Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006167 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
नवविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
नवविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 367 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया। ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा। पुढविक्काइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं। अंतरं सव्वेसिं अनंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं। अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा। सेत्तं नवविधा संसारसमावन्नगा जीवा। | ||
Sutra Meaning : | जो नौ प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे ऐसा कहते हैं – १. पृथ्वीकायिक, २. अप् – कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय और ९. पंचेन्द्रिय। सबकी स्थिति कहना। पृथ्वीकायिकों की संचिट्ठणा पृथ्वीकाल है, इसी तरह वायुकाय पर्यन्त कहना। वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय की संचिट्ठणा संख्येयकाल है और पंचेन्द्रियों की संचिट्ठणा साधिक हजार सागरोपम है। सबका अन्तर अनन्तकाल है। केवल वनस्पतिकायिकों का अन्तर असंख्येय काल है। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक हैं और उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam jete evamahamsu navavidha samsarasamavannaga jiva te evamahamsu–pudhavikkaiya aukkaiya teukkaiya vaukkaiya vanassaikaiya beimdiya teimdiya chaurimdiya pamchemdiya. Thiti savvesim bhaniyavva. Pudhavikkaiyanam samchitthana pudhavikalo java vaukkaiyanam, vanassainam vanassatikalo, beimdiya teimdiya chaurimdiya samkhejjam kalam, pamchemdiyanam sagarovamasahassam satiregam. Amtaram savvesim anamtam kalam, vanassatikaiyanam asamkhejjam kalam. Appabahugam–savvatthova pamchimdiya, chaurimdiya visesahiya, teimdiya visesahiya, beimdiya visesahiya, teukkaiya asamkhejjaguna, pudhavikaiya visesahiya, aukaiya visesahiya, vaukaiya visesahiya, vanassatikaiya anamtaguna. Settam navavidha samsarasamavannaga jiva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo nau prakara ke samsarasamapannaka jivom ka kathana karate haim, ve aisa kahate haim – 1. Prithvikayika, 2. Ap – kayika, 3. Tejaskayika, 4. Vayukayika, 5. Vanaspatikayika, 6. Dvindriya, 7. Trindriya, 8. Chaturindriya aura 9. Pamchendriya. Sabaki sthiti kahana. Prithvikayikom ki samchitthana prithvikala hai, isi taraha vayukaya paryanta kahana. Vanaspatikaya ki samchitthana anantakala hai. Dvindriya, trindriya, chaturindriya ki samchitthana samkhyeyakala hai aura pamchendriyom ki samchitthana sadhika hajara sagaropama hai. Sabaka antara anantakala hai. Kevala vanaspatikayikom ka antara asamkhyeya kala hai. Alpabahutva mem sabase thore pamchendriya haim, unase chaturindriya visheshadhika haim, unase trindriya visheshadhika haim, unase dvindriya visheshadhika haim, unase tejaskayika asamkhyeyaguna haim, unase prithvikayika, apkayika, vayukayika kramashah visheshadhika haim aura unase vanaspatikayika anantaguna haim. |