Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1005621 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Translated Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 21 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अनगारा भगवंतो– अप्पेगइया आयारधरा अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपन्नत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसा-धरा अप्पेगइया अनुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, ... ...अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टंति अप्पेगइया अनुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ निव्वेयणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया–संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। संसारभउव्विग्गा जम्मण जर मरण करण गंभीर दुक्ख पक्खुभिय पउर सलिलं संजोग विओग वीचि चिंता पसंग पसरिय वह बंध महल्ल विउल कल्लोल कलण विलविय लोभ कलकलेंत बोलबहुलं अवमाणण फेण तिव्वखिंसण पुलंपुलप्पभूय रोगवेयण परिभव विणिवाय फरुसधरिसणा समावडिय कढिणकम्मपत्थर तरंग रंगंत निच्चमच्चुभय तोयपट्ठं कसाय पायाल संकुलं भवसय-सहस्स कलुसजल संचयं पइभयं अपरिमियमहिच्छ कलुसमइवाउवेग उद्धम्ममाणदगरयरयंधकार वरफेण पउर आसापिवास धवलं मोहमहावत्त भोगभममाण गुप्पमाणुच्छलंत पच्चोणिवयंतपाणिय पमायचंडबहुदुट्ठसावय समाहयुद्धायमाण पब्भार घोरकंदिय महारव रवंत भेरवरवं अन्नाणभमंतमच्छ परिहत्थ अनिहुतिंदियमहामगर तुरिय चरिय खोखुब्भमाण नच्चंत चवल चंचल चलंत धुम्मंत जल समूहं अरइ भय विसायसोग मिच्छत्त सेलसंकडं अनाइसंताण कम्मबंधणकिलेसचिक्खल्ल सुदुत्तारं अमर-नर-तिरिय-निरयगइ गमनकुडिलपरियत्त विउल वेलं चउरंतमहंतमणवयग्गं रुंदं संसारसागरं भीमदरिसणिज्जं तरंति धिइ धणिय निप्पकंपेण तुरियचवलं संवर वेरग्ग तुंग कूवय सुसंपउत्तेणं नाण सिय विमलमूसिएणं सम्मत्त विसुद्ध लद्ध णिज्जामएणं धीरा संजमपोएण सील कलिया पसत्थ-ज्झाण तववाय पणोल्लिय पहाविएणं उज्जम ववसाय गहिय निज्जरण जयण उवओग नाण दंसणविसुद्धवयभंड भरियसारा जिनवरवयणोवदिट्ठमग्गेण अकुडिलेण सिद्धि महापट्टणाभिमुहा समणवरसत्थवाहा सुसुइ सुसंभास सुपण्हसासा गामे-गामे एगरायं नगरे नगरे पंचरायं दूइज्जंता जिइंदिया निब्भया गयभया सचित्ताचित्तमीसएसु दव्वेसु विरागयं गया संजया विरता मुत्ता लहुया निरवकंखा साहू निहुया चरंति धम्मं। | ||
Sutra Meaning : | उस काल, उस समय – जब भगवान महावीर चम्पा में पधारे, उनके साथ उनके अनेक अन्तेवासी अनगार थे। उनके कईं एक आचार यावत् विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहीं भिन्न – भिन्न स्थानों पर एक – एक समूह के रूप में, समूह के एक – एक भाग के रूप में तथा फूटकर रूप में विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कईं आगमों</em> की वाचना देते थे। कईं प्रतिपृच्छा करते थे। कईं अधीत पाठ की परिवर्तना करते थे। कईं अनुप्रेक्षा करते थे। उनमें कईं आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगनी, तथा निर्वेदनी, यों अनेक प्रकार की धर्म – कथाएं कहते थे। उनमें कईं अपने दोनों घुटनों को ऊंचा उठाये, मस्तक को नीचा किये – ध्यानरूप कोष्ठ में प्रविष्ट थे। इस प्रकार वे अनगार संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए अपनी जीवन – यात्रा चला रहे थे। वे (अनगार) संसार के भय से उद्विग्न एवं चिन्तित थे। यह संसार एक समुद्र है। जन्म, वृद्धावस्था तथा मृत्यु द्वारा जनित घोर दुःख रूप प्रक्षुभित प्रचुर जल से भरा है। उस जलमें संयोग – वियोग रूपमें लहरें उत्पन्न हो रही हैं। चिन्तापूर्ण प्रसंगोंसे वे लहरें दूर – दूर तक फैलती जा रही हैं। वध तथा बन्धन रूप विशाल, विपुल कल्लोलें उठ रही हैं, जो करुण विलपित तथा लोभकी कलकल करती तीव्र ध्वनि युक्त हैं। जल का ऊपरी भाग तिरस्कार रूप जागों से ढ़ँका है। तीव्र निन्दा, निरन्तर अनुभूत रोग – वेदना, औरों से प्राप्त होता अपमान, विनिपात, कटु वचन द्वारा निर्भर्त्सना, तत्प्रतिबद्ध ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के कठोर उदय की टक्कर से उठती हुई तरंगों से वह परिव्याप्त है। नित्य मृत्यु – भय रूप है। यह संसार रूप समुद्र कषाय पाताल से परिव्याप्त है। इस में लाखों जन्मों में अर्जित पापमय जल संचित है। अपरिमित ईच्छाओं से म्लान बनी बुद्धि रूपी वायु के वेग से ऊपर उछलते सघन जल – कणों के कारण अंधकारयुक्त तथा आशा, पिपासा द्वारा उजले झागों की तरह वह धवल है। संसार – सागर में मोह के रूप में बड़े – बड़े आवर्त हैं। उनमें भोग रूप भंवर हैं। अत एव दुःखरूप जल भ्रमण करता हुआ, चपल होता हुआ, ऊपर उछलता हुआ, नीचे गिरता हुआ विद्यमान है। अपने में स्थित प्रमाद – रूप प्रचण्ड, अत्यन्त दुष्ट, नीचे गिरते हुए, बुरी तरह चीखते – चिल्लाते हुए क्षुद्र जीव – समूहों से यह (समुद्र) व्याप्त है। वही मानो उसका भयावह घोष या गर्जन है। अज्ञान ही भव – सागर में घूमते हुए मत्स्यों रूप में है। अनुपशान्त इन्द्रिय – समूह उसमें बड़े – बड़े मगरमच्छ हैं, जिनके त्वरापूर्वक चलते रहने से जल, क्षुब्ध हो रहा है, नृत्य सा कर रहा है, चपलता – चंचलतापूर्वक चल रहा है, घूम रहा है। यह संसार रूप सागर अरति, भय, विषाद, शोक तथा मिथ्यात्व रूप पर्वतों से संकुल है। यह अनादि काल से चले आ रहे कर्म – बंधन, तत्प्रसूत क्लेश रूप कर्दम के कारण अत्यन्त दुस्तर है। यह देव – गति, मनुष्य – गति, तिर्यक् – गति तथा नरक – गति में गमनरूप कुटिल परिवर्त है, विपुल ज्वार रहित है। चार गतियों के रूपमें इसके चार अन्त हैं। यह विशाल, अनन्त, रौद्र तथा भयानक दिखाई देनेवाला है। इस संसार – सागर को वे शीलसम्पन्न अनगार संयमरूप जहाज द्वारा शीघ्रतापूर्वक पार कर रहे थे। वह (संयम – पोत) धृति, सहिष्णुता रूप रज्जू से बँधा होने के कारण निष्प्रकम्प था। संवर तथा वैराग्य रूप उच्च कूपक था। उस जहाज में ज्ञान रूप श्वेत वस्त्र का ऊंचा पाल तना हुआ था। विशुद्ध सम्यक्त्व रूप कर्णधार उसे प्राप्त था। वह प्रशस्त ध्यान तथा तप रूप वायु से अनुप्रेरित होता हुआ प्रधावित हो रहा था। उसमें उद्यम, व्यवसाय, तथा परखपूर्वक गृहीत निर्जरा, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन (चारित्र) तथा विशुद्ध व्रत रूप श्रेष्ठ माल भरा था। वीतराग प्रभु के वचनों द्वारा उपदिष्ट शुद्ध मार्ग से वे श्रमण रूप उत्तम सार्थवाह, सिद्धिरूप महापट्टन की ओर बढ़े जा रहे थे। वे सम्यक् श्रुत, उत्तम संभाषण, प्रश्न तथा उत्तम आकांक्षा – वे अनगार ग्रामों में एक – एक रात तथा नगरों में पाँच – पाँच रात रहते हुए जितेन्द्रिय, निर्भय, गतभय, सचित्त, अचित्त, मिश्रित, द्रव्यों में वैराग्ययुक्त, संयत, विरत, अनुरागशील, मुक्त, लघुक, निरवकांक्ष, साधु, एवं निभृत होकर धर्म आराधना करते थे | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa bahave anagara bhagavamto– appegaiya ayaradhara appegaiya suyagadadhara appegaiya thanadhara appegaiya samavayadhara appegaiya vivahapannattidhara appegaiya nayadhammakahadhara appegaiya uvasagadasadhara appegaiya amtagadadasa-dhara appegaiya anuttarovavaiyadasadhara appegaiya panhavagaranadasadhara appegaiya vivagasuyadhara,.. ..Appegaiya vayamti appegaiya padipuchchhamti appegaiya pariyattamti appegaiya anuppehamti, appegaiya akkhevanio vikkhevanio samveyanio nivveyanio chauvvihao kahao kahamti, appegaiya uddhamjanu ahosira jhanakotthovagaya–samjamenam tavasa appanam bhavemana viharamti. Samsarabhauvvigga jammana jara marana karana gambhira dukkha pakkhubhiya paura salilam samjoga vioga vichi chimta pasamga pasariya vaha bamdha mahalla viula kallola kalana vilaviya lobha kalakalemta bolabahulam avamanana phena tivvakhimsana pulampulappabhuya rogaveyana paribhava vinivaya pharusadharisana samavadiya kadhinakammapatthara taramga ramgamta nichchamachchubhaya toyapattham kasaya payala samkulam bhavasaya-sahassa kalusajala samchayam paibhayam aparimiyamahichchha kalusamaivauvega uddhammamanadagarayarayamdhakara varaphena paura asapivasa dhavalam mohamahavatta bhogabhamamana guppamanuchchhalamta pachchonivayamtapaniya pamayachamdabahudutthasavaya samahayuddhayamana pabbhara ghorakamdiya maharava ravamta bheravaravam annanabhamamtamachchha parihattha anihutimdiyamahamagara turiya chariya khokhubbhamana nachchamta chavala chamchala chalamta dhummamta jala samuham arai bhaya visayasoga michchhatta selasamkadam anaisamtana kammabamdhanakilesachikkhalla suduttaram amara-nara-tiriya-nirayagai gamanakudilapariyatta viula velam chauramtamahamtamanavayaggam rumdam samsarasagaram bhimadarisanijjam taramti dhii dhaniya nippakampena turiyachavalam samvara veragga tumga kuvaya susampauttenam nana siya vimalamusienam sammatta visuddha laddha nijjamaenam dhira samjamapoena sila kaliya pasattha-jjhana tavavaya panolliya pahavienam ujjama vavasaya gahiya nijjarana jayana uvaoga nana damsanavisuddhavayabhamda bhariyasara jinavaravayanovaditthamaggena akudilena siddhi mahapattanabhimuha samanavarasatthavaha susui susambhasa supanhasasa game-game egarayam nagare nagare pamcharayam duijjamta jiimdiya nibbhaya gayabhaya sachittachittamisaesu davvesu viragayam gaya samjaya virata mutta lahuya niravakamkha sahu nihuya charamti dhammam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala, usa samaya – jaba bhagavana mahavira champa mem padhare, unake satha unake aneka antevasi anagara the. Unake kaim eka achara yavat vipakashruta ke dharaka the. Ve vahim bhinna – bhinna sthanom para eka – eka samuha ke rupa mem, samuha ke eka – eka bhaga ke rupa mem tatha phutakara rupa mem vibhakta hokara avasthita the. Unamem kaim agamom ki vachana dete the. Kaim pratiprichchha karate the. Kaim adhita patha ki parivartana karate the. Kaim anupreksha karate the. Unamem kaim akshepani, vikshepani, samvegani, tatha nirvedani, yom aneka prakara ki dharma – kathaem kahate the. Unamem kaim apane donom ghutanom ko umcha uthaye, mastaka ko nicha kiye – dhyanarupa koshtha mem pravishta the. Isa prakara ve anagara samyama tatha tapa se atma ko bhavita karate hue apani jivana – yatra chala rahe the. Ve (anagara) samsara ke bhaya se udvigna evam chintita the. Yaha samsara eka samudra hai. Janma, vriddhavastha tatha mrityu dvara janita ghora duhkha rupa prakshubhita prachura jala se bhara hai. Usa jalamem samyoga – viyoga rupamem laharem utpanna ho rahi haim. Chintapurna prasamgomse ve laharem dura – dura taka phailati ja rahi haim. Vadha tatha bandhana rupa vishala, vipula kallolem utha rahi haim, jo karuna vilapita tatha lobhaki kalakala karati tivra dhvani yukta haim. Jala ka upari bhaga tiraskara rupa jagom se rhamka hai. Tivra ninda, nirantara anubhuta roga – vedana, aurom se prapta hota apamana, vinipata, katu vachana dvara nirbhartsana, tatpratibaddha jnyanavaraniya adi karmom ke kathora udaya ki takkara se uthati hui taramgom se vaha parivyapta hai. Nitya mrityu – bhaya rupa hai. Yaha samsara rupa samudra kashaya patala se parivyapta hai. Isa mem lakhom janmom mem arjita papamaya jala samchita hai. Aparimita ichchhaom se mlana bani buddhi rupi vayu ke vega se upara uchhalate saghana jala – kanom ke karana amdhakarayukta tatha asha, pipasa dvara ujale jhagom ki taraha vaha dhavala hai. Samsara – sagara mem moha ke rupa mem bare – bare avarta haim. Unamem bhoga rupa bhamvara haim. Ata eva duhkharupa jala bhramana karata hua, chapala hota hua, upara uchhalata hua, niche girata hua vidyamana hai. Apane mem sthita pramada – rupa prachanda, atyanta dushta, niche girate hue, buri taraha chikhate – chillate hue kshudra jiva – samuhom se yaha (samudra) vyapta hai. Vahi mano usaka bhayavaha ghosha ya garjana hai. Ajnyana hi bhava – sagara mem ghumate hue matsyom rupa mem hai. Anupashanta indriya – samuha usamem bare – bare magaramachchha haim, jinake tvarapurvaka chalate rahane se jala, kshubdha ho raha hai, nritya sa kara raha hai, chapalata – chamchalatapurvaka chala raha hai, ghuma raha hai. Yaha samsara rupa sagara arati, bhaya, vishada, shoka tatha mithyatva rupa parvatom se samkula hai. Yaha anadi kala se chale a rahe karma – bamdhana, tatprasuta klesha rupa kardama ke karana atyanta dustara hai. Yaha deva – gati, manushya – gati, tiryak – gati tatha naraka – gati mem gamanarupa kutila parivarta hai, vipula jvara rahita hai. Chara gatiyom ke rupamem isake chara anta haim. Yaha vishala, ananta, raudra tatha bhayanaka dikhai denevala hai. Isa samsara – sagara ko ve shilasampanna anagara samyamarupa jahaja dvara shighratapurvaka para kara rahe the. Vaha (samyama – pota) dhriti, sahishnuta rupa rajju se bamdha hone ke karana nishprakampa tha. Samvara tatha vairagya rupa uchcha kupaka tha. Usa jahaja mem jnyana rupa shveta vastra ka umcha pala tana hua tha. Vishuddha samyaktva rupa karnadhara use prapta tha. Vaha prashasta dhyana tatha tapa rupa vayu se anuprerita hota hua pradhavita ho raha tha. Usamem udyama, vyavasaya, tatha parakhapurvaka grihita nirjara, yatana, upayoga, jnyana, darshana (charitra) tatha vishuddha vrata rupa shreshtha mala bhara tha. Vitaraga prabhu ke vachanom dvara upadishta shuddha marga se ve shramana rupa uttama sarthavaha, siddhirupa mahapattana ki ora barhe ja rahe the. Ve samyak shruta, uttama sambhashana, prashna tatha uttama akamksha – ve anagara gramom mem eka – eka rata tatha nagarom mem pamcha – pamcha rata rahate hue jitendriya, nirbhaya, gatabhaya, sachitta, achitta, mishrita, dravyom mem vairagyayukta, samyata, virata, anuragashila, mukta, laghuka, niravakamksha, sadhu, evam nibhrita hokara dharma aradhana karate the |