Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005781 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 81 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च रट्ठं च बलं च बाहणं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जनवयं च अनाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च रट्ठं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जणवयं च माणुस्सए य कामभोगे अणाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु तव पुत्ता! पएसिं रायं केणइ सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणस्स पालेमाणस्स विहरित्तए। तए णं सूरियकंते कुमारे सूरियकंताए देवीए एवं वुत्ते समाणे सूरियकंताए देवीए एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–मा णं सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रन्नो इमं रहस्सभेयं करिस्सइ त्ति कट्टु पएसिस्स रन्नो छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य अंतराणि य पडिजागरमाणी (२) विहरइ। तए णं सूरियकंता देवी अन्नया कयाइ पएसिस्स रन्नो अंतरं जाणइ, जाणित्ता असणं पाणं खाइमं साइमं सव्व वत्थ गंध मल्लालंकारं विसप्पजोगं पउंजइ। पएसिस्स रन्नो ण्हायस्स कयबलि-कम्मस्स कयकोउय मंगल पायच्छित्तस्स सुहासणवरगयस्स तं विससंजुत्तं असणं पाणं खाइमं साइमं सव्व वत्थ गंध मल्लालंकारं निसिरेइ। तए णं तस्स पएसिस्स रन्नो तं विससंजुत्तं असणं आहारेमाणस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विपुला पगाढा कक्कसा कडुया फरुसा निट्ठुरा चंडा तिव्वा दुक्खा दुग्गा दुरहियासा, पित्तजरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए यावि विहरइ। तए णं से पएसी राया सूरियकंताए देवीए अप्पदुस्समाणे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, पोसहसालं पविसइ, उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरुहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मोवदेसगस्स धम्मायरियस्स वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमंसइ। पुव्विं पि णं मए केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए, तं इयाणिं पि णं तस्सेव भगवतो अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादानं पच्चक्खामि सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि सव्वं–कोहं, मानं, मायं, लोहं, पेज्जं, दोसं, कलहं, अब्भक्खाणं, पेसुन्नं, परपरिवायं, अरइरइं, मायामोसं, मिच्छा-दंसणसल्लं, अकरणिज्जं जोयं पच्चक्खामि। सव्वं असनं पानं खाइमं साइमं चउव्विहं पि आहारं जावज्जीवाए पच्चक्खामि। जं पि य मे सरीरं इट्ठं कंतं पियं मनुण्णं मणामं पेज्जं वेसासियं संमयं बहुमयं अनुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय पित्तिय सिंभिय सन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति एयं पि य णं चरिमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामि त्ति कट्टु आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए सूरियाभदेवत्ताए उववन्ने। तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति, तंजहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भास-मन-पज्जत्तीए तं एवं खलु गोयमा! सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। | ||
Sutra Meaning : | तब सूर्यकान्ता रानी को इस प्रकार का आन्तरिक यावत् विचार उत्पन्न हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्यकान्त कुमार प्रदेशी राजा के सामने मेरे इस रहस्य को प्रकाशित कर दे। ऐसा सोचकर सूर्यकान्ता रानी प्रदेशी राजा को मारने के लिए उसके दोष रूप छिद्रों को, कुकृत्य रूप आन्तरिक मर्मों को, एकान्त में सेवित निषिद्ध आचरण रूप रहस्यों को, एकान्त निर्जन स्थानों को और अनुकूल अवसर रूप अन्तरों को जानने की ताक में रहने लगी। किसी एक दिन अनुकूल अवसर मिलने पर सूर्यकान्ता रानी ने प्रदेशी राजा को मारने के लिए अशन – पान आदि भोजन में तथा शरीर पर धारण करने योग्य सभी वस्त्रों, सूँघने योग्य सुगन्धित वस्तुओं, पुष्पमालाओं और आभूषणों में विषय डालकर विषैला कर दिया। इसके बाद जब वह प्रदेशी राजा स्नान यावत् मंगल प्रायश्चित्त कर भोजन करने के लिए सुखपूर्वक श्रेष्ठ आसन पर बैठा तब वह विषमिश्रित घातक अशन आदि रूप आहार परोसा तथा विषमय वस्त्र पहनाए यावत् विषमय अलंकारों से उसको शृंगारित किया। तब उस विषमिले आहार को खाने से प्रदेशी राजा के शरीर में उत्कट, प्रचुर, प्रगाढ़, कर्कश, कटुक, पुरुष, निष्ठुर, रौद्र, दुःखद, विकट और दुस्सह वेदना उत्पन्न हुई। विषम पित्तज्वर से सारे शरीर में जलन होने लगी। तत्पश्चात् प्रदेशी राजा सूर्यकान्ता देवी के इस उत्पात को जानकर भी उसके प्रति मन में लेशमात्र भी द्वेष – रोष न करते हुए जहाँ पौषधशाला थी वहाँ आया। पौषधशाला की प्रमार्जना की, उच्चारप्रस्रवणभूमि का प्रति – लेखन किया। फिर दर्भ का सथारा बिछाया और उस पर आसीन होकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर पर्यंकासन से बैठकर दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहा – अरिहंतों यावत् सिद्धगति को प्राप्त भगवंतों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक केशी कुमारश्रमण को नमस्कार हो। यहाँ स्थित मैं वहाँ बिराजमान भगवान की वन्दना करता हूँ। वहाँ पर बिराजमान वे भगवन् यहाँ रहकर वन्दना करने वाले मुझे देखें। पहले भी मैंने केशी कुमारश्रमण के समक्ष स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया है। अब इस समय भी मैं उन्हीं भगवंतों की साक्षी से सम्पूर्ण प्राणातिपाति यावत् समस्त परिग्रह, क्रोध यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का प्रत्याख्यान करता हूँ। अकरणीय समस्त कार्यों एवं मन – वचन – काय योग का प्रत्याख्यान करता हूँ और जीवनपर्यंत के लिए सभी अशन – पान आदि रूप चारों प्रकार के आहार का भी त्याग करता हूँ। परन्तु मुझे यह शरीर इष्ट है, मैंने यह ध्यान रखा है कि इसमें कोई रोग आदि उत्पन्न न हो परन्तु अब अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक के लिए इस शरीर का भी परित्याग करता हूँ। इस प्रकार के निश्चय के साथ पुनः आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक मरण समय के प्राप्त होने पर काल करके सौधर्मकल्प के सूर्याभ – विमान की उपपात सभा में सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न हुआ, इत्यादि। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tise suriyakamtae devie imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha –jappabhiim cha nam paesi raya samanovasae jae tappabhiim cha nam rajjam cha rattham cha balam cha bahanam cha kotthagaram cha puram cha amteuram cha mamam janavayam cha anadhayamane viharai, tam seyam khalu me paesim rayam kenavi satthappaogena va aggippaogena va mamtappaogena va visappaogena va uddavetta suriyakamtam kumaram rajje thavitta sayameva rajjasirim karemanie palemanie viharittae tti kattu evam sampehei, sampehitta suriyakamtam kumaram saddavei, saddavetta evam vayasi– Jappabhiim cha nam paesi raya samanovasae jae tappabhiim cha nam rajjam cha rattham cha balam cha vahanam cha kosam cha kotthagaram cha puram cha amteuram cha mamam janavayam cha manussae ya kamabhoge anadhayamane viharai, tam seyam khalu tava putta! Paesim rayam kenai satthappaogena va aggippaogena va mamtappaogena va visappaogena va uddavetta sayameva rajjasirim karemanassa palemanassa viharittae. Tae nam suriyakamte kumare suriyakamtae devie evam vutte samane suriyakamtae devie eyamattham no adhai no pariyanai tusinie samchitthai. Tae nam tise suriyakamtae devie imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–ma nam suriyakamte kumare paesissa ranno imam rahassabheyam karissai tti kattu paesissa ranno chhiddani ya mammani ya rahassani ya vivarani ya amtarani ya padijagaramani (2) viharai. Tae nam suriyakamta devi annaya kayai paesissa ranno amtaram janai, janitta asanam panam khaimam saimam savva vattha gamdha mallalamkaram visappajogam paumjai. Paesissa ranno nhayassa kayabali-kammassa kayakouya mamgala payachchhittassa suhasanavaragayassa tam visasamjuttam asanam panam khaimam saimam savva vattha gamdha mallalamkaram nisirei. Tae nam tassa paesissa ranno tam visasamjuttam asanam aharemanassa sariragamsi veyana paubbhuya–ujjala vipula pagadha kakkasa kaduya pharusa nitthura chamda tivva dukkha dugga durahiyasa, pittajaraparigayasarire dahavakkamtie yavi viharai. Tae nam se paesi raya suriyakamtae devie appadussamane jeneva posahasala teneva uvagachchhai, posahasalam pavisai, uchcharapasavanabhumim padilehei, dabbhasamtharagam samtharei, dabbhasamtharagam duruhai, puratthabhimuhe sampaliyamkanisanne karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadheyam thanam sampattanam. Namotthu nam kesissa kumara-samanassa mama dhammovadesagassa dhammayariyassa vamdami nam bhagavamtam tatthagayam ihagae, pasai me bhagavam tatthagae ihagayam ti kattu vamdai namamsai. Puvvim pi nam mae kesissa kumarasamanassa amtie thulae panaivae pachchakkhae thulae musavae pachchakkhae, thulae adinnadane pachchakkhae, thulae pariggahe pachchakkhae, tam iyanim pi nam tasseva bhagavato amtie savvam panaivayam pachchakkhami savvam musavayam pachchakkhami savvam adinnadanam pachchakkhami savvam pariggaham pachchakkhami savvam–koham, manam, mayam, loham, pejjam, dosam, kalaham, abbhakkhanam, pesunnam, paraparivayam, arairaim, mayamosam, michchha-damsanasallam, akaranijjam joyam pachchakkhami. Savvam asanam panam khaimam saimam chauvviham pi aharam javajjivae pachchakkhami. Jam pi ya me sariram ittham kamtam piyam manunnam manamam pejjam vesasiyam sammayam bahumayam anumayam bhamdakaramdagasamanam ma nam siyam ma nam unham ma nam khuha ma nam pivasa ma nam vala ma nam chora ma nam damsa ma nam masaga ma nam vaiya pittiya simbhiya sannivaiya viviha rogayamka parisahovasagga phusamtu tti eyam pi ya nam charimehim usasanissasehim vosirami tti kattu aloiya-padikkamte samahipatte kalamase kalam kichcha sohamme kappe suriyabhe vimane uvavayasabhae devasayanijjamsi devadusamtarite amgulassa asamkhejjatibhagamettie ogahanae suriyabhadevattae uvavanne. Tae nam se suriyabhe deve ahunovavannae cheva samane pamchavihae pajjattie pajjattibhavam gachchhati, tamjaha–aharapajjattie sarirapajjattie imdiyapajjattie anapanapajjattie bhasa-mana-pajjattie tam evam khalu goyama! Suriyabhenam devenam sa divva deviddhi divva devajuti divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba suryakanta rani ko isa prakara ka antarika yavat vichara utpanna hua ki kahim aisa na ho ki suryakanta kumara pradeshi raja ke samane mere isa rahasya ko prakashita kara de. Aisa sochakara suryakanta rani pradeshi raja ko marane ke lie usake dosha rupa chhidrom ko, kukritya rupa antarika marmom ko, ekanta mem sevita nishiddha acharana rupa rahasyom ko, ekanta nirjana sthanom ko aura anukula avasara rupa antarom ko janane ki taka mem rahane lagi. Kisi eka dina anukula avasara milane para suryakanta rani ne pradeshi raja ko marane ke lie ashana – pana adi bhojana mem tatha sharira para dharana karane yogya sabhi vastrom, sumghane yogya sugandhita vastuom, pushpamalaom aura abhushanom mem vishaya dalakara vishaila kara diya. Isake bada jaba vaha pradeshi raja snana yavat mamgala prayashchitta kara bhojana karane ke lie sukhapurvaka shreshtha asana para baitha taba vaha vishamishrita ghataka ashana adi rupa ahara parosa tatha vishamaya vastra pahanae yavat vishamaya alamkarom se usako shrimgarita kiya. Taba usa vishamile ahara ko khane se pradeshi raja ke sharira mem utkata, prachura, pragarha, karkasha, katuka, purusha, nishthura, raudra, duhkhada, vikata aura dussaha vedana utpanna hui. Vishama pittajvara se sare sharira mem jalana hone lagi. Tatpashchat pradeshi raja suryakanta devi ke isa utpata ko janakara bhi usake prati mana mem leshamatra bhi dvesha – rosha na karate hue jaham paushadhashala thi vaham aya. Paushadhashala ki pramarjana ki, uchcharaprasravanabhumi ka prati – lekhana kiya. Phira darbha ka sathara bichhaya aura usa para asina hokara purva disha ki ora mukha kara paryamkasana se baithakara donom hatha jora avartapurvaka mastaka para amjali karake isa prakara kaha – arihamtom yavat siddhagati ko prapta bhagavamtom ko namaskara ho. Mere dharmacharya aura dharmopadeshaka keshi kumarashramana ko namaskara ho. Yaham sthita maim vaham birajamana bhagavana ki vandana karata hum. Vaham para birajamana ve bhagavan yaham rahakara vandana karane vale mujhe dekhem. Pahale bhi maimne keshi kumarashramana ke samaksha sthula pranatipata yavat sthula parigraha ka pratyakhyana kiya hai. Aba isa samaya bhi maim unhim bhagavamtom ki sakshi se sampurna pranatipati yavat samasta parigraha, krodha yavat mithyadarshana shalya ka pratyakhyana karata hum. Akaraniya samasta karyom evam mana – vachana – kaya yoga ka pratyakhyana karata hum aura jivanaparyamta ke lie sabhi ashana – pana adi rupa charom prakara ke ahara ka bhi tyaga karata hum. Parantu mujhe yaha sharira ishta hai, maimne yaha dhyana rakha hai ki isamem koi roga adi utpanna na ho parantu aba antima shvasochchhvasa taka ke lie isa sharira ka bhi parityaga karata hum. Isa prakara ke nishchaya ke satha punah alochana aura pratikramana karake samadhipurvaka marana samaya ke prapta hone para kala karake saudharmakalpa ke suryabha – vimana ki upapata sabha mem suryabhadeva ke rupa mem utpanna hua, ityadi. |