Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005620
Scripture Name( English ): Auppatik Translated Scripture Name : औपपातिक उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवसरण वर्णन

Translated Chapter :

समवसरण वर्णन

Section : Translated Section :
Sutra Number : 20 Category : Upang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो। से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते। से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए। से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। से तं नाणविनए। से किं तं दंसणविनए? दंसणविनए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुस्सूसणाविनए य अनच्चासा-यणाविनए य। से किं तं सुस्सूसणाविनए? सुस्सूसणाविनए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–अब्भुट्ठाणेइ वा, आसनाभिग्गहेइ वा, आसणप्पयाणंति वा, सक्कारेइ वा, सम्माणेइ वा, किइकम्मेइ वा, अंजलि-प्पग्गहेइ वा, एतस्स अभिच्छणया, ठियस्स पज्जुवासणया, गच्छंतस्स पडिसंसाहणया। से तं सुस्सूसणाविनए। से किं तं अनच्चासायणाविनए? अनच्चासायणाविनए पणयालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा–अरहंताणं अनच्चासायणा अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स अनच्चासायणा आयरियाणं अनच्चासायणा एवं उवज्झायाणं थेराणं कुस्स गणस्स संघस्स किरियाणं संभोगस्स आभिनिबोहियनाणस्स सुयनाणस्स ओहिनाणस्स मनपज्जवनाणस्स केवलनाणस्स, एएसिं चेव भत्ति बहुमानेणं, एएसिं चेव वण्णसंजलणया। से तं अनच्चासायणाविनए। से तं दंसणविनए। से किं तं चरित्तविनए? चरित्तविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा– सामाइयचरित्तविनए छेदोवट्ठावणियचरित्तविनए परिहारविसुद्धिचरित्तविनए सुहुमसंपरायचरित्तविनए अहक्खायचरित्त-विनए। से तं चरित्तविनए। से किं तं मनविनए? मनविनए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पसत्थमनविनए अपसत्थमनविनए। से किं तं अपसत्थमनविनए? अपसत्थमनविनए जे य मने सावज्जे सकिरिए सकक्कसे कडुए निट्ठुरे फरुसे अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे परितावणकरे उद्दवणकरे भूओवघाइए तहप्पगारं मनो नो पहारेज्जा। से तं अपसत्थमनविनए। से किं तं पसत्थमनविनए? पसत्थमनविनए जे य मणे असावज्जे अकिरिए अकक्कसे अकडुए अनिट्ठुरे अफरुसे अणण्हयकरे अछेयकरे अभेयकरे अपरितावणकरे अनुद्दवणकरे अभूओवघाइए तहप्पगारं मणो पहारेज्जा। से तं पसत्थमनविनए। से तं मनविनए। से किं तं वइविनए? वइविनए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पसत्थवइविनए अपसत्थवइविनए। से किं तं अपसत्थवइविनए? अपसत्थवइविनए जा य वई सावज्जा सकिरिया सकक्कसा कडुया निट्ठुरा फरुसा अण्हयकरी छेयकरी भेयकरी परितावणकरी उद्दवणकरी भूओवघाइया तहप्पगारं वइं नो पहारेज्जा। से तं अपसत्थवइविनए। से किं तं पसत्थवइविनए? पसत्थवइविनए जा य वई असावज्जा अकिरिया अकक्कसा अकडुया अनिट्ठुरा अफरुसा अणण्हयकरी अछेयकरी अभेयकरी अपरितावणकरी अनुद्दवणकरी अभूओवघाइया तहप्पगारं वइं पहारेज्जा। से तं पसत्थवइविनए। से तं वइविनए। से किं तं कायविनए? कायविनए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– पसत्थकायविनए अपसत्थ-कायविनए। से किं तं अपसत्थकायविनए? अपसत्थकायविनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनाउत्तं गमने अनाउत्तं ठाणे अनाउत्तं निसीदणे अनाउत्तं तुयट्टणे अनाउत्तं उल्लंघणे अनाउत्तं पल्लंघणे अनाउत्तं सव्विंदियकायजोगजुंजणया। से तं अपसत्थकायविनए। से किं तं पसत्थकायविनए? पसत्थकायविनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–आउत्तं गमणे आउत्तं ठाणे आउत्तं निसीदणे आउत्तं तुयट्टणे आउत्तं उल्लंघणे आउत्तं पल्लंघणे आउत्तं सव्विंदिय-कायजोगजुंजणया। से तं पसत्थकायविनए। से तं कायविनए से किं तं लोगोवयारविनए? लोगोवयारविनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–अब्भासवत्तियं परच्छंदाणुवत्तियं कज्जहेउं कयपडिकिरिया अत्तगवेसणया देसकालण्णुया सव्वत्थेसु अप्पडि-लोमया। से तं लोगोवयारविनए। से तं विनए। से किं तं वेयावच्चे? वेयावच्चे दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयरियवेयावच्चे उवज्झायवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे तवस्सियवेयावच्चे थेरवेयावच्चे साहम्मियवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे संघवेयावच्चे। से तं वेयावच्चे। से किं तं सज्झाए? सज्झाए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वायणा पडिपुच्छणा परियट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा। से तं सज्झाए। से किं तं झाणे? झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अट्टे झाणे रुद्दे झाणे धम्मे झाणे सुक्के झाणे। अट्टे झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अमणुण्ण संपओग संपउत्ते तस्स विप्पओग सतिसमण्णागए यावि भवइ, मणुण्ण संपओग संपउत्ते तस्स अविप्पओग सतिसमन्नागए यावि भवइ, आयंक संपओग संपउत्ते तस्स विप्पओग सतिसमन्नागए यावि भवइ, परिजुसिय कामभोग संपओग संपउत्ते तस्स अविप्पओग सतिसमन्नागए यावि भवइ। अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–कंदणया सोयणया तिप्पणया विलवणया। रुद्दे झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–हिंसाणुबंधी मोसाणुबंधी तेयाणुबंधी सारक्खणाणुबंधी। रुद्दस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–ओसन्नदोसे बहुदोसे अन्नाणदोसे आमरणंतदोसे। धम्मे झाणे चउव्विहे चउप्पडोयारे पन्नत्ते, तं जहा–आणाविजए अवायविजए विवागविजए संठाणविजए। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–आणारुई णिसग्गरुई उवएसरुई सुत्तरुई। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पन्नत्ता, तं जहा–वायणा पुच्छणा परियट्टणा धम्मकहा। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अनुप्पेहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–अनिच्चानुप्पेहा असरणानुप्पेहा एगत्तानुप्पेहा संसारानुप्पेहा सुक्के झाणे चउव्विहे चउप्पडोयारे पन्नत्ते, तं जहा–पुहत्तवियक्के सवियारी एगत्तवियक्के अवियारी सुहुमकिरिए अप्पडिवाई समुच्छिण्णकिरिए अनियट्टी। सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–विवेगे विउसग्गे अव्वहे असम्मोहे। सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पन्नत्ता, तं जहा–खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे। सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–अवायानुप्पेहा असुभानुप्पेहा अनंतवत्तियानुप्पेहा विपरिणामानुप्पेहा। से तं झाणे। से किं तं विउस्सग्गे? विउस्सग्गे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वविउस्सग्गे य भावविउस्सग्गे य। से किं तं दव्वविउस्सग्गे? दव्वविउस्सग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सरीर विउस्सग्गे गणविउस्सग्गे उवहिविउस्सग्गे भत्तपाणविउस्सग्गे। से किं तं भावविउस्सग्गे? भावविउस्सग्गे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–कसायविउस्सग्गे संसार-विउस्सग्गे कम्मविउस्सग्गे। से किं तं कसायविउस्सग्गे? कसायविउस्सग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहकसायविउस्सग्गे मानकसायविउस्सग्गे मायाकसायविउस्सग्गे लोहकसायविउस्सग्गे। से तं कसायविउस्सग्गे। से किं तं संसारविउस्सग्गे? संसारविउस्सग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइय संसारविउस्सग्गे तिरियसंसारविउस्सग्गे मनुय संसारविउस्सग्गे देवसंसारविउस्सग्गे। से तं संसारविउस्सग्गे। से किं तं कम्मविउस्सग्गे? कम्मविउस्सग्गे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणावरणिज्जकम्म-विउस्सग्गे दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे वेयणीयकम्मविउस्सग्गे मोहणीयकम्मविउस्सग्गे आउयकम्मविउस्सग्गे गोयकम्मविउस्सग्गे अंतरायकम्मविउस्सग्गे। से तं कम्मविउस्सग्गे। से तं भावविउस्सग्गे। [से तं अब्भिंतरए तवे ]।
Sutra Meaning : आभ्यन्तर तप क्या है ? आभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया है – १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. व्युत्सर्ग। प्रायश्चित्त क्या है ? प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है – १. आलोचनार्ह, २. प्रतिक्रमणार्ह, ३. तदुभयार्ह, ४. विवेकार्ह, ५. व्युत्सर्गार्ह, ६. तपोऽर्ह, ७. छेदार्ह, ८. मूलार्ह, ९. अनवस्थाप्यार्ह, १०. पाराञ्चिकार्ह। विनय क्या है ? सात प्रकार का है – ज्ञान – विनय, दर्शन – विनय, चारित्र – विनय, मनोविनय, वचन – विनय, काय – विनय, लोकोपचार – विनय। ज्ञान – विनय क्या है ? पाँच भेद हैं – आभिनिबोधिक ज्ञान विनय, श्रुतज्ञान – विनय, अवधिज्ञान – विनय, मनःपर्यवज्ञान – विनय, केवलज्ञान – विनय। दर्शन – विनय क्या है ? दो प्रकार का शुश्रूषा – विनय, अनत्याशातना – विनय। शुश्रूषा – विनय क्या है ? अनेक प्रकार का है – अभ्युत्थान, आसनाभिग्रह, आसन – प्रदान, गुरुजनों का सत्कार करना, सम्मान करना, यथाविधि वन्दन – प्रणमन करना, कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ जोड़ना, आते हुए गुरुजनों के सामने जाना, बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना, उनकी सेवा करना, जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने जाना। यह शुश्रूषा – विनय है। अनत्याशातना – विनय क्या है ? पैंतालीस भेद हैं – १. अर्हंतों की, २. अर्हत्‌ – प्रज्ञप्त धर्म की, ३. आचार्यों की, ४. उपाध्यायों की, ५. स्थविरों, ६. कुल, ७. गण, ८. संघ, ९. क्रियावान्‌ की, १०. सांभोगिक – श्रमण की, ११. मति – ज्ञान की, १२. श्रुत – ज्ञान की, १३. अवधि – ज्ञान, १४. मनःपर्यव – ज्ञान की तथा १५. केवल – ज्ञान की आशातना नहीं करना। इन पन्द्रह की भक्ति, उपासना, बहुमान, गुणों के प्रति तीव्र भावानुरागरूप १५ भेद तथा इनकी यशस्विता, प्रशस्ति एवं गुणकीर्तन रूप और १५ भेद – यों अनत्याशातना – विनय के कुल ४५ भेद होते हैं। चारित्रविनय क्या है ? पाँच प्रकार का है – सामायिकचारित्र विनय, छेदोपस्थापनीयचारित्र – विनय, परिहार – विशुद्धिचारित्र – विनय, सूक्ष्मसंपरायचारित्र – विनय, यथाख्यातचारित्र – विनय। यह चारित्र – विनय है। मनोविनय क्या है ? दो प्रकार का – १. प्रशस्त मनोविनय, २. अप्रशस्त मनोविनय। अप्रशस्त मनोविनय क्या है ? जो मन सावद्य, सक्रिय, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, परुष, सूखा, आस्रवकारी, छेदकर, भेदकर, परितापनकर, उपद्रवणकर, भूतोपघातिक है, वह अप्रशस्त मन है। वैसी मनःस्थिति लिये रहना अप्रशस्त मनोविनय है। प्रशस्त मनोविनय किसे कहते हैं ? जैसे अप्रशस्त मनोविनय का विवेचन किया गया है, उसी के आधार पर प्रशस्त मनो – विनय को समझना चाहिए। अर्थात्‌ प्रशस्त मन, अप्रशस्त मन से विपरीत होता है। वचन – विनय को भी इन्हीं पदों से समझना चाहिए। अर्थात्‌ अप्रशस्त – वचन – विनय तथा प्रशस्त – वचन – विनय। कायविनय क्या है ? काय – विनय दो प्रकार का बतलाया गया है – १. प्रशस्त कायविनय, २. अप्रशस्त काय – विनय। अप्रशस्त कायविनय क्या है ? सात भेद हैं – १. अनायुक्त गमन, २. अनायुक्त स्थान, ३. अनायुक्त निषीदन, ४. अनायुक्त त्वग्वर्तन, ५. अनायुक्त उल्लंघन, ६. अनायुक्त प्रलंघन, ७. अनायुक्त सर्वेन्द्रियकाययोग – योजनता यह अप्रशस्त काय – विनय है। प्रशस्त कायविनय क्या है ? प्रशस्त कायविनय को अप्रशस्त कायविनय की तरह समझ लेना चाहिए। यह प्रशस्त कायविनय है। इस प्रकार यह कायविनय का विवेचन है। लोकोपचार – विनय क्या है ? लोकोपचार विनय के सात भेद हैं – १. अभ्यासवर्तिता, २. परच्छन्दानुवर्तिता, ३. कायहेतु, ४. कृत – प्रतिक्रिया, ५. आर्त – गवेषणता, ६. देशकालज्ञता, ७. सर्वार्थाप्रतिलोमता – यह लोकोपचार – विनय हैं। इस प्रकार यह विनय का विवेचन है। वैयावृत्य क्या है ? वैयावृत्य के दस भेद हैं – १. आचार्य का वैयावृत्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्य, ३. शैक्ष – नवदीक्षित श्रमण का वैयावृत्य, ४. ग्लान – रुग्णता आदि से पीड़ित का वैयावृत्य, ५. तपस्वी – तेला आदि तप – निरत का वैयावृत्य, ६. स्थविर – वय, श्रुत और दीक्षा – पर्याय में ज्येष्ठ का वैयावृत्य, ७. साधर्मिक का वैयावृत्य, ८. कुल का वैयावृत्य, ९. गण का वैयावृत्य, १०. संघ का वैयावृत्य। स्वाध्याय क्या है ? पाँच प्रकार का है – १. वाचना, २. प्रतिपृच्छना, ३. परिवर्तना, ४. अनुप्रेक्षा, ५. धर्मकथा। यह स्वाध्याय का स्वरूप है। ध्यान क्या है ? ध्यान के चार भेद हैं – १. आर्त ध्यान, २. रौद्र ध्यान, ३. धर्म ध्यान और ४. शुक्ल ध्यान। आर्त्तध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है – १. मन को प्रिय नहीं लगने वाले विषय, स्थितियाँ आने पर उनके वियोग के सम्बन्ध में आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। २. मन को प्रिय लगने वाले विषयों के प्राप्त होने पर उनके अवियोग का आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। ३. रोग हो जाने पर उनके मिटने के सम्बन्ध में आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। ४. पूर्व – सेवित काम – भोग प्राप्त होने पर, फिर कभी उनका वियोग न हो, यों आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। आर्त्तध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं – १. क्रन्दनता, २. शोचनता, ३. तेपनता, ४. विलपनता। रौद्रध्यान चार प्रकार का है, इस प्रकार है – १. हिंसानुबन्धी, २. मृषानुबन्धी, ३. स्तैन्यानुबन्धी, ४. संरक्षणा नुबन्धी, रौद्र ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं – १. उत्सन्नदोष, २. बहुदोष, ३. अज्ञानदोष, ४. आमरणान्त – दोष धर्म ध्यान स्वरूप, लक्षण, आलम्बन तथा अनुप्रेक्षा भेद से चार प्रकार का कहा गया है। प्रत्येक के चार – चार भेद हैं। स्वरूप की दृष्टि से धर्म – ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं – १. आज्ञा – विचय, २. अपाय – विचय, ३. विपाक – विचय, ४. संस्थान – विचय, धर्म – ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं। वे इस प्रकार हैं – १. आज्ञा – रुचि, २. निसर्ग – रुचि, ३. उपदेश – रुचि, ४. सूत्र – रुचि, धर्म – ध्यान के चार आलम्बन कहे गये हैं – १. वाचना, २. पृच्छना, ३. परिवर्तना, ४. धर्म – कथा। धर्म – ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं – बतलाई गई हैं। १. अनित्यानुप्रेक्षा, २. अशरणानुप्रेक्षा, ३. एकत्वानुप्रेक्षा, ४. संसारानुप्रेक्षा। शुक्ल ध्यान स्वरूप, लक्षण, आलम्बन तथा अनुप्रेक्षा के भेद से चार प्रकार का कहा गया है। इनमें से प्रत्येक के चार – चार भेद हैं। स्वरूप की दृष्टि से शुक्ल ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं – (१) पृथक्त्व – वितर्क – सविचार, (२) एवत्व – वितर्क – अविचार, सूक्ष्मक्रिय – अप्रतिपाति समुच्छिन्नक्रिय – अनिवृत्ति – शुक्ल ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं – १. विवेक, २. व्युत्सर्ग, ३. अव्यथा, ४. असंमोह। १. क्षान्ति, २. मुक्ति, ३.आर्जव, ४. मार्दव, शुक्ल ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं। १. अपायानुप्रेक्षा, २. अशुभानुप्रेक्षा, ३.अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा, ४. विपरिणामानुप्रेक्षा। व्युत्सर्ग क्या है – दो भेद हैं – १. द्रव्य – व्युत्सर्ग, २. भाव – व्युत्सर्ग, द्रव्य – व्युत्सर्ग क्या है – द्रव्य – व्युत्सर्ग के चार भेद हैं। १. शरीर – व्युत्सर्ग, २. गण – व्युत्सर्ग, ३. उपधि – व्युत्सर्ग, ४. भक्त – पान – व्युत्सर्ग। भाव – व्युत्सर्ग क्या है ? भाव – व्युत्सर्ग के तीन भेद कहे गये हैं – १. कषाय – व्युत्सर्ग, २. संसार – व्युत्सर्ग, ३. कर्म – व्युत्सर्ग। कषाय – व्युत्सर्ग क्या है ? कषाय – व्युतसर्ग के चार भेद हैं, १. क्रोध – व्युत्सर्ग, २. मान – व्युत्सर्ग, ३. माया – व्युत्सर्ग, ४. लोभ – व्युत्सर्ग। यह कषाय – व्युत्सर्ग का विवेचन है। संसारव्युत्सर्ग क्या है ? संसारव्युत्सर्ग चार प्रकार का है। १. नैरयिक – संसारव्युत्सर्ग २. तिर्यक्‌ – संसारव्युत्सर्ग, ३. मनुज – संसारव्युत्सर्ग, ४. देवसंसार – व्युत्सर्ग। यह संसार – व्युत्सर्ग का वर्णन है। कर्म – व्युत्सर्ग क्या है ? कर्म – व्युत्सर्ग आठ प्रकार का है। वह इस प्रकार है – १. ज्ञानावरणीय – कर्म – व्युत्सर्ग, २. दर्शना – वरणीय – कर्म – व्युत्सर्ग, ३. वेदनीय – कर्म – व्युत्सर्ग, ४. मोहनीय – कर्म – व्युत्सर्ग, ५. आयुष्य – कर्म – व्युत्सर्ग, ६. नाम – कर्म – व्युत्सर्ग, ७. गोत्र – कर्म – व्युत्सर्ग, ८. अन्तराय – कर्म – व्युत्सर्ग। यह कर्म – व्युत्सर्ग है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam abbhimtarae tave? Abbhimtarae tave chhavvihe pannatte, tam jaha–payachchhittam vinao veyavachcham sajjhao jjhanam viussaggo. Se kim tam payachchhitte? Payachchhitte dasavihe pannatte, tam jaha–aloyanarihe padikkamanarihe tadubhayarihe vivegarihe viussaggarihe tavarihe chhedarihe mularihe anavatthapparihe paramchiyarihe. Se tam payachchhitte. Se kim tam vinae? Vinae sattavihe pannatte, tam jaha–nanavinae damsanavinae charittavinae manavinae vaivinae kayavinae logovayaravinae. Se kim tam nanavinae? Nanavinae pamchavihe pannatte, tam jaha–abhinibohiyananavinae suyananavinae ohinanavinae manapajjavananavinae kevalananavinae. Se tam nanavinae. Se kim tam damsanavinae? Damsanavinae duvihe pannatte, tam jaha–sussusanavinae ya anachchasa-yanavinae ya. Se kim tam sussusanavinae? Sussusanavinae anegavihe pannatte, tam jaha–abbhutthanei va, asanabhiggahei va, asanappayanamti va, sakkarei va, sammanei va, kiikammei va, amjali-ppaggahei va, etassa abhichchhanaya, thiyassa pajjuvasanaya, gachchhamtassa padisamsahanaya. Se tam sussusanavinae. Se kim tam anachchasayanavinae? Anachchasayanavinae panayalisavihe pannatte, tam jaha–arahamtanam anachchasayana arahamtapannattassa dhammassa anachchasayana ayariyanam anachchasayana evam uvajjhayanam theranam kussa ganassa samghassa kiriyanam sambhogassa abhinibohiyananassa suyananassa ohinanassa manapajjavananassa kevalananassa, eesim cheva bhatti bahumanenam, eesim cheva vannasamjalanaya. Se tam anachchasayanavinae. Se tam damsanavinae. Se kim tam charittavinae? Charittavinae pamchavihe pannatte, tam jaha– samaiyacharittavinae chhedovatthavaniyacharittavinae pariharavisuddhicharittavinae suhumasamparayacharittavinae ahakkhayacharitta-vinae. Se tam charittavinae. Se kim tam manavinae? Manavinae duvihe pannatte, tam jaha–pasatthamanavinae apasatthamanavinae. Se kim tam apasatthamanavinae? Apasatthamanavinae je ya mane savajje sakirie sakakkase kadue nitthure pharuse anhayakare chheyakare bheyakare paritavanakare uddavanakare bhuovaghaie tahappagaram mano no paharejja. Se tam apasatthamanavinae. Se kim tam pasatthamanavinae? Pasatthamanavinae je ya mane asavajje akirie akakkase akadue anitthure apharuse ananhayakare achheyakare abheyakare aparitavanakare anuddavanakare abhuovaghaie tahappagaram mano paharejja. Se tam pasatthamanavinae. Se tam manavinae. Se kim tam vaivinae? Vaivinae duvihe pannatte, tam jaha–pasatthavaivinae apasatthavaivinae. Se kim tam apasatthavaivinae? Apasatthavaivinae ja ya vai savajja sakiriya sakakkasa kaduya nitthura pharusa anhayakari chheyakari bheyakari paritavanakari uddavanakari bhuovaghaiya tahappagaram vaim no paharejja. Se tam apasatthavaivinae. Se kim tam pasatthavaivinae? Pasatthavaivinae ja ya vai asavajja akiriya akakkasa akaduya anitthura apharusa ananhayakari achheyakari abheyakari aparitavanakari anuddavanakari abhuovaghaiya tahappagaram vaim paharejja. Se tam pasatthavaivinae. Se tam vaivinae. Se kim tam kayavinae? Kayavinae duvihe pannatte, tam jaha– pasatthakayavinae apasattha-kayavinae. Se kim tam apasatthakayavinae? Apasatthakayavinae sattavihe pannatte, tam jaha–anauttam gamane anauttam thane anauttam nisidane anauttam tuyattane anauttam ullamghane anauttam pallamghane anauttam savvimdiyakayajogajumjanaya. Se tam apasatthakayavinae. Se kim tam pasatthakayavinae? Pasatthakayavinae sattavihe pannatte, tam jaha–auttam gamane auttam thane auttam nisidane auttam tuyattane auttam ullamghane auttam pallamghane auttam savvimdiya-kayajogajumjanaya. Se tam pasatthakayavinae. Se tam kayavinae Se kim tam logovayaravinae? Logovayaravinae sattavihe pannatte, tam jaha–abbhasavattiyam parachchhamdanuvattiyam kajjaheum kayapadikiriya attagavesanaya desakalannuya savvatthesu appadi-lomaya. Se tam logovayaravinae. Se tam vinae. Se kim tam veyavachche? Veyavachche dasavihe pannatte, tam jaha–ayariyaveyavachche uvajjhayaveyavachche sehaveyavachche gilanaveyavachche tavassiyaveyavachche theraveyavachche sahammiyaveyavachche kulaveyavachche ganaveyavachche samghaveyavachche. Se tam veyavachche. Se kim tam sajjhae? Sajjhae pamchavihe pannatte, tam jaha–vayana padipuchchhana pariyattana anuppeha dhammakaha. Se tam sajjhae. Se kim tam jhane? Jhane chauvvihe pannatte, tam jaha–atte jhane rudde jhane dhamme jhane sukke jhane. Atte jhane chauvvihe pannatte, tam jaha–amanunna sampaoga sampautte tassa vippaoga satisamannagae yavi bhavai, manunna sampaoga sampautte tassa avippaoga satisamannagae yavi bhavai, ayamka sampaoga sampautte tassa vippaoga satisamannagae yavi bhavai, parijusiya kamabhoga sampaoga sampautte tassa avippaoga satisamannagae yavi bhavai. Attassa nam jhanassa chattari lakkhana pannatta, tam jaha–kamdanaya soyanaya tippanaya vilavanaya. Rudde jhane chauvvihe pannatte, tam jaha–himsanubamdhi mosanubamdhi teyanubamdhi sarakkhananubamdhi. Ruddassa nam jhanassa chattari lakkhana pannatta, tam jaha–osannadose bahudose annanadose amaranamtadose. Dhamme jhane chauvvihe chauppadoyare pannatte, tam jaha–anavijae avayavijae vivagavijae samthanavijae. Dhammassa nam jhanassa chattari lakkhana pannatta, tam jaha–anarui nisaggarui uvaesarui suttarui. Dhammassa nam jhanassa chattari alambana pannatta, tam jaha–vayana puchchhana pariyattana dhammakaha. Dhammassa nam jhanassa chattari anuppehao pannattao, tam jaha–anichchanuppeha asarananuppeha egattanuppeha samsaranuppeha Sukke jhane chauvvihe chauppadoyare pannatte, tam jaha–puhattaviyakke saviyari egattaviyakke aviyari suhumakirie appadivai samuchchhinnakirie aniyatti. Sukkassa nam jhanassa chattari lakkhana pannatta, tam jaha–vivege viusagge avvahe asammohe. Sukkassa nam jhanassa chattari alambana pannatta, tam jaha–khamti mutti ajjave maddave. Sukkassa nam jhanassa chattari anuppehao pannattao, tam jaha–avayanuppeha asubhanuppeha anamtavattiyanuppeha viparinamanuppeha. Se tam jhane. Se kim tam viussagge? Viussagge duvihe pannatte, tam jaha–davvaviussagge ya bhavaviussagge ya. Se kim tam davvaviussagge? Davvaviussagge chauvvihe pannatte, tam jaha–sarira viussagge ganaviussagge uvahiviussagge bhattapanaviussagge. Se kim tam bhavaviussagge? Bhavaviussagge tivihe pannatte, tam jaha–kasayaviussagge samsara-viussagge kammaviussagge. Se kim tam kasayaviussagge? Kasayaviussagge chauvvihe pannatte, tam jaha–kohakasayaviussagge manakasayaviussagge mayakasayaviussagge lohakasayaviussagge. Se tam kasayaviussagge. Se kim tam samsaraviussagge? Samsaraviussagge chauvvihe pannatte, tam jaha–neraiya samsaraviussagge tiriyasamsaraviussagge manuya samsaraviussagge devasamsaraviussagge. Se tam samsaraviussagge. Se kim tam kammaviussagge? Kammaviussagge atthavihe pannatte, tam jaha–nanavaranijjakamma-viussagge darisanavaranijjakammaviussagge veyaniyakammaviussagge mohaniyakammaviussagge auyakammaviussagge goyakammaviussagge amtarayakammaviussagge. Se tam kammaviussagge. Se tam bhavaviussagge. [se tam abbhimtarae tave ].
Sutra Meaning Transliteration : Abhyantara tapa kya hai\? Abhyantara tapa chhaha prakara ka kaha gaya hai – 1. Prayashchitta, 2. Vinaya, 3. Vaiyavritya, 4. Svadhyaya, 5. Dhyana tatha 6. Vyutsarga. Prayashchitta kya hai\? Prayashchitta dasa prakara ka kaha gaya hai – 1. Alochanarha, 2. Pratikramanarha, 3. Tadubhayarha, 4. Vivekarha, 5. Vyutsargarha, 6. Taporha, 7. Chhedarha, 8. Mularha, 9. Anavasthapyarha, 10. Paranchikarha. Vinaya kya hai\? Sata prakara ka hai – jnyana – vinaya, darshana – vinaya, charitra – vinaya, manovinaya, vachana – vinaya, kaya – vinaya, lokopachara – vinaya. Jnyana – vinaya kya hai\? Pamcha bheda haim – abhinibodhika jnyana vinaya, shrutajnyana – vinaya, avadhijnyana – vinaya, manahparyavajnyana – vinaya, kevalajnyana – vinaya. Darshana – vinaya kya hai\? Do prakara ka shushrusha – vinaya, anatyashatana – vinaya. Shushrusha – vinaya kya hai\? Aneka prakara ka hai – abhyutthana, asanabhigraha, asana – pradana, gurujanom ka satkara karana, sammana karana, yathavidhi vandana – pranamana karana, koi bata svikara ya asvikara karate samaya hatha jorana, ate hue gurujanom ke samane jana, baithe hue gurujanom ke samipa baithana, unaki seva karana, jate hue gurujanom ko pahumchane jana. Yaha shushrusha – vinaya hai. Anatyashatana – vinaya kya hai\? Paimtalisa bheda haim – 1. Arhamtom ki, 2. Arhat – prajnyapta dharma ki, 3. Acharyom ki, 4. Upadhyayom ki, 5. Sthavirom, 6. Kula, 7. Gana, 8. Samgha, 9. Kriyavan ki, 10. Sambhogika – shramana ki, 11. Mati – jnyana ki, 12. Shruta – jnyana ki, 13. Avadhi – jnyana, 14. Manahparyava – jnyana ki tatha 15. Kevala – jnyana ki ashatana nahim karana. Ina pandraha ki bhakti, upasana, bahumana, gunom ke prati tivra bhavanuragarupa 15 bheda tatha inaki yashasvita, prashasti evam gunakirtana rupa aura 15 bheda – yom anatyashatana – vinaya ke kula 45 bheda hote haim. Charitravinaya kya hai\? Pamcha prakara ka hai – samayikacharitra vinaya, chhedopasthapaniyacharitra – vinaya, parihara – vishuddhicharitra – vinaya, sukshmasamparayacharitra – vinaya, yathakhyatacharitra – vinaya. Yaha charitra – vinaya hai. Manovinaya kya hai\? Do prakara ka – 1. Prashasta manovinaya, 2. Aprashasta manovinaya. Aprashasta manovinaya kya hai\? Jo mana savadya, sakriya, karkasha, katuka, nishthura, parusha, sukha, asravakari, chhedakara, bhedakara, paritapanakara, upadravanakara, bhutopaghatika hai, vaha aprashasta mana hai. Vaisi manahsthiti liye rahana aprashasta manovinaya hai. Prashasta manovinaya kise kahate haim\? Jaise aprashasta manovinaya ka vivechana kiya gaya hai, usi ke adhara para prashasta mano – vinaya ko samajhana chahie. Arthat prashasta mana, aprashasta mana se viparita hota hai. Vachana – vinaya ko bhi inhim padom se samajhana chahie. Arthat aprashasta – vachana – vinaya tatha prashasta – vachana – vinaya. Kayavinaya kya hai\? Kaya – vinaya do prakara ka batalaya gaya hai – 1. Prashasta kayavinaya, 2. Aprashasta kaya – vinaya. Aprashasta kayavinaya kya hai\? Sata bheda haim – 1. Anayukta gamana, 2. Anayukta sthana, 3. Anayukta nishidana, 4. Anayukta tvagvartana, 5. Anayukta ullamghana, 6. Anayukta pralamghana, 7. Anayukta sarvendriyakayayoga – yojanata yaha aprashasta kaya – vinaya hai. Prashasta kayavinaya kya hai\? Prashasta kayavinaya ko aprashasta kayavinaya ki taraha samajha lena chahie. Yaha prashasta kayavinaya hai. Isa prakara yaha kayavinaya ka vivechana hai. Lokopachara – vinaya kya hai\? Lokopachara vinaya ke sata bheda haim – 1. Abhyasavartita, 2. Parachchhandanuvartita, 3. Kayahetu, 4. Krita – pratikriya, 5. Arta – gaveshanata, 6. Deshakalajnyata, 7. Sarvarthapratilomata – yaha lokopachara – vinaya haim. Isa prakara yaha vinaya ka vivechana hai. Vaiyavritya kya hai\? Vaiyavritya ke dasa bheda haim – 1. Acharya ka vaiyavritya, 2. Upadhyaya ka vaiyavritya, 3. Shaiksha – navadikshita shramana ka vaiyavritya, 4. Glana – rugnata adi se pirita ka vaiyavritya, 5. Tapasvi – tela adi tapa – nirata ka vaiyavritya, 6. Sthavira – vaya, shruta aura diksha – paryaya mem jyeshtha ka vaiyavritya, 7. Sadharmika ka vaiyavritya, 8. Kula ka vaiyavritya, 9. Gana ka vaiyavritya, 10. Samgha ka vaiyavritya. Svadhyaya kya hai\? Pamcha prakara ka hai – 1. Vachana, 2. Pratiprichchhana, 3. Parivartana, 4. Anupreksha, 5. Dharmakatha. Yaha svadhyaya ka svarupa hai. Dhyana kya hai\? Dhyana ke chara bheda haim – 1. Arta dhyana, 2. Raudra dhyana, 3. Dharma dhyana aura 4. Shukla dhyana. Arttadhyana chara prakara ka batalaya gaya hai – 1. Mana ko priya nahim lagane vale vishaya, sthitiyam ane para unake viyoga ke sambandha mem akulatapurna chintana karana. 2. Mana ko priya lagane vale vishayom ke prapta hone para unake aviyoga ka akulatapurna chintana karana. 3. Roga ho jane para unake mitane ke sambandha mem akulatapurna chintana karana. 4. Purva – sevita kama – bhoga prapta hone para, phira kabhi unaka viyoga na ho, yom akulatapurna chintana karana. Arttadhyana ke chara lakshana batalaye gaye haim – 1. Krandanata, 2. Shochanata, 3. Tepanata, 4. Vilapanata. Raudradhyana chara prakara ka hai, isa prakara hai – 1. Himsanubandhi, 2. Mrishanubandhi, 3. Stainyanubandhi, 4. Samrakshana nubandhi, raudra dhyana ke chara lakshana batalaye gaye haim – 1. Utsannadosha, 2. Bahudosha, 3. Ajnyanadosha, 4. Amarananta – dosha Dharma dhyana svarupa, lakshana, alambana tatha anupreksha bheda se chara prakara ka kaha gaya hai. Pratyeka ke chara – chara bheda haim. Svarupa ki drishti se dharma – dhyana ke chara bheda isa prakara haim – 1. Ajnya – vichaya, 2. Apaya – vichaya, 3. Vipaka – vichaya, 4. Samsthana – vichaya, dharma – dhyana ke chara lakshana batalaye gaye haim. Ve isa prakara haim – 1. Ajnya – ruchi, 2. Nisarga – ruchi, 3. Upadesha – ruchi, 4. Sutra – ruchi, dharma – dhyana ke chara alambana kahe gaye haim – 1. Vachana, 2. Prichchhana, 3. Parivartana, 4. Dharma – katha. Dharma – dhyana ki chara anuprekshaem – batalai gai haim. 1. Anityanupreksha, 2. Asharananupreksha, 3. Ekatvanupreksha, 4. Samsaranupreksha. Shukla dhyana svarupa, lakshana, alambana tatha anupreksha ke bheda se chara prakara ka kaha gaya hai. Inamem se pratyeka ke chara – chara bheda haim. Svarupa ki drishti se shukla dhyana ke chara bheda isa prakara haim – (1) prithaktva – vitarka – savichara, (2) evatva – vitarka – avichara, sukshmakriya – apratipati samuchchhinnakriya – anivritti – shukla dhyana ke chara lakshana batalaye gaye haim – 1. Viveka, 2. Vyutsarga, 3. Avyatha, 4. Asammoha. 1. Kshanti, 2. Mukti, 3.Arjava, 4. Mardava, shukla dhyana ki chara anuprekshaem haim. 1. Apayanupreksha, 2. Ashubhanupreksha, 3.Anantavrittitanupreksha, 4. Viparinamanupreksha. Vyutsarga kya hai – do bheda haim – 1. Dravya – vyutsarga, 2. Bhava – vyutsarga, dravya – vyutsarga kya hai – dravya – vyutsarga ke chara bheda haim. 1. Sharira – vyutsarga, 2. Gana – vyutsarga, 3. Upadhi – vyutsarga, 4. Bhakta – pana – vyutsarga. Bhava – vyutsarga kya hai\? Bhava – vyutsarga ke tina bheda kahe gaye haim – 1. Kashaya – vyutsarga, 2. Samsara – vyutsarga, 3. Karma – vyutsarga. Kashaya – vyutsarga kya hai\? Kashaya – vyutasarga ke chara bheda haim, 1. Krodha – vyutsarga, 2. Mana – vyutsarga, 3. Maya – vyutsarga, 4. Lobha – vyutsarga. Yaha kashaya – vyutsarga ka vivechana hai. Samsaravyutsarga kya hai\? Samsaravyutsarga chara prakara ka hai. 1. Nairayika – samsaravyutsarga 2. Tiryak – samsaravyutsarga, 3. Manuja – samsaravyutsarga, 4. Devasamsara – vyutsarga. Yaha samsara – vyutsarga ka varnana hai. Karma – vyutsarga kya hai\? Karma – vyutsarga atha prakara ka hai. Vaha isa prakara hai – 1. Jnyanavaraniya – karma – vyutsarga, 2. Darshana – varaniya – karma – vyutsarga, 3. Vedaniya – karma – vyutsarga, 4. Mohaniya – karma – vyutsarga, 5. Ayushya – karma – vyutsarga, 6. Nama – karma – vyutsarga, 7. Gotra – karma – vyutsarga, 8. Antaraya – karma – vyutsarga. Yaha karma – vyutsarga hai.