Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005836 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 36 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं बेइंदिया? बेइंदिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया जाव समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्ज-इभागं, उक्कोसेणं बारसजोयणाइं, छेवट्टसंघयणा, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिन्नि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्घाया– वेयणा कसाया मारणंतिया, नोसन्नी असन्नी, नपुंसग-वेयगा, पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सम्मद्दिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी, नो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, नो ओहिदंसणी, नो केवलदंसणी। ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि। जे नाणी ते नियमा दुन्नाणी, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी य सुयनाणी य। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी–मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य। नो मनजोगी, वइजोगी, कायजोगी। सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि। आहारो नियमा छद्दिसिं। उववाओ तिरियमनुस्सेसु नेरइयदेवअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति।... ...कहिं गच्छति? नेरइयदेवअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु गच्छंति। दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा। सेत्तं बेइंदिया। | ||
Sutra Meaning : | द्वीन्द्रिय जीव क्या हैं ? द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, पुलाकृमिक यावत् समुद्रलिक्षा। और भी अन्य इसी प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव। ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से बारह योजन की अवगाहना है। उन जीवों के सेवार्तसंहनन और हुंडसंस्थान होता है। उनके चार कषाय, चार संज्ञाएं, तीन लेश्याएं और दो इन्द्रियाँ होती हैं। उनके तीन समुद्घात होते हैं – वेदना, कषाय और मारणान्तिक। ये जीव असंज्ञी हैं। नपुंसकवेद वाले हैं। इनके पाँच पर्याप्तियाँ और पाँच अपर्याप्तियाँ होती हैं। ये सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी होते हैं। ये केवल अचक्षुदर्शन वाले होते हैं। हे भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियम से दो ज्ञानवाले हैं – मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी। जो अज्ञानी हैं वे नियम से दो अज्ञान वाले हैं – मति – अज्ञानी और श्रुत – अज्ञानी। ये जीव, वचनयोग और काययोग वाले हैं। ये जीव आकार – उपयोगवाले भी हैं और अनाकार – उपयोग वाले भी हैं। इन जीवों का आहार नियम से छह दिशाओं के पुद्गलों का है। इनका उपपात नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवालों को छोड़कर शेष तिर्यंच और मनुष्यों से होता है। इनकी स्थिति जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट से बारह वर्ष की है। ये मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी। हे भगवन् ! ये मरकर कहाँ जाते हैं ? गौतम ! नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यंचों मनुष्यों को छोड़कर शेष तिर्यंचों मनुष्यों में जाते हैं। अतएव ये जीव दो गति में जाते हैं, दो गति से आते हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam beimdiya? Beimdiya anegaviha pannatta, tam jaha–pulakimiya java samuddalikkha, je yavanne tahappagara te samasao duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya apajjattaga ya. Tesi nam bhamte! Jivanam kati sariraga pannatta? Goyama! Tao sariraga pannatta, tam jaha–oralie teyae kammae Tesi nam bhamte! Jivanam kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulasamkhejja-ibhagam, ukkosenam barasajoyanaim, chhevattasamghayana, humdasamthiya, chattari kasaya, chattari sannao, tinni lesao, do imdiya, tao samugghaya– veyana kasaya maranamtiya, nosanni asanni, napumsaga-veyaga, pamcha pajjattio, pamcha apajjattio, sammadditthivi michchhaditthivi, no sammamichchhaditthi, no chakkhudamsani, achakkhudamsani, no ohidamsani, no kevaladamsani. Te nam bhamte! Jiva kim nani? Annani? Goyama! Nani vi annani vi. Je nani te niyama dunnani, tam jaha–abhinibohiyanani ya suyanani ya. Je annani te niyama duannani–maiannani ya suyaannani ya. No manajogi, vaijogi, kayajogi. Sagarovauttavi anagarovauttavi. Aharo niyama chhaddisim. Uvavao tiriyamanussesu neraiyadevaasamkhejjavasauyavajjesu. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam barasa samvachchharani. Samohayavi maramti asamohayavi maramti.. ..Kahim gachchhati? Neraiyadevaasamkhejjavasauyavajjesu gachchhamti. Dugaiya duagaiya, paritta asamkhejja. Settam beimdiya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dvindriya jiva kya haim\? Dvindriya jiva aneka prakara ke haim, pulakrimika yavat samudraliksha. Aura bhi anya isi prakara ke dvindriya jiva. Ye samkshepa se do prakara ke haim – paryapta aura aparyapta. He bhagavan ! Una jivom ke kitane sharira haim\? Gautama ! Tina – audarika, taijasa aura karmana. He bhagavan ! Una jivom ke sharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya se amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta se baraha yojana ki avagahana hai. Una jivom ke sevartasamhanana aura humdasamsthana hota hai. Unake chara kashaya, chara samjnyaem, tina leshyaem aura do indriyam hoti haim. Unake tina samudghata hote haim – vedana, kashaya aura maranantika. Ye jiva asamjnyi haim. Napumsakaveda vale haim. Inake pamcha paryaptiyam aura pamcha aparyaptiyam hoti haim. Ye samyagdrishti bhi hote haim aura mithyadrishti bhi hote haim. Ye kevala achakshudarshana vale hote haim. He bhagavan ! Ve jiva jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Jnyani bhi haim, ajnyani bhi haim. Jo jnyani haim ve niyama se do jnyanavale haim – matijnyani aura shrutajnyani. Jo ajnyani haim ve niyama se do ajnyana vale haim – mati – ajnyani aura shruta – ajnyani. Ye jiva, vachanayoga aura kayayoga vale haim. Ye jiva akara – upayogavale bhi haim aura anakara – upayoga vale bhi haim. Ina jivom ka ahara niyama se chhaha dishaom ke pudgalom ka hai. Inaka upapata nairayika, deva aura asamkhyata varsha ki ayuvalom ko chhorakara shesha tiryamcha aura manushyom se hota hai. Inaki sthiti jaghanya se antamuhurtta aura utkrishta se baraha varsha ki hai. Ye maranantika samudghata se samavahata hokara bhi marate haim aura asamavahata hokara bhi. He bhagavan ! Ye marakara kaham jate haim\? Gautama ! Nairayika, deva aura asamkhyata varsha ki ayuvale tiryamchom manushyom ko chhorakara shesha tiryamchom manushyom mem jate haim. Ataeva ye jiva do gati mem jate haim, do gati se ate haim, pratyekashariri haim aura asamkhyata haim |