Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004798
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Section : Translated Section :
Sutra Number : 98 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहि-लाए रायहाणीए कुंभगस्स रयणी धूया पभावईए देवीए अत्तया मल्ली अरहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ जाव इंदा दलयंति अरहाणं। तं गच्छह णं देवानुप्पिया! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं मिहिलं रायहाणिं कुंभगस्स रन्नो भवणंसि इमेयारूवं अत्थसंपयाणं साहराहि, साहरित्ता खिप्पामेव मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता बंभए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं मिहिलं रायहाणिं कुंभगस्स रन्नो भवणंति तिन्नि कोडिसया अट्ठासीइं च कोडीओ असीइं सयसहस्साइं–इमेयारूवं अत्थसंपयाणं साहरह, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पडिसुणेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, जाव उत्तरवेउव्वियाइं रूवाइं विउव्वंति, विउव्वित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रन्नो भवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभगस्स रन्नो भवणंसि तिन्नि कोडिसया जाव साहरंति, साहरित्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं मल्ली अरहा कल्लाकल्लिं जाव मागहओ पायरासी त्ति बहूणं सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करीडियाण य कप्पडियाण य एगमेगं हिरण्णकोडिं अट्ठ य अणूणाइं सयसहस्साइं–इमेयारूवं अत्थसंपयाणं दलयइ। तए णं कुंभए राया मिहिलाए रायहाणीए तत्थ-तत्थ तहिं-तहिं देसे-देसे बहूओ महाणससालाओ करेइ। तत्थ णं बहवे मणुया दिन्नभइ-भत्त-वेयणा विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडेंति। जे जहा आगच्छंति, तं जहा–पंथिया वा पहिया वा करोडिया वा कप्पडिया वा पासंडत्था वा गिहत्था वा, तस्स य तहा आसत्थस्स वीसत्थस्स सुहासणवरगयस्स तं विउलं असन-पान-खाइम-साइमं परिभाएमाणा परिवेसेमाणा विहरंति। तए णं मिहिलाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ–एवं खलु देवानुप्पिया! कुंभगस्स रन्नो भवणंसि सव्वकामगुणियं किमिच्छियं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं बहूणं समणाण य माहणाण य सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य एहियाण य करोडियाण य कप्पडियाणं य परिभाइज्जइ परिवेसिज्जइ।
Sutra Meaning : शक्रेन्द्र ने ऐसा विचार किया। विचार करके उसने वैश्रमण देव को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, यावत्‌ तीन सौ अट्ठासी करोड़ और अस्सी लाख स्वर्ण मोहरें देना उचित है। सो हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में कुम्भ राजा के भवन में इतने द्रव्य का संहरण करो – इतना धन लेकर पहुँचा दो। पहुँचा कर शीघ्र ही मेरी यह आज्ञा वापिस सौंपो।’ तत्पश्चात्‌ वैश्रमण देव, शक्र देवेन्द्र देवराज के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट हुआ। हाथ जोड़कर उसने यावत्‌ मस्तक पर अंजलि घूमाकर आज्ञा स्वीकार की। स्वीकार करके जृंभक देवों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में और मिथिला राजधानी में जाओ और कुम्भ राजा के भवन में तीन सौ अट्ठासी करोड़ अस्सी लाख अर्थ सम्प्रदान का संहरण करो, अर्थात्‌ इतनी सम्पत्ति वहाँ पहुँचा दो। संहरण करके यह आज्ञा मुझे वापिस लौटाओ।’ तत्पश्चात्‌ वे जृंभक देव, वैश्रमण देव की आज्ञा सूनकर उत्तरपूर्व दिशा में गए। जाकर उत्तर वैक्रिय रूपों की विकुर्वणा की। देव सम्बन्धी उत्कृष्ट गति से जाते हुए जहाँ जम्बूद्वीप था, भरतक्षेत्र था, जहाँ मिथिला राजधानी थी और जहाँ कुम्भ राजा का भवन था, वहाँ पहुँचे। कुम्भ राजा के भवन में आदि पूर्वोक्त द्रव्य सम्पत्ति पहुँचा दी। पहुँचा कर वे जृंभक देव, वैश्रमण देव के पास आए और उसकी आज्ञा वापिस लौटाई। वह वैश्रमण देव जहाँ शक्र देवेन्द्र देवराज थे, वहाँ आया। आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत्‌ उसने इन्द्र की आज्ञा वापिस सौंपी। मल्ली अरिहंत ने प्रतिदिन प्रातःकाल से प्रारम्भ करके मगध देश के प्रातराश समय तक बहुत – से सनाथों, अनाथों, पांथिको – पथिकों – करोटिक, कार्पटिक पूरी एक करोड़ और आठ लाख स्वर्णमोहरें दान में देना आरम्भ किया। तत्पश्चात्‌ कुम्भ राजा ने भी मिथिला राजधानी में तत्र तत्र अर्थात्‌ विभिन्न मुहल्लों या उपनगरों में, तहिं तहिं अर्थात्‌ महामार्गों में तथा अन्य अनेक स्थानों में, देश देश अर्थात्‌ त्रिक, चतुष्क आदि स्थानों – स्थानों में बहुत – सी भोजनशालाएं बनवाईं। उन भोजनशालाओं में बहुत – से मनुष्य, जिन्हें धन, भोजन और वेतन – मूल्य दिया जाता था, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन बनाते थे। जो लोग जैसे – जैसे आते – जाते थे जैसे कि – पांथिक, करोटिक, कार्पटिक, पाखण्डी अथवा गृहस्थ, उन्हें आश्वासन देकर, विश्राम देकर और सुखद आसन पर बिठला कर विपुल अशन, पान, स्वाद्य और खाद्य दिया जाता था, परोसा जाता था। वे मनुष्य जहाँ भोजन आदि देते रहते थे। तत्पश्चात्‌ मिथिला राजधानी में शृंगाटक, त्रिक, चौक आदि मार्गों में बहुत – से लोग परस्पर इस प्रकार कहने लगे – ‘हे देवानुप्रियो ! कुम्भ राजा के भवन में सर्वकामगुणित तथा ईच्छानुसार दिया जाने वाला विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार बहुत – से श्रमणों आदि को यावत्‌ परोसा जाता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] evam sampehei, sampehetta vesamanam devam saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Jambuddive dive bharahe vase mihi-lae rayahanie kumbhagassa rayani dhuya pabhavaie devie attaya malli araha nikkhamissamitti manam paharei java imda dalayamti arahanam. Tam gachchhaha nam devanuppiya! Jambuddivam divam bharaham vasam mihilam rayahanim kumbhagassa ranno bhavanamsi imeyaruvam atthasampayanam saharahi, saharitta khippameva mama eyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se vesamane deve sakkenam devimdenam devaranna evam vutte samane hatthatutthe karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam devo! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta bambhae deve saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Jambuddivam divam bharaham vasam mihilam rayahanim kumbhagassa ranno bhavanamti tinni kodisaya atthasiim cha kodio asiim sayasahassaim–imeyaruvam atthasampayanam saharaha, saharitta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te jambhaga deva vesamanenam devenam evam vutta samana java padisunetta uttarapuratthimam disibhagam avakkamamti avakkamitta veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nisiramti, java uttaraveuvviyaim ruvaim viuvvamti, viuvvitta tae ukkitthae java devagaie viivayamana-viivayamana jeneva jambuddive dive bharahe vase jeneva mihila rayahani jeneva kumbhagassa ranno bhavane teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta kumbhagassa ranno bhavanamsi tinni kodisaya java saharamti, saharitta jeneva vesamane deve teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se vesamane deve jeneva sakke devimde devaraya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam java tamanattiyam pachchappinai. Tae nam malli araha kallakallim java magahao payarasi tti bahunam sanahana ya anahana ya pamthiyana ya pahiyana ya karidiyana ya kappadiyana ya egamegam hirannakodim attha ya anunaim sayasahassaim–imeyaruvam atthasampayanam dalayai. Tae nam kumbhae raya mihilae rayahanie tattha-tattha tahim-tahim dese-dese bahuo mahanasasalao karei. Tattha nam bahave manuya dinnabhai-bhatta-veyana viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhademti. Je jaha agachchhamti, tam jaha–pamthiya va pahiya va karodiya va kappadiya va pasamdattha va gihattha va, tassa ya taha asatthassa visatthassa suhasanavaragayassa tam viulam asana-pana-khaima-saimam paribhaemana parivesemana viharamti. Tae nam mihilae nayarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai–evam khalu devanuppiya! Kumbhagassa ranno bhavanamsi savvakamaguniyam kimichchhiyam vipulam asana-pana-khaima-saimam bahunam samanana ya mahanana ya sanahana ya anahana ya pamthiyana ya ehiyana ya karodiyana ya kappadiyanam ya paribhaijjai parivesijjai.
Sutra Meaning Transliteration : Shakrendra ne aisa vichara kiya. Vichara karake usane vaishramana deva ko bulakara kaha – ‘devanupriya ! Jambudvipa namaka dvipa mem, bharatavarsha mem, yavat tina sau atthasi karora aura assi lakha svarna moharem dena uchita hai. So he devanupriya ! Tuma jao aura jambudvipa mem, bharatavarsha mem kumbha raja ke bhavana mem itane dravya ka samharana karo – itana dhana lekara pahumcha do. Pahumcha kara shighra hi meri yaha ajnya vapisa saumpo.’ tatpashchat vaishramana deva, shakra devendra devaraja ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hua. Hatha jorakara usane yavat mastaka para amjali ghumakara ajnya svikara ki. Svikara karake jrimbhaka devom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jambudvipa mem, bharatavarsha mem aura mithila rajadhani mem jao aura kumbha raja ke bhavana mem tina sau atthasi karora assi lakha artha sampradana ka samharana karo, arthat itani sampatti vaham pahumcha do. Samharana karake yaha ajnya mujhe vapisa lautao.’ Tatpashchat ve jrimbhaka deva, vaishramana deva ki ajnya sunakara uttarapurva disha mem gae. Jakara uttara vaikriya rupom ki vikurvana ki. Deva sambandhi utkrishta gati se jate hue jaham jambudvipa tha, bharatakshetra tha, jaham mithila rajadhani thi aura jaham kumbha raja ka bhavana tha, vaham pahumche. Kumbha raja ke bhavana mem adi purvokta dravya sampatti pahumcha di. Pahumcha kara ve jrimbhaka deva, vaishramana deva ke pasa ae aura usaki ajnya vapisa lautai. Vaha vaishramana deva jaham shakra devendra devaraja the, vaham aya. Akara donom hatha jorakara yavat usane indra ki ajnya vapisa saumpi. Malli arihamta ne pratidina pratahkala se prarambha karake magadha desha ke pratarasha samaya taka bahuta – se sanathom, anathom, pamthiko – pathikom – karotika, karpatika puri eka karora aura atha lakha svarnamoharem dana mem dena arambha kiya. Tatpashchat kumbha raja ne bhi mithila rajadhani mem tatra tatra arthat vibhinna muhallom ya upanagarom mem, tahim tahim arthat mahamargom mem tatha anya aneka sthanom mem, desha desha arthat trika, chatushka adi sthanom – sthanom mem bahuta – si bhojanashalaem banavaim. Una bhojanashalaom mem bahuta – se manushya, jinhem dhana, bhojana aura vetana – mulya diya jata tha, vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana banate the. Jo loga jaise – jaise ate – jate the jaise ki – pamthika, karotika, karpatika, pakhandi athava grihastha, unhem ashvasana dekara, vishrama dekara aura sukhada asana para bithala kara vipula ashana, pana, svadya aura khadya diya jata tha, parosa jata tha. Ve manushya jaham bhojana adi dete rahate the. Tatpashchat mithila rajadhani mem shrimgataka, trika, chauka adi margom mem bahuta – se loga paraspara isa prakara kahane lage – ‘he devanupriyo ! Kumbha raja ke bhavana mem sarvakamagunita tatha ichchhanusara diya jane vala vipula ashana, pana, khadima aura svadima ahara bahuta – se shramanom adi ko yavat parosa jata hai.