Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005648 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उपपात वर्णन |
Translated Chapter : |
उपपात वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 48 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था। ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ। एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो। तेसि णं परिव्वायाणं नो कप्पइ अगडं वा तलायं वा नइं वा वाविं वा पुक्खरिणिं वा दीहियं वा गुंजालियं वा सरं वा सागरं वा ओगाहित्तए, नन्नत्थ अद्धाणगमणेणं। तेसि णं परिव्वायाणं नो कप्पइ सगडं वा रहं वा जाणं वा जुग्गं वा गिल्लिं वा थिल्लिं वा पवहणं वा सीयं वा संदमाणियं वा दुरुहित्ता णं गच्छित्तए। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ आसं वा हत्थिं वा उट्टं वा गोणं वा महिसं वा खरं वा दुरुहित्ता णं गमित्तए, नन्नत्थ बलाभिओगेणं। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ नडपेच्छा इ वा नट्टपेच्छा इ वा जल्लपेच्छा इ वा मल्लपेच्छा इ वा मुट्ठियपेच्छा इ वा वेलंबगपेच्छा इ वा पवगपेच्छा इ वा कहगपेच्छा इ वा लासगपेच्छा इ वा आइक्खगपेच्छा इ वा लंखपेच्छा इ वा मंखपेच्छा इ वा तुणइल्लपेच्छा इ वा तुंबवीणिपेच्छा इ वा भुयगपेच्छा इ वा मागहपेच्छा इ वा पेच्छित्तए। तेसिं परिव्वायगाणं नो कप्पइ हरियाणं लेसणया वा घट्टणया वा थंभणया वा लूसणया वा उप्पाडणया वा करित्तए। तेसिं परिव्वायगाणं नो कप्पइ इत्थिकहा इ वा भत्तकहा इ वा रायकहा इ वा देसकहा इ वा चोरकहा इ वा अणवयकहा इ वा अणत्थदंडं करित्तए। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ अयपायाणि वा तंबपायाणि वा तउयपायाणि वा सीसगपायाणि वा रययजायरूव काय बेडंतिय वट्टलोह कंसलोह हारपुडय रीतिया मणि संख दंत चम्म चेल सेल पायाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं महद्धणमोल्लाइं धारित्तए, नन्नत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापाएण वा। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ अयबंधणाणि वा तंब बंधणाणि वा तउय बंधणाणि वा सीसगबंधणाणि वा रयय जायरूव काय वेडंतिय वट्टलोह कंसलोह हारपुडय रीतिया मणि संख दंत चम्म चेल सेल बंधणाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं महद्धणमोल्लाइं धारित्तए। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ नानाविहवण्णरागरत्ताइं वत्थाइं धारित्तए, नन्नत्थ एगाए धाउरत्ताए। तेसिं णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलिं वा मुत्तावलिं वा कनगावलिं वा रयणावलिं वा मुरविं वा कंठमुरविं वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुत्तं वा दसमुद्दिआणंतगं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा मउडं वा चूलामणिं वा पिनिद्धत्तए, नन्नत्थ एगेणं तंबिएणं पवित्तएणं। तेसि णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ गंथिम वेढिम पूरिम संघाइमे चउव्विहे मल्ले धारित्तए, नन्नत्थ एगेणं कण्णपूरेणं। तेसि णं परिव्वायगाणं नो कप्पइ अगलुएण वा चंदणेण वा कुंकुमेण वा गायं अणुलिंपित्तए, नन्नत्थ एक्काए गंगामट्टियाए। तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए पत्थए जलस्स पडिगाहित्तए, से वि य वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए नो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे नो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए नो चेव णं अपरिपूए से वि य दिन्ने नो चेव णं अदिन्ने, से वि य पिबित्तए नो चेव णं हत्थ पाय चरु चमस पक्खालणट्ठाए सिणाइत्तए वा। तेसिं णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए नो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे नो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए नो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिन्ने नो चेव णं अदिन्ने, से वि य हत्थ पाय चरु चमस पक्खालणट्ठाए नो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए वा। तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए नो चेव णं अवहमाणए से वि य थिमिओदए नो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे नो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए नो चेव णं अपरिभूए, से वि य दिन्ने नो चेव णं अदिन्ने, से वि य सिणाइत्तए नो चेव णं हत्थ पाय चरु चमस पक्खालणट्ठाए पिबित्तए वा। ते णं परिव्वायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं परियायं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! दससागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कार परक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? नो इणट्ठे समट्ठे। | ||
Sutra Meaning : | वे परिव्राजक ऋक्, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट विज्ञान, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिषशास्त्र तथा अन्य ब्राह्मण – ग्रन्थ इन सब में सुपरिनिष्ठित – सुपरिकपक्व ज्ञानयुक्त होते हैं। वे परिव्राजक दान – धर्म, शौच – धर्म, दैहिक शुद्धि एवं स्वच्छतामूलक आचार तीर्थाभिषेक आख्यान करते हुए, प्रज्ञापन करते हुए, प्ररूपण करते हुए – विचरण करते हैं। उनका कथन है, हमारे मतानुसार जो कुछ भी अशुचि प्रतीत हो जाता है, वह मिट्टी लगाकर जल से प्रक्षालित कर लेने पर पवित्र हो जाता है। इस प्रकार हम स्वच्छ देह एवं वेषयुक्त तथा स्वच्छाचार युक्त हैं, शुचि, शुच्याचार युक्त हैं, अभिषेक द्वारा जल से अपने आपको पवित्र कर निर्विघ्नतया स्वर्ग जाएंगे। उन परिव्राजकों के लिए मार्ग में चलते समय के सिवाय कूए, तालाब, नदी, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, क्यारी, विशाल सरोवर, गुंजालिका तथा जलाशय में प्रवेश करना कल्प्य नहीं है। शकट यावत् स्यन्दमानिका पर चढ़कर जाना उन्हें नहीं कल्पता – उन परिव्राजकों को घोड़े, हाथी, ऊंट, बैल, भैंसे तथा गधे पर सवार होकर जाना नहीं कल्पता। इसमें बलाभियोग का अपवाद है। उन परिव्राजकों को नटों यावत् दिखाने वालों के खेल, पहलवानों की कुश्तियाँ, स्तुति – गायकों के प्रशस्तिमूलक कार्य – कलाप आदि देखना, सूनना नहीं कल्पता। उन परिव्राजकों के लिए हरी वनस्पति का स्पर्श करना, उन्हें परस्पर घिसना, हाथ आदि द्वारा अवरुद्ध करना, शाखाओं, पत्तों आदि को ऊंचा करना या उन्हें मोड़ना, उखाड़ना कल्प्य नहीं हे ऐसा करना उनके लिए निषिद्ध है। उन परिव्राजकों के लिए स्त्री – कथा, भोजन – कथा, देश – कथा, राज – कथा, चोर – कथा, जनपद – कथा, जो अपने लिए एवं दूसरों के लिए हानिप्रद तथा निरर्थक है, करना कल्पनीय नहीं है। उन परिव्राजकों के लिए तूंबे, काठ तथा मिट्टी के पात्र के सिवाय लोहे, रांगे, ताँबे, जसद, शीशे, चाँदी या सोने के पात्र या दूसरे बहुमूल्य धातुओं के पात्र धारण करना कल्प्य नहीं है। उन परिव्राजकों को लोहे के या दूसरे बहुमूल्य बन्ध – इन से बंधे पात्र रखना कल्प्य नहीं है। उन परिव्राजकों को एक धातु से – गेरुए वस्त्रों के सिवाय तरह तरह के रंगों से रंगे हुए वस्त्र धारण करना नहीं कल्पता। उन परिव्राजकों को ताँबे के एक पवित्रक के अतिरिक्त हार, अर्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, मुखी, कण्ठमुखी, प्रालम्ब, त्रिसरक, कटिसूत्र, दश – मुद्रिकाएं, कटक, त्रुटित, अंगद, केयूर, कुण्डल, मुकूट तथा चूडामणि रत्नमय शिरोभूषण धारण करना नहीं कल्पता। उन परिव्राजकों को फूलों से बने केवल एक कर्णपूर के सिवाय गूँथकर बनाई गई मालाएं, लपेट कर बनाई गई मालाएं, फूलों को परस्पर संयुक्त कर बनाई गई मालाएं या संहित कर परस्पर एक दूसरे में उलझा कर बनाई गई मालाएं – ये चार प्रकार की मालाएं धारण करना नहीं कल्पता। उन परिव्राजकों को केवल गंगा की मिट्टी के अतिरिक्त अगर, चन्दन या केसर से शरीर को लिप्त करना नहीं कल्पता। उन परिव्राजकों के लिए मगध देश के तोल के अनुसार एक प्रस्थ जल लेना कल्पता है। वह भी बहता हुआ हो, एक जगह बंधा हुआ नहीं। वह भी यदि स्वच्छ हो तभी ग्राह्य है, कीचड़युक्त हो तो ग्राह्य नहीं है। स्वच्छ होने के साथ – साथ वह बहुत साफ और निर्मल हो, तभी ग्राह्य है अन्यथा नहीं। वह वस्त्र से छाना हुआ हो तो उनके लिए कल्प्य है, अनछाना नहीं। वह भी यदि दिया गया हो, तभी ग्राह्य है, बिना दिया हुआ नहीं। वह भी केवल पीने के लिए ग्राह्य है, हाथ पैर, चरू, चमच, धोने के लिए या स्नान करने के लिए नहीं। उन परिव्राजकों के लिए मागधतोल अनुसार एक आढक जल लेना कल्पता है। वह भी बहता हुआ हो, एक जगह बंधा हुआ या बन्द नहीं यावत् वह भी केवल हाथ, पैर, चरू, चमच, धोनेके लिए ग्राह्य है, पीने के लिए या स्नान करने के लिए नहीं। वे परिव्राजक इस प्रकार के आचार या चर्या द्वारा विचरण करते हुए, बहुत वर्षों तक परिव्राजक – पर्याय का पालन करते हैं। बहुत वर्षों तक वैसा कर मृत्युकाल आने पर देह त्याग कर उत्कृष्ट ब्रह्मलोक कल्प में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। तदनुरूप उनकी गति और स्थिति होत है। उनकी स्थिति या आयुष्य दस सागरोपम कहा गया है। अवशेष वर्णन पूर्ववत् है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] te nam parivvaya riuveda yajuvveda samaveda ahavvanaveda itihasapamchamanam nighamtu chhatthanam samgovamganam sarahassanam chaunham vedanam saraga paraga dharaga sadamgavi satthitamtavisaraya samkhane sikkhakappe vagarane chhamde nirutte joisamayane annesu ya bahusu bambhannaesu ya satthesu suparinitthaya yavi hottha. Te nam parivvaya danadhammam cha soyadhammam cha titthabhiseyam cha aghavemana pannavemana paruvemana viharamti. Jam nam amham kim chi asui bhavai tam nam udaena ya mattiyae ya pakkhaliyam samanam sui bhavai. Evam khalu amhe chokkha chokkhayara sui suisamayara bhavitta abhiseyajalapuyappano avigghenam saggam gamissamo. Tesi nam parivvayanam no kappai agadam va talayam va naim va vavim va pukkharinim va dihiyam va gumjaliyam va saram va sagaram va ogahittae, nannattha addhanagamanenam. Tesi nam parivvayanam no kappai sagadam va raham va janam va juggam va gillim va thillim va pavahanam va siyam va samdamaniyam va duruhitta nam gachchhittae. Tesim nam parivvayaganam no kappai asam va hatthim va uttam va gonam va mahisam va kharam va duruhitta nam gamittae, nannattha balabhiogenam. Tesim nam parivvayaganam no kappai nadapechchha i va nattapechchha i va jallapechchha i va mallapechchha i va mutthiyapechchha i va velambagapechchha i va pavagapechchha i va kahagapechchha i va lasagapechchha i va aikkhagapechchha i va lamkhapechchha i va mamkhapechchha i va tunaillapechchha i va tumbavinipechchha i va bhuyagapechchha i va magahapechchha i va pechchhittae. Tesim parivvayaganam no kappai hariyanam lesanaya va ghattanaya va thambhanaya va lusanaya va uppadanaya va karittae. Tesim parivvayaganam no kappai itthikaha i va bhattakaha i va rayakaha i va desakaha i va chorakaha i va anavayakaha i va anatthadamdam karittae. Tesim nam parivvayaganam no kappai ayapayani va tambapayani va tauyapayani va sisagapayani va rayayajayaruva kaya bedamtiya vattaloha kamsaloha harapudaya ritiya mani samkha damta chamma chela sela payani va annayaraim va tahappagaraim mahaddhanamollaim dharittae, nannattha alaupaena va darupaena va mattiyapaena va. Tesim nam parivvayaganam no kappai ayabamdhanani va tamba bamdhanani va tauya bamdhanani va sisagabamdhanani va rayaya jayaruva kaya vedamtiya vattaloha kamsaloha harapudaya ritiya mani samkha damta chamma chela sela bamdhanani va annayaraim va tahappagaraim mahaddhanamollaim dharittae. Tesim nam parivvayaganam no kappai nanavihavannaragarattaim vatthaim dharittae, nannattha egae dhaurattae. Tesim nam parivvayaganam no kappai haram va addhaharam va egavalim va muttavalim va kanagavalim va rayanavalim va muravim va kamthamuravim va palambam va tisarayam va kadisuttam va dasamuddianamtagam va kadayani va tudiyani va amgayani va keurani va kumdalani va maudam va chulamanim va piniddhattae, nannattha egenam tambienam pavittaenam. Tesi nam parivvayaganam no kappai gamthima vedhima purima samghaime chauvvihe malle dharittae, nannattha egenam kannapurenam. Tesi nam parivvayaganam no kappai agaluena va chamdanena va kumkumena va gayam anulimpittae, nannattha ekkae gamgamattiyae. Tesi nam parivvayaganam kappai magahae patthae jalassa padigahittae, se vi ya vahamanae no cheva nam avahamanae, se vi ya thimiodae no cheva nam kaddamodae, se vi ya bahuppasanne no cheva nam abahuppasanne, se vi ya paripue no cheva nam aparipue se vi ya dinne no cheva nam adinne, se vi ya pibittae no cheva nam hattha paya charu chamasa pakkhalanatthae sinaittae va. Tesim nam parivvayaganam kappai magahae addhadhae jalassa padiggahittae, se vi ya vahamanae no cheva nam avahamanae, se vi ya thimiodae no cheva nam kaddamodae, se vi ya bahuppasanne no cheva nam abahuppasanne, se vi ya paripue no cheva nam aparipue, se vi ya dinne no cheva nam adinne, se vi ya hattha paya charu chamasa pakkhalanatthae no cheva nam pibittae sinaittae va. Tesi nam parivvayaganam kappai magahae adhae jalassa padiggahittae, se vi ya vahamanae no cheva nam avahamanae se vi ya thimiodae no cheva nam kaddamodae, se vi ya bahuppasanne no cheva nam abahuppasanne, se vi ya paripue no cheva nam aparibhue, se vi ya dinne no cheva nam adinne, se vi ya sinaittae no cheva nam hattha paya charu chamasa pakkhalanatthae pibittae va. Te nam parivvayaga eyaruvenam viharenam viharamana bahuim vasaim pariyayam paunamti, paunitta kalamase kalam kichcha ukkosenam bambhaloe kappe devattae uvavattaro bhavamti. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Dasasagarovamaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkara parakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? No inatthe samatthe. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ve parivrajaka rik, yaju, sama, atharvana – ina charom vedom, pamchave itihasa, chhathe nighantu ke adhyeta the. Unhem vedom ka samgopamga rahasya bodhapurvaka jnyana tha. Ve charom vedom ke saraka, paraga, dharaka, tatha vedom ke chhahom amgom ke jnyata the. Ve shashtitantra – mem visharada ya nipuna the. Samkhyana, shiksha, veda mantrom ke uchcharana ke vishishta vijnyana, kalpa, vyakarana, chhanda, nirukta, jyotishashastra tatha anya brahmana – grantha ina saba mem suparinishthita – suparikapakva jnyanayukta hote haim. Ve parivrajaka dana – dharma, shaucha – dharma, daihika shuddhi evam svachchhatamulaka achara tirthabhisheka akhyana karate hue, prajnyapana karate hue, prarupana karate hue – vicharana karate haim. Unaka kathana hai, hamare matanusara jo kuchha bhi ashuchi pratita ho jata hai, vaha mitti lagakara jala se prakshalita kara lene para pavitra ho jata hai. Isa prakara hama svachchha deha evam veshayukta tatha svachchhachara yukta haim, shuchi, shuchyachara yukta haim, abhisheka dvara jala se apane apako pavitra kara nirvighnataya svarga jaemge. Una parivrajakom ke lie marga mem chalate samaya ke sivaya kue, talaba, nadi, vapi, pushkarini, dirghika, kyari, vishala sarovara, gumjalika tatha jalashaya mem pravesha karana kalpya nahim hai. Shakata yavat syandamanika para charhakara jana unhem nahim kalpata – una parivrajakom ko ghore, hathi, umta, baila, bhaimse tatha gadhe para savara hokara jana nahim kalpata. Isamem balabhiyoga ka apavada hai. Una parivrajakom ko natom yavat dikhane valom ke khela, pahalavanom ki kushtiyam, stuti – gayakom ke prashastimulaka karya – kalapa adi dekhana, sunana nahim kalpata. Una parivrajakom ke lie hari vanaspati ka sparsha karana, unhem paraspara ghisana, hatha adi dvara avaruddha karana, shakhaom, pattom adi ko umcha karana ya unhem morana, ukharana kalpya nahim he aisa karana unake lie nishiddha hai. Una parivrajakom ke lie stri – katha, bhojana – katha, desha – katha, raja – katha, chora – katha, janapada – katha, jo apane lie evam dusarom ke lie haniprada tatha nirarthaka hai, karana kalpaniya nahim hai. Una parivrajakom ke lie tumbe, katha tatha mitti ke patra ke sivaya lohe, ramge, tambe, jasada, shishe, chamdi ya sone ke patra ya dusare bahumulya dhatuom ke patra dharana karana kalpya nahim hai. Una parivrajakom ko lohe ke ya dusare bahumulya bandha – ina se bamdhe patra rakhana kalpya nahim hai. Una parivrajakom ko eka dhatu se – gerue vastrom ke sivaya taraha taraha ke ramgom se ramge hue vastra dharana karana nahim kalpata. Una parivrajakom ko tambe ke eka pavitraka ke atirikta hara, ardhahara, ekavali, muktavali, kanakavali, ratnavali, mukhi, kanthamukhi, pralamba, trisaraka, katisutra, dasha – mudrikaem, kataka, trutita, amgada, keyura, kundala, mukuta tatha chudamani ratnamaya shirobhushana dharana karana nahim kalpata. Una parivrajakom ko phulom se bane kevala eka karnapura ke sivaya gumthakara banai gai malaem, lapeta kara banai gai malaem, phulom ko paraspara samyukta kara banai gai malaem ya samhita kara paraspara eka dusare mem ulajha kara banai gai malaem – ye chara prakara ki malaem dharana karana nahim kalpata. Una parivrajakom ko kevala gamga ki mitti ke atirikta agara, chandana ya kesara se sharira ko lipta karana nahim kalpata. Una parivrajakom ke lie magadha desha ke tola ke anusara eka prastha jala lena kalpata hai. Vaha bhi bahata hua ho, eka jagaha bamdha hua nahim. Vaha bhi yadi svachchha ho tabhi grahya hai, kicharayukta ho to grahya nahim hai. Svachchha hone ke satha – satha vaha bahuta sapha aura nirmala ho, tabhi grahya hai anyatha nahim. Vaha vastra se chhana hua ho to unake lie kalpya hai, anachhana nahim. Vaha bhi yadi diya gaya ho, tabhi grahya hai, bina diya hua nahim. Vaha bhi kevala pine ke lie grahya hai, hatha paira, charu, chamacha, dhone ke lie ya snana karane ke lie nahim. Una parivrajakom ke lie magadhatola anusara eka adhaka jala lena kalpata hai. Vaha bhi bahata hua ho, eka jagaha bamdha hua ya banda nahim yavat vaha bhi kevala hatha, paira, charu, chamacha, dhoneke lie grahya hai, pine ke lie ya snana karane ke lie nahim. Ve parivrajaka isa prakara ke achara ya charya dvara vicharana karate hue, bahuta varshom taka parivrajaka – paryaya ka palana karate haim. Bahuta varshom taka vaisa kara mrityukala ane para deha tyaga kara utkrishta brahmaloka kalpa mem deva rupa mem utpanna hote haim. Tadanurupa unaki gati aura sthiti hota hai. Unaki sthiti ya ayushya dasa sagaropama kaha gaya hai. Avashesha varnana purvavat hai. |