Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004842 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-११ दावद्रव |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-११ दावद्रव |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 142 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गोयमो एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति? गोयमा! से जहानामए एगंसि समुद्दकूलंसि दावद्दवा नामं रुक्खा पन्नत्ता–किण्हा जाव निउरंबभूया पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। जया णं दीविच्चगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा जुण्णा ज्झोडा परि-सडिय-पंडुपत्त-पुप्फ-फला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा-मिलायमाणा चिट्ठंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ–एस णं मए पुरिसे देसविराहए पन्नत्ते। समणाउसो! जया णं सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा जुण्णा ज्झोडा परिसडिय-पंडुपत्त-पुप्फ-फला सुक्करुक्खओ विव मिलाय-माणा-मिलायमाणा चिट्ठंति। अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ–एस णं मए पुरिसे देसाराहए पन्नत्ते। समणाउसो! जया णं नो दीविच्चगा नो सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा जुण्णा ज्झोडा परिसडिय-पंडुपत्त-पुप्फ-फला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा-मिलायमाणा चिट्ठंति। अप्पे-गइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ–एस णं मए पुरिसे सव्वविराहए पन्नत्ते। समणाउसो! जया णं दीविच्चगा वि सामुद्दगा वि ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ–एस णं मए पुरिसे सव्वआराहए पन्नत्ते। एवं खलु गोयमा! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् ! ग्यारहवे अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। उसके बाहर उत्तरपूर्व दिशा में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत् गुणशील नामक उद्यान में समवसृत हुए। वन्दना करने के लिए राजा श्रेणिक और जनसमूह नीकला। भगवान् ने धर्म का उपदेश किया। जनसमूह वापिस लौट गया। तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से कहा – ‘भगवन् ! जीव किस प्रकार आराधक और किस प्रकार विराधक है ?’ हे गौतम ! जैसे एक समुद्र के किनारे दावद्रव नामक वृक्ष कहे गये हैं वे कृष्ण वर्ण वाले यावत् निकुरंब रूप हैं। पत्तों वाले, फलों वाले, अपनी हरियाली के कारण मनोहर और श्री से अत्यन्त शोभित – शोभित होते हुए स्थित हैं। जब द्वीप सम्बन्धी ईषत् पुरोवात पथ्यवात, मन्द वात और महावात चलती है, तब बहुत – से दावद्रव नामक वृक्ष पत्र आदि से युक्त होकर खड़े रहते हैं। उनमें से कोई – कोई दावद्रव वृक्ष जीर्ण जैसे हो जाते हैं, झोड़ हो जाते हैं, अत एव वे खिले हुए पीले पत्तों, पुष्पों और फलों वाले हो जाते हैं और सूखे पेड़ की तरह मुरझाते हुए खड़े रहते हैं। इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! जो साधु या साध्वी यावत् दीक्षित होकर बहुत – से साधुओं, साध्वीओं, श्रावकों और श्राविकाओं के प्रतिकूल वचनों को सम्यक् प्रकार से सहन करता है, यावत् विशेष रूप से सहन करता है, किन्तु बहुत – से अन्य तीर्थिकों के तथा गृहस्थों के दुर्वचन को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता है, यावत् विशेष रूप से सहन नहीं करता है, ऐसे पुरुष को मैंने देश – विराधक कहा है। आयुष्मन् श्रमणों ! जब समुद्र सम्बन्धी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, मंदवात और महावात बहती हैं, तब बहुत – से दावद्रव वृक्ष जीर्ण – से हो जाते हैं, झोड़ हो जाते हैं, यावत् मुरझाते – मुरझाते खड़े रहते हैं। किन्तु कोई – कोई दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित यावत् अत्यन्त शोभायमान होते हुए रहते हैं इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों! जो साधु अथवा साध्वी दीक्षित होकर बहुत – से अन्यतीर्थिकों के और बहुत – से गृहस्थों के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है और बहुत – से साधुओं, साध्वीओं, श्रावकों तथा श्राविकाओं के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता, उस पुरुष को मैंने देशाराधक कहा है। आयुष्मन् श्रमणों ! जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी एक भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् महावात नहीं बहती, तब सब दावद्रव वृक्ष जीर्ण सरीखे हो जाते हैं, यावत् मुरझाए रहते हैं। इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! जो साधु या साध्वी, यावत् प्रव्रजित होकर बहुत – से साधुओं, साध्वीयों, श्रावकों, श्राविकाओं, अन्यतीर्थिकों एवं गृहस्थों के दुर्वचन शब्दों को सम्यक् प्रकार से सहन नही करता, उस को मैंने सर्वविराधक कहा। जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् बहती हैं, तब तभी दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित, फलित यावत् सुशोभित रहते हैं। हे आयुष्मन् श्रमणों ! इसी प्रकार जो साधु या साध्वी बहुत – से श्रमणों के, श्रमणियों के, श्रावकों के, श्राविकाओं के, अन्यतीर्थिकों के और गृहस्थों के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है, उस पुरुष को मैंने सर्वाराधक कहा है। इस प्रकार हे गौतम ! जीव आराधक और विराधक होते हैं। हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने ग्यारहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है। वैसा ही मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam dasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, ekkarasamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nagare goyamo evam vayasi–kahannam bhamte! Jiva arahaga va virahaga va bhavamti? Goyama! Se jahanamae egamsi samuddakulamsi davaddava namam rukkha pannatta–kinha java niurambabhuya pattiya pupphiya phaliya hariyagarerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Jaya nam divichchaga isim purevaya pachchhavaya mamdavaya mahavaya vayamti, taya nam bahave davaddava rukkha pattiya pupphiya phaliya hariyaga-rerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Appegaiya davaddava rukkha junna jjhoda pari-sadiya-pamdupatta-puppha-phala sukkarukkhao viva milayamana-milayamana chitthamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyana ya sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei, bahunam annautthiyanam bahunam gihatthanam no sammam sahai java no ahiyasei–esa nam mae purise desavirahae pannatte. Samanauso! Jaya nam samuddaga isim purevaya pachchhavaya mamdavaya mahavaya vayamti, taya nam bahave davaddava rukkha junna jjhoda parisadiya-pamdupatta-puppha-phala sukkarukkhao viva milaya-mana-milayamana chitthamti. Appegaiya davaddava rukkha pattiya pupphiya phaliya hariyaga-rerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane bahunam annautthiyanam bahunam gihatthanam sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei, bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyana ya no sammam sahai java no ahiyasei–esa nam mae purise desarahae pannatte. Samanauso! Jaya nam no divichchaga no samuddaga isim purevaya pachchhavaya mamdavaya mahavaya vayamti, taya nam savve davaddava rukkha junna jjhoda parisadiya-pamdupatta-puppha-phala sukkarukkhao viva milayamana-milayamana chitthamti. Appe-gaiya davaddava rukkha pattiya pupphiya phaliya hariyaga-rerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyanam bahunam annautthiyanam bahunam gihatthanam no sammam sahai java no ahiyasei–esa nam mae purise savvavirahae pannatte. Samanauso! Jaya nam divichchaga vi samuddaga vi isim purevaya pachchhavaya mamdavaya mahavaya vayamti, taya nam savve davaddava rukkha pattiya pupphiya phaliya hariyaga-rerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyanam bahunam annautthiyanam bahunam gihatthanam sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei–esa nam mae purise savvaarahae pannatte. Evam khalu goyama! Jiva arahaga va virahaga va bhavamti. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam ekkarasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan ! Gyarahave adhyayana ka shramana bhagavana mahavira ne kya artha kaha hai\? He jambu ! Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Usa rajagriha nagara mem shrenika raja tha. Usake bahara uttarapurva disha mem gunashila namaka chaitya tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira anukrama se vicharate hue, yavat gunashila namaka udyana mem samavasrita hue. Vandana karane ke lie raja shrenika aura janasamuha nikala. Bhagavan ne dharma ka upadesha kiya. Janasamuha vapisa lauta gaya. Tatpashchat gautama svami ne shramana bhagavana mahavira se kaha – ‘bhagavan ! Jiva kisa prakara aradhaka aura kisa prakara viradhaka hai\?’ He gautama ! Jaise eka samudra ke kinare davadrava namaka vriksha kahe gaye haim ve krishna varna vale yavat nikuramba rupa haim. Pattom vale, phalom vale, apani hariyali ke karana manohara aura shri se atyanta shobhita – shobhita hote hue sthita haim. Jaba dvipa sambandhi ishat purovata pathyavata, manda vata aura mahavata chalati hai, taba bahuta – se davadrava namaka vriksha patra adi se yukta hokara khare rahate haim. Unamem se koi – koi davadrava vriksha jirna jaise ho jate haim, jhora ho jate haim, ata eva ve khile hue pile pattom, pushpom aura phalom vale ho jate haim aura sukhe pera ki taraha murajhate hue khare rahate haim. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo sadhu ya sadhvi yavat dikshita hokara bahuta – se sadhuom, sadhviom, shravakom aura shravikaom ke pratikula vachanom ko samyak prakara se sahana karata hai, yavat vishesha rupa se sahana karata hai, kintu bahuta – se anya tirthikom ke tatha grihasthom ke durvachana ko samyak prakara se sahana nahim karata hai, yavat vishesha rupa se sahana nahim karata hai, aise purusha ko maimne desha – viradhaka kaha hai. Ayushman shramanom ! Jaba samudra sambandhi ishat purovata, pathya ya pashchat vata, mamdavata aura mahavata bahati haim, taba bahuta – se davadrava vriksha jirna – se ho jate haim, jhora ho jate haim, yavat murajhate – murajhate khare rahate haim. Kintu koi – koi davadrava vriksha patrita, pushpita yavat atyanta shobhayamana hote hue rahate haim isi prakara he ayushman shramanom! Jo sadhu athava sadhvi dikshita hokara bahuta – se anyatirthikom ke aura bahuta – se grihasthom ke durvachana samyak prakara se sahana karata hai aura bahuta – se sadhuom, sadhviom, shravakom tatha shravikaom ke durvachana samyak prakara se sahana nahim karata, usa purusha ko maimne desharadhaka kaha hai. Ayushman shramanom ! Jaba dvipa sambandhi aura samudra sambandhi eka bhi ishat purovata, pathya ya pashchat vata, yavat mahavata nahim bahati, taba saba davadrava vriksha jirna sarikhe ho jate haim, yavat murajhae rahate haim. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo sadhu ya sadhvi, yavat pravrajita hokara bahuta – se sadhuom, sadhviyom, shravakom, shravikaom, anyatirthikom evam grihasthom ke durvachana shabdom ko samyak prakara se sahana nahi karata, usa ko maimne sarvaviradhaka kaha. Jaba dvipa sambandhi aura samudra sambandhi bhi ishat purovata, pathya ya pashchat vata, yavat bahati haim, taba tabhi davadrava vriksha patrita, pushpita, phalita yavat sushobhita rahate haim. He ayushman shramanom ! Isi prakara jo sadhu ya sadhvi bahuta – se shramanom ke, shramaniyom ke, shravakom ke, shravikaom ke, anyatirthikom ke aura grihasthom ke durvachana samyak prakara se sahana karata hai, usa purusha ko maimne sarvaradhaka kaha hai. Isa prakara he gautama ! Jiva aradhaka aura viradhaka hote haim. He jambu ! Shramana bhagavana mahavira ne gyarahavem jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai. Vaisa hi maim kahata hum. |