Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004568
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-४१ राशियुग्मं, त्र्योजराशि, द्वापर युग्मं राशि

Translated Chapter :

शतक-४१ राशियुग्मं, त्र्योजराशि, द्वापर युग्मं राशि

Section : उद्देशक-१ थी १९६ Translated Section : उद्देशक-१ थी १९६
Sutra Number : 1068 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कति णं भंते! रासीजुम्मा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, सेत्तं रासीजुम्मकडजुम्मे। एवं जाव जे णं रासी चउ-क्कएणं अवहारेणं एगपज्जवसिए, सेत्तं रासीजुम्मकलियोगे। से तेणट्ठेणं जाव कलियोगे। रासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ जहा वक्कंतीए। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति? गोयमा! चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। ते णं भंते! जीवा किं संतरं उववज्जंति? निरंतरं उववज्जंति? गोयमा! संतरं पि उववज्जंति, निरंतरं पि उववज्जंति। संतरं उववज्जमाणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जे समए अंतरं कट्टु उववज्जंति। निरंतरं उववज्जमाणा जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेज्जा समया अनुसमयं अविरहियं निरंतरं उववज्जंति। ते णं भंते! जीवा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेयोगा? जं समयं तेयोगा तं समयं कडजुम्मा? नो तिणट्ठे समट्ठे। जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा? जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा? नो तिणट्ठे समट्ठे। जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलियोगा? जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा? नो तिणट्ठे समट्ठे। ते णं भंते! जीवा कहिं उववज्जंति? गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, एवं जहा उववायसते जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति। ते णं भंते! जीवा किं आयजसेनं उववज्जंति? आयअजसेनं उववज्जंति? गोयमा! नो आयजसेनं उववज्जंति, आयअजसेनं उववज्जंति। जइ आयअजसेनं उववज्जंति–किं आयजसं उवजीवंति? आयअजसं उवजीवंति? गोयमा! नो आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति। जइ आयअजसं उवजीवंति–किं सलेस्सा? अलेस्सा? गोयमा! सलेस्सा, नो अलेस्सा। जइ सलेस्सा किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! सकिरिया, नो अकिरिया। जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? नो तिणट्ठे समट्ठे। रासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा णं भंते! कओ उववज्जंति? जहेव नेरतिया तहेव निरवसेसं। एवं जाव पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिया, नवरं–वणस्सइकाइया जाव असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति, सेसं एवं चेव। मनुस्सा वि एवं चेव जाव नो आयजसेनं उववज्जंति, आयअजसेनं उववज्जंति। जइ आयअजसेनं उववज्जंति–किं आयजसं उवजीवंति? आयअजसं उवजीवंति? गोयमा! आयजसं पि उवजीवंति, आयअजसं पि उवजीवंति। जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा? अलेस्सा? गोयमा! सलेस्सा वि अलेस्सा वि। जइ अलेस्सा किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! नो सकिरिया, अकिरिया। जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? हंता सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। जइ सलेस्सा किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! सकिरिया, नो अकिरिया। जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? गोयमा! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति, अत्थेगइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। जइ आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा? अलेस्सा? गोयमा! सलेस्सा, नो अलेस्सा। जइ सलेस्सा किं सकिरिया? अकिरिया? गोयमा! सकिरिया, नो अकिरिया। जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति? नो इणट्ठे समट्ठे। वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! राशियुग्म कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार, यथा – कृतयुग्म, यावत्‌ कल्योज। भगवन्‌ ! राशि – युग्म चार कहे हैं, ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जिस राशि में चार – चार का अपहार करते हुए अन्त में ४ शेष रहें, उस राशियुग्म को कृतयुग्म कहते हैं, यावत्‌ जिस राशि में से चार – चार अपहार करते हुए अन्त में एक शेष रहे, उस राशियुग्म को ‘कल्योज’ कहते हैं। इसी कारण से हे गौतम ! यावत्‌ कल्योज कहलाता है। भगवन्‌ ! राशियुग्म – कृतयुग्मरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। जो सान्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं। जो निरन्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! वे जीव जिस समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं, क्या उसी समय त्र्योजराशिरूप होते हैं और जिस समय त्र्योजराशियुक्त होते हैं, उसी समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन्‌ ! जिस समय वे जीव कृतयुग्मरूप होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मरूप होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं, उसी समय कृतयुग्मरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! जिस समय वे कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं तथा जिस समय कल्योज होते हैं, उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! वे जीव कैसे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि उपपातशतक अनुसार वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। भगवन्‌ ! वे जीव आत्म – यश से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्मअयश से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्म – अयश से उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे जीव आत्म – अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म – यश से जीवनिर्वाह करते हैं अथवा आत्म – अयश से जीवननिर्वाह करते हैं ? गौतम ! वे आत्म – अयश से करते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे आत्म – अयश से अपना जीवननिर्वाह करते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं अथवा अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जाते हैं यावत्‌ सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! राशियुग्म – कृतयुग्मराशिरूप असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों के कथन अनुसार यहाँ जानना। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तक इसी प्रकार कहना। विशेष – वनस्पतिकायिक जीव यावत्‌ असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं, शेष पूर्ववत्‌। मनुष्यों से सम्बन्धित कथन भी वे आत्म – यश से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु आत्म – अयश से उत्पन्न होते हैं, तक कहना। भगवन्‌ ! यदि वे आत्म – अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या आत्म – यश से जीवन – निर्वाह करते हैं या आत्म – अयश से जीवन निर्वाह करते हैं। गौतम ! आत्म – यश से भी और आत्म – अयश से भी जीवन निर्वाह करते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे आत्मयश से जीवन – निर्वाह करते हैं तो सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी भी होते हैं और अलेश्यी भी। भगवन्‌ ! यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे किन्तु अक्रिय होते हैं भगवन्‌ ! यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करते हैं? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं। भगवन्‌ ! वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम! कितने ही इसी भव में सिद्ध होते हैं यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं और कितने ही उसी भव में सिद्ध – बुद्ध – मुक्त नहीं होते, यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर पाते। भगवन्‌ ! यदि वे आत्म – अयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम! वे सलेश्यी होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक – सम्बन्धी कथन नैरयिक के समान है। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kati nam bhamte! Rasijumma pannatta? Goyama! Chattari rasijumma pannatta, tam jaha–kadajumme java kaliyoge. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–chattari rasijumma pannatta, tam jaha–kadajumme java kaliyoge? Goyama! Je nam rasi chaukkaenam avaharenam avahiramane chaupajjavasie, settam rasijummakadajumme. Evam java je nam rasi chau-kkaenam avaharenam egapajjavasie, settam rasijummakaliyoge. Se tenatthenam java kaliyoge. Rasijummakadajummaneraiya nam bhamte! Kao uvavajjamti? Uvavao jaha vakkamtie. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevaiya uvavajjamti? Goyama! Chattari va attha va barasa va solasa va samkhejja va asamkhejja va uvavajjamti. Te nam bhamte! Jiva kim samtaram uvavajjamti? Niramtaram uvavajjamti? Goyama! Samtaram pi uvavajjamti, niramtaram pi uvavajjamti. Samtaram uvavajjamana jahannenam ekkam samayam, ukkosenam asamkhejje samae amtaram kattu uvavajjamti. Niramtaram uvavajjamana jahannenam do samaya, ukkosenam asamkhejja samaya anusamayam avirahiyam niramtaram uvavajjamti. Te nam bhamte! Jiva jam samayam kadajumma tam samayam teyoga? Jam samayam teyoga tam samayam kadajumma? No tinatthe samatthe. Jam samayam kadajumma tam samayam davarajumma? Jam samayam davarajumma tam samayam kadajumma? No tinatthe samatthe. Jam samayam kadajumma tam samayam kaliyoga? Jam samayam kaliyoga tam samayam kadajumma? No tinatthe samatthe. Te nam bhamte! Jiva kahim uvavajjamti? Goyama! Se jahanamae pavae pavamane, evam jaha uvavayasate java no parappayogenam uvavajjamti. Te nam bhamte! Jiva kim ayajasenam uvavajjamti? Ayaajasenam uvavajjamti? Goyama! No ayajasenam uvavajjamti, ayaajasenam uvavajjamti. Jai ayaajasenam uvavajjamti–kim ayajasam uvajivamti? Ayaajasam uvajivamti? Goyama! No ayajasam uvajivamti, ayaajasam uvajivamti. Jai ayaajasam uvajivamti–kim salessa? Alessa? Goyama! Salessa, no alessa. Jai salessa kim sakiriya? Akiriya? Goyama! Sakiriya, no akiriya. Jai sakiriya teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti? No tinatthe samatthe. Rasijummakadajummaasurakumara nam bhamte! Kao uvavajjamti? Jaheva neratiya taheva niravasesam. Evam java pamchimdiya-tirikkhajoniya, navaram–vanassaikaiya java asamkhejja va anamta va uvavajjamti, sesam evam cheva. Manussa vi evam cheva java no ayajasenam uvavajjamti, ayaajasenam uvavajjamti. Jai ayaajasenam uvavajjamti–kim ayajasam uvajivamti? Ayaajasam uvajivamti? Goyama! Ayajasam pi uvajivamti, ayaajasam pi uvajivamti. Jai ayajasam uvajivamti kim salessa? Alessa? Goyama! Salessa vi alessa vi. Jai alessa kim sakiriya? Akiriya? Goyama! No sakiriya, akiriya. Jai akiriya teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti? Hamta sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti. Jai salessa kim sakiriya? Akiriya? Goyama! Sakiriya, no akiriya. Jai sakiriya teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti? Goyama! Atthegaiya teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti, atthegaiya no teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti. Jai ayaajasam uvajivamti kim salessa? Alessa? Goyama! Salessa, no alessa. Jai salessa kim sakiriya? Akiriya? Goyama! Sakiriya, no akiriya. Jai sakiriya teneva bhavaggahanenam sijjhamti java savvadukkhanam amtam karemti? No inatthe samatthe. Vanamamtarajoisiyavemaniya jaha neraiya. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Rashiyugma kitane kahe gae haim\? Gautama ! Chara, yatha – kritayugma, yavat kalyoja. Bhagavan ! Rashi – yugma chara kahe haim, aisa kisa karana se kahate haim\? Gautama ! Jisa rashi mem chara – chara ka apahara karate hue anta mem 4 shesha rahem, usa rashiyugma ko kritayugma kahate haim, yavat jisa rashi mem se chara – chara apahara karate hue anta mem eka shesha rahe, usa rashiyugma ko ‘kalyoja’ kahate haim. Isi karana se he gautama ! Yavat kalyoja kahalata hai. Bhagavan ! Rashiyugma – kritayugmarupa nairayika kaham se akara utpanna hote haim\? Inaka upapata vyutkrantipada anusara janana. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Chara, atha, baraha, solaha, samkhyata ya asamkhyata utpanna hote haim. Bhagavan ! Ve jiva santara utpanna hote haim ya nirantara\? Gautama ! Ve jiva santara bhi utpanna hote haim aura nirantara bhi. Jo santara utpanna hote haim, ve jaghanya eka samaya aura utkrishta asamkhyata samaya ka antara karake utpanna hote haim. Jo nirantara utpanna hote haim, ve jaghanya do samaya aura utkrishta asamkhyata samaya taka nirantara pratisamaya avirahitarupa se utpanna hote haim. Bhagavan ! Ve jiva jisa samaya kritayugmarashirupa hote haim, kya usi samaya tryojarashirupa hote haim aura jisa samaya tryojarashiyukta hote haim, usi samaya kritayugmarashirupa hote haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim. Bhagavan ! Jisa samaya ve jiva kritayugmarupa hote haim, kya usa samaya dvaparayugmarupa hote haim tatha jisa samaya ve dvaparayugmarupa hote haim, usi samaya kritayugmarupa hote haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Jisa samaya ve kritayugma hote haim, kya usa samaya kalyoja hote haim tatha jisa samaya kalyoja hote haim, usa samaya kritayugmarashi hote haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Ve jiva kaise utpanna hote haim\? Gautama ! Jaise koi kudane vala ityadi upapatashataka anusara ve atmaprayoga se utpanna hote haim, paraprayoga se nahim. Bhagavan ! Ve jiva atma – yasha se utpanna hote haim athava atmaayasha se utpanna hote haim\? Gautama ! Ve atma – ayasha se utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi ve jiva atma – ayasha se utpanna hote haim to kya ve atma – yasha se jivanirvaha karate haim athava atma – ayasha se jivananirvaha karate haim\? Gautama ! Ve atma – ayasha se karate haim. Bhagavan ! Yadi ve atma – ayasha se apana jivananirvaha karate haim, to ve saleshyi hote haim athava aleshyi hote haim\? Gautama ! Ve saleshyi hote haim. Bhagavan ! Yadi ve saleshyi hote haim to sakriya hote haim ya akriya hote haim\? Gautama ! Ve sakriya hote haim. Bhagavan ! Yadi ve sakriya hote haim to kya usi bhava ko grahana karake siddha, buddha, mukta ho jate haim yavat sarvaduhkhom ka anta kara dete haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Rashiyugma – kritayugmarashirupa asurakumara kaham se akara utpanna hote haim\? Nairayikom ke kathana anusara yaham janana. Pamchendriya tiryancha taka isi prakara kahana. Vishesha – vanaspatikayika jiva yavat asamkhyata ya ananta utpanna hote haim, shesha purvavat. Manushyom se sambandhita kathana bhi ve atma – yasha se utpanna nahim hote, kintu atma – ayasha se utpanna hote haim, taka kahana. Bhagavan ! Yadi ve atma – ayasha se utpanna hote haim to kya atma – yasha se jivana – nirvaha karate haim ya atma – ayasha se jivana nirvaha karate haim. Gautama ! Atma – yasha se bhi aura atma – ayasha se bhi jivana nirvaha karate haim. Bhagavan ! Yadi ve atmayasha se jivana – nirvaha karate haim to saleshyi hote haim ya aleshyi hote haim\? Gautama ! Ve saleshyi bhi hote haim aura aleshyi bhi. Bhagavan ! Yadi ve aleshyi hote haim to sakriya hote haim ya akriya hote haim\? Gautama ! Ve kintu akriya hote haim bhagavan ! Yadi ve akriya hote haim to kya usi bhava ko grahana karake siddha, buddha, mukta yavat sarva duhkhom ka anta karate haim? Ham, gautama ! Karate haim. Bhagavan ! Yadi ve saleshyi haim to sakriya hote haim ya akriya hote haim\? Gautama ! Ve sakriya hote haim. Bhagavan ! Ve sakriya hote haim to kya usi bhava ko grahana karake siddha hote haim yavat saba duhkhom ka anta karate haim\? Gautama! Kitane hi isi bhava mem siddha hote haim yavat sarva duhkhom ka anta kara dete haim aura kitane hi usi bhava mem siddha – buddha – mukta nahim hote, yavat sarva duhkhom ka anta nahim kara pate. Bhagavan ! Yadi ve atma – ayasha se jivana nirvaha karate haim to ve saleshyi hote haim ya aleshyi hote haim\? Gautama! Ve saleshyi hote haim. Bhagavan ! Yadi ve saleshyi hote haim to sakriya hote haim athava akriya hote haim\? Gautama ! Ve sakriya hote haim. Bhagavan ! Yadi ve sakriya hote haim to kya usi bhava ko grahana karake siddha hote haim yavat sarva duhkhom ka anta kara dete haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Vanavyantara, jyotishka aura vaimanika – sambandhi kathana nairayika ke samana hai. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’