pane mem pramada kare. Shamkadika ke bhaya se eka bhi pada – akshara, bumda, matra ko anyatha rupa se khilapha prarupana kare, samdehavale sutra aura artha ki vyakhya kare. Avidhi se anuchita ko vachana de, vo bhikshu ananta samsari hota hai. To aba yaham maim kya karum\? Jo hona hai vo ho. Guru ke upadesha anusara yathartha sutrartha ko bataum aisa sochakara he gautama ! Samagra avayava vishuddha aisi usa gatha ka yathartha vyakhyana kiya. Isa avasara para he gautama ! Duranta pranta adhama lakshanavale usa veshadhari ne savadyacharya ko savala kiya ki – yadi aisa hai to tuma bhi mula guna rahita ho. Kyomki tuma vo dina yada kare to vo arya unhem vamdana karane ki ichchhavali thi taba vamdana karate karate mastaka se pamva ka sparsha kiya. Usa samaya isa loka ke apayasha se bhayabhita ati abhimana panevale usa savadyacharya ka nama rakha diya vaise abhi kuchha bhi vaisa nama rakhemge to sarva loka mem maim apujya banumga. To aba yaham maim kya samadhana dum\? Aisa sochate hue savadyacharya ko tirthamkara ka vachana yada aya ki – jo kisi acharya ka gachchhanayaka ya gachchhadhipati shruta dharana karanevala ho usane jo kuchha bhi sarvajnya anantajnyani bhagavamta ne papa aura apavada sthanaka ko pratishedhe ho vo sarva shruta anusara janakara sarva taraha se acharana kare, acharana karanevale ko achchha na mane, usaki anumodana na kare, krodha se, mana se, maya se, lobha se, bhaya se, hamsi se, garava se, darpa se, pramada se bara – bara chuka jane ya skhalana hone se dina mem ya rata ko akela ho ya parshada mem ho, sote hue ya jagate hue. Trividha trividha se mana, vachana ya kaya se yaha sutra ya artha ke eka bhi pada ke yadi koi viradhaka ho. Vo bhikshu bara – bara nimdaniya, garhaniya, khimsa karane ke layaka, dugamchha karane ke layaka, sarvaloka se parabhava – panevala, kaim vyadhi vedana se vyapta shariravala, utkrishta dashavale ananta samsara sagara mem paribhramana karanevale hote haim, usamem paribhramana karane se eka pala bhi kaim shayada bhi shanti nahim pa sakata. To pramadadhina hua papi adhamadhama hina sattvavale kayara purusha samana mujhe yahim yaha bari apatti paida hui hai ki jisase maim yaham yuktivala kisi samadhana dene ke lie samartha nahim ho sakata. Aura paraloka mem bhi ananta bhava parampara mem bhramana karate hue ananti bara ke ghora bhayanaka duhkha bhugatanevala banumga. Vakai maim mamda bhagyavala hum. Isa prakara sochanevale aise savadyacharya ko durachari papakarma karanevale dushta shrota ne achchhi taraha se pahachana liya ki, yaha jhutha kaphi abhimana karanevala hai. Usake bada kshobha pae hue manavale use janakara usa dushta shrotaom ne kaha ki jaba taka isa samshaya ka chhedana nahim hoga taba taka vyakhyana mata uthana, isalie isaka samadhana duragraha ko dura karane ke lie samartha praurhayukti sahita do. Taba usane socha ki aba usaka samadhana pae bina vo yaham se nahim jaemge. To aba maim usaka samadhana kisa taraha dum\? Aisa sochate hue phira se he gautama ! Usa durachari ne use kaha ki tuma aise chinta sagara mem kyom duba gae ho\? Jalda hi isa vishaya ka kuchha samadhana do. Aura phira aisa samadhana do ki jisase batai hui astikata mem tumhari yukti etaraja bina – avyaktachari ho. Usake bada lambe arase taka hridaya mem paritapa mahasusa karake savadyacharya ne mana se chintavana kiya aura kaha ki isa karana se jagadguru ne kaha hai ki –