Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006843 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
Translated Chapter : |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 543 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि। एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति। बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिं चउहिं वासेहिं अहियं बंधंति। एवं मनुयाउअस्स वि। सेसं जहा एगिंदियाणं जाव अंतराइयस्स। तेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमपण्णासाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमपण्णा-साए सह भाणियव्वा। तेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमपन्नासं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेण तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिं सोलसहिं राइंदिएहिं राइंदियतिभागेण य अहियं बंधंति। एवं मनुस्साउयस्स वि। सेसं जहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स। चउरिंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमसयस्स तिन्नि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमसतेण सह भाणियव्वा। तिरिक्खजोणियाउअस्स कम्मस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिं दोहिं मासेहिं अहियं। एवं मनुस्साउअस्स वि। सेसं जहा बेइंदियाणं, नवरं–मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहन्नेणं सागरोवमसतं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊनयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। सेसं जहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स। असण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमसहस्स-स्स तिन्नि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं सो चेव गमो जहा बेइंदियाणं, नवरं–सागरोवमसहस्सेण समं भाणियव्वा जस्स जति भाग त्ति। मिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहन्नेणं सागरोवमसहस्सं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं। नेरइयाउअस्स जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडितिभागमब्भहियं बंधंति। एवं तिरिक्खजोणियाउयस्स वि, नवरं–जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं। एवं मनुस्साउयस्स वि। देवाउयस्स जहा नेरइयाउयस्स। असण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया निरयगतिनामाए कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे। एवं तिरियगतीए वि। मनुयगतिनामाए वि एवं चेव, नवरं–जहन्नेणं सागरोवमसहस्सस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। एवं देवगतिनामाए वि, नवरं–जहन्नेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं। वेउव्वियसरीरनामाए पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं दो पडिपुण्णे बंधंति। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-आहारगसरीरनामाए तित्थगरनामाए य न किंचि बंधंति। अवसिट्ठं जहा बेइंदियाणं, नवरं–जस्स जत्तिया भागा तस्स ते सागरोवमसहस्सेणं सह भाणियव्वा सव्वेसिं आनुपुव्वीए जाव अंतराइयस्स। सण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। सण्णी णं भंते! पंचेंदिया निद्दापंचगस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोसागरोवमकोडा-कोडीओ, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वासवाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। दंसणचउक्कस्स जहा नाणावरणिज्जस्स। सातावेदणिज्जस्स जहा ओहिया ठिती भणिया तहेव भाणियव्वा इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइयबंधयं च। असातावेयणिज्जस्स जहा निद्दापंचगस्स। सम्मत्तवेदणिज्जस्स सम्मामिच्छत्तवेदणिज्जस्स य जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति। मिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहन्नेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं सत्तरिं सागरोवम-कोडाकोडीओ; सत्त य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। कसायबारसगस्स जहन्नेणं एवं चेव, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। कोह-मान-माया-लोभसंजलणाए य दो मासा मासो अद्धमासो अंतोमुहुत्तो एयं जहन्नगं, उक्कोसगं पुण जहा कसायबारसगस्स। चउण्ह वि आउयाणं जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति। आहारगसरीरस्स तित्थगरनामाए य जहन्नेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ बंधंति। पुरिसवेदस्स जहन्नेणं अट्ठ संवच्छराइं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो। जसोकित्तिनामाए उच्चागोयस्स य एवं चेव, नवरं–जहन्नेणं अट्ठ मुहुत्ता। अंतराइयस्स जहा नाणावरणिज्जस्स। सेसएसु सव्वेसु ठाणेसु संघयणेसु संठाणेसु वण्णेसु गंधेसु य जहन्नेणं अंतोसागरोवम-कोडाकोडीओ, उक्कोसेणं जा जस्स ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति, नवरं इमं नाणत्तं–अबाहा अबाहूणिया न वुच्चति। एवं आनुपुव्वीए सव्वेसिं जाव अंतराइयस्स ताव भाणियव्वं। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बाँधते हैं। इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति जानना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति के समान द्वीन्द्रिय जीवों की बंधस्थिति का कथन करना। जहाँ एकेन्द्रिय नहीं बाँधते, वहाँ ये भी नहीं बाँधते हैं। द्वीन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीय कर्म का बन्ध जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः वही परिपूर्ण बाँधते हैं। द्वीन्द्रिय जीव तिर्यंचायु को जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्टतः चार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष की बाँधते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु का कथन भी करना। शेष यावत् अन्तरायकर्म तक एकेन्द्रियों के समान जानना। भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बँध करते हैं ? गौतम ! जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का बंध करते हैं और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बाँधते हैं। इस प्रकार जिसके जितने भाग हैं, वे उनके पचास सागरोपम के साथ कहने चाहिए। त्रीन्द्रिय जीव मिथ्यात्व – वेदनीय कर्म का बन्ध जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम का और उत्कृष्ट पूरे पचास सागरोपम का करते हैं। तिर्यंचायु का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त का और उत्कृष्ट सोलह रात्रि – दिवस तथा रात्रि – दिवस के तीसरे भाग अधिक करोड़ पूर्व का बन्धकाल है। इसी प्रकार मनुष्यायु का भी है। शेष यावत् अन्तराय तक का बन्धकाल द्वीन्द्रिय जीवों के समान जानना। भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बंध करते हैं ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सौ सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्टतः पूरे सौ सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का बन्ध करते हैं। तिर्यंचायुकर्म का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त का है और उत्कृष्ट दो मास अधिक करोड़ – पूर्व का है। इसी प्रकार मनुष्यायु का बन्धकाल भी जानना। शेष यावत् अन्तराय द्वीन्द्रियजीवों के बन्धकाल के समान जानना। विशेष यह कि मिथ्यात्ववेदनीय का जघन्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सौ सागरोपम और उत्कृष्ट परिपूर्ण सौ सागरोपम का बन्ध करते हैं। भगवन् !असंज्ञी – पंचेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म कितने काल का बाँधते हैं? गौतम! पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्रसागरोपम के तीन सप्तमांश भाग काल का और उत्कृष्ट परिपूर्ण सहस्र सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का बन्ध करते हैं। इस प्रकार द्वीन्द्रियों के समान जानना। विशेष यह कि यहाँ असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के प्रकरण में जिस कर्म का जितना भाग हो, उसका उतना ही भाग सहस्रसागरोपम से गुणित कहना। वे मिथ्यात्ववेदनीयकर्म का जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम का और उत्कृष्ट बंध परिपूर्ण सहस्र सागरोपम का करते हैं। वे नरकायुष्यकर्म का बन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के त्रिभाग अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग का करते हैं। इसी प्रकार तिर्यंचायु का भी उत्कृष्ट बन्ध है। किन्तु जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त का करते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु में भी समझना। देवायु का बन्ध नरकायु के समान समझना। भगवन् ! असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव नरकगतिनाम का कितने काल का बन्ध करते हैं? गौतम ! पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र – सागरोपम का दो सप्तमांश भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण सहस्र सागरोपम का दो सप्तमांश भाग बाँधते हैं। इसी प्रकार तिर्यंचगतिनाम में भी समझना। मनुष्यगतिनामकर्म के बन्ध के विषय में भी इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र – सागरोपम के देढ़ सप्तमांश भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण सहस्र सागरोपम के देढ़ सप्तमांश भाग का करते हैं। इसी प्रकार देवगतिनामकर्म के बन्ध के विषय में समझना। किन्तु विशेष यह कि इसका जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के देढ़ सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट पूरे उसी के देढ़ सप्तमांश भाग का करते हैं। वैक्रियशरीरनाम का बन्धकाल जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वहीं पूरे २/७ का करते हैं। सम्यक्त्वमोहनीय, सम्यग्मिथ्यात्वमोहनीय, आहारकशरीरनामकर्म और तीर्थंकरनामकर्म का बन्ध करते ही नहीं हैं। शेष कर्मप्रकृतियों का बन्धकाल द्वीन्द्रिय जीवों के समान जानना। विशेष यह कि जिसके जितने भाग हैं, वे सहस्र सागरोपम के साथ कहना। इसी प्रकार अनुक्रम से अन्तरायकर्म तक सभी कर्मप्रकृतियों का यथायोग्य बन्धकाल कहना। भगवन् ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त का और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का बन्ध करते हैं। इनका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव निद्रापंचककर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! जघन्य अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरो – पम का और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का बन्ध करते हैं। इनका तीन हजार वर्ष का अबाधाकाल है, इत्यादि पूर्ववत्। दर्शनचतुष्क का बन्धकाल ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धकाल के समान है। सातावेदनीयकर्म का बन्धकाल उसकी औघिक स्थिति समान कहना। ऐर्यापथिकबन्ध और साम्परायिकबन्ध की अपेक्षा से (सातावेद – नीय का बन्धकाल पृथक् – पृथक्) कहना। असातावेदनीय का बन्धकाल निद्रापंचक के समान कहना। सम्यक्त्व – वेदनीय और सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय औघिक स्थिति के समान है। वे मिथ्यात्ववेदनीय का बंध जघन्य अन्तःकोड़ा कोड़ी और उत्कृष्ट ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम का करते हैं। अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है, इत्यादि। कषाय – द्वादशक का बन्धकाल जघन्य इसी प्रकार और उत्कृष्टतः चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का है। अबाधाकाल चालीस हजार वर्ष का है। संज्वलन क्रोध – मान – माया – लोभ का जघन्य बन्ध क्रमशः दो मास, एक मास, अर्द्ध मास और अन्तर्मुहूर्त्त का होता है तथा उत्कृष्ट बन्ध कषाय – द्वादशक के समान है। चार प्रकार के आयुष्य कर्म की औघिक स्थिति के समान है। आहारकशरीर और तीर्थंकरनामकर्म का बन्ध जघन्य और उत्कृष्ट अन्तः कोटाकोटि का है। पुरुषवेद का बन्ध वे जघन्य आठ वर्ष का और उत्कृष्ट दशकोटाकोटि सागरोपम का है। अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। यशःकीर्तिनाम और उच्चगोत्र का बन्ध भी पुरुषवेदवत् जानना। विशेष यह कि संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों का जघन्य स्थितिबन्ध आठ मुहूर्त्त का है। अन्तरायकर्म का बन्धकाल ज्ञानावरणीयकर्म के समान है। शेष सभी स्थानों में तथा संहनन, संस्थान, वर्ण, गन्ध नामकर्मों में बन्ध का जघन्य काल अन्तःकोटाकोटि सागरोपम का है और उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का काल, इनकी सामान्य स्थिति के समान है। विशेष यह कि इनका ‘अबाधाकाल’ और अबाधाकालन्यून नहीं कहा जाता। इसी प्रकार अनुक्रम से सभी कर्मों का अन्तरायकर्म तक का स्थितिबन्ध – काल कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] beimdiya nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kammassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovama-panuvisae tinni sattabhaga paliovamassa asamkhejjaibhagenam unaya, ukkosenam te cheva padipunne bamdhamti. Evam niddapamchagassa vi. Evam jaha egimdiyanam bhaniyam taha beimdiyana vi bhaniyavvam, navaram–sagarovamapanuvisae saha bhaniyavva paliovamassa asamkhejjaibhagenam una, sesam tam cheva, jattha egimdiya nam bamdhamti tattha ete vi na bamdhamti. Beimdiya nam bhamte! Jiva michchhattaveyanijjassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovama-panuvisam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosenam tam cheva padipunnam bamdhamti. Tirikkhajoniyauassa jahannena amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodim chauhim vasehim ahiyam bamdhamti. Evam manuyauassa vi. Sesam jaha egimdiyanam java amtaraiyassa. Teimdiya nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovamapannasae tinni sattabhaga paliovamassa asamkhejjaibhagenam unaya, ukkosenam te cheva padipunne bamdhamti. Evam jassa jai bhaga te tassa sagarovamapanna-sae saha bhaniyavva. Teimdiya nam bhamte! Jiva michchhattaveyanijjassa kammassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovamapannasam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosena tam cheva padipunnam bamdhamti. Tirikkhajoniyauassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodim solasahim raimdiehim raimdiyatibhagena ya ahiyam bamdhamti. Evam manussauyassa vi. Sesam jaha beimdiyanam java amtaraiyassa. Chaurimdiya nam bhamte! Jiva nanavaranijjassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovamasayassa tinni sattabhage paliovamassa asamkhejjaibhagenam unae, ukkosenam te cheva padipunne bamdhamti. Evam jassa jai bhaga te tassa sagarovamasatena saha bhaniyavva. Tirikkhajoniyauassa kammassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodim dohim masehim ahiyam. Evam manussauassa vi. Sesam jaha beimdiyanam, navaram–michchhattaveyanijjassa jahannenam sagarovamasatam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosenam tam cheva padipunnam bamdhamti. Sesam jaha beimdiyanam java amtaraiyassa. Asanni nam bhamte! Jiva pamchemdiya nanavaranijjassa kammassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovamasahassa-ssa tinni sattabhage paliovamassa asamkhejjaibhagenam unae, ukkosenam te cheva padipunne bamdhamti. Evam so cheva gamo jaha beimdiyanam, navaram–sagarovamasahassena samam bhaniyavva jassa jati bhaga tti. Michchhattavedanijjassa jahannenam sagarovamasahassam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosenam tam cheva padipunnam. Neraiyauassa jahannenam dasa vasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam paliovamassa asamkhejjaibhagam puvvakoditibhagamabbhahiyam bamdhamti. Evam tirikkhajoniyauyassa vi, navaram–jahannenam amtomuhuttam. Evam manussauyassa vi. Devauyassa jaha neraiyauyassa. Asanni nam bhamte! Jiva pamchemdiya nirayagatinamae kammassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam sagarovamasahassassa do sattabhage paliovamassa asamkhejjaibhagenam unae, ukkosenam te cheva padipunne. Evam tiriyagatie vi. Manuyagatinamae vi evam cheva, navaram–jahannenam sagarovamasahassassa divaddham sattabhagam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosenam tam cheva padipunnam bamdhamti. Evam devagatinamae vi, navaram–jahannenam sagarovamasahassassa egam sattabhagam paliovamassa asamkhejjaibhagenam unayam, ukkosenam tam cheva padipunnam. Veuvviyasariranamae puchchha. Goyama! Jahannenam sagarovamasahassassa do sattabhage paliovamassa asamkhejjaibhagenam unae, ukkosenam do padipunne bamdhamti. Sammatta-sammamichchhatta-aharagasariranamae titthagaranamae ya na kimchi bamdhamti. Avasittham jaha beimdiyanam, navaram–jassa jattiya bhaga tassa te sagarovamasahassenam saha bhaniyavva savvesim anupuvvie java amtaraiyassa. Sanni nam bhamte! Jiva pamchemdiya nanavaranijjassa kammassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tisam sagarovamakodakodio, tinni ya vasasahassaim abaha, abahuniya kammathiti–kammanisego. Sanni nam bhamte! Pamchemdiya niddapamchagassa kim bamdhamti? Goyama! Jahannenam amtosagarovamakoda-kodio, ukkosenam tisam sagarovamakodakodio; tinni ya vasavasasahassaim abaha, abahuniya kammathiti–kammanisego. Damsanachaukkassa jaha nanavaranijjassa. Satavedanijjassa jaha ohiya thiti bhaniya taheva bhaniyavva iriyavahiyabamdhayam paduchcha samparaiyabamdhayam cha. Asataveyanijjassa jaha niddapamchagassa. Sammattavedanijjassa sammamichchhattavedanijjassa ya ja ohiya thiti bhaniya tam bamdhamti. Michchhattavedanijjassa jahannenam amtosagarovamakodakodio, ukkosenam sattarim sagarovama-kodakodio; satta ya vasasahassaim abaha, abahuniya kammathiti–kammanisego. Kasayabarasagassa jahannenam evam cheva, ukkosenam chattalisam sagarovamakodakodio; chattalisa ya vasasayaim abaha, abahuniya kammathiti–kammanisego. Koha-mana-maya-lobhasamjalanae ya do masa maso addhamaso amtomuhutto eyam jahannagam, ukkosagam puna jaha kasayabarasagassa. Chaunha vi auyanam ja ohiya thiti bhaniya tam bamdhamti. Aharagasarirassa titthagaranamae ya jahannenam amtosagarovamakodakodio, ukkosena vi amtosagarovamakodakodio bamdhamti. Purisavedassa jahannenam attha samvachchharaim, ukkosenam dasa sagarovamakodakodio; dasa ya vasasayaim abaha, abahuniya kammathiti–kammanisego. Jasokittinamae uchchagoyassa ya evam cheva, navaram–jahannenam attha muhutta. Amtaraiyassa jaha nanavaranijjassa. Sesaesu savvesu thanesu samghayanesu samthanesu vannesu gamdhesu ya jahannenam amtosagarovama-kodakodio, ukkosenam ja jassa ohiya thiti bhaniya tam bamdhamti, Navaram imam nanattam–abaha abahuniya na vuchchati. Evam anupuvvie savvesim java amtaraiyassa tava bhaniyavvam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Dvindriya jiva jnyanavaraniyakarma ka kitane kala ka bandha karate haim\? Gautama ! Ve jaghanya palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama pachchisa sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka aura utkrishta vahi paripurna bamdhate haim. Isi prakara nidrapamchaka ki sthiti janana. Isi prakara ekendriya jivom ki bandhasthiti ke samana dvindriya jivom ki bamdhasthiti ka kathana karana. Jaham ekendriya nahim bamdhate, vaham ye bhi nahim bamdhate haim. Dvindriya jiva mithyatvavedaniya karma ka bandha jaghanyatah palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama pachchisa sagaropama ki aura utkrishtatah vahi paripurna bamdhate haim. Dvindriya jiva tiryamchayu ko jaghanyatah antarmuhurtta ki aura utkrishtatah chara varsha adhika purvakotivarsha ki bamdhate haim. Isi prakara manushyayu ka kathana bhi karana. Shesha yavat antarayakarma taka ekendriyom ke samana janana. Bhagavan ! Trindriya jiva jnyanavaraniyakarma ka kitane kala ka bamdha karate haim\? Gautama ! Jaghanyatah palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama pachasa sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka bamdha karate haim aura utkrishta vahi paripurna bamdhate haim. Isa prakara jisake jitane bhaga haim, ve unake pachasa sagaropama ke satha kahane chahie. Trindriya jiva mithyatva – vedaniya karma ka bandha jaghanya palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama pachasa sagaropama ka aura utkrishta pure pachasa sagaropama ka karate haim. Tiryamchayu ka jaghanya antarmuhurtta ka aura utkrishta solaha ratri – divasa tatha ratri – divasa ke tisare bhaga adhika karora purva ka bandhakala hai. Isi prakara manushyayu ka bhi hai. Shesha yavat antaraya taka ka bandhakala dvindriya jivom ke samana janana. Bhagavan ! Chaturindriya jiva jnyanavaraniyakarma ka kitane kala ka bamdha karate haim\? Gautama ! Jaghanya palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sau sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka aura utkrishtatah pure sau sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka bandha karate haim. Tiryamchayukarma ka jaghanya antarmuhurtta ka hai aura utkrishta do masa adhika karora – purva ka hai. Isi prakara manushyayu ka bandhakala bhi janana. Shesha yavat antaraya dvindriyajivom ke bandhakala ke samana janana. Vishesha yaha ki mithyatvavedaniya ka jaghanya palyopama ka asamkhyatavam bhaga kama sau sagaropama aura utkrishta paripurna sau sagaropama ka bandha karate haim. Bhagavan !Asamjnyi – pamchendriya jiva jnyanavaraniyakarma kitane kala ka bamdhate haim? Gautama! Palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasrasagaropama ke tina saptamamsha bhaga kala ka aura utkrishta paripurna sahasra sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka bandha karate haim. Isa prakara dvindriyom ke samana janana. Vishesha yaha ki yaham asamjnyi pamchendriya jivom ke prakarana mem jisa karma ka jitana bhaga ho, usaka utana hi bhaga sahasrasagaropama se gunita kahana. Ve mithyatvavedaniyakarma ka jaghanya bandha palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasra sagaropama ka aura utkrishta bamdha paripurna sahasra sagaropama ka karate haim. Ve narakayushyakarma ka bandha jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha ka aura utkrishta purvakoti ke tribhaga adhika palyopama ke asamkhyatavem bhaga ka karate haim. Isi prakara tiryamchayu ka bhi utkrishta bandha hai. Kintu jaghanya antarmuhurtta ka karate haim. Isi prakara manushyayu mem bhi samajhana. Devayu ka bandha narakayu ke samana samajhana. Bhagavan ! Asamjnyipamchendriya jiva narakagatinama ka kitane kala ka bandha karate haim? Gautama ! Palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasra – sagaropama ka do saptamamsha bhaga aura utkrishta paripurna sahasra sagaropama ka do saptamamsha bhaga bamdhate haim. Isi prakara tiryamchagatinama mem bhi samajhana. Manushyagatinamakarma ke bandha ke vishaya mem bhi isi prakara samajhana. Vishesha yaha ki jaghanya bandha palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasra – sagaropama ke derha saptamamsha bhaga aura utkrishta paripurna sahasra sagaropama ke derha saptamamsha bhaga ka karate haim. Isi prakara devagatinamakarma ke bandha ke vishaya mem samajhana. Kintu vishesha yaha ki isaka jaghanya bandha palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasra sagaropama ke derha saptamamsha bhaga ka aura utkrishta pure usi ke derha saptamamsha bhaga ka karate haim. Vaikriyashariranama ka bandhakala jaghanya palyopama ke asamkhyatavem bhaga kama sahasra sagaropama ke tina saptamamsha bhaga ka aura utkrishta vahim pure 2/7 ka karate haim. Samyaktvamohaniya, samyagmithyatvamohaniya, aharakashariranamakarma aura tirthamkaranamakarma ka bandha karate hi nahim haim. Shesha karmaprakritiyom ka bandhakala dvindriya jivom ke samana janana. Vishesha yaha ki jisake jitane bhaga haim, ve sahasra sagaropama ke satha kahana. Isi prakara anukrama se antarayakarma taka sabhi karmaprakritiyom ka yathayogya bandhakala kahana. Bhagavan ! Samjnyipamchendriya jiva jnyanavaraniyakarma ka kitane kala ka bandha karate haim\? Gautama ! Jaghanya anta – rmuhurtta ka aura utkrishta tisa korakori sagaropama ka bandha karate haim. Inaka abadhakala tina hajara varsha ka hai. Samjnyipamchendriya jiva nidrapamchakakarma ka kitane kala ka bandha karate haim\? Gautama ! Jaghanya antahkorakori sagaro – pama ka aura utkrishta tisa korakori sagaropama ka bandha karate haim. Inaka tina hajara varsha ka abadhakala hai, ityadi purvavat. Darshanachatushka ka bandhakala jnyanavaraniyakarma ke bandhakala ke samana hai. Satavedaniyakarma ka bandhakala usaki aughika sthiti samana kahana. Airyapathikabandha aura samparayikabandha ki apeksha se (sataveda – niya ka bandhakala prithak – prithak) kahana. Asatavedaniya ka bandhakala nidrapamchaka ke samana kahana. Samyaktva – vedaniya aura samyagmithyatvavedaniya aughika sthiti ke samana hai. Ve mithyatvavedaniya ka bamdha jaghanya antahkora kori aura utkrishta 70 korakori sagaropama ka karate haim. Abadhakala sata hajara varsha ka hai, ityadi. Kashaya – dvadashaka ka bandhakala jaghanya isi prakara aura utkrishtatah chalisa korakori sagaropama ka hai. Abadhakala chalisa hajara varsha ka hai. Samjvalana krodha – mana – maya – lobha ka jaghanya bandha kramashah do masa, eka masa, arddha masa aura antarmuhurtta ka hota hai tatha utkrishta bandha kashaya – dvadashaka ke samana hai. Chara prakara ke ayushya karma ki aughika sthiti ke samana hai. Aharakasharira aura tirthamkaranamakarma ka bandha jaghanya aura utkrishta antah kotakoti ka hai. Purushaveda ka bandha ve jaghanya atha varsha ka aura utkrishta dashakotakoti sagaropama ka hai. Abadhakala eka hajara varsha ka hai. Yashahkirtinama aura uchchagotra ka bandha bhi purushavedavat janana. Vishesha yaha ki samjnyipamchendriya jivom ka jaghanya sthitibandha atha muhurtta ka hai. Antarayakarma ka bandhakala jnyanavaraniyakarma ke samana hai. Shesha sabhi sthanom mem tatha samhanana, samsthana, varna, gandha namakarmom mem bandha ka jaghanya kala antahkotakoti sagaropama ka hai aura utkrishta sthitibandha ka kala, inaki samanya sthiti ke samana hai. Vishesha yaha ki inaka ‘abadhakala’ aura abadhakalanyuna nahim kaha jata. Isi prakara anukrama se sabhi karmom ka antarayakarma taka ka sthitibandha – kala kahana. |