Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005843 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 43 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं जलयरा? जलयरा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–मच्छगा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा। से किं तं मच्छा? एवं जहा पन्नवणाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयण-सहस्सं, छेवट्टसंघयणी, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, सण्णाओवि, लेसाओ तिन्नि, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, नो सन्नी असन्नी, नपुंसगवेया, पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच, दो दिट्ठीओ, दो दंसणा, दो नाणा, दो अन्नाणा, दुविहे जोगे, दुविहे उवओगे, आहारो छद्दिसिं, उववाओ तिरिय-मनुस्सेहिंतो, नो देवेहिंतो नो नेरइएहिंतो, तिरिएहिंतो असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो, अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु मनुस्सेसु, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। मारणंतियसमुग्घाएणं दुविहावि मरंति, अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं? नेरइएसुवि तिरिक्ख-जोणिएसुवि मनुस्सेसुवि देवेसुवि, नेरइएसु रयणप्पहाए, सेसेसु पडिसेहो। तिरिएसु सव्वेसु उववज्जंति संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउएसुवि चउप्पएसु पक्खीसुवि। मनुस्सेसु सव्वेसु कम्मभूमिएसु, नो अकम्मभूमिएसु, अंतरदीवएसुवि संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउ-एसुवि पज्जत्तएसुवि अपज्जत्तएसुवि। देवेसु जाव वाणमंतरा, चउगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से तं जलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। | ||
Sutra Meaning : | जलचर कौन हैं ? जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार। मच्छ क्या हैं ? मच्छ अनेक प्रकार के हैं इत्यादि वर्णन प्रज्ञापना के अनुसार जानना यावत् इस प्रकार के अन्य भी मच्छ आदि ये सब जलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। उनके शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन। वे सेवार्तसंहनन वाले, हुण्डसंस्थान वाले, चार कषाय वाले, चार संज्ञाओं वाले, पाँच लेश्याओं वाले हैं। उनके पाँच इन्द्रियाँ, तीन समुद्घात होते हैं। वे असंज्ञी हैं। वे नपुंसक वेद वाले हैं। उनके पाँच पर्याप्तियाँ और पाँच अपर्याप्तियाँ होती हैं। उनके दो दृष्टि, दो दर्शन, दो ज्ञान, दो अज्ञान, दो प्रकार के योग, दो प्रकार के उपयोग और आहार छहों दिशाओं के पुद्गलों का होता है। वे तिर्यंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों और नारकों से नहीं। तिर्यंचों में से भी असंख्यात – वर्षायु वाले तिर्यंच इनमें उत्पन्न नहीं होते। अकर्मभूमि और अन्तर्द्वीपों के असंख्यात वर्ष की आयुवाले मनुष्य भी इनमें उत्पन्न नहीं होते। इनकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। ये मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी। भगवन् ! ये संमूर्च्छिम जलचर जीव मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ये नरक आदि चारों गति में उत्पन्न होते हैं। यदि नरक में उत्पन्न होते हैं तो रत्नप्रभा नरक तक ही उत्पन्न होते हैं। तिर्यंच में उत्पन्न हों तो सब तिर्यंचों में, चतुष्पदों में और पक्षियों में उत्पन्न होते हैं। मनुष्य में उत्पन्न हों तो सब कर्मभूमियों के मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। अन्तर्द्वीपजों में संख्यात वर्ष की और असंख्यात वर्ष की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं। यदि वे देवों में उत्पन्न हों तो वानव्यन्तर देवों तक उत्पन्न होते हैं। ये जीव चार गति में जाने वाले, दो गतियों से आने वाले, प्रत्येक शरीर वाले और असंख्यात कहे गये हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam jalayara? Jalayara pamchaviha pannatta, tam jaha–machchhaga kachchhabha magara gaha sumsumara. Se kim tam machchha? Evam jaha pannavanae java je yavanne tahappagara, te samasao duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya apajjattaga ya. Tesi nam bhamte! Jivanam kati sariraga pannatta? Goyama! Tao sariraga pannatta, tam jaha–oralie teyae kammae. Sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam joyana-sahassam, chhevattasamghayani, humdasamthiya, chattari kasaya, sannaovi, lesao tinni, imdiya pamcha, samugghaya tinni, no sanni asanni, napumsagaveya, pajjattio apajjattio ya pamcha, do ditthio, do damsana, do nana, do annana, duvihe joge, duvihe uvaoge, aharo chhaddisim, uvavao tiriya-manussehimto, no devehimto no neraiehimto, tiriehimto asamkhejjavasauyavajjehimto, akammabhumaga-amtaradivagaasamkhejjavasauyavajjesu manussesu, thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Maranamtiyasamugghaenam duvihavi maramti, anamtaram uvvattitta kahim? Neraiesuvi tirikkha-joniesuvi manussesuvi devesuvi, neraiesu rayanappahae, sesesu padiseho. Tiriesu savvesu uvavajjamti samkhejjavasauesuvi asamkhejjavasauesuvi chauppaesu pakkhisuvi. Manussesu savvesu kammabhumiesu, no akammabhumiesu, amtaradivaesuvi samkhejjavasauesuvi asamkhejjavasau-esuvi pajjattaesuvi apajjattaesuvi. Devesu java vanamamtara, chaugaiya duagaiya, paritta asamkhejja pannatta. Se tam jalayarasammuchchhimapamchemdiyatirikkhajoniya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jalachara kauna haim\? Jalachara pamcha prakara ke haim – matsya, kachchhapa, magara, graha aura sumsumara. Machchha kya haim\? Machchha aneka prakara ke haim ityadi varnana prajnyapana ke anusara janana yavat isa prakara ke anya bhi machchha adi ye saba jalachara sammurchhima pamchendriya tiryamchayonika jiva samkshepa se do prakara ke haim – paryapta aura aparyapta. He bhagavan ! Una jivom ke kitane sharira haim\? Gautama ! Tina – audarika, taijasa aura karmana. Unake sharira ki avagahana jaghanya se amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta eka hajara yojana. Ve sevartasamhanana vale, hundasamsthana vale, chara kashaya vale, chara samjnyaom vale, pamcha leshyaom vale haim. Unake pamcha indriyam, tina samudghata hote haim. Ve asamjnyi haim. Ve napumsaka veda vale haim. Unake pamcha paryaptiyam aura pamcha aparyaptiyam hoti haim. Unake do drishti, do darshana, do jnyana, do ajnyana, do prakara ke yoga, do prakara ke upayoga aura ahara chhahom dishaom ke pudgalom ka hota hai. Ve tiryamcha aura manushyom se akara utpanna hote haim, devom aura narakom se nahim. Tiryamchom mem se bhi asamkhyata – varshayu vale tiryamcha inamem utpanna nahim hote. Akarmabhumi aura antardvipom ke asamkhyata varsha ki ayuvale manushya bhi inamem utpanna nahim hote. Inaki sthiti jaghanya antamuhurtta aura utkrishta purvakoti ki hai. Ye maranantika samudghata se samavahata hokara bhi marate haim aura asamavahata hokara bhi. Bhagavan ! Ye sammurchchhima jalachara jiva marakara kaham utpanna hote haim\? Gautama ! Ye naraka adi charom gati mem utpanna hote haim. Yadi naraka mem utpanna hote haim to ratnaprabha naraka taka hi utpanna hote haim. Tiryamcha mem utpanna hom to saba tiryamchom mem, chatushpadom mem aura pakshiyom mem utpanna hote haim. Manushya mem utpanna hom to saba karmabhumiyom ke manushyom mem utpanna hote haim. Antardvipajom mem samkhyata varsha ki aura asamkhyata varsha ki ayu valom mem bhi utpanna hote haim. Yadi ve devom mem utpanna hom to vanavyantara devom taka utpanna hote haim. Ye jiva chara gati mem jane vale, do gatiyom se ane vale, pratyeka sharira vale aura asamkhyata kahe gaye haim. |