Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005649 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उपपात वर्णन |
Translated Chapter : |
उपपात वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 49 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं नयरं संपट्ठिया विहाराए। तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वे णं परिभुंजमाणे झीणे। तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारम-पस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमनुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुंजमाणे झीणे। तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गण गवेसणं करित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए उदग-दातारस्स सव्वाओ समंता मग्गण गवेसणं करेंति, करेत्ता उदगदातारमलभमाणा दोच्चंपि अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– इहण्णं देवानुप्पिया! उदगदातारो नत्थि तं नो खलु कप्पइ अम्हं अदिन्नं गिण्हित्तए, अदिन्नं साइज्जित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणिं आवइकालं पि अदिन्नं गिण्हामो, अदिन्नं साइज्जामो, मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं देवानुप्पिया! तिदंडए य कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छन्नालए य अंकुसए य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य एगंते एडित्ता गंगं महाणइं ओगाहित्ता वालुयासंथारए संथरित्ता संलेहणाज्झूसियाणं भत्तपाण पडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणकंखमाणाणं विहरित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तिदंडए य कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छन्नालए य अंकुसए य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य एगंते एडेंति, एडेत्ता गंगं महाणइं ओगाहेंति, ओगाहेत्ता वालुयासंथारए संथरंति, संथारित्ता वालुयासंथारयं दुरुहंति दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहा संपलियंकनिसण्णा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स। नमोत्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। पुव्विं णं अम्हेहिं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, मुसावाए अदिन्नादाने पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जी-वाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए। इयाणिं अम्हे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं मुसावायं पच्चक्खाओ जावज्जीवाए, सव्वं अदिन्नादानं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं कोहं मानं मायं लोहं पेज्जं दोसं कलहं अब्भक्खाणं पेसुन्नं परपरिवायं अरइरइं मायामोसं मिच्छादंसणसल्लं अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असनं पानं खाइमं साइमं– चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इट्ठं कंतं पियं मणुण्णं मणाणं पेज्जं वेसासियं संमयं बहुमयं अनुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं बाला, मा णं चोरा, मा णं दंसा, मा णं मसगा, मा णं वाइय पित्तिय सिंभिय सन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एयंपि णं चरिमेहिं ऊसासणीसासेहिं वोसिरामि त्ति कट्टु संलेहणाज्झूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकंखमाणा विहरंति। तए णं ते परिव्वाया बहूइं भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ना। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पन्नत्ते। तेसि णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! दससागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कार-परक्कमेइ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा? हंता अत्थि। | ||
Sutra Meaning : | उस काल, उस समय, एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। वे परिव्राजक चलते – चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल, उनकी निगरानी करने वाले गोपालक आदि का ही आवागमन था, जिसके मार्ग बड़े विकट थे। वे जंगल का कुछ भाग पार कर पाये थे कि चलते समय अपने साथ लिया हुआ पानी पीते – पीते क्रमशः समाप्त हो गया। तब वे परिव्राजक, जिनके पास का पानी समाप्त हो चूका था, प्यास से व्याकुल हो गये। कोई पानी देने वाला दिखाई नहीं दिया। वे परस्पर एक दूसरे को संबोधित कर कहने लगे। देवानुप्रियो ! हम ऐसे जंगल का, जिसमें कोई गाँव नहीं है। यावत् कुछ ही भाग पार कर पाये कि हमारे पास जो पानी था, समाप्त हो गया। अतः देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम इस ग्रामरहित वन में सब दिशाओं में चारों और जलदाता की मार्गणा – गवेषणा करें। उन्होंने परस्पर ऐसी चर्चा कर यह तय किया। ऐसा तय कर उन्होंने उस गाँव रहित जंगल में सब दिशाओं में चारों ओर जलदाता की खोज की। खोज करने पर भी कोई जलदाता नहीं मिला। फिर उन्होंने एक दूसरे को संबोधित कर कहा। देवानुप्रियो ! यहाँ कोई पानी देने वाला नहीं है। अदत्त, सेवन करना हमारे लिए कल्प्य नहीं है। इसलिए हम इस समय आपत्तिकाल में भी अदत्त का ग्रहण न करें, सेवन न करें, जिससे हमारे तप का लोप न हो। अतः हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम त्रिदण्ड – कमंडलु, रुद्राक्ष – मालाएं, करोटिकाएं, वृषिकाएं, षण्नालिकाएं, अंकुश, केशरिकाएं, पवित्रिकाएं, गणेत्रिकाएं, सुमिरिनियाँ, छत्र, पादुकाएं, काठ की खड़ाऊएं, धातुरक्त शाटिकाएं एकान्त में छोड़कर गंगा महानदी में वालू का संस्तारक तैयार कर संलेखनापूर्वक – शरीर एवं कषायों को क्षीण करते हुए आहार – पानी का परित्याग कर, कटे हुए वृक्ष जैसी निश्चेष्टावस्था स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए संस्थित हो। परस्पर एक दूसरे से ऐसा कह उन्होंने यह तय किया। ऐसा तय कर उन्होंने त्रिदण्ड आदि अपने उपकरण एकान्त में डाल दिये। महानदी गंगा में प्रवेश किया। वालू का संस्तारक किया। वे उस पर आरूढ़ हुए। पूर्वाभिमुख हो पद्मासन में बैठे। बैठकर दोनों हाथ जोड़े और बोले। अर्हत् – इन्द्र आदि द्वारा पूजित यावत् सिद्धावस्था नामक स्थिति प्राप्त किये हुए – सिद्धों को नमस्कार हो। भगवान् महावीर को, जो सिद्धावस्था प्राप्त करने में समुद्यत हैं, हमारा नमस्कार हो। हमारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक अम्बड परिव्राजक को नमस्कारहो। पहले हमने अम्बड परिव्राजक के पास स्थूल प्राणातिपात, मृषावाद, चोरी, सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा स्थूल परिग्रह का जीवन भर के लिए प्रत्याख्यान किया था। इन समय भगवान महावीर के साक्ष्य से हम सब प्रकार की हिंसा, आदि का जीवनभर के लिए त्याग करते हैं। सर्व प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति, अरति, मायामृषा, तथा मिथ्यादर्शन – शल्य जीवनभर के लिए त्याग करते हैं। अकरणीय योग – क्रिया का जीवनभर के लिए त्याग करते हैं। अशन, पान, खादिम, स्वादिम, इन चारों का जीवनभर के लिए त्याग करते हैं। यह शरीर, जो इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोम, प्रेय, प्रेज्य, स्थैर्यमय, वैश्वासिक, सम्मत, बहुमत, अनुमत, गहनों की पेटी के समान प्रीतिकर है, इसी सर्दी न लग जाए, गर्मी न लग जाए, यह भूखा न रह जाए, प्यासा न रह जाए, इसे साँप न डस ले, चोर उपद्रुत न करें, डांस न काटें, मच्छर न काटें, वात, पित्त, (कफ) सन्निपात आदि से जनित विविध रोगों द्वारा, तत्काल मार डालने वाली बीमारियों द्वारा यह पीड़ित न हो, इसे परिषह, उपसर्ग न हों, जिसके लिए हर समय ऐसा ध्यान रखते हैं, उस शरीर का हम चरम उच्छ्वास – निःश्वास तक व्युत्सर्जन करते हैं – संलेखना द्वारा जिनके शरीर तथा कषाय दोनों ही कृश हो रहे थे, उन परिव्राजकों ने आहार – पानी का परित्याग कर दिया। कटे हुए वृक्ष की तरह अपने शरीर को चेष्टा – शून्य बना लिया। मृत्यु की कामना न करते हुए शान्त भाव से वे अवस्थित रहे। इस प्रकार उन परिव्राजकों ने बहुत से चोरों प्रकार के आहार अनशन द्वारा छिन्न किए – वैसा कर दोषों की आलोचना की – उनका निरीक्षण किया, उनसे प्रतिक्रान्त हुए, समाधि – दशा प्राप्त की। मृत्यु – समय आने पर देह त्याग कर ब्रह्मलोक कल्प में वे देव रूप में उत्पन्न हुए। उनके स्थान के अनुरूप उनकी गति बतलाई गई है। उनका आयुष्य दस सागरोपम कहा गया है। वे परलोक के आराधक हैं। अवशेष वर्णन पहले की तरह है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam ammadassa parivvayagassa satta amtevasisaya gimhakalasamayamsi jetthamulamasammi gamgae mahanaie ubhaokulenam kampillapurao nayarao purimatalam nayaram sampatthiya viharae. Tae nam tesim parivvayaganam tise agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie kamchi desamtaramanupattanam se puvvaggahie udae anupuvve nam paribhumjamane jhine. Tae nam te parivvaya jhinodaga samana tanhae parabbhamana-parabbhamana udagadatarama-passamana annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi– evam khalu devanuppiya! Amham imise agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie kamchi desamtaramanupattanam se puvvaggahie udae anupuvvenam paribhumjamane jhine. Tam seyam khalu devanuppiya! Amham imise agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie udagadatarassa savvao samamta maggana gavesanam karittae tti kattu annamannassa amtie eyamattham padisunemti, padisunetta tise agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie udaga-datarassa savvao samamta maggana gavesanam karemti, karetta udagadataramalabhamana dochchampi annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi– Ihannam devanuppiya! Udagadataro natthi tam no khalu kappai amham adinnam ginhittae, adinnam saijjittae, tam ma nam amhe iyanim avaikalam pi adinnam ginhamo, adinnam saijjamo, ma nam amham tavalove bhavissai. Tam seyam khalu amham devanuppiya! Tidamdae ya kumdiyao ya kamchaniyao ya karodiyao ya bhisiyao ya chhannalae ya amkusae ya kesariyao ya pavittae ya ganettiyao ya chhattae ya vahanao ya dhaurattao ya egamte editta gamgam mahanaim ogahitta valuyasamtharae samtharitta samlehanajjhusiyanam bhattapana padiyaikkhiyanam paovagayanam kalam anakamkhamananam viharittae tti kattu annamannassa amtie eyamattham padisunemti, padisunetta tidamdae ya kumdiyao ya kamchaniyao ya karodiyao ya bhisiyao ya chhannalae ya amkusae ya kesariyao ya pavittae ya ganettiyao ya chhattae ya vahanao ya dhaurattao ya egamte edemti, edetta gamgam mahanaim ogahemti, ogahetta valuyasamtharae samtharamti, samtharitta valuyasamtharayam duruhamti duruhitta puratthabhimuha sampaliyamkanisanna karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadheyam thanam sampattanam. Namotthu nam samanassa bhagavao mahavirassa java sampaviukamassa. Namotthu nam ammadassa parivvayagassa amham dhammayariyassa dhammovadesagassa. Puvvim nam amhehim ammadassa parivvayagassa amtie thulae panaivae pachchakkhae javajjivae, musavae adinnadane pachchakkhae javajjivae, savve mehune pachchakkhae javajji-vae, thulae pariggahe pachchakkhae javajjivae. Iyanim amhe samanassa bhagavao mahavirassa amtie savvam panaivayam pachchakkhamo javajjivae, savvam musavayam pachchakkhao javajjivae, savvam adinnadanam pachchakkhamo javajjivae, savve mehunam pachchakkhamo javajjivae, savvam pariggaham pachchakkhamo javajjivae, savvam koham manam mayam loham pejjam dosam kalaham abbhakkhanam pesunnam paraparivayam arairaim mayamosam michchhadamsanasallam akaranijjam jogam pachchakkhamo javajjivae, savvam asanam panam khaimam saimam– chauvviham pi aharam pachchakkhamo javajjivae. Jam pi ya imam sariram ittham kamtam piyam manunnam mananam pejjam vesasiyam sammayam bahumayam anumayam bhamdakaramdagasamanam ma nam siyam, ma nam unham, ma nam khuha, ma nam pivasa, ma nam bala, ma nam chora, ma nam damsa, ma nam masaga, ma nam vaiya pittiya simbhiya sannivaiya viviha rogayamka parisahovasagga phusamtu tti kattu eyampi nam charimehim usasanisasehim vosirami tti kattu samlehanajjhusiya bhattapanapadiyaikkhiya paovagaya kalam anavakamkhamana viharamti. Tae nam te parivvaya bahuim bhattaim anasanae chhedemti, chhedetta aloiyapadikkamta samahipatta kalamase kalam kichcha bambhaloe kappe devattae uvavanna. Tahim tesim gai, tahim tesim thii, tahim tesim uvavae pannatte. Tesi nam bhamte! Devanam kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Dasasagarovamaim thii pannatta. Atthi nam bhamte! Tesim devanam iddhii va juii va jasei va balei va viriei va purisakkara-parakkamei va? Hamta atthi. Te nam bhamte! Deva paralogassa arahaga? Hamta atthi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala, usa samaya, eka bara jaba grishma ritu ka samaya tha, jetha ka mahina tha, ambara parivrajaka ke sata sau antevasi gamga mahanadi ke do kinarom se kampilyapura namaka nagara se purimatala namaka nagara ko ravana hue. Ve parivrajaka chalate – chalate eka aise jamgala mem pahumcha gaye, jaham koi gamva nahim tha, na jaham vyapariyom ke kaphile, gokula, unaki nigarani karane vale gopalaka adi ka hi avagamana tha, jisake marga bare vikata the. Ve jamgala ka kuchha bhaga para kara paye the ki chalate samaya apane satha liya hua pani pite – pite kramashah samapta ho gaya. Taba ve parivrajaka, jinake pasa ka pani samapta ho chuka tha, pyasa se vyakula ho gaye. Koi pani dene vala dikhai nahim diya. Ve paraspara eka dusare ko sambodhita kara kahane lage. Devanupriyo ! Hama aise jamgala ka, jisamem koi gamva nahim hai. Yavat kuchha hi bhaga para kara paye ki hamare pasa jo pani tha, samapta ho gaya. Atah devanupriyo ! Hamare lie yahi shreyaskara hai, hama isa gramarahita vana mem saba dishaom mem charom aura jaladata ki margana – gaveshana karem. Unhomne paraspara aisi charcha kara yaha taya kiya. Aisa taya kara unhomne usa gamva rahita jamgala mem saba dishaom mem charom ora jaladata ki khoja ki. Khoja karane para bhi koi jaladata nahim mila. Phira unhomne eka dusare ko sambodhita kara kaha. Devanupriyo ! Yaham koi pani dene vala nahim hai. Adatta, sevana karana hamare lie kalpya nahim hai. Isalie hama isa samaya apattikala mem bhi adatta ka grahana na karem, sevana na karem, jisase hamare tapa ka lopa na ho. Atah hamare lie yahi shreyaskara hai, hama tridanda – kamamdalu, rudraksha – malaem, karotikaem, vrishikaem, shannalikaem, amkusha, kesharikaem, pavitrikaem, ganetrikaem, sumiriniyam, chhatra, padukaem, katha ki kharauem, dhaturakta shatikaem ekanta mem chhorakara gamga mahanadi mem valu ka samstaraka taiyara kara samlekhanapurvaka – sharira evam kashayom ko kshina karate hue ahara – pani ka parityaga kara, kate hue vriksha jaisi nishcheshtavastha svikara kara mrityu ki akamksha na karate hue samsthita ho. Paraspara eka dusare se aisa kaha unhomne yaha taya kiya. Aisa taya kara unhomne tridanda adi apane upakarana ekanta mem dala diye. Mahanadi gamga mem pravesha kiya. Valu ka samstaraka kiya. Ve usa para arurha hue. Purvabhimukha ho padmasana mem baithe. Baithakara donom hatha jore aura bole. Arhat – indra adi dvara pujita yavat siddhavastha namaka sthiti prapta kiye hue – siddhom ko namaskara ho. Bhagavan mahavira ko, jo siddhavastha prapta karane mem samudyata haim, hamara namaskara ho. Hamare dharmacharya, dharmopadeshaka ambada parivrajaka ko namaskaraho. Pahale hamane ambada parivrajaka ke pasa sthula pranatipata, mrishavada, chori, saba prakara ke abrahmacharya tatha sthula parigraha ka jivana bhara ke lie pratyakhyana kiya tha. Ina samaya bhagavana mahavira ke sakshya se hama saba prakara ki himsa, adi ka jivanabhara ke lie tyaga karate haim. Sarva prakara ke krodha, mana, maya, lobha, prema, dvesha, kalaha, abhyakhyana, paishunya, paraparivada, rati, arati, mayamrisha, tatha mithyadarshana – shalya jivanabhara ke lie tyaga karate haim. Akaraniya yoga – kriya ka jivanabhara ke lie tyaga karate haim. Ashana, pana, khadima, svadima, ina charom ka jivanabhara ke lie tyaga karate haim. Yaha sharira, jo ishta, kanta, priya, manojnya, manoma, preya, prejya, sthairyamaya, vaishvasika, sammata, bahumata, anumata, gahanom ki peti ke samana pritikara hai, isi sardi na laga jae, garmi na laga jae, yaha bhukha na raha jae, pyasa na raha jae, ise sampa na dasa le, chora upadruta na karem, damsa na katem, machchhara na katem, vata, pitta, (kapha) sannipata adi se janita vividha rogom dvara, tatkala mara dalane vali bimariyom dvara yaha pirita na ho, ise parishaha, upasarga na hom, jisake lie hara samaya aisa dhyana rakhate haim, usa sharira ka hama charama uchchhvasa – nihshvasa taka vyutsarjana karate haim – samlekhana dvara jinake sharira tatha kashaya donom hi krisha ho rahe the, una parivrajakom ne ahara – pani ka parityaga kara diya. Kate hue vriksha ki taraha apane sharira ko cheshta – shunya bana liya. Mrityu ki kamana na karate hue shanta bhava se ve avasthita rahe. Isa prakara una parivrajakom ne bahuta se chorom prakara ke ahara anashana dvara chhinna kie – vaisa kara doshom ki alochana ki – unaka nirikshana kiya, unase pratikranta hue, samadhi – dasha prapta ki. Mrityu – samaya ane para deha tyaga kara brahmaloka kalpa mem ve deva rupa mem utpanna hue. Unake sthana ke anurupa unaki gati batalai gai hai. Unaka ayushya dasa sagaropama kaha gaya hai. Ve paraloka ke aradhaka haim. Avashesha varnana pahale ki taraha hai. |