Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004792
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Section : Translated Section :
Sutra Number : 92 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जनवए। कंपिल्लपुरे नयरे। जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था। तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया–रिउव्वेय-यज्जुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहास-पंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था। तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दानधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ। तए णं सा चोक्खा अन्नया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेण्हित्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पविरल-परिव्वाइया-सद्धिं संपरिवुडा मिहिलं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं जेणेव कुंभगस्स रन्नो भवणे जेणेव कन्नंतेउरे जेणेव मल्ली विदेहरायवरकन्ना तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदयपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ। तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी–तुब्भण्णं चोक्खे! किंमूलए धम्मे पन्नत्ते? तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी–अम्हं णं देवानुप्पिए! सोयमूलए धम्मे पन्नत्ते। जं णं अम्हं किंचि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य सुई भवइ। एवं खलु अम्हे जलाभिसेय-पूयप्पाणी अविग्घेणं सग्गं गच्छामो। तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी–चोक्खे! से जहानामए केइ पुरिसे रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धीवेज्जा, अत्थि णं चोक्खे! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं धोव्वमाणस्स काइ सोही? नो इणट्ठे समट्ठे। एवामेव चोक्खे! तुब्भण्णं पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं नत्थि काइ सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव धोव्वमाणस्स। तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए एवं वुत्ता समाणी संकिया कंखिया वितिगिंछिया भेयसमावण्णा जाया यावि होत्था, मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए नो संचाएइ किंचिवि पामोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं तं चोक्खं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए बहूओ दासचेडीओ हीलेंति निंदंति खिंसंति गरिहंति, अप्पेगइयाओ हेरुयालेंति अप्पेगइयाओ मुहमक्कडियाओ करेंति अप्पेगइयाओ वग्घाडियाओ करेंति अप्पेगइयाओ तज्जेमाणीओ तालेमाणीओ निच्छुहंति। तए णं सा चोक्खा मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए दासचेडियाहिं हीलिज्जमाणी निंदिज्जमाणी खिंसिज्जमाणी गरहिज्जमाणी आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणी मल्लीए विदेहरायवरकन्नयाए पओसमावज्जइ, भिसियं गेण्हइ, गेण्हित्ता कन्नंतेउराओ पडिनिक्खमई, पडिनिक्खमित्ता मिहिलाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता, परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव पंचालजनवए जेणेव कंपिल्ल-पुरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवे-माणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ। तए णं से जियसत्तू अन्नया कयाइ अंतो अंतेउर-परियाल-सद्धिं संपरिवुडे सीहासनवरगए यावि विहरइ। तए णं सा चोक्खा, परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव जियसत्तुस्स रन्नो भवणे जेणेव जियसत्तू राया तेणेव अनुपविसइ, अनुपविसित्ता जियसत्तुं जएणं विजएणं वद्धावेइ। तए णं से जियसत्तू चोक्खं परिव्वाइयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता चोक्खं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता आसनेणं उवनिमंतेइ। तए णं सा चोक्खा उदगपरिफोसियाए दब्भोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निविसइ, निविसित्ता जियसत्तू रायं रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं सा चोक्खा जियसत्तुस्स रन्नो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ। तए णं से जियसत्तू अप्पणो ओरोहंसि जायविम्हए चोक्खं एवं वयासी–तुमं णं देवानुप्पिया! बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसंसि आहिडंसि, बहूण य राईसर-सत्थवाहप्पभिईणं गिहाइं अनुप्प-विससि, तं अत्थियाइं ते कस्सइ रन्नो वा ईसरस्स वा कहिंचि एरिसए ओरोहे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे मम ओरोहे? तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया जियसत्तुणा एवं वुत्ता समाणी ईसिं विहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी–सरिसए णं तुमं देवानुप्पिया! तस्स अगडदद्दुरस्स। के णं देवानुप्पिए! से अगडदद्दुरे? जियसत्तू! से जहानामए अगडदद्दुरे सिया। से णं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे अन्नं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मन्नेइ–अयं चेव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा। तए णं तं कूवं अन्ने सामुद्दए दद्दुरे हव्वमागए। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं दद्दुरं एवं वयासी–से के तुमं देवानुप्पिया! कत्तो वा इह हव्वमागए? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवदद्दुरं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अहं सामुद्दए दद्दुरे। तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं दद्दुरं एवं वयासी–केमहालए णं देवानुप्पिया! से समुद्दे? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवदद्दुरं एवं वयासी–महालए णं देवानुप्पिया! समुद्दे। तए णं से कूवदद्दुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी–एमहालए णं देवानुप्पिया! के समुद्दे? नो इणट्ठे समट्ठे। महालए णं से समुद्दे। तए णं से कूवदद्दुरे पुरत्थिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ता णं पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी–एमहालए णं देवानुप्पिया! से समुद्दे? नो इणट्ठे समट्ठे। एवामेव तुमंपि जियसत्तू अन्नेसिं बहूणं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईणं भज्जं वा भगिनिं वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए नो अन्नेसिं। तं एवं खलु जियसत्तू! मिहिलाए नयरीए कुंभगस्स धूया पभावईए अत्तया मल्ली नामं विदेहरायवरकन्ना रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा, नो खलु अण्णा काइ तारिसिया? देवकन्ना वा असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा जारिसिया मल्ली विदेहरायवरकन्ना तीसे छिन्नस्स वि पायंगुट्ठगस्स इमे तवोरोहे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ त्ति कट्टु जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं से जियसत्तू परिव्वाइया-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जाव मल्लिं विदेह-रायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए जियसत्तुणा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधिपति था। उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं। मिथिला नगरी में चोक्खा नामक परिव्राजिका रहती थी। मिथिला नगरी में बहुत – से राजा, ईश्वर यावत्‌ सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, और तीर्थस्नान का कथन करती, प्रज्ञापना करती, प्ररूपणा करती और उपदेश करती हुई रहती थी। एक बार किसी समय वह चोक्खा परिव्राजिका त्रिदण्ड, कुण्डिका यावत्‌ धातु से रंगे वस्त्र लेकर परि – व्राजिकाओं के मठ से बाहर नीकली। थोड़ी परिव्राजिकाओं से घिरी हुई मिथिला राजधानी के मध्य में होकर कुम्भ राजा का भवन था, जहाँ कन्याओं का अन्तःपुर था और जहाँ विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली थी, वहाँ आई। भूमि पर पानी छिड़का, उस पर डाभ बिछाया और उस पर आसन रखकर बैठी। विदेहवर राजकन्या मल्ली के सामने दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान का उपदेश देती हुई विचरने लगी – उपदेश देने लगी। तब विदेहवर राजकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से पूछा – ‘चोक्खा ! तुम्हारे धर्म का मूल क्या कहा गया है ?‌’ तब चोक्खा परिव्राजिका ने उत्तर दिया – ‘देवानुप्रिय ! मैं शौचमूलक धर्म का उपदेश करती हूँ। हमारे मत में जो कोई भी वस्तु अशुचि होती है, उसे जल से और मिट्टी से शुद्ध किया जाता है यावत्‌ इस धर्म का पालन करने से हम निर्विघ्न स्वर्ग जाते हैं। तत्पश्चात्‌ विदेहराजवरकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से कहा – ‘चोक्खा ! जैसे कोई अमुक नामधारी पुरुष रुधिर से लिप्त वस्त्र को रुधिर से ही धोवे, तो हे चोक्खा ! उस रुधिरलिप्त और रुधिर से ही धोए जाने वाले वस्त्र की कुछ शुद्धि होती है ?’ परिव्राजिका ने उत्तर दिया – ‘नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं।’ मल्ली ने कहा – ‘इसी प्रकार चोक्खा ! तुम्हारे मत में प्राणातिपात से यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य से कोई शुद्धि नहीं है, जैसे रुधिर से लिप्त और रुधिर से ही धोये जाने वाले वस्त्र की कोई शुद्धि नहीं होती। तत्पश्चात्‌ विदेहराजवरकन्या मल्ली के ऐसा कहने पर उस चोक्खा परिव्राजिका को शंका उत्पन्न हुई, कांक्षा हुई और विचिकित्सा हुई और वह भेद को प्राप्त हुई अर्थात्‌ उसने मन में तर्क – वितर्क होने लगा। वह मल्ली को कुछ भी उत्तर देने में समर्थ नहीं हो सकी, अत एव मौन रह गई। तत्पश्चात्‌ मल्ली की बहुत – सी दासियाँ चोक्खा परिव्राजिका की हीलना करने लगीं, मन से निन्दा करने लगीं, खिंसा करने लगीं, गर्हा कितनीक दासियाँ उसे क्रोधित करने लगीं, कोई कोई मुँह मटकाने लगीं, उपहास तर्जना ताड़ना करके उसे बाहर कर दिया। तत्पश्चात्‌ विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली की दासियों द्वारा यावत्‌ गर्हा की गई और अवहेलना की गई वह चोक्खा एकदम क्रुद्ध हो गई और क्रोध से मिसमिसाती हुई विदेहराजवरकन्या मल्ली के प्रति द्वेष को प्राप्त हुई। उसने अपना उपकरण उठाया, कन्याओंके अन्तःपुरसे नीकल गई। वहाँ से नीकलकर परिव्राजिकाओंके साथ जहाँ पंल जनपद था, जहाँ कम्पिल्यपुर नगर था वहाँ आई और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों – राजकुमारों – ऐश्वर्यशाली जनों आदि के सामने यावत्‌ अपने धर्म की – दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थाभिषेक आदि की प्ररूपणा करने लगी। तत्पश्चात्‌ जितशत्रु राजा एक बार किसी समय अपने अन्तःपुर और परिवार से परिवृत्त होकर सिंहासन पर बैठा था। परिव्राजिकाओं से परिवृत्ता वह चोक्खा जहाँ जितशत्रु राजा का भवन था और जहाँ जितशत्रु राजा था, वहाँ आई। आकर भीतर प्रवेश किया। जय – विजय के शब्दों से जितशत्रु का अभिनन्दन किया। उस समय जितशत्रु राजा ने चोक्खा परिव्राजिका को आते देखकर सिंहासन से उठा। चोक्खा परिव्राजिका का सत्कार किया। सम्मान किया। आसन के लिए निमंत्रण किया। तत्पश्चात्‌ वह चोक्खा परिव्राजिका जल छिड़ककर यावत्‌ डाभ पर बिछाए अपने आसन पर बैठी। फिर उसने जितशत्रु राजा, यावत्‌ अन्तःपुर के कुशल – समाचार पूछे। उसके बाद चोक्खा ने जितशत्रु राजा को दानधर्म आदि का उपदेश दिया। तत्पश्चात्‌ वह जितशत्रु राजा अपनी रानियों के सौन्दर्य आदि में विस्मययुक्त था, अतः उसने चोक्खा परिव्राजिका से पूछा – ‘हे देवानुप्रिय ! तुम बहुत – से गाँवों, आकरों आदि में यावत्‌ पर्यटन करती हो और बहुत – से राजाओं एवं ईश्वरों के घरों में प्रवेश करती हो तो कहीं किसी भी राजा आदि का ऐसा अन्तःपुर तेमने कभी पहले देखा है, जैसा मेरा यह अन्तःपुर है ?’ तब चोक्खा परिव्राजिका जितशत्रु राजा के उस प्रकार कहने पर थोड़ी मुस्करा कर बोली – ‘देवानुप्रिय ! तुम उस कूप – मंडूक के समान जान पड़ते हो।’ जितशत्रु ने पूछा – ‘देवानुप्रिय ! कौन – सा वह कूपमंडूक ?’ चोक्खा बोली – ‘जितशत्रु ! एक कूएं का मेंढक था। वह मेंढक उसी कूप में उत्पन्न हुआ था, उसी में बढ़ा था। उसने दूसरा कूप, तालाब, ह्रद, सर अथवा समुद्र देखा नहीं था। अत एव वह मानता था कि यही कूप है और यही सागर है, किसी समय उस कूप में एक समुद्री मेंढक अचानक आ गया। तब कूप के मेंढक ने कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम कौन हो ? कहाँ से अचानक यहाँ आए हो ?’ तब समुद्र के मेंढक ने कूप के मेंढक से कहा – ‘देवानुप्रिय ! मैं समुद्र का मेंढक हूँ। तब कूपमंडूक ने समुद्रमंडूक से कहा – ‘देवानुप्रिय ! वह समुद्र कितना बड़ा है ?’ तब समुद्रीमंडूक ने कूपमंडूक से कहा – ‘देवानुप्रिय ! समुद्र बहुत बड़ा है।’ तब कूपमंडूक ने अपने पैर से एक लकीर खींची और कहा – ‘देवानुप्रिय ! क्या इतना बड़ा है ?’ समुद्रीमंडूक ने कहा इस से भी बड़ा है, कूपमण्डूक पूर्व दिशा के किनारे से उछल कर दूर गया और फिर बोला – देवानुप्रिय ! वह समुद्र क्या इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा – ‘यह अर्थ समर्थ नहीं। इसी प्रकार उत्तर देता गया। इसी प्रकार हे जितशत्रु ! दूसरे बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों यावत्‌ सार्थवाह आदि की पत्नी, भगिनी, पुत्री अथवा पुत्रवधू तुमने देखी नहीं। इसी कारण समझते हो कि जैसा मेरा अन्तःपुर है, वैसा दूसरे का नहीं है। हे जितशत्रु ! मिथिला नगरी में कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती की आत्मजा मल्लीकुमारी रूप और यौवन में तथा लावण्य में जैसी उत्कृष्ट एवं उत्कृष्ट शरीर वाली है, वैसी दूसरी कोई देवकन्या भी नहीं है। विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या के काटे हुए पैर के अंगुल के लाखवें अंश के बराबर भी तुम्हारा यह अन्तःपुर नहीं है।’ इस प्रकार कहकर वह परिव्राजिका जिस दिशा से प्रकट हुई थी उसी दिशा में लौट गई। परिव्राजिका के द्वारा उत्पन्न किये गये हर्ष वाले राजा जितशत्रु ने दूत को बुलाया। पहले के समान सब कहा। यावत्‌ वह दूत मिथिला जाने के लिए रवाना हुआ।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam pamchale janavae. Kampillapure nayare. Jiyasattu namam raya pamchalahivai. Tassa nam jiyasattussa dharinipamokkham devisahassam orohe hottha. Tattha nam mihilae chokkha namam parivvaiya–riuvveya-yajjuvveda-samaveda-ahavvanaveda-itihasa-pamchamanam nighamtuchhatthanam samgovamganam sarahassanam chaunham vedanam saraga java bambhannaesu ya satthesu suparinitthiya yavi hottha. Tae nam sa chokkha parivvaiya mihilae bahunam raisara java satthavahapabhiinam purao danadhammam cha soyadhammam cha titthabhiseyam cha aghavemani pannavemani paruvemani uvadamsemani viharai. Tae nam sa chokkha annaya kayaim tidamdam cha kumdiyam cha java dhaurattao ya genhai, genhitta parivvaigavasahao padinikkhamai, padinikkhamitta pavirala-parivvaiya-saddhim samparivuda mihilam rayahanim majjhammajjhenam jeneva kumbhagassa ranno bhavane jeneva kannamteure jeneva malli videharayavarakanna teneva uvagachchhai, uvagachchhitta udayapariphosiyae dabbhovaripachchatthuyae bhisiyae nisiyai, nisiitta mallie videharayavarakannae purao danadhammam cha soyadhammam cha titthabhiseyam cha aghavemani pannavemani paruvemani uvadamsemani viharai. Tae nam malli videharayavarakanna chokkham parivvaiyam evam vayasi–tubbhannam chokkhe! Kimmulae dhamme pannatte? Tae nam sa chokkha parivvaiya malli videharayavarakannam evam vayasi–amham nam devanuppie! Soyamulae dhamme pannatte. Jam nam amham kimchi asui bhavai tam nam udaena ya mattiyae ya sui bhavai. Evam khalu amhe jalabhiseya-puyappani avigghenam saggam gachchhamo. Tae nam malli videharayavarakanna chokkham parivvaiyam evam vayasi–chokkhe! Se jahanamae kei purise ruhirakayam vattham ruhirena cheva dhivejja, atthi nam chokkhe! Tassa ruhirakayassa vatthassa ruhirenam dhovvamanassa kai sohi? No inatthe samatthe. Evameva chokkhe! Tubbhannam panaivaenam java michchhadamsanasallenam natthi kai sohi, jaha tassa ruhirakayassa vatthassa ruhirenam cheva dhovvamanassa. Tae nam sa chokkha parivvaiya mallie videharayavarakannae evam vutta samani samkiya kamkhiya vitigimchhiya bheyasamavanna jaya yavi hottha, mallie videharayavarakannae no samchaei kimchivi pamokkhamaikkhittae, tusiniya samchitthai. Tae nam tam chokkham mallie videharayavarakannae bahuo dasachedio hilemti nimdamti khimsamti garihamti, appegaiyao heruyalemti appegaiyao muhamakkadiyao karemti appegaiyao vagghadiyao karemti appegaiyao tajjemanio talemanio nichchhuhamti. Tae nam sa chokkha mallie videharayavarakannae dasachediyahim hilijjamani nimdijjamani khimsijjamani garahijjamani asurutta java misimisemani mallie videharayavarakannayae paosamavajjai, bhisiyam genhai, genhitta kannamteurao padinikkhamai, padinikkhamitta mihilao niggachchhai, niggachchhitta, parivvaiya-samparivuda jeneva pamchalajanavae jeneva kampilla-pure teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bahunam raisara java satthavahapabhiinam purao danadhammam cha soyadhammam cha titthabhiseyam cha aghave-mani pannavemani paruvemani uvadamsemani viharai. Tae nam se jiyasattu annaya kayai amto amteura-pariyala-saddhim samparivude sihasanavaragae yavi viharai. Tae nam sa chokkha, parivvaiya-samparivuda jeneva jiyasattussa ranno bhavane jeneva jiyasattu raya teneva anupavisai, anupavisitta jiyasattum jaenam vijaenam vaddhavei. Tae nam se jiyasattu chokkham parivvaiyam ejjamanam pasai, pasitta sihasanao abbhutthei, abbhutthetta chokkham sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta asanenam uvanimamtei. Tae nam sa chokkha udagapariphosiyae dabbhovari pachchatthuyae bhisiyae nivisai, nivisitta jiyasattu rayam rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya pure ya amteure ya kusalodamtam puchchhai. Tae nam sa chokkha jiyasattussa ranno danadhammam cha soyadhammam cha titthabhiseyam cha aghavemani pannavemani paruvemani uvadamsemani viharai. Tae nam se jiyasattu appano orohamsi jayavimhae chokkham evam vayasi–tumam nam devanuppiya! Bahuni gamagara java sannivesamsi ahidamsi, bahuna ya raisara-satthavahappabhiinam gihaim anuppa-visasi, tam atthiyaim te kassai ranno va isarassa va kahimchi erisae orohe ditthapuvve, jarisae nam ime mama orohe? Tae nam sa chokkha parivvaiya jiyasattuna evam vutta samani isim vihasiyam karei, karetta evam vayasi–sarisae nam tumam devanuppiya! Tassa agadadaddurassa. Ke nam devanuppie! Se agadadaddure? Jiyasattu! Se jahanamae agadadaddure siya. Se nam tattha jae tattheva vuddhe annam agadam va talagam va daham va saram va sagaram va apasamane mannei–ayam cheva agade va talage va dahe va sare va sagare va. Tae nam tam kuvam anne samuddae daddure havvamagae. Tae nam se kuvadaddure tam samuddayam dadduram evam vayasi–se ke tumam devanuppiya! Katto va iha havvamagae? Tae nam se samuddae daddure tam kuvadadduram evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Aham samuddae daddure. Tae nam se kuvadaddure tam samuddayam dadduram evam vayasi–kemahalae nam devanuppiya! Se samudde? Tae nam se samuddae daddure tam kuvadadduram evam vayasi–mahalae nam devanuppiya! Samudde. Tae nam se kuvadaddure paenam liham kaddhei, kaddhetta evam vayasi–emahalae nam devanuppiya! Ke samudde? No inatthe samatthe. Mahalae nam se samudde. Tae nam se kuvadaddure puratthimillao tirao upphiditta nam pachchatthimillam tiram gachchhai, gachchhitta evam vayasi–emahalae nam devanuppiya! Se samudde? No inatthe samatthe. Evameva tumampi jiyasattu annesim bahunam raisara java satthavahappabhiinam bhajjam va bhaginim va dhuyam va sunham va apasamane janasi jarisae mama cheva nam orohe, tarisae no annesim. Tam evam khalu jiyasattu! Mihilae nayarie kumbhagassa dhuya pabhavaie attaya malli namam videharayavarakanna ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha ukkitthasarira, no khalu anna kai tarisiya? Devakanna va asurakanna va nagakanna va jakkhakanna va gamdhavvakanna va rayakanna va jarisiya malli videharayavarakanna tise chhinnassa vi payamgutthagassa ime tavorohe sayasahassaimampi kalam na agghai tti kattu jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam se jiyasattu parivvaiya-janiya-hase duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–java mallim videha-rayavarakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due jiyasattuna evam vutte samane hatthatutthe java jeneva mihila nayari teneva paharettha gamanae.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem pamchala namaka janapada mem kampilyapura namaka nagara tha. Vaham jitashatru namaka raja tha, vahi pamchala desha ka adhipati tha. Usa jitashatru raja ke antahpura mem eka hajara raniyam thim. Mithila nagari mem chokkha namaka parivrajika rahati thi. Mithila nagari mem bahuta – se raja, ishvara yavat sarthavaha adi ke samane danadharma, shauchadharma, aura tirthasnana ka kathana karati, prajnyapana karati, prarupana karati aura upadesha karati hui rahati thi. Eka bara kisi samaya vaha chokkha parivrajika tridanda, kundika yavat dhatu se ramge vastra lekara pari – vrajikaom ke matha se bahara nikali. Thori parivrajikaom se ghiri hui mithila rajadhani ke madhya mem hokara kumbha raja ka bhavana tha, jaham kanyaom ka antahpura tha aura jaham videha ki uttama rajakanya malli thi, vaham ai. Bhumi para pani chhiraka, usa para dabha bichhaya aura usa para asana rakhakara baithi. Videhavara rajakanya malli ke samane danadharma, shauchadharma, tirthasnana ka upadesha deti hui vicharane lagi – upadesha dene lagi. Taba videhavara rajakanya malli ne chokkha parivrajika se puchha – ‘chokkha ! Tumhare dharma ka mula kya kaha gaya hai\?’ taba chokkha parivrajika ne uttara diya – ‘devanupriya ! Maim shauchamulaka dharma ka upadesha karati hum. Hamare mata mem jo koi bhi vastu ashuchi hoti hai, use jala se aura mitti se shuddha kiya jata hai yavat isa dharma ka palana karane se hama nirvighna svarga jate haim. Tatpashchat videharajavarakanya malli ne chokkha parivrajika se kaha – ‘chokkha ! Jaise koi amuka namadhari purusha rudhira se lipta vastra ko rudhira se hi dhove, to he chokkha ! Usa rudhiralipta aura rudhira se hi dhoe jane vale vastra ki kuchha shuddhi hoti hai\?’ parivrajika ne uttara diya – ‘nahim, yaha artha samartha nahim.’ malli ne kaha – ‘isi prakara chokkha ! Tumhare mata mem pranatipata se yavat mithyadarshanashalya se koi shuddhi nahim hai, jaise rudhira se lipta aura rudhira se hi dhoye jane vale vastra ki koi shuddhi nahim hoti. Tatpashchat videharajavarakanya malli ke aisa kahane para usa chokkha parivrajika ko shamka utpanna hui, kamksha hui aura vichikitsa hui aura vaha bheda ko prapta hui arthat usane mana mem tarka – vitarka hone laga. Vaha malli ko kuchha bhi uttara dene mem samartha nahim ho saki, ata eva mauna raha gai. Tatpashchat malli ki bahuta – si dasiyam chokkha parivrajika ki hilana karane lagim, mana se ninda karane lagim, khimsa karane lagim, garha kitanika dasiyam use krodhita karane lagim, koi koi mumha matakane lagim, upahasa tarjana tarana karake use bahara kara diya. Tatpashchat videharaja ki uttama kanya malli ki dasiyom dvara yavat garha ki gai aura avahelana ki gai vaha chokkha ekadama kruddha ho gai aura krodha se misamisati hui videharajavarakanya malli ke prati dvesha ko prapta hui. Usane apana upakarana uthaya, kanyaomke antahpurase nikala gai. Vaham se nikalakara parivrajikaomke satha jaham pamla janapada tha, jaham kampilyapura nagara tha vaham ai aura bahuta se rajaom evam ishvarom – rajakumarom – aishvaryashali janom adi ke samane yavat apane dharma ki – danadharma, shauchadharma, tirthabhisheka adi ki prarupana karane lagi. Tatpashchat jitashatru raja eka bara kisi samaya apane antahpura aura parivara se parivritta hokara simhasana para baitha tha. Parivrajikaom se parivritta vaha chokkha jaham jitashatru raja ka bhavana tha aura jaham jitashatru raja tha, vaham ai. Akara bhitara pravesha kiya. Jaya – vijaya ke shabdom se jitashatru ka abhinandana kiya. Usa samaya jitashatru raja ne chokkha parivrajika ko ate dekhakara simhasana se utha. Chokkha parivrajika ka satkara kiya. Sammana kiya. Asana ke lie nimamtrana kiya. Tatpashchat vaha chokkha parivrajika jala chhirakakara yavat dabha para bichhae apane asana para baithi. Phira usane jitashatru raja, yavat antahpura ke kushala – samachara puchhe. Usake bada chokkha ne jitashatru raja ko danadharma adi ka upadesha diya. Tatpashchat vaha jitashatru raja apani raniyom ke saundarya adi mem vismayayukta tha, atah usane chokkha parivrajika se puchha – ‘he devanupriya ! Tuma bahuta – se gamvom, akarom adi mem yavat paryatana karati ho aura bahuta – se rajaom evam ishvarom ke gharom mem pravesha karati ho to kahim kisi bhi raja adi ka aisa antahpura temane kabhi pahale dekha hai, jaisa mera yaha antahpura hai\?’ Taba chokkha parivrajika jitashatru raja ke usa prakara kahane para thori muskara kara boli – ‘devanupriya ! Tuma usa kupa – mamduka ke samana jana parate ho.’ jitashatru ne puchha – ‘devanupriya ! Kauna – sa vaha kupamamduka\?’ chokkha boli – ‘jitashatru ! Eka kuem ka memdhaka tha. Vaha memdhaka usi kupa mem utpanna hua tha, usi mem barha tha. Usane dusara kupa, talaba, hrada, sara athava samudra dekha nahim tha. Ata eva vaha manata tha ki yahi kupa hai aura yahi sagara hai, kisi samaya usa kupa mem eka samudri memdhaka achanaka a gaya. Taba kupa ke memdhaka ne kaha – ‘devanupriya ! Tuma kauna ho\? Kaham se achanaka yaham ae ho\?’ taba samudra ke memdhaka ne kupa ke memdhaka se kaha – ‘devanupriya ! Maim samudra ka memdhaka hum. Taba kupamamduka ne samudramamduka se kaha – ‘devanupriya ! Vaha samudra kitana bara hai\?’ taba samudrimamduka ne kupamamduka se kaha – ‘devanupriya ! Samudra bahuta bara hai.’ taba kupamamduka ne apane paira se eka lakira khimchi aura kaha – ‘devanupriya ! Kya itana bara hai\?’ samudrimamduka ne kaha isa se bhi bara hai, kupamanduka purva disha ke kinare se uchhala kara dura gaya aura phira bola – devanupriya ! Vaha samudra kya itana bara hai\? Samudri memdhaka ne kaha – ‘yaha artha samartha nahim. Isi prakara uttara deta gaya. Isi prakara he jitashatru ! Dusare bahuta se rajaom evam ishvarom yavat sarthavaha adi ki patni, bhagini, putri athava putravadhu tumane dekhi nahim. Isi karana samajhate ho ki jaisa mera antahpura hai, vaisa dusare ka nahim hai. He jitashatru ! Mithila nagari mem kumbha raja ki putri aura prabhavati ki atmaja mallikumari rupa aura yauvana mem tatha lavanya mem jaisi utkrishta evam utkrishta sharira vali hai, vaisi dusari koi devakanya bhi nahim hai. Videharaja ki shreshtha kanya ke kate hue paira ke amgula ke lakhavem amsha ke barabara bhi tumhara yaha antahpura nahim hai.’ isa prakara kahakara vaha parivrajika jisa disha se prakata hui thi usi disha mem lauta gai. Parivrajika ke dvara utpanna kiye gaye harsha vale raja jitashatru ne duta ko bulaya. Pahale ke samana saba kaha. Yavat vaha duta mithila jane ke lie ravana hua.