Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007827 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 227 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने। से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अनियाणं, सत्तण्हं अनियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमानियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा ईसर सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घण मुइंग पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो आसनंचलइ। तए णं से सक्के देविंदे देवराया आसनंचलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हट्ठतुट्ठचित्ते आनंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमणिहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुमचंचुमालइय ऊसविय रोमकूवे वियसियवर-कमलनयनवयणे पयलियवरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हारविरायंतवच्छे पालंबपलंबमाण- घोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिय वरिट्ठ रिट्ठ अंजन निउणोविय मिसिमिसिंतमणिरयणमंडियाओ पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, ... ... करेत्ता अंजलि-मउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणं धरणीतलंसि साहट्टु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसेत्ता ईसिं पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग तुडिय थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसोत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं, धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा, अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं, बोहि-याणं मुत्ताणं मोयगाणं, सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं भगवओ तित्थगरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भयवं! तत्थगए इहगयंतिकट्टु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। तए णं तस्स एक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भगवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणायगाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं तित्थयराणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करेमित्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हरिणेगमेसिं पायत्ताणीयाहिवइं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसद्दं जोयणपरिमंडलं सुघोसं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयाहि– आणवेइ णं भो! सक्के देविंदे देवराया, गच्छइ जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मनमहिमं करित्तए, तं तुब्भेवि णं देवानुप्पिया! णं भो! सक्के देविंदे देवराया सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वनाडएहिं सव्वोरोहेहिं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्व तुडियसद्दसन्निणाएणं महया इड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं निययपरियालसंपरिवुडा सयाइं-सयाइं जानविमानवाहणाइं दुरुढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्करस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउब्भवह। तए णं हरिणेगमेसी देवे पायत्ताणीयाहिवई सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव एवं देवोत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुनेइ, पडिसुणेत्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुर-यरसद्दा जोयणपरिमंडला सुघोसा घंटा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियगंभीरमहुरयर सद्दं जोयणपरिमंडलं सुघोसं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेइ। तए णं तीसे मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसद्दाए जोयणपरिमंडलाए सुघोसाए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए सोहम्मे कप्पे अन्नेहिं एगूणेहिं बत्तीसाए विमानावाससयसहस्सेहिं अन्नाइं एगूणाइं बत्तीसं घंटासयसहस्साइं जमगसमगं कनकनरवं काउं पयत्ताइं चावि हुत्था। तए णं सोहम्मे कप्पे पासायविमानणिक्खुडावडियसद्दघंटापडेंसुयासयसहस्ससंकुले जाए यावि होत्था। तए णं तेसिं सोहम्मकप्पवासीणं बहूणं वेमानियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइपसत्त-निच्चप्पमत्तविसयसुहमुच्छियाणं सूसरघंटारसियविउलबोलतुरियचवलपडिबोहणे कए समाणे घोसणकोऊहलदिण्णकण्णएगग्गचित्तउवउत्तमाणसाणं से पायत्ताणीयाहिवई देवे तंसि घंटारवंसि निसंतपसंतंसि समाणंसि तत्थ-तत्थ तहिं-तहिं देसे महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी–हंदि! सुणंतु भवंतो बहवे सोहम्मकप्पवासी वेमानिया देवा य देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हियसुहत्थं–आणवेइ णं भो! सक्के देविंदे देवराया, गच्छइ णं भो! सक्के देविंदे देवराया जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मनमहिमं करित्तए, तं तुब्भेहि णं देवानुप्पिया! सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्व-नाडएहिं सव्वोरोहेहिं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्वतुडियसद्दसन्निणाएणं महया इड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं निययपरियालसंपरिवुडा सयाइं-सयाइं जानविमानवाहणाइं दुरुढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउब्भवह। तए णं ते देवा य देवीओ य एयमट्ठं सोच्चा हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं पूयणवत्तियं सक्कार-वत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया सक्कस्स वयणमनुवत्तमाणा अप्पे-गइया अन्नमन्नमणुवत्तमाणा अप्पेगइया जीयमेयं एवमाइत्तिकट्टु सव्विड्ढीए जाव अकालपरिहीनं चेव सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउब्भवंति। तए णं से सक्के देविंदे देवराया ते वेमानिए देवे य देवीओ य अकालपरिहीनं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पालयं नामं आभिओगियं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अनेगखंभसयसन्निविट्ठं लीलट्ठियसालभंजियाकलियं ईहामिय उसभ तुरग णर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवग-सहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलिय महुरमनहरसरं सुहं कंतं दरिसणिज्जं निउणोविय मिसिमिसेंत मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं पंचजोयणसयमुव्विद्धं सिग्घ तुरिय जइण निव्वाहिं दिव्वं जानविमानं विउव्वाहि, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। | ||
Sutra Meaning : | उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित थे, देदीप्यमान शरीरधारी, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिशाली, महान् बली, महान् यशस्वी, परम प्रभावक, अत्यन्त सुखी, सुधर्मा सभा में इन्द्रासन पर स्थित होते हुए बत्तीस लाख विमानों, ८४००० सामानिक देवों, तेतीस गुरुस्थानीय त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों परिवार सहित आठ अग्रमहिषियों, तीन परिषदों, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, ३३६००० अंगरक्षक देवों तथा सौधर्मकल्पवासी अन्य बहुत से देवों तथा देवियों का आधिपत्य, यावत् सैनापत्य करते हुए, इन सबका पालन करते हुए, नृत्य, गीत, कलाकौशल के साथ बजाये जाते वीणा, झांझ, ढोल एवं मृदंग की बादल जैसी गंभीर तथा मधुर ध्वनि के बीच दिव्य भोगों का आनन्द ले रहा था। सहसा देवेन्द्र, देवराज शक्र का आसन चलित होता है, शक्र अवधिज्ञान द्वारा भगवान् को देखता है। वह हृष्ट तथा परितुष्ट होता है। उसका हृदय खिल उठता है। उसके रोंगटें खड़े हो जाते हैं – मुख तथा नेत्र विकसित हो उठते हैं। हर्षातिरेकजनित स्फूर्तावेगवश उसके हाथों के उत्तम कटक, त्रुटित, पट्टिका, केयूर एवं मुकुट सहसा कम्पित हो उठते हैं। उसका वक्षःस्थल हारों से सुशोभित होता है। गले में लम्बी माला लटकती है, आभूषण झूलते हैं। (इस प्रकार सुसज्जित) देवराज शक्र आदरपूर्वक शीघ्र सिंहासन से उठता है। पादपीठ से नीचे उतरकर वैडूर्य, रिष्ठ तथा अंजन रत्नों से निपुणतापूर्वक कलात्मक रूप में निर्मित, देदीप्यमान, मणि – मण्डित पादुकाएं उतारता है। अखण्ड वस्त्र का उत्तरासंग करता है। हाथ जोड़ता है, जिस ओर तीर्थंकर थे उस दिशा की ओर सात, आठ कदम आगे जाता है। बायें घुटने को सिकोड़ता है, दाहिने घुटने को भूमि पर टिकाता है, तीन बार अपना मस्तक भूमि से लगाता है। फिर हाथ जोड़ता है, और कहता है – अर्हत्, भगवान्, आदिकर, तीर्थंकर, स्वयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवरपुण्डरीक, पुरुषवरगन्ध – हस्ती, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोकप्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदायक, चक्षुदायक, मार्गदायक, शरण दायक, जीवनदायक, बोधिदायक, धर्मदायक, धर्मदेशक, धर्मनायक, धर्मसारथि, दीप – त्राण – शरण, गति एवं प्रतिष्ठा स्वरूप, प्रतिघात, बाधा या आवरण रहित उत्तम ज्ञान – दर्शन धारक, व्यावृत्तछद्मा – जिन, ज्ञायक, तीर्ण, तारक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अचल, निरुद्रव, अनन्त, अक्षय, अबाध, अपुनरावृत्ति, सिद्धावस्था को प्राप्त, भयातीत जिनेश्वरों को नमस्कार हो। आदिकर, सिद्धावस्था पानेके इच्छुक भगवान् तीर्थंकर को नमस्कार हो यहाँ स्थित मैं वहाँ – में स्थित भगवान् तीर्थंकर को वन्दन करता हूँ। वहाँ स्थित भगवान् यहाँ स्थित मुझको देखें। ऐसा कहकर वह भगवान् को वन्दन करता है, नमन करता है। पूर्व की ओर मुँह करके सिंहासन पर बैठ जाता है। तब देवेन्द्र, देवराज शक्र के मन में ऐसा संकल्प, भाव उत्पन्न होता है – जम्बूद्वीप में भगवान् उत्पन्न हुए हैं। देवेन्द्रों, देवराजों, शक्रों का यह परंपरागत आचार है कि वे तीर्थंकरों का जन्म – महोत्सव मनाएं। इसलिए मैं भी जाऊं, भगवान् तीर्थंकर का जन्मोत्सव समायोजित करूँ। देवराज शक्र ऐसा विचार करता है, निश्चय करता है। अपनी पदातिसेना के अधिपति हरिनिगमेषी देव को बुलाकर कहता है – ‘देवानुप्रिय ! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में मेघसमूह के गर्जन के सदृश गंभीर तथा अति मधुर शब्दयुक्त, एक योजन वर्तुलाकार, सुन्दर स्वर युक्त सुघोषा नामक घण्टा को तीन बार बजाते हुए, जोर जोर से उद्घोषणा करते हुए कहो – वे जम्बूद्वीप में भगवान् का जन्म – महोत्सव मनाने जा रहे हैं। आप सभी अपनी सर्वविध ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर विभूति, विभूषा, नाटक – नृत्य – गीतादि के साथ, किसी भी बाधा की परवाह न करते हुए सब प्रकार के पुष्पों, सुरभित पदार्थों, मालाओं तथा आभूषणों से विभूषित होकर दिव्य, तुमुल ध्वनि के साथ महती ऋद्धि यावत् उच्च, दिव्य वाद्यध्वनिपूर्वक अपने – अपने परिवार सहित अपने – अपने विमानों पर सवार होकर शक्र के समक्ष उपस्थित हों।’ देवेन्द्र, देवराज शक्र द्वारा इस प्रकार आदेश दिये जाने पर हरिणेगमेषी देव हर्षित होता है, परितुष्ट होता है, आदेश स्वीकार कर शक्र के पास से निकलता है। सुघोषा घण्टा को तीन बार बजाता है। मेघसमूह के गर्जन की तरह गंभीर तथा अत्यन्त मधुर ध्वनि से युक्त, एक योजन वर्तुलाकार सुघोषा घण्टा के तीन बार बजाये जाने पर सौधर्म कल्प में एक कम बत्तीस विमानों में एक कम बत्तीस लाख घण्टाएं एक साथ तुमुल शब्द करने लगती हैं। सौधर्मकल्प के प्रासादों एवं विमानों के निष्कुट, कोनों में आपतित शब्द – वर्गणा के पुद्गल लाखों घण्टा – प्रतिध्वनियों के रूप में प्रकट होने लगते हैं। सौधर्मकल्प सुन्दर स्वरयुक्त घण्टाओं की विपुल ध्वनि से आपूर्ण हो जाता है। वहाँ निवास करनेवाले बहुत से वैमानिक देव, देवियाँ जो रतिसुख में प्रसक्त तथा प्रमत्त रहते हैं, मूर्च्छित रहते हैं, शीघ्र जागरित होते हैं – घोषणा सूनने हेतु उनमें कुतूहल उत्पन्न होता है, उसे सूनने में वे दत्तचित्त हो जाते हैं। जब घण्टा ध्वनि निःशान्त, प्रशान्त होता है, तब हरिणेगमेषी देव स्थान – स्थान पर जोर – जोर से उद्घोषणा करता कहता है – सौधर्मकल्पवासी बहुत से देवों ! देवियों ! आप सौधर्मकल्पपति का यह हितकर एवं सुखप्रद वचन सूनें, आप उन के समक्ष उपस्थित हों। यह सुनकर उन देवों, देवियों के हृदय हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं। उनमें से कतिपय भगवान् तीर्थंकर के वन्दन – हेतु, कतिपय पूजन हेतु, कतिपय सत्कार, सम्मान, दर्शन की उत्सकुता, भक्ति – अनुरागवश तथा कतिपय परंपरानुगत आचार मानकर वहाँ उपस्थित हो जाते हैं। देवेन्द्र, देवराज शक्र उन वैमानिक देव – देवियों को अविलम्ब अपने समक्ष उपस्थित देखता है। अपने पालक नामक आभियोगिक देवों को बुलाकर कहता है – देवानुप्रिय ! सैकड़ों खंभों पर अवस्थित, क्रीडोद्यत पुत्तलियों से कलित, ईहामृग – वृक, वृषभ, अश्व आदि के चित्रांकन से युक्त, खंभों पर उत्कीर्ण वज्ररत्नमयी वेदिका द्वारा सुन्दर प्रतीयमान, संचरणशील सहजात पुरुष – युगल की ज्यों प्रतीत होते चित्रांकित विद्याधरों से समायुक्त, अपने पर जड़ी सहस्रो मणियों तथा रत्नों की प्रभा से सुशोभित, हजारों रूपकों – अतीव देदीप्यमान, नेत्रों में समा जानेवाले, सुखमय स्पर्शयुक्त, सश्रीक, घण्टियों की मधुर, मनोहर ध्वनि से युक्त, सुखमय, कमनीय, दर्शनीय, देदीप्यमान मणिरत्नमय घण्टिकाओं के समूह से परिव्याप्त, १००० योजन विस्तीर्ण, ५०० योजन ऊंचे, शीघ्रगामी, त्वरितगामी, अतिशय वेगयुक्त एवं प्रस्तुत कार्य – निर्वहण में सक्षम दिव्य विमान की विकुर्वणा करो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam sakke namam devimde devaraya vajjapani puramdare sayakkau sahassakkhe maghavam pagasasane dahinaddhalogahivai battisavimanavasasayasahassahivai eravanavahane surimde arayambara-vatthadhare alaiyamalamaude navahemacharuchittachamchalakumdalavilihijjamanagalle bhasurabomdi palambavana-male mahiddhie mahajjuie mahabale mahayase mahanubhage mahasokkhe sohamme kappe sohammavademsae vimane samae suhammae sakkamsi sihasanamsi nisanne. Se nam tattha battisae vimanavasasayasahassinam, chaurasie samaniyasahassinam, tayatti-sae tavattisaganam, chaunham logapalanam, atthanham aggamahisinam saparivaranam, tinham parisanam, sattanham aniyanam, sattanham aniyahivainam, chaunham chaurasinam ayarakkhadevasahassinam, annesim cha bahunam sohammakappavasinam vemaniyanam devana ya devina ya ahevachcham porevachcham samittam bhattittam mahattaragattam ana isara senavachcham karemane palemane mahayahayanatta giya vaiya tamti tala tala tudiya ghana muimga paduppavaiyaravenam divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Tae nam tassa sakkassa devimdassa devaranno asanamchalai. Tae nam se sakke devimde devaraya asanamchaliyam pasai, pasitta ohim paumjai, paumjitta bhagavam titthayaram ohina abhoei, abhoetta hatthatutthachitte anamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanihiyae dharahayanivasurabhikusumachamchumalaiya usaviya romakuve viyasiyavara-kamalanayanavayane payaliyavarakadaga tudiya keura mauda kumdala haravirayamtavachchhe palambapalambamana- gholamtabhusanadhare sasambhamam turiyam chavalam surimde sihasanao abbhutthei, abbhutthetta payapidhao pachchoruhai, pachchoruhitta veruliya varittha rittha amjana niunoviya misimisimtamanirayanamamdiyao pauyao omuyai, omuitta egasadiyam uttarasamgam karei,.. .. Karetta amjali-mauliyaggahatthe titthayarabhimuhe sattattha payaim anugachchhai, anugachchhitta vamam janum amchei, amchetta dahinam janam dharanitalamsi sahattu tikkhutto muddhanam dharanitalamsi nivesei, nivesetta isim pachchunnamai, pachchunnamitta kadaga tudiya thambhiyao bhuyao saharai, saharitta karayala-pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam bhagavamtanam, aigaranam titthayaranam sayamsambuddhanam, purisottamanam purisa-sihanam purisavarapumdariyanam purisavaragamdhahatthinam, loguttamanam loganahanam logahiyanam logapaivanam logapajjoyagaranam, abhayadayanam chakkhudayanam maggadayanam jivadayanam bohidayanam, dhammadayanam dhammadesayanam dhammanayaganam dhammasarahinam dhammavarachauramtachakkavattinam, divo tanam saranam gai paittha, appadihayavarananadamsanadharanam viyattachhaumanam, jinanam javayanam tinnanam tarayanam buddhanam, bohi-yanam muttanam moyaganam, savvannunam savvadarisinam sivamayalamaruyamanamtamakkhayamavvabahamapunaravitti siddhigainamadheyam thanam sampattanam. Namotthu nam bhagavao titthagarassa aigarassa java sampaviukamassa vamdami nam bhagavamtam tatthagayam ihagae, pasau me bhayavam! Tatthagae ihagayamtikattu vamdai namamsai, vamditta namamsitta sihasanavaramsi puratthabhimuhe sannisanne. Tae nam tassa ekkassa devimdassa devaranno ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– uppanne khalu bho! Jambuddive dive bhagavam titthayare, tam jiyameyam tiyapachchuppannamanayaganam sakkanam devimdanam devarainam titthayaranam jammanamahimam karettae, tam gachchhami nam ahampi bhagavao titthagarassa jammanamahimam karemittikattu evam sampehei, sampehetta harinegamesim payattaniyahivaim devam saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Sabhae suhammae meghogharasiyagambhiramahurayarasaddam joyanaparimamdalam sughosam susaram ghamtam tikkhutto ullalemane-ullalemane mahaya-mahaya saddenam ugghosemane-ugghosemane evam vayahi– anavei nam bho! Sakke devimde devaraya, gachchhai jambuddive dive bhagavao titthayarassa jammanamahimam karittae, tam tubbhevi nam devanuppiya! Nam bho! Sakke devimde devaraya savviddhie savvajuie savvabalenam savvasamudaenam savvayarenam savvavibhuie savvavibhusae savvasambhamenam savvanadaehim savvorohehim savvapupphagamdhamallalamkaravibhusae savvadivva tudiyasaddasanninaenam mahaya iddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam niyayapariyalasamparivuda sayaim-sayaim janavimanavahanaim durudha samana akalaparihinam cheva sakkarassa devimdassa devaranno amtiyam paubbhavaha. Tae nam harinegamesi deve payattaniyahivai sakkenam devimdenam devaranna evam vutte samane hatthatuttha-chittamanamdie java evam devotti anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta sakkassa devimdassa devaranno amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva sabhae suhammae meghogharasiyagambhiramahura-yarasadda joyanaparimamdala sughosa ghamta teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam meghogharasiyagambhiramahurayara saddam joyanaparimamdalam sughosam ghamtam tikkhutto ullalei. Tae nam tise meghogharasiyagambhiramahurayarasaddae joyanaparimamdalae sughosae ghamtae tikkhutto ullaliyae samanie sohamme kappe annehim egunehim battisae vimanavasasayasahassehim annaim egunaim battisam ghamtasayasahassaim jamagasamagam kanakanaravam kaum payattaim chavi huttha. Tae nam sohamme kappe pasayavimananikkhudavadiyasaddaghamtapademsuyasayasahassasamkule jae yavi hottha. Tae nam tesim sohammakappavasinam bahunam vemaniyanam devana ya devina ya egamtaraipasatta-nichchappamattavisayasuhamuchchhiyanam susaraghamtarasiyaviulabolaturiyachavalapadibohane kae samane ghosanakouhaladinnakannaegaggachittauvauttamanasanam se payattaniyahivai deve tamsi ghamtaravamsi nisamtapasamtamsi samanamsi tattha-tattha tahim-tahim dese mahaya-mahaya saddenam ugghosemane-ugghosemane evam vayasi–hamdi! Sunamtu bhavamto bahave sohammakappavasi vemaniya deva ya devio ya sohammakappavaino inamo vayanam hiyasuhattham–anavei nam bho! Sakke devimde devaraya, gachchhai nam bho! Sakke devimde devaraya jambuddive dive bhagavao titthayarassa jammanamahimam karittae, tam tubbhehi nam devanuppiya! Savviddhie savvajuie savvabalenam savvasamudaenam savvayarenam savvavibhuie savvavibhusae savvasambhamenam savva-nadaehim savvorohehim savvapupphagamdhamallalamkaravibhusae savvadivvatudiyasaddasanninaenam mahaya iddhie java dumduhinigghosanaiyaravenam niyayapariyalasamparivuda sayaim-sayaim janavimanavahanaim durudha samana akalaparihinam cheva sakkassa devimdassa devaranno amtiyam paubbhavaha. Tae nam te deva ya devio ya eyamattham sochcha hatthatuttha-chittamanamdiya namdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamana hiyaya appegaiya vamdanavattiyam evam puyanavattiyam sakkara-vattiyam sammanavattiyam damsanavattiyam kouhalavattiyam appegaiya sakkassa vayanamanuvattamana appe-gaiya annamannamanuvattamana appegaiya jiyameyam evamaittikattu savviddhie java akalaparihinam cheva sakkassa devimdassa devaranno amtiyam paubbhavamti. Tae nam se sakke devimde devaraya te vemanie deve ya devio ya akalaparihinam cheva amtiyam paubbhavamane pasai, pasitta hatthatutthachittamanamdie palayam namam abhiogiyam devam saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Anegakhambhasayasannivittham lilatthiyasalabhamjiyakaliyam ihamiya usabha turaga nara magara vihaga valaga kinnara ruru sarabha chamara kumjara vanalaya paumalayabhattichittam khambhuggayavairaveiyaparigayabhiramam vijjaharajamalajuyalajamtajuttampiva achchisahassamalaniyam ruvaga-sahassakaliyam bhisamanam bhibbhisamanam chakkhulloyanalesam suhaphasam sassiriyaruvam ghamtavalichaliya mahuramanaharasaram suham kamtam darisanijjam niunoviya misimisemta manirayanaghamtiyajalaparikkhittam joyanasayasahassavichchhinnam pamchajoyanasayamuvviddham siggha turiya jaina nivvahim divvam janavimanam viuvvahi, viuvvitta eyamanattiyam pachchappinahi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala, usa samaya shakra namaka devendra, devaraja, vajrapani, purandara, shatakratu, sahasraksha, maghava, paka – shasana, dakshinardhalokadhipati, battisa lakha vimanom ke svami, airavata hathi para savari karanevale, surendra, nirmala vastradhari, malayukta mukuta dharana kiye hue, ujjvala svarna ke sundara, chitrita chamchala – kundalom se jisake kapola sushobhita the, dedipyamana shariradhari, parama riddhishali, parama dyutishali, mahan bali, mahan yashasvi, parama prabhavaka, atyanta sukhi, sudharma sabha mem indrasana para sthita hote hue battisa lakha vimanom, 84000 samanika devom, tetisa gurusthaniya trayastrimsha devom, chara lokapalom parivara sahita atha agramahishiyom, tina parishadom, sata anikom, sata anikadhipatiyom, 336000 amgarakshaka devom tatha saudharmakalpavasi anya bahuta se devom tatha deviyom ka adhipatya, yavat sainapatya karate hue, ina sabaka palana karate hue, nritya, gita, kalakaushala ke satha bajaye jate vina, jhamjha, dhola evam mridamga ki badala jaisi gambhira tatha madhura dhvani ke bicha divya bhogom ka ananda le raha tha. Sahasa devendra, devaraja shakra ka asana chalita hota hai, shakra avadhijnyana dvara bhagavan ko dekhata hai. Vaha hrishta tatha paritushta hota hai. Usaka hridaya khila uthata hai. Usake romgatem khare ho jate haim – mukha tatha netra vikasita ho uthate haim. Harshatirekajanita sphurtavegavasha usake hathom ke uttama kataka, trutita, pattika, keyura evam mukuta sahasa kampita ho uthate haim. Usaka vakshahsthala harom se sushobhita hota hai. Gale mem lambi mala latakati hai, abhushana jhulate haim. (isa prakara susajjita) devaraja shakra adarapurvaka shighra simhasana se uthata hai. Padapitha se niche utarakara vaidurya, rishtha tatha amjana ratnom se nipunatapurvaka kalatmaka rupa mem nirmita, dedipyamana, mani – mandita padukaem utarata hai. Akhanda vastra ka uttarasamga karata hai. Hatha jorata hai, jisa ora tirthamkara the usa disha ki ora sata, atha kadama age jata hai. Bayem ghutane ko sikorata hai, dahine ghutane ko bhumi para tikata hai, tina bara apana mastaka bhumi se lagata hai. Phira hatha jorata hai, aura kahata hai – Arhat, bhagavan, adikara, tirthamkara, svayamsambuddha, purushottama, purushasimha, purushavarapundarika, purushavaragandha – hasti, lokottama, lokanatha, lokahitakara, lokapradipa, lokapradyotakara, abhayadayaka, chakshudayaka, margadayaka, sharana dayaka, jivanadayaka, bodhidayaka, dharmadayaka, dharmadeshaka, dharmanayaka, dharmasarathi, dipa – trana – sharana, gati evam pratishtha svarupa, pratighata, badha ya avarana rahita uttama jnyana – darshana dharaka, vyavrittachhadma – jina, jnyayaka, tirna, taraka, buddha, bodhaka, mukta, mochaka, sarvajnya, sarvadarshi, shiva, achala, nirudrava, ananta, akshaya, abadha, apunaravritti, siddhavastha ko prapta, bhayatita jineshvarom ko namaskara ho. Adikara, siddhavastha paneke ichchhuka bhagavan tirthamkara ko namaskara ho Yaham sthita maim vaham – mem sthita bhagavan tirthamkara ko vandana karata hum. Vaham sthita bhagavan yaham sthita mujhako dekhem. Aisa kahakara vaha bhagavan ko vandana karata hai, namana karata hai. Purva ki ora mumha karake simhasana para baitha jata hai. Taba devendra, devaraja shakra ke mana mem aisa samkalpa, bhava utpanna hota hai – jambudvipa mem bhagavan utpanna hue haim. Devendrom, devarajom, shakrom ka yaha paramparagata achara hai ki ve tirthamkarom ka janma – mahotsava manaem. Isalie maim bhi jaum, bhagavan tirthamkara ka janmotsava samayojita karum. Devaraja shakra aisa vichara karata hai, nishchaya karata hai. Apani padatisena ke adhipati harinigameshi deva ko bulakara kahata hai – ‘devanupriya ! Shighra hi sudharma sabha mem meghasamuha ke garjana ke sadrisha gambhira tatha ati madhura shabdayukta, eka yojana vartulakara, sundara svara yukta sughosha namaka ghanta ko tina bara bajate hue, jora jora se udghoshana karate hue kaho – ve jambudvipa mem bhagavan ka janma – mahotsava manane ja rahe haim. Apa sabhi apani sarvavidha riddhi, dyuti, bala, samudaya, adara vibhuti, vibhusha, nataka – nritya – gitadi ke satha, kisi bhi badha ki paravaha na karate hue saba prakara ke pushpom, surabhita padarthom, malaom tatha abhushanom se vibhushita hokara divya, tumula dhvani ke satha mahati riddhi yavat uchcha, divya vadyadhvanipurvaka apane – apane parivara sahita apane – apane vimanom para savara hokara shakra ke samaksha upasthita hom.’ Devendra, devaraja shakra dvara isa prakara adesha diye jane para harinegameshi deva harshita hota hai, paritushta hota hai, adesha svikara kara shakra ke pasa se nikalata hai. Sughosha ghanta ko tina bara bajata hai. Meghasamuha ke garjana ki taraha gambhira tatha atyanta madhura dhvani se yukta, eka yojana vartulakara sughosha ghanta ke tina bara bajaye jane para saudharma kalpa mem eka kama battisa vimanom mem eka kama battisa lakha ghantaem eka satha tumula shabda karane lagati haim. Saudharmakalpa ke prasadom evam vimanom ke nishkuta, konom mem apatita shabda – vargana ke pudgala lakhom ghanta – pratidhvaniyom ke rupa mem prakata hone lagate haim. Saudharmakalpa sundara svarayukta ghantaom ki vipula dhvani se apurna ho jata hai. Vaham nivasa karanevale bahuta se vaimanika deva, deviyam jo ratisukha mem prasakta tatha pramatta rahate haim, murchchhita rahate haim, shighra jagarita hote haim – ghoshana sunane hetu unamem kutuhala utpanna hota hai, use sunane mem ve dattachitta ho jate haim. Jaba ghanta dhvani nihshanta, prashanta hota hai, taba harinegameshi deva sthana – sthana para jora – jora se udghoshana karata kahata hai – Saudharmakalpavasi bahuta se devom ! Deviyom ! Apa saudharmakalpapati ka yaha hitakara evam sukhaprada vachana sunem, apa una ke samaksha upasthita hom. Yaha sunakara una devom, deviyom ke hridaya harshita evam paritushta hote haim. Unamem se katipaya bhagavan tirthamkara ke vandana – hetu, katipaya pujana hetu, katipaya satkara, sammana, darshana ki utsakuta, bhakti – anuragavasha tatha katipaya paramparanugata achara manakara vaham upasthita ho jate haim. Devendra, devaraja shakra una vaimanika deva – deviyom ko avilamba apane samaksha upasthita dekhata hai. Apane palaka namaka abhiyogika devom ko bulakara kahata hai – devanupriya ! Saikarom khambhom para avasthita, kridodyata puttaliyom se kalita, ihamriga – vrika, vrishabha, ashva adi ke chitramkana se yukta, khambhom para utkirna vajraratnamayi vedika dvara sundara pratiyamana, samcharanashila sahajata purusha – yugala ki jyom pratita hote chitramkita vidyadharom se samayukta, apane para jari sahasro maniyom tatha ratnom ki prabha se sushobhita, hajarom rupakom – ativa dedipyamana, netrom mem sama janevale, sukhamaya sparshayukta, sashrika, ghantiyom ki madhura, manohara dhvani se yukta, sukhamaya, kamaniya, darshaniya, dedipyamana maniratnamaya ghantikaom ke samuha se parivyapta, 1000 yojana vistirna, 500 yojana umche, shighragami, tvaritagami, atishaya vegayukta evam prastuta karya – nirvahana mem sakshama divya vimana ki vikurvana karo. |