Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005603 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Translated Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 3 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। से णं वनसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वो भासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए। से णं पायवे मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अनुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए एक्कखंधी अनेगसाला अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ घन विउल बद्ध वट्ट खंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्त नवहरिय भिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए निच्चं गोच्छिए निच्चं जमलिए निच्चं जुवलिए निच्चं विणमिए निच्चं पणमिए निच्चं सुविभत्त पिंडि मंजरि वडेंसगधरे निच्चं कुसुमिय माइय लवइय थवइय गुलइय गोच्छिय जमलिय जुवलिय विणमिय पणमिय सुविभत्त पिंडि मंजरि वडेंसगधरे। सुय वरहिण मयणसाल कोइल कोहंगक भिंगारग कोंडलग जीवंजीवग णंदीमुह कविल पिंगलक्खग कारंडक चक्कवाय कलहंस सारस अनेगसउणगणमिहुणविरइयसद्दुण्णइयमहुर-सरणाइए सुरम्मे सपिंडियदरियभमर महुयरिपहकर परिलिंतमत्तछप्पय कुसुमासवलोल महुर-गुमगुमंतगुंजंतदेसभाए अब्भिंतरपुप्फफले बाहिर पत्तोच्छन्ने पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छन्न पलिच्छन्ने साउफले निरोयए अकंटए नानाविहगुच्छ गुम्म मंडवंगसोहिए विचित्तसुहकेउभूए वावी पुक्खरिणी दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालहरए। पिंडिम नीहारिमं सुगंधिं सुह सूरभि मणहरं च महया गंधद्धणिं मुयंते नानाविहगुच्छ-गुम्ममंडवगधरग सुहसेउकेउबहुले अनेगरह जाण जुग्ग सिविय पविमोयणे सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। | ||
Sutra Meaning : | वह पूर्णभद्र चैत्य चारों ओर से एक विशाल वन – खण्ड से घिरा हुआ था। सघनता के कारण वह वन – खण्ड काला, काली आभा वाला, नीला, नीली आभा वाला तथा हरा, हरी आभा वाला था। लताओं, पौधों व वृक्षों की प्रचुरता के कारण वह स्पर्श में शीतल, शीतल आभामय, स्निग्ध, स्निग्ध आभामय, सुन्दर वर्ण आदि उत्कृष्ट गुणयुक्त तथा तीव्र आभामय था। यों वह वन – खण्ड कालापन, काली छाया, नीलापन, नीली छाया, हरापन, हरी छाया, शीतलता, शीतल छाया, स्निग्धता, स्निग्ध छाया, तीव्रता तथा तीव्र छाया लिये हुए था। वृक्षों की शाखाओं के परस्पर गुँथ जाने के कारण वह गहरी, सघन छाया से युक्त था। उसका दृश्य ऐसा रमणीय था, मानो बड़े बड़े बादलों की घटाएं घिरी हों। उस वन – खण्ड के वृक्ष उत्तम – मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज से सम्पन्न थे। वे क्रमशः आनुपातिक रूप में सुन्दर तथा गोलाकार विकसित थे। उनके एक – एक – तना तथा अनेक शाखाएं थीं। उनके मध्य भाग अनेक शाखाओं और प्रशाखाओं का विस्तार लिये हुए थे। उनके सघन, विस्तृत तथा सुघड़ तने अनेक मनुष्यों द्वारा फैलाई हुई भुजाओं से भी गृहीत नहीं किये जा सकते थे। उनके पत्ते छेदरहित, अविरल, अधोमुख, तथा उपद्रव – रहित थे। उनके पुराने, पीले पत्ते झड़ गये थे। नये, हरे, चमकीले पत्तों की सघनता से वहाँ अंधेरा तथा गम्भीरता दिखाई देती थी। नवीन, परिपुष्ट पत्तों, कोमल उज्ज्वल तथा हिलते हुए किसलयों, प्रवालों से उनके उच्च शिखर सुशोभित थे। उनमें कईं वृक्ष ऐसे थे, जो सब ऋतुओं में फूलों, मंजरियों, पत्तों, फूलों के गुच्छों, गुल्मों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त रहते थे। कईं ऐसे थे, जो सदा समश्रेणिक रूप में स्थित थे। कईं जो सदा युगल रूप में कईं पुष्प, फल आदि के भार से नित्य विनमित, प्रणमित नमे हुए थे। यों विविध प्रकार की अपनी – अपनी विशेषताएं लिये हुए वे वृक्ष अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मंजरियों के रूप में मानो शिरोभूषण धारण किये रहते थे। तोते, मोर, मैना, कोयल, कोभगक, भिंगारक, कोण्डलक, चकोर, नन्दिमुख, तीतर, बटेर, बतख, चक्रवाक, कलहंस, सारस प्रभृति पक्षियों द्वारा की जाती आवाज के उन्नत एवं मधुर स्वरालाप से वे वृक्ष गुंजित थे, सुरम्य प्रतीत होते थे। वहाँ स्थित मदमाते भ्रमरों तथा भ्रमरियों या मधुमक्खियों के समूह एवं मकरंद के लोभ से अन्यान्य स्थानों से आये हुए विविध जाति के भँवर मस्ती से गुनगुना रहे थे, जिससे वह स्थान गुंजायमान हो रहा था। वे वृक्ष भीतर से फूलों और फलों से आपूर्ण थे तथा बाहर से पत्तों से ढके थे। वे पत्तों और फूलों से सर्वथा लदे थे। उनके फल स्वादिष्ट, नीरोग तथा निष्कण्टक थे। वे तरह – तरह के फूलों तथा गुच्छों, लता – कुंजों तथा मण्डपों द्वारा रमणीय प्रतीत होते थे, शोभित होते थे। वहाँ भिन्न – भिन्न प्रकार की सुन्दर ध्वजाएं फहराती थीं। चौकोर, गोल तथा लम्बी बावड़ियों में जाली – झरोखेदार सुन्दर भवन बने थे। दूर – दूर तक जाने वाली सुगन्ध के संचित परमाणुओं के कारण वे वृक्ष अपनी सुन्दर महक से मन को हर लेते थे, अत्यन्त तृप्ति – कारक विपुल सुगन्ध छोड़ते थे। वहाँ नानाविध, अनेकानेक पुष्पगुच्छ, लताकुंज, मण्डप, विश्राम – स्थान, सुन्दर मार्ग थे, झण्डे लगे थे। वे वृक्ष अनेक रथों, वाहनों, डोलियों तथा पालखियों के ठहराने के लिए उपयुक्त विस्तीर्ण थे। इस प्रकार के वृक्ष रमणीय, मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se nam punnabhadde cheie ekkenam mahaya vanasamdenam savvao samamta samparikkhitte. Se nam vanasamde kinhe kinhobhase nile nilobhase harie hariobhase sie siobhase niddhe niddhobhase tivve tivvo bhase kinhe kinhachchhae nile nilachchhae harie hariyachchhae sie siyachchhae niddhe niddhachchhae tivve tivvachchhae ghanakadiyakadachchhae ramme mahamehanikurambabhue. Se nam payave mulamamte kamdamamte khamdhamamte tayamamte salamamte pavalamamte pattamamte pupphamamte phalamamte biyamamte anupuvva-sujaya-ruila-vattabhavaparinae ekkakhamdhi anegasala anegasaha ppasaha vidime aneganaravama suppasariya agejjha ghana viula baddha vatta khamdhe achchhiddapatte aviralapatte avainapatte anaiipatte niddhuya jaradha pamdupatta navahariya bhisamta pattabharamdhayara gambhiradarisanijje uvaniggaya nava taruna patta pallava komalaujjala chalamtakisalaya sukumalapavala sohiyavaramkuraggasihare nichcham kusumie nichcham maie nichcham lavaie nichcham thavaie nichcham gulaie nichcham gochchhie nichcham jamalie nichcham juvalie nichcham vinamie nichcham panamie nichcham suvibhatta pimdi mamjari vademsagadhare nichcham kusumiya maiya lavaiya thavaiya gulaiya gochchhiya jamaliya juvaliya vinamiya panamiya suvibhatta pimdi mamjari vademsagadhare. Suya varahina mayanasala koila kohamgaka bhimgaraga komdalaga jivamjivaga namdimuha kavila pimgalakkhaga karamdaka chakkavaya kalahamsa sarasa anegasaunaganamihunaviraiyasaddunnaiyamahura-saranaie suramme sapimdiyadariyabhamara mahuyaripahakara parilimtamattachhappaya kusumasavalola mahura-gumagumamtagumjamtadesabhae abbhimtarapupphaphale bahira pattochchhanne pattehi ya pupphehi ya ochchhanna palichchhanne sauphale niroyae akamtae nanavihaguchchha gumma mamdavamgasohie vichittasuhakeubhue vavi pukkharini dihiyasu ya sunivesiyarammajalaharae. Pimdima niharimam sugamdhim suha surabhi manaharam cha mahaya gamdhaddhanim muyamte nanavihaguchchha-gummamamdavagadharaga suhaseukeubahule anegaraha jana jugga siviya pavimoyane suramme pasadie darisanijje abhiruve padiruve. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha purnabhadra chaitya charom ora se eka vishala vana – khanda se ghira hua tha. Saghanata ke karana vaha vana – khanda kala, kali abha vala, nila, nili abha vala tatha hara, hari abha vala tha. Lataom, paudhom va vrikshom ki prachurata ke karana vaha sparsha mem shitala, shitala abhamaya, snigdha, snigdha abhamaya, sundara varna adi utkrishta gunayukta tatha tivra abhamaya tha. Yom vaha vana – khanda kalapana, kali chhaya, nilapana, nili chhaya, harapana, hari chhaya, shitalata, shitala chhaya, snigdhata, snigdha chhaya, tivrata tatha tivra chhaya liye hue tha. Vrikshom ki shakhaom ke paraspara gumtha jane ke karana vaha gahari, saghana chhaya se yukta tha. Usaka drishya aisa ramaniya tha, mano bare bare badalom ki ghataem ghiri hom. Usa vana – khanda ke vriksha uttama – mula, kanda, skandha, chhala, shakha, pravala, patra, pushpa, phala tatha bija se sampanna the. Ve kramashah anupatika rupa mem sundara tatha golakara vikasita the. Unake eka – eka – tana tatha aneka shakhaem thim. Unake madhya bhaga aneka shakhaom aura prashakhaom ka vistara liye hue the. Unake saghana, vistrita tatha sughara tane aneka manushyom dvara phailai hui bhujaom se bhi grihita nahim kiye ja sakate the. Unake patte chhedarahita, avirala, adhomukha, tatha upadrava – rahita the. Unake purane, pile patte jhara gaye the. Naye, hare, chamakile pattom ki saghanata se vaham amdhera tatha gambhirata dikhai deti thi. Navina, paripushta pattom, komala ujjvala tatha hilate hue kisalayom, pravalom se unake uchcha shikhara sushobhita the. Unamem kaim vriksha aise the, jo saba rituom mem phulom, mamjariyom, pattom, phulom ke guchchhom, gulmom tatha pattom ke guchchhom se yukta rahate the. Kaim aise the, jo sada samashrenika rupa mem sthita the. Kaim jo sada yugala rupa mem kaim pushpa, phala adi ke bhara se nitya vinamita, pranamita name hue the. Yom vividha prakara ki apani – apani visheshataem liye hue ve vriksha apani sundara lumbiyom tatha mamjariyom ke rupa mem mano shirobhushana dharana kiye rahate the. Tote, mora, maina, koyala, kobhagaka, bhimgaraka, kondalaka, chakora, nandimukha, titara, batera, batakha, chakravaka, kalahamsa, sarasa prabhriti pakshiyom dvara ki jati avaja ke unnata evam madhura svaralapa se ve vriksha gumjita the, suramya pratita hote the. Vaham sthita madamate bhramarom tatha bhramariyom ya madhumakkhiyom ke samuha evam makaramda ke lobha se anyanya sthanom se aye hue vividha jati ke bhamvara masti se gunaguna rahe the, jisase vaha sthana gumjayamana ho raha tha. Ve vriksha bhitara se phulom aura phalom se apurna the tatha bahara se pattom se dhake the. Ve pattom aura phulom se sarvatha lade the. Unake phala svadishta, niroga tatha nishkantaka the. Ve taraha – taraha ke phulom tatha guchchhom, lata – kumjom tatha mandapom dvara ramaniya pratita hote the, shobhita hote the. Vaham bhinna – bhinna prakara ki sundara dhvajaem phaharati thim. Chaukora, gola tatha lambi bavariyom mem jali – jharokhedara sundara bhavana bane the. Dura – dura taka jane vali sugandha ke samchita paramanuom ke karana ve vriksha apani sundara mahaka se mana ko hara lete the, atyanta tripti – karaka vipula sugandha chhorate the. Vaham nanavidha, anekaneka pushpaguchchha, latakumja, mandapa, vishrama – sthana, sundara marga the, jhande lage the. Ve vriksha aneka rathom, vahanom, doliyom tatha palakhiyom ke thaharane ke lie upayukta vistirna the. Isa prakara ke vriksha ramaniya, manorama, darshaniya, abhirupa tatha pratirupa the. |