Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005105 | ||
Scripture Name( English ): | Upasakdashang | Translated Scripture Name : | उपासक दशांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-१ आनंद |
Translated Chapter : |
अध्ययन-१ आनंद |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 5 | Category : | Ang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए। तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नयरे आनंदे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न-विउलभवन-सयनासन-जाण-वाहने बहुधन-जायरूव-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउर-भत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं आनंदे गाहावई बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावई-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबनभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स सिवानंदा नामं भारिया होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदिय-सरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंग-सुंदरंगी ससि-सोमाकार-कंत-पिय-दंसणा सुरूवा, आनंदस्स गाहावइस्स इट्ठा, आनंदेणं गाहावइणा सद्धिं अनुरत्ता अविरत्ता, इट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे मानुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ। तस्स णं वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था–रिद्ध-त्थिमिए जाव पासादिए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे आनंदस्स गाहावइस्स बहवे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजने परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव वाणियगामे नयरे जेणेव दूइपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ। तए णं से आनंदे गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे– एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणियगामस्स नयरस्स बहिया दूइपलासए चेइए अहापडिरूव ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्सवि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामि णं देवानुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामि नमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि–एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मनुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं वाणियगामं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव दूइपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। | ||
Sutra Meaning : | जम्बू ! उस काल, उस समय, वाणिज्यग्राम नगर था। उस के बाहर – ईशान कोण में दूतीपलाश चैत्य था। जितशत्रु वहाँ का राजा था। वहाँ वाणिज्यग्राम में आनन्द नामक गाथापति था जो धनाढ्य यावत् अपरिभूत था। आनन्द गाथापति का चार करोड़ स्वर्ण खजाने में, चार करोड़ स्वर्ण व्यापार में, चार करोड़ स्वर्ण – धन, धान्य आदि में लगा था। उसके चार व्रज – गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस हजार गायें थीं। आनन्द गाथापति बहुत से राजा – यावत् सार्थवाह – के अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, एकान्त में विचारणीय – व्यवहारों में पूछने योग्य एवं सलाह लेने योग्य व्यक्ति था। वह परिवार का मेढ़ि – यावत् सर्व – कार्य – वर्धापक था। आनन्द गाथापति की शिवनन्दा नामक पत्नी थी, वह परिपूर्ण अंग वाली यावत् सर्वांगसुन्दरी थी। आनन्द गाथापति की वह इष्ट – एवं अनुरक्त थी। पति के प्रतिकूल होने पर भी वह कभी रुष्ट नहीं होती थी। वह अपने पति के साथ इष्ट – प्रिय सांसारिक कामभोग भोगती हुई रहती थी। वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर कोल्लाक नामक सन्निवेश था – वह सन्निवेश समृद्धिवान्, निरुपद्रव, दर्शनीय, सुंदर यावत् मनका प्रसन्नता देने वाला था। वहाँ कोल्लाक सन्निवेश में आनन्द गाथापति के अनेक मित्र, ज्ञातिजन – स्वजातीय लोग, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन – आदि निवास करते थे, जो समृद्ध एवं सुखी थे। उस काल और समय में श्रमण भगवंत महावीर पधारे। पर्षदा नीकली। वंदन करके वापस लौटी। कोणिक राजा कि तरह जितशत्रु राजा भी नीकला। वंदन यावत् पर्युपासना की। तत्पश्चात् आनंद गृहपति ने भगवंत महावीर के आने की बात सूनी। अरिहंत भगवंतों का नाम श्रवण भी दुर्लभ है फिर वंदन नमस्कार का तो कहना ही क्या ? इसीलिए मैं वहाँ जाऊं यावत् भगवंत की पर्युपासना करुं। ऐसा सोचकर शुद्ध एवं सभा में पहनने लायक वस्त्र धारण करके, अल्प एवं महामूल्यवान अलंकार धारण करके आनन्द गृहपति अपने घरसे नीकला। कोरंट पुष्पों की माला से युक्त छत्र धारण किया हुआ और जनसमूह से परिवृत्त होकर चलता चलता वह वाणिज्य ग्रामनगर के बीचोंबीच से नीकलकर जहाँ दूतिपलाश चैत्य था। जहाँ भगवान महावीर थे वहाँ आकर, भगवंत की तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दन – नमस्कार यावत् पर्युपासना करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam vaniyagame namam nayare hottha–vannao. Tassa vaniyagamassa nayarassa bahiya uttarapuratthime disibhae, ettha nam duipalasae namam cheie. Tattha nam vaniyagame nayare jiyasattu raya hottha–vannao. Tattha nam vaniyagame nayare anamde namam gahavai parivasai–addhe ditte vitte vichchhinna-viulabhavana-sayanasana-jana-vahane bahudhana-jayaruva-rayae aogapaogasampautte vichchhaddiyapaura-bhattapane bahudasi-dasa-go-mahisa-gavelagappabhue bahujanassa aparibhue. Tassa nam anamdassa gahavaissa chattari hirannakodio nihanapauttao, chattari hiranna-kodio vaddhipauttao chattari hirannakodio pavittharapauttao, chattari vaya dasagosahassienam vaenam hottha. Se nam anamde gahavai bahunam raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahanam bahusu kajjesu ya karanesu ya kudumbesu ya mamtesu ya gujjhesu ya rahassesu ya nichchhaesu ya vavaharesu ya apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi pamanam ahare alambanam chakkhu, medhibhue pamanabhue aharabhue alambanabhue chakkhubhue savvakajjavaddhavae yavi hottha. Tassa nam anamdassa gahavaissa sivanamda namam bhariya hottha–ahina-padipunna-pamchimdiya-sarira lakkhana-vamjana-gunovaveya manummana-ppamana-padipunna-sujaya-savvamga-sumdaramgi sasi-somakara-kamta-piya-damsana suruva, anamdassa gahavaissa ittha, anamdenam gahavaina saddhim anuratta aviratta, itthe sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhe pamchavihe manussae kamabhoe pachchanubhavamani viharai. Tassa nam vaniyagamassa nayarassa bahiya uttarapuratthime disibhae, ettha nam kollae namam sannivese hottha–riddha-tthimie java pasadie darisanijje abhiruve padiruve. Tattha nam kollae sannivese anamdassa gahavaissa bahave mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijane parivasai–addhe java bahujanassa aparibhue. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire java jeneva vaniyagame nayare jeneva duipalasae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Parisa niggaya. Kunie raya jaha, taha jiyasattu niggachchhai java pajjuvasai. Tae nam se anamde gahavai imise kahae laddhatthe samane– evam khalu samane bhagavam mahavire puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva vaniyagamassa nayarassa bahiya duipalasae cheie ahapadiruva oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam mahapphalam khalu bho! Devanuppiya! Taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana-vamdana-namamsana-padipuchchhana-pajjuvasanayae? Egassavi ariyassa dhammiyassa suvayanassa savanayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhami nam devanuppiya! Samanam bhagavam mahaviram vamdami namamsami sakkaremi sammanemi kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasami–evam sampehei, sampehitta nhae kayabalikamme kaya-kouya mamgalapayachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie appamahagghabharanalamkiyasarire sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam manussavagguraparikhitte padaviharacharenam vaniyagamam nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jenameva duipalasae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jambu ! Usa kala, usa samaya, vanijyagrama nagara tha. Usa ke bahara – ishana kona mem dutipalasha chaitya tha. Jitashatru vaham ka raja tha. Vaham vanijyagrama mem ananda namaka gathapati tha jo dhanadhya yavat aparibhuta tha. Ananda gathapati ka chara karora svarna khajane mem, chara karora svarna vyapara mem, chara karora svarna – dhana, dhanya adi mem laga tha. Usake chara vraja – gokula the. Pratyeka gokula mem dasa hajara gayem thim. Ananda gathapati bahuta se raja – yavat sarthavaha – ke aneka karyom mem, karanom mem, mamtranaom mem, parivarika samasyaom mem, gopaniya batom mem, ekanta mem vicharaniya – vyavaharom mem puchhane yogya evam salaha lene yogya vyakti tha. Vaha parivara ka merhi – yavat sarva – karya – vardhapaka tha. Ananda gathapati ki shivananda namaka patni thi, vaha paripurna amga vali yavat sarvamgasundari thi. Ananda gathapati ki vaha ishta – evam anurakta thi. Pati ke pratikula hone para bhi vaha kabhi rushta nahim hoti thi. Vaha apane pati ke satha ishta – priya samsarika kamabhoga bhogati hui rahati thi. Vanijya grama nagara ke bahara kollaka namaka sannivesha tha – vaha sannivesha samriddhivan, nirupadrava, darshaniya, sumdara yavat manaka prasannata dene vala tha. Vaham kollaka sannivesha mem ananda gathapati ke aneka mitra, jnyatijana – svajatiya loga, nijaka, svajana, sambandhi, parijana – adi nivasa karate the, jo samriddha evam sukhi the. Usa kala aura samaya mem shramana bhagavamta mahavira padhare. Parshada nikali. Vamdana karake vapasa lauti. Konika raja ki taraha jitashatru raja bhi nikala. Vamdana yavat paryupasana ki. Tatpashchat anamda grihapati ne bhagavamta mahavira ke ane ki bata suni. Arihamta bhagavamtom ka nama shravana bhi durlabha hai phira vamdana namaskara ka to kahana hi kya\? Isilie maim vaham jaum yavat bhagavamta ki paryupasana karum. Aisa sochakara shuddha evam sabha mem pahanane layaka vastra dharana karake, alpa evam mahamulyavana alamkara dharana karake ananda grihapati apane gharase nikala. Koramta pushpom ki mala se yukta chhatra dharana kiya hua aura janasamuha se parivritta hokara chalata chalata vaha vanijya gramanagara ke bichombicha se nikalakara jaham dutipalasha chaitya tha. Jaham bhagavana mahavira the vaham akara, bhagavamta ki tina bara pradakshina karake vandana – namaskara yavat paryupasana karata hai. |