Sutra Navigation: Nirayavalika ( निरयावलिकादि सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1008018 | ||
Scripture Name( English ): | Nirayavalika | Translated Scripture Name : | निरयावलिकादि सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-१ काल |
Translated Chapter : |
अध्ययन-१ काल |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 18 | Category : | Upang-08 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए। तए णं ते कालादीया दस कुमारा कूणियस्स रन्नो एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेंति। तए णं से कूणिए राया ते कालादीए दस कुमारे एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सएसु-सएसु रज्जेसु, पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता हत्थिखंध-वरगया पत्तेयं-पत्तेयं तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मनुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि निग्घोसनाइयरवेणं सएहिंतो-सएहिंतो नयरेहिंतो पडिनि-क्खमह, पडिनिक्खमित्ता ममं अंतियं पाउब्भवह। तए णं ते कालादीया दस कुमारा कूणियस्स रन्नो एयमट्ठं सोच्चा सएसु-सएसु रज्जेसु पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया जाव तिहिं मनुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-निग्घोसनाइयरवेणं सएहिंतो-सएहिंतो नयरेहिंतो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंगा-जनवए जेणेव चंपा नयरी जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति। तए णं से कूणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से कूणिए राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ जाव पडिनिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव गयवइं नरवई दुरूढे। तए णं से कूणिए राया तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव दुंदुहि-निग्घोसणाइयरवेणं चंपं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कालादीया दस कुमारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कालादीएहिं दसहिं कुमारेहिं सद्धिं एगतओ मिलायइ तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहिं तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए मनुस्स-कोडीहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि निग्घोस नाइयरवेणं सुहेहिं वसही-पायरासेहिं नाइविगिट्ठेहिं अंतरावासेहिं वसमाणे-वसमाणे अंगाजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव विदेहे जनवए जेणेव वेसाली नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं से चेडए राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे नवमल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रन्नो असंविदिए णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारस-वंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागए। तए णं कूणिएणं सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स य हारस्स अट्ठाए तओ दूया पेसिया। ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया। तए णं से कूणिए ममं एयमट्ठं अपडिसुणमाणे चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे जुज्झ-सज्जे इहं हव्वमागच्छइ, तं किं णं देवानुप्पिया! सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामो? वेहल्लं कुमारं पेसेमो? उदाहु जुज्झित्था। तए णं नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी–नो एयं सामी! जुत्तं वा पत्तं वा रायसरिसं वा, जं णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणिज्जइ, वेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ। तं जइ णं कूणिए राया चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे जुज्झसज्जे इहं हव्वमागच्छइ तए णं अम्हे कूणिएणं रन्ना सद्धिं जुज्झामो। तए णं से चेडए राया ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! तुब्भे कूणिएणं रन्ना सद्धिं जुज्झह, तं गच्छह णं देवानुप्पिया! सएसु-सएसु रज्जेसु, पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया जाव मम अंतियं पाउब्भवह। तए णं ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो जाव जेणेव वेसाली नयरी जेणेव चेडए राया तेणेव उवागया जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति। तए णं से चेडए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह जहा कूणिए जाव गयवइं नरवई दुरूढे। तए णं से चेडए राया तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कूणिए जाव वेसालिं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो तेणेव उवागच्छइ। तए णं से चेडए राया सत्तावन्नाए दंतिसहस्सेहिं सत्तावन्नाए आससहस्सेहिं सत्तावन्नाए रहसहस्सेहिं सत्तावन्नाए मनुस्सकोडीएहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं सुहेहिं वसहीपायरासेहिं नाइविगिट्ठेहिं अंतरावासेहिं वसमाणे-वसमाणे विदेहं जनवयं मज्झंमज्झेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता कूणियं रायं पडिवाले-माणे जुज्झसज्जे चिट्ठइ। तए णं से कूणिए राया सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-निग्घोसणाइयरवेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेडयस्स रन्नो जोयणंतरियं खंधावारनिवेसं करेइ। तए णं ते दोन्निवि रायाणो रणभूमिं सज्जावेंति, सज्जावेत्ता रणभूमिं जयंति। तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहिं तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए रहसहस्सेहिं तेत्तीसाए मनुस्सकोडीहिं गरुलव्वूहं रएइ, रएत्ता गरुलव्वूहेणं रहमुसलं संगामं ओयाए। तए णं से चेडगे राया सत्तावन्नाए दंतिसहस्सेहिं सत्तावन्नाए आससहस्सेहिं सत्तावन्नाए रहसहस्सेहिं सत्तावन्नाए मनुस्सकोडीहिं सगडवूहं रएइ, रएत्ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगामं ओयाए। तए णं ते दोण्हवि राईणं अनीया सण्णद्ध बद्ध वम्मिय कवया उप्पीलिय सरासण पट्टिया पिणद्ध गेविज्जा आविद्ध विमल वरचिंध पट्टा गहियाउह पहरणा मगइतेहिं फलएहिं निक्कट्ठाहिं असीहिं अंसागएहिं तोणेहिं सजीवेहिं धणूहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहिं डावाहिं ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठसीहनाय बोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं हयगया हयगएहिं गयगया गयगएहिं रहगया रहगएहिं पायत्तिया पायत्तिएहिं अण्णमण्णेहि सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते दोण्हवि राईणं अनीया नियगसामीसासनानुरत्ता महया जनक्खयं जनवहं जनप्पमद्दं जनसंवट्टकप्पं नच्चंतकबंधकरभीमं रुहिरकद्दमं करेमाणा अन्नमन्नेणं सद्धिं जुज्झंति। तए णं से काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव तिहिं मनुस्सकोडीहिं गरुलव्वूहेणं एक्कारसमेणं खंधेणं कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहिय-पवरवीरघाइय-निवडियचिंधज्झयपडागे निरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रन्नो सपक्खं सपडिदिसिं रहेणं पडिरहं हव्वमागए। तए णं से चेडए राया कालं कुमारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निलाडे साहट्टु धनुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता वइसाहं ठाणं ठाइ, ठिच्चा आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता कालं कुमारं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ। तं एयं खलु गोयमा! काले कुमारे एरिसएहिं आरंभेहिं एरिसएहिं आरंभसमारंभेहिं एरिसएहिं भोगेहिं एरिसएहिं भोग-संभोगेहिं एरिसएणं असुभकडकम्मपब्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरए दससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। | ||
Sutra Meaning : | तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत् दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर ललाटमें त्रिवली डाल कर चेटकराज से यह कहना – ‘ओ अकाल मौत के अभिलाषी, निर्भागी, यावत् निर्लज्ज चेटकराजा, कूणिक राजा यह आदेश देता है कि कूणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती एवं अठारह लड़ों का हार प्रत्यर्पित करो और वेहल्लकुमार को भेजो अथवा युद्ध के लिए सज्जित हो – । कूणिक राजा बल, वाहन और सैन्य के साथ युद्धसज्जित होकर शीघ्र ही आ रहे हैं।’ तब दूत ने पूर्वोक्त प्रकार से हाथ जोड़कर कूणिक का आदेश स्वीकार किया। वह वैशाली नगरी पहुँचा। उसने दोनों हाथ जोड़कर यावत् बधाई देकर कहा – ‘स्वामिन् ! यह तो मेरी विनयप्रतिपत्ति – है। किन्तु कूणिक राजा की आज्ञा यह है कि बायें पैर से चेटक राजा की पादपीठ को ठोकर मारो, ठोकर मार कर क्रोधित हो कर भाले की नोक से यह पत्र दो, इत्यादि यावत् वे सेना सहित शीघ्र ही यहाँ आ रहे हैं।’ तब चेटक राजाने उस दूत से यह धमकी सूनकर और अवधारित कर क्रोधाभिभूत यावत् ललाट सिकोड़कर उत्तर दिया – ‘कूणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार नहीं लौटाऊंगा और न वेहल्लकुमार को भेजूँगा किन्तु युद्ध के लिए तैयार हूँ।’ तत्पश्चात् कूणिक राजा ने दूत से इस समाचार को सून कर और विचार कर क्रोधित हो काल आदि दस कुमारों को बुलाया और कहा – बात यह है कि मुझे बिना बताए ही वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों का हार और अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरणों को लेकर चंपा से भाग नीकला। वैशाली में आर्य चेटक का आश्रय लेकर रह रहा है। मैंने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार लाने के लिए दूत भेजा। चेटक राजा ने इंकार कर दिया और मेरे तीसरे दूत को असत्कारित, अपमानित कर पीछले द्वार से निष्कासित कर दिया। इसलिए हमें चेटक राजा का निग्रह करना चाहिए, उसे दण्डित करना चाहिए।’ उन काल आदि दस कुमारों ने कूणिक राजा के इस विचार को विनयपूर्वक स्वीकार किया। कूणिक राजा ने उन काल आदि दस कुमारों से कहा – देवानुप्रियों ! आप लोग अपने – अपने राज्य में जाओ, और प्रत्येक स्नान यावत् प्रायश्चित्त आदि करके श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ हो कर प्रत्येक अलग – अलग ३००० हाथियों, ३००० रथों, ३००० घोड़ों और तीन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर समस्त ऋद्धि – वैभव यावत् सब प्रकार के सैन्य, समुदाय एवं आदरपूर्वक सब प्रकार की वेशभूषा से सजकर, सर्व विभूति, सर्व सम्भ्रम, सब प्रकार के सुगंधित पुष्प, वस्त्र, गंध, माला, अलंकार, सर्व दिव्य वाद्यसमूहों की ध्वनि – प्रतिध्वनि, महान ऋद्धि – विशिष्ट वैभव, महान द्युति, महाबल, शंख, ढोल, पटह, भेरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के घोष के ध्वनि के साथ अपने – अपने नगरों से प्रस्थान करो और प्रस्थान करके मेरे पास आकर एकत्रित होओ। तब वे कालादि दस कुमार कूणिक राजा के इस कथन को सूनकर अपने – अपने राज्यों को लौटे। प्रत्येक ने स्नान किया, यावत् जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ आए और दोनों हाथ जोड़कर यावत् बधाया। काल आदि दस कुमारों की उपस्थिति के अनन्तर कूणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों – को बुलाया और यह आज्ञा दी – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तीरत्न – को प्रतिकर्मित कर, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से सुगठित चतुरंगिणी सेना को सुसन्नद्ध – करो, यावत् से सेवक आज्ञानुरूप कार्य सम्पन्न होने की सूचना देते हैं। तत्पश्चात् कूणिकराजा जहाँ स्नानगृह था वहाँ आया, मोतियों के समूह से युक्त होने से मनोहर, चित्र – विचित्र मणि – रत्नों से खचित फर्शवाले, रमणीय, स्नान – मंड़प में विविध मणि – रत्नों के चित्रामों से चित्रित स्नानपीठ पर सुखपूर्वक बैठकर उसने शुभ, पुष्पोदक से सुगंधित एवं शुद्ध जल से कल्याणकारी उत्तम स्नानविधि से स्नान किया अनेक प्रकार के सैकड़ों कौतुक किए तथा कल्याणप्रद प्रवर स्नान के अंत में रुएंदार काषायिक मुलायम वस्त्र से शरीर को पोंछा। नवीन – महा मूल्यवान् दूष्यरत्न को धारण किया; सरस, सुगंधित गोशीर्ष चंदन से अंगों का लेपन किया। पवित्र माला धारण की, केशर आदि का विलेपन किया, मणियों और स्वर्ण से निर्मित आभूषण धारण किए। हार, अर्धहार, त्रिसर और लम्बे – लटकते कटिसूत्र – से अपने को सुशोभित किया; गले में ग्रैवेयक आदि आभूषण धारण किए, अंगुलियों में अंगुठी पहनी। मणिमय कंकणों, त्रुटितों एवं भुजबन्धों से भुजाएं स्तम्भित हो गईं, कुंडलों से उसका मुख चमक गया, मुकुट से मस्तक देदीप्यमान हो गया। हारों से आच्छादित उसका वक्षस्थल सुन्दर प्रतीत हो रहा था। लंबे लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय के रूप में धारण किया। मुद्रिकाओं से अंगुलियाँ पीतवर्ण – सी दिखती थीं। सुयोग्य शिल्पियों द्वारा निर्मित, स्वर्ण एवं मणियों के सुयोग से सुरचित, विमल महार्ह, सुश्लिष्ट, उत्कृष्ट, प्रशस्त आकारयुक्त; वीरवलय धारण किया। कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित नरेन्द्र कोरण्ट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर, दोनों पार्श्वों में चार चामरों से विंजाता हुआ, लोगों द्वारा मंगलमय जय – जयकार किया जाता हुआ, अनेक गणनायकों, दंडनायकों, राजा, ईश्वर, यावत् संधिपाल, आदि से घिरा हुआ, स्नानगृह से बाहर नीकला। यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल उच्च गजपति पर वह नरपति आरूढ हुआ। तत्पश्चात् कूणिक राजा ३००० हाथियों यावत् वाद्यघोषपूर्वक चंपा नगरी के मध्य भाग में से नीकला, जहाँ काल आदि दस कुमार ठहरे थे वहाँ पहुँचा और काल आदि दस कुमारों से मिला। इसके बाद ३३००० हाथियों, ३३००० घोड़ों, ३३००० रथों और तेंतीस कोटि मनुष्यों से घिर कर सर्व ऋद्धि यावत् कोलाहल पूर्वक सुविधाजनक पड़ाव डालता हुआ, अति विकट अन्तरावास न कर, विश्राम करते हुए अंग जनपद के मध्य भाग में से होते हुए जहाँ विदेह जनपद था, वैशाली नगरी थी, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। राजा कूणिक का युद्ध के लिए प्रस्थान का समाचार जानकर चेटक राजा ने काशी – कोशल देशों के नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी इन अठारह गण – राजाओं को परामर्श करने हेतु आमंत्रित किया और कहा – देवानुप्रियों ! बात यह है कि कूणिक राजा को बिना जताए – वेहल्लकुमार सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार लेकर यहाँ आ गया है। किन्तु कूणिक ने सेचनक हाथी और अठारह लड़ों के हार को वापिस लेने के लिए तीन दूत भेजे। किन्तु अपनी जीवित अवस्था में स्वयं श्रेणिक राजा ने उसे ये दोनों वस्तुएं प्रदान की हैं, फिर भी हार – हाथी चाहते हो तो उसे आधा राज्य दो, यह उत्तर दे कर उन दूतों को वापिस लौटा दिया। तब कूणिक मेरी इस बात को न सूनकर और न स्वीकार कर चतुरंगिणी सेना के साथ युद्धसज्जित हो कर यहाँ आ रहा है। तो क्या सेचनक हाथी, अठारह लड़ों का हार वापिस कूणिक राजा को लौटा दें ? वेहल्लकुमार को उसके हवाले कर दें ? या युद्ध करें ? तब उन काशी – कोशल के नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी – अठारह गणराजाओं ने चेटक राजा से कहा – स्वामिन् ! यह न तो उचित है – न अवसरोचित है और न राजा के अनुरूप ही है कि सेचनक और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौटा दिया जाए और शरणागत वेहल्लकुमार को भेज दिया जाए। इसलिए जब कूणिक राजा चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है तब हम कूणिक राजा के साथ युद्ध करें। इस पर चेटक राजा ने कहा – यदि आप देवानुप्रिय कूणिक राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हैं तो देवानुप्रियों ! अपने अपने राज्यो में जाइए और स्नान आदि कर कालादि कुमारों के समान यावत् चतुरंगिणी सेना के साथ यहाँ चंपा में आइए। यह सूनकर अठारहों राजा अपने – अपने राज्यों में गए और युद्ध के लिए सुसज्जित हो कर उन्होंने चेटक राजा को जय – विजय शब्दों से बधाया। उस के बाद चेटक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर आज्ञा दी – आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाओ आदि कूणिक राजा की तरह यावत् चेटक राजा हाथी पर आरूढ हुआ अठारहों गण – राजाओं के आ जाने के पश्चात् चेटक राजा कूणिक राजा की तरह तीन हजार हाथियों आदि के साथ वैशाली नगरी के बीचोंबीच होकर नीकला। जहाँ वे नौ मल्ली, नौ लिच्छवी काशी – कोशल के अठारह गणराजा थे, वहाँ आया। तदनन्तर चेटक राजा ५७००० हाथियों, ५७००० घोड़ों, ५७००० रथों और सत्तावन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोष पूर्वक सुखद वास, निकट – निकट विश्राम करते हुए विदेह जनपद के बीचोंबीच से चलते जहाँ सीमान्त – प्रदेश था, वहाँ आकर स्कन्धावार का निवेश किया – तथा कूणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुए युद्ध को तत्पर हो ठहर गया। इसके बाद कूणिक राजा समस्त ऋद्धि – यावत् कोलाहल के साथ जहाँ सीमांतप्रदेश था, वहाँ आया। चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावारनिवेष किया। तदनन्तर दोनों राजाओं ने रणभूमि को सज्जित किया, सज्जित करके रणभूमि में अपनी – अपनी जय – विजय के लिए अर्चना की। इसके बाद कूणिक राजा ने ३३००० हाथियों यावत् तीस कोटि पैदल सैनिकों से गरुड – व्यूह की रचना की। गरुडव्यूह द्वारा रथ – मूसल संग्राम प्रारम्भ किया। इधर चेटक राजा ने ५७००० हाथियों यावत् सत्तावन कोटि पदातियों द्वारा शकटव्यूह की रचना की और रचना करके शकटव्यूह द्वारा रथ – मूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ। तब दोनों राजाओं की सेनाएं युद्ध के लिए तत्पर हो यावत् आयुधों और प्रहरणों को लेकर हाथों में ढालों को बाँधकर, तलवारें म्यान से बाहर निकालकर, कंधों पर लटके तूणीरों से, प्रत्यंचायुक्त धनुषों से छोड़े हुए बाणों से, फटकारते हुए बायें हाथों से, जोर – जोर से बजती हुई जंघाओं में बंधी हुई घंटिकाओं से, बजती हुई तुरहियों से एवं प्रचंड हुंकारों के महान कोलाहल से समुद्रगर्जना जैसी करते हुए सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों से, परस्पर अश्वारोही अश्वारोहियों से, गजारूढ गजारूढों से, रथी रथारोहियों से और पदाति पदातियों से भिड़ गए। दोनों राजाओं की सेनाएं अपने – अपने स्वामी के शासनानुराग से आपूरित थीं। अतएव महान जनसंहार, जनवध, जनमर्दन, जनभय और नाचते हुए रुंड – मुंडों से भयंकर रुधिर का कीचड़ करती हुई एक दूसरे से युद्ध में झूझने लगीं। तदनन्तर कालकुमार गरुडव्यूह के ग्यारहवें भाग में कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम करता हुआ हत और मथित हो गया, इत्यादि जैसा भगवान् ने काली देवी से कहा था, तदनुसार यावत् मृत्यु को प्राप्त हो गया। अतएव गौतम ! इस प्रकार के आरम्भों से, अशुभ कार्यों के कारण वह काल कुमार मरण करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se kunie raya tassa duyassa amtie eyamattham sochcha nisamma asurutte kaladie dasa kumare saddavei, sadda-vetta evam vayasi– evam khalu devanuppiya! Vehalle kumare mamam asamvidite nam seyanagam gamdhahatthim attharasavamkam haram amteuram sabhamdam cha gahaya champao nikkhamai, nikkhamitta vesalim ajjagam chedayam rayam uvasampajjitta nam viharai. Tae nam mae seyanagassa gamdhahatthissa attharasavamkassa harassa atthae duya pesiya. Te ya chedaena ranna imenam karanenam padisehitta aduttaram cha nam mamam tachche due asakkarie asammanie avaddarenam nichchhuhavie, tam seyam khalu devanuppiya! Amham chedagassa ranno juttam ginhittae. Tae nam te kaladiya dasa kumara kuniyassa ranno eyamattham vinaenam padisunemti. Tae nam se kunie raya te kaladie dasa kumare evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Saesu-saesu rajjesu, patteyam-patteyam nhaya kayabalikamma kayakouyamamgala-payachchhitta hatthikhamdha-varagaya patteyam-patteyam tihim damtisahassehim tihim asasahassehim tihim rahasahassehim tihim manussakodihim saddhim samparivuda savviddhie java dumduhi nigghosanaiyaravenam saehimto-saehimto nayarehimto padini-kkhamaha, padinikkhamitta mamam amtiyam paubbhavaha. Tae nam te kaladiya dasa kumara kuniyassa ranno eyamattham sochcha saesu-saesu rajjesu patteyam-patteyam nhaya java tihim manussakodihim saddhim samparivuda savviddhie java dumduhi-nigghosanaiyaravenam saehimto-saehimto nayarehimto padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva amga-janavae jeneva champa nayari jeneva kunie raya teneva uvagaya karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavemti. Tae nam se kunie raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Abhisekkam hatthirayanam padikappeha, haya gaya raha pavarajohakaliyam chauramginim senam sannaheha, mamam eyamanattiyam pachchappinaha java pachchappinamti. Tae nam se kunie raya jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai java padiniggachchhitta jeneva bahiriya uvatthanasala java gayavaim naravai durudhe. Tae nam se kunie raya tihim damtisahassehim java dumduhi-nigghosanaiyaravenam champam nayarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva kaladiya dasa kumara teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kaladiehim dasahim kumarehim saddhim egatao milayai Tae nam se kunie raya tettisae damtisahassehim tettisae asasahassehim tettisae manussa-kodihim saddhim samparivude savviddhie java dumduhi nigghosa naiyaravenam suhehim vasahi-payarasehim naivigitthehim amtaravasehim vasamane-vasamane amgajanavayassa majjhammajjhenam jeneva videhe janavae jeneva vesali nayari teneva paharettha gamanae. Tae nam se chedae raya imise kahae laddhatthe samane navamallai nava lechchhai kasikosalaga attharasavi ganarayano saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Vehalle kumare kuniyassa ranno asamvidie nam seyanagam gamdhahatthim attharasa-vamkam cha haram gahaya iham havvamagae. Tae nam kunienam seyanagassa gamdhahatthissa attharasavamkassa ya harassa atthae tao duya pesiya. Te ya mae imenam karanenam padisehiya. Tae nam se kunie mamam eyamattham apadisunamane chauramginie senae saddhim samparivude jujjha-sajje iham havvamagachchhai, tam kim nam devanuppiya! Seyanagam gamdhahatthim attharasavamkam cha haram kuniyassa ranno pachchappinamo? Vehallam kumaram pesemo? Udahu jujjhittha. Tae nam nava mallai nava lechchhai kasikosalaga attharasavi ganarayano chedagam rayam evam vayasi–no eyam sami! Juttam va pattam va rayasarisam va, jam nam seyanagam gamdhahatthim attharasavamkam cha haram kuniyassa ranno pachchappinijjai, vehalle ya kumare saranagae pesijjai. Tam jai nam kunie raya chauramginie senae saddhim samparivude jujjhasajje iham havvamagachchhai tae nam amhe kunienam ranna saddhim jujjhamo. Tae nam se chedae raya te nava mallai nava lechchhai kasikosalaga attharasavi ganarayano evam vayasi–jai nam devanuppiya! Tubbhe kunienam ranna saddhim jujjhaha, tam gachchhaha nam devanuppiya! Saesu-saesu rajjesu, patteyam-patteyam nhaya java mama amtiyam paubbhavaha. Tae nam te nava mallai nava lechchhai kasikosalaga attharasavi ganarayano java jeneva vesali nayari jeneva chedae raya teneva uvagaya java jaenam vijaenam vaddhavemti. Tae nam se chedae raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Abhisekkam hatthirayanam padikappeha jaha kunie java gayavaim naravai durudhe. Tae nam se chedae raya tihim damtisahassehim jaha kunie java vesalim nayarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva te nava mallai nava lechchhai kasikosalaga attharasavi ganarayano teneva uvagachchhai. Tae nam se chedae raya sattavannae damtisahassehim sattavannae asasahassehim sattavannae rahasahassehim sattavannae manussakodiehim saddhim samparivude savviddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam suhehim vasahipayarasehim naivigitthehim amtaravasehim vasamane-vasamane videham janavayam majjhammajjhenam jeneva desapamte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta khamdhavaranivesam karei, karetta kuniyam rayam padivale-mane jujjhasajje chitthai. Tae nam se kunie raya savviddhie java dumduhi-nigghosanaiyaravenam jeneva desapamte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chedayassa ranno joyanamtariyam khamdhavaranivesam karei. Tae nam te donnivi rayano ranabhumim sajjavemti, sajjavetta ranabhumim jayamti. Tae nam se kunie raya tettisae damtisahassehim tettisae asasahassehim tettisae rahasahassehim tettisae manussakodihim garulavvuham raei, raetta garulavvuhenam rahamusalam samgamam oyae. Tae nam se chedage raya sattavannae damtisahassehim sattavannae asasahassehim sattavannae rahasahassehim sattavannae manussakodihim sagadavuham raei, raetta sagadavuhenam rahamusalam samgamam oyae. Tae nam te donhavi rainam aniya sannaddha baddha vammiya kavaya uppiliya sarasana pattiya pinaddha gevijja aviddha vimala varachimdha patta gahiyauha paharana magaitehim phalaehim nikkatthahim asihim amsagaehim tonehim sajivehim dhanuhim samukkhittehim sarehim samullaliyahim davahim osariyahim urughamtahim chhippaturenam vajjamanenam mahaya ukkitthasihanaya bolakalakalaravenam samuddaravabhuyam piva karemana savviddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam hayagaya hayagaehim gayagaya gayagaehim rahagaya rahagaehim payattiya payattiehim annamannehi saddhim sampalagga yavi hottha. Tae nam te donhavi rainam aniya niyagasamisasananuratta mahaya janakkhayam janavaham janappamaddam janasamvattakappam nachchamtakabamdhakarabhimam ruhirakaddamam karemana annamannenam saddhim jujjhamti. Tae nam se kale kumare tihim damtisahassehim java tihim manussakodihim garulavvuhenam ekkarasamenam khamdhenam kunienam ranna saddhim rahamusalam samgamam samgamemane hayamahiya-pavaraviraghaiya-nivadiyachimdhajjhayapadage niraloyao disao karemane chedagassa ranno sapakkham sapadidisim rahenam padiraham havvamagae. Tae nam se chedae raya kalam kumaram ejjamanam pasai, pasitta asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivaliyam bhiudim nilade sahattu dhanum paramusai, paramusitta usum paramusai, paramusitta vaisaham thanam thai, thichcha ayayakannayayam usum karei, karetta kalam kumaram egahachcham kudahachcham jiviyao vavarovei. Tam eyam khalu goyama! Kale kumare erisaehim arambhehim erisaehim arambhasamarambhehim erisaehim bhogehim erisaehim bhoga-sambhogehim erisaenam asubhakadakammapabbharenam kalamase kalam kichcha chautthie pamkappabhae pudhavie hemabhe narae dasasagarovamatthiiesu neraiesu neraiyattae uvavanne. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba kunika raja ne usa duta dvara chetaka ke isa uttara ko sunakara aura use adhigata kara ke krodhabhibhuta ho yavat damtom ko misamisate hue punah tisari bara duta ko bulaya. Usa se tuma vaishali nagari jao aura bayem paira se padapitha ko thokara marakara chetaka raja ko bhale ki noka se yaha patra dena. Patra de kara krodhita yavat misamisate hue bhrikuti tanakara lalatamem trivali dala kara chetakaraja se yaha kahana – ‘o akala mauta ke abhilashi, nirbhagi, yavat nirlajja chetakaraja, kunika raja yaha adesha deta hai ki kunika raja ko sechanaka gamdhahasti evam atharaha larom ka hara pratyarpita karo aura vehallakumara ko bhejo athava yuddha ke lie sajjita ho –\. Kunika raja bala, vahana aura sainya ke satha yuddhasajjita hokara shighra hi a rahe haim.’ Taba duta ne purvokta prakara se hatha jorakara kunika ka adesha svikara kiya. Vaha vaishali nagari pahumcha. Usane donom hatha jorakara yavat badhai dekara kaha – ‘svamin ! Yaha to meri vinayapratipatti – hai. Kintu kunika raja ki ajnya yaha hai ki bayem paira se chetaka raja ki padapitha ko thokara maro, thokara mara kara krodhita ho kara bhale ki noka se yaha patra do, ityadi yavat ve sena sahita shighra hi yaham a rahe haim.’ taba chetaka rajane usa duta se yaha dhamaki sunakara aura avadharita kara krodhabhibhuta yavat lalata sikorakara uttara diya – ‘kunika raja ko sechanaka gamdhahasti aura atharaha larom ka hara nahim lautaumga aura na vehallakumara ko bhejumga kintu yuddha ke lie taiyara hum.’ Tatpashchat kunika raja ne duta se isa samachara ko suna kara aura vichara kara krodhita ho kala adi dasa kumarom ko bulaya aura kaha – bata yaha hai ki mujhe bina batae hi vehallakumara sechanaka gamdhahasti, atharaha larom ka hara aura antahpura parivara sahita grihasthi ke upakaranom ko lekara champa se bhaga nikala. Vaishali mem arya chetaka ka ashraya lekara raha raha hai. Maimne sechanaka gamdhahasti aura atharaha larom ka hara lane ke lie duta bheja. Chetaka raja ne imkara kara diya aura mere tisare duta ko asatkarita, apamanita kara pichhale dvara se nishkasita kara diya. Isalie hamem chetaka raja ka nigraha karana chahie, use dandita karana chahie.’ una kala adi dasa kumarom ne kunika raja ke isa vichara ko vinayapurvaka svikara kiya. Kunika raja ne una kala adi dasa kumarom se kaha – devanupriyom ! Apa loga apane – apane rajya mem jao, aura pratyeka snana yavat prayashchitta adi karake shreshtha hathi para arudha ho kara pratyeka alaga – alaga 3000 hathiyom, 3000 rathom, 3000 ghorom aura tina koti manushyom ko satha lekara samasta riddhi – vaibhava yavat saba prakara ke sainya, samudaya evam adarapurvaka saba prakara ki veshabhusha se sajakara, sarva vibhuti, sarva sambhrama, saba prakara ke sugamdhita pushpa, vastra, gamdha, mala, alamkara, sarva divya vadyasamuhom ki dhvani – pratidhvani, mahana riddhi – vishishta vaibhava, mahana dyuti, mahabala, shamkha, dhola, pataha, bheri, kharamukhi, hudukka, muraja, mridamga, dundubhi ke ghosha ke dhvani ke satha apane – apane nagarom se prasthana karo aura prasthana karake mere pasa akara ekatrita hoo. Taba ve kaladi dasa kumara kunika raja ke isa kathana ko sunakara apane – apane rajyom ko laute. Pratyeka ne snana kiya, yavat jaham kunika raja tha, vaham ae aura donom hatha jorakara yavat badhaya. Kala adi dasa kumarom ki upasthiti ke anantara kunika raja ne kautumbika purushom – ko bulaya aura yaha ajnya di – ‘devanupriyom ! Shighra hi abhishekya hastiratna – ko pratikarmita kara, ghore, hathi, ratha aura shreshtha yoddhaom se sugathita chaturamgini sena ko susannaddha – karo, yavat se sevaka ajnyanurupa karya sampanna hone ki suchana dete haim. Tatpashchat kunikaraja jaham snanagriha tha vaham aya, motiyom ke samuha se yukta hone se manohara, chitra – vichitra mani – ratnom se khachita pharshavale, ramaniya, snana – mamrapa mem vividha mani – ratnom ke chitramom se chitrita snanapitha para sukhapurvaka baithakara usane shubha, pushpodaka se sugamdhita evam shuddha jala se kalyanakari uttama snanavidhi se snana kiya Aneka prakara ke saikarom kautuka kie tatha kalyanaprada pravara snana ke amta mem ruemdara kashayika mulayama vastra se sharira ko pomchha. Navina – maha mulyavan dushyaratna ko dharana kiya; sarasa, sugamdhita goshirsha chamdana se amgom ka lepana kiya. Pavitra mala dharana ki, keshara adi ka vilepana kiya, maniyom aura svarna se nirmita abhushana dharana kie. Hara, ardhahara, trisara aura lambe – latakate katisutra – se apane ko sushobhita kiya; gale mem graiveyaka adi abhushana dharana kie, amguliyom mem amguthi pahani. Manimaya kamkanom, trutitom evam bhujabandhom se bhujaem stambhita ho gaim, kumdalom se usaka mukha chamaka gaya, mukuta se mastaka dedipyamana ho gaya. Harom se achchhadita usaka vakshasthala sundara pratita ho raha tha. Lambe latakate hue vastra ko uttariya ke rupa mem dharana kiya. Mudrikaom se amguliyam pitavarna – si dikhati thim. Suyogya shilpiyom dvara nirmita, svarna evam maniyom ke suyoga se surachita, vimala maharha, sushlishta, utkrishta, prashasta akarayukta; viravalaya dharana kiya. Kalpavriksha ke samana alamkrita aura vibhushita narendra koranta pushpa ki malaom se yukta chhatra ko dharana kara, donom parshvom mem chara chamarom se vimjata hua, logom dvara mamgalamaya jaya – jayakara kiya jata hua, aneka gananayakom, damdanayakom, raja, ishvara, yavat samdhipala, adi se ghira hua, snanagriha se bahara nikala. Yavat amjanagiri ke shikhara ke samana vishala uchcha gajapati para vaha narapati arudha hua. Tatpashchat kunika raja 3000 hathiyom yavat vadyaghoshapurvaka champa nagari ke madhya bhaga mem se nikala, jaham kala adi dasa kumara thahare the vaham pahumcha aura kala adi dasa kumarom se mila. Isake bada 33000 hathiyom, 33000 ghorom, 33000 rathom aura temtisa koti manushyom se ghira kara sarva riddhi yavat kolahala purvaka suvidhajanaka parava dalata hua, ati vikata antaravasa na kara, vishrama karate hue amga janapada ke madhya bhaga mem se hote hue jaham videha janapada tha, vaishali nagari thi, usa ora chalane ke lie udyata hua. Raja kunika ka yuddha ke lie prasthana ka samachara janakara chetaka raja ne kashi – koshala deshom ke nau lichchhavi aura nau mallaki ina atharaha gana – rajaom ko paramarsha karane hetu amamtrita kiya aura kaha – devanupriyom ! Bata yaha hai ki kunika raja ko bina jatae – vehallakumara sechanaka hathi aura atharaha larom ka hara lekara yaham a gaya hai. Kintu kunika ne sechanaka hathi aura atharaha larom ke hara ko vapisa lene ke lie tina duta bheje. Kintu apani jivita avastha mem svayam shrenika raja ne use ye donom vastuem pradana ki haim, phira bhi hara – hathi chahate ho to use adha rajya do, yaha uttara de kara una dutom ko vapisa lauta diya. Taba kunika meri isa bata ko na sunakara aura na svikara kara chaturamgini sena ke satha yuddhasajjita ho kara yaham a raha hai. To kya sechanaka hathi, atharaha larom ka hara vapisa kunika raja ko lauta dem\? Vehallakumara ko usake havale kara dem\? Ya yuddha karem\? Taba una kashi – koshala ke nau mallaki aura nau lichchhavi – atharaha ganarajaom ne chetaka raja se kaha – svamin ! Yaha na to uchita hai – na avasarochita hai aura na raja ke anurupa hi hai ki sechanaka aura atharaha larom ka hara kunika raja ko lauta diya jae aura sharanagata vehallakumara ko bheja diya jae. Isalie jaba kunika raja chaturamgini sena ko lekara yuddhasajjita hokara yaham a raha hai taba hama kunika raja ke satha yuddha karem. Isa para chetaka raja ne kaha – yadi apa devanupriya kunika raja se yuddha karane ke lie taiyara haim to devanupriyom ! Apane apane rajyo mem jaie aura snana adi kara kaladi kumarom ke samana yavat chaturamgini sena ke satha yaham champa mem aie. Yaha sunakara atharahom raja apane – apane rajyom mem gae aura yuddha ke lie susajjita ho kara unhomne chetaka raja ko jaya – vijaya shabdom se badhaya. Usa ke bada chetaka raja ne kautumbika purushom ko bulakara ajnya di – abhishekya hastiratna ko sajao adi kunika raja ki taraha yavat chetaka raja hathi para arudha hua Atharahom gana – rajaom ke a jane ke pashchat chetaka raja kunika raja ki taraha tina hajara hathiyom adi ke satha vaishali nagari ke bichombicha hokara nikala. Jaham ve nau malli, nau lichchhavi kashi – koshala ke atharaha ganaraja the, vaham aya. Tadanantara chetaka raja 57000 hathiyom, 57000 ghorom, 57000 rathom aura sattavana koti manushyom ko satha lekara sarva riddhi yavat vadyaghosha purvaka sukhada vasa, nikata – nikata vishrama karate hue videha janapada ke bichombicha se chalate jaham simanta – pradesha tha, vaham akara skandhavara ka nivesha kiya – tatha kunika raja ki pratiksha karate hue yuddha ko tatpara ho thahara gaya. Isake bada kunika raja samasta riddhi – yavat kolahala ke satha jaham simamtapradesha tha, vaham aya. Chetaka raja se eka yojana ki duri para usane bhi skandhavaranivesha kiya. Tadanantara donom rajaom ne ranabhumi ko sajjita kiya, sajjita karake ranabhumi mem apani – apani jaya – vijaya ke lie archana ki. Isake bada kunika raja ne 33000 hathiyom yavat tisa koti paidala sainikom se garuda – vyuha ki rachana ki. Garudavyuha dvara ratha – musala samgrama prarambha kiya. Idhara chetaka raja ne 57000 hathiyom yavat sattavana koti padatiyom dvara shakatavyuha ki rachana ki aura rachana karake shakatavyuha dvara ratha – musala samgrama mem pravritta hua. Taba donom rajaom ki senaem yuddha ke lie tatpara ho yavat ayudhom aura praharanom ko lekara hathom mem dhalom ko bamdhakara, talavarem myana se bahara nikalakara, kamdhom para latake tunirom se, pratyamchayukta dhanushom se chhore hue banom se, phatakarate hue bayem hathom se, jora – jora se bajati hui jamghaom mem bamdhi hui ghamtikaom se, bajati hui turahiyom se evam prachamda humkarom ke mahana kolahala se samudragarjana jaisi karate hue sarva riddhi yavat vadyaghoshom se, paraspara ashvarohi ashvarohiyom se, gajarudha gajarudhom se, rathi ratharohiyom se aura padati padatiyom se bhira gae. Donom rajaom ki senaem apane – apane svami ke shasananuraga se apurita thim. Ataeva mahana janasamhara, janavadha, janamardana, janabhaya aura nachate hue rumda – mumdom se bhayamkara rudhira ka kichara karati hui eka dusare se yuddha mem jhujhane lagim. Tadanantara kalakumara garudavyuha ke gyarahavem bhaga mem kunika raja ke satha rathamusala samgrama karata hua hata aura mathita ho gaya, ityadi jaisa bhagavan ne kali devi se kaha tha, tadanusara yavat mrityu ko prapta ho gaya. Ataeva gautama ! Isa prakara ke arambhom se, ashubha karyom ke karana vaha kala kumara marana karake chauthi pamkaprabha prithvi ke hemabha naraka mem nairayika rupa se utpanna hua hai. |