Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004371
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२५

Translated Chapter :

शतक-२५

Section : उद्देशक-३ संस्थान Translated Section : उद्देशक-३ संस्थान
Sutra Number : 871 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कति णं भंते! संठाणा पन्नत्ता? गोयमा! पंच संठाणा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडले जाव आयते। परिमंडला णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता। सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए परिमंडला संठाणा? एवं चेव। एवं जाव आयता। एवं जाव अहेसत्तमाए। सोहम्मे णं भंते! कप्पे परिमंडला संठाणा? एवं जाव अच्चुए। गेवेज्जविमाने णं भंते! परिमंडला संठाणा? एवं चेव। एवं अनुत्तरविमानेसु वि। एवं ईसिपब्भाराए वि। जत्थ णं भंते! एगे परिमंडले संठाणे जवमज्झे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता। जत्थ णं भंते! एगे वट्टे संठाणे जवमज्झे तत्थ परिमंडला संठाणा? एवं चेव। वट्टा संठाणा एवं चेव। एवं जाव आयता। एवं एक्केक्केणं संठाणेणं पंच वि चारेयव्वा जाव आयतेणं। जत्थ णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे परिमंडले संठाणे जवमज्झे तत्थ णं परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा–पुच्छा। गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता। जत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे वट्टे संठाणे जवमज्झे तत्थ णं परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा–पुच्छा। गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। वट्टा संठाणा एवं चेव। एवं जाव आयता। एवं पुनरवि एक्केक्केणं संठाणेणं पंच वि चारेयव्वा जहेव हेट्ठिल्ला जाव आयतेणं। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं कप्पेसु वि जाव ईसीपब्भाराए पुढवीए।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – परिमण्डल (से लेकर) आयत तक। भगवन्‌ ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन्‌ ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, इत्यादि (गौतम !) अनन्त हैं। इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना चाहिए। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी में वृत्तसंस्थान संख्यात है, इत्यादि अनन्त हैं ? पूर्ववत्‌ समझना। इसी प्रकार आयत तक समझना। भगवन्‌ ! शर्कराप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि पूर्ववत्‌ समझना। इसी प्रकार आगे आयत पर्यन्त (समझना चाहिए।) इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिए। भगवन्‌ ! सौधर्मकल्प में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? पूर्ववत्‌ समझना। अच्युत तक पूर्ववत्‌। भगवन्‌! ग्रैवेयक विमानों में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न। (गौतम !) पूर्ववत्‌ जानना। इसी प्रकार यावत्‌ अनुत्तरविमानों के विषय में पूर्ववत्‌। इसी प्रकार यावत्‌ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के विषय में भी पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! जहाँ एक यवाकार परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ अन्य परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! ये अनन्त हैं। भगवन्‌ ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना। भगवन्‌ ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान हैं, वहाँ परिमण्डल – संस्थान कितने हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। जहाँ यवाकार अनेक वृत्तसंस्थान हों, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? पूर्ववत्‌। इसी प्रकार वृत्तसंस्थान यावत्‌ आयतसंस्थान भी अनन्त हैं। इसी प्रकार एक – एक संस्थान के साथ पाँचों संस्थानों के सम्बन्ध का विचार करना चाहिए। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ एक यवमध्य परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ दूसरे परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन्‌ ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार आयत पर्यन्त समझना। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन्‌ ! जहाँ यवाकार अनेक वृत्तस्थान हैं, वहाँ परिमण्डल – संस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार आयत तक जानना। यहाँ फिर पूर्ववत्‌ प्रत्येक संस्थान के साथ पाँचों संस्थानों का आयतसंस्थान विचार करना चाहिए। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। इसी प्रकार कल्पों से ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पर्यन्त के लिए जानना चाहिए। भगवन्‌ ! वृत्तसंस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ रहा हुआ है ? गौतम ! वृत्तसंस्थान दो प्रकार का – घनवृत्त और प्रतरवृत्त। इनमें जो प्रतरवृत्त है, वह दो प्रकार का – ओज – प्रदेशिक और युग्म – प्रदेशिक। इनमें से जो ओज – प्रदेशिक प्रतरवृत्त जघन्य पंच – प्रदेशिक और पाँच आकाश – प्रदेशों में अवगाढ़ है तथा उत्कृष्ट अनन्त – प्रदेशिक और असंख्यात आकाश – प्रदेशों में अवगाढ़ हैं और जो युग्म – प्रदेशिक प्रतरवृत्त है, वह जघन्य बारह प्रदेश वाला और बारह आकाश – प्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्यात आकाश – प्रदेशों में अवगाढ़ होता है। घनवृत्तसंस्थान दो प्रकार का ओज – प्रदेशिक और युग्म – प्रदेशिक। ओज – प्रदेशिक जघन्य सात प्रदेश वाला और सात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ है। युग्म – प्रदेशिक घनवृत्तसंस्थान जघन्य बत्तीस प्रदेशों वाला और बत्तीस आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है, उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ है
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kati nam bhamte! Samthana pannatta? Goyama! Pamcha samthana pannatta, tam jaha–parimamdale java ayate. Parimamdala nam bhamte! Samthana kim samkhejja? Asamkhejja? Anamta? Goyama! No samkhejja, no asamkhejja, anamta. Vatta nam bhamte! Samthana kim samkhejja? Evam cheva. Evam java ayata. Imise nam bhamte! Rayanappabhae pudhavie parimamdala samthana kim samkhejja? Asamkhejja? Anamta? Goyama! No samkhejja, no asamkhejja, anamta. Vatta nam bhamte! Samthana kim samkhejja? Evam cheva. Evam java ayata. Sakkarappabhae nam bhamte! Pudhavie parimamdala samthana? Evam cheva. Evam java ayata. Evam java ahesattamae. Sohamme nam bhamte! Kappe parimamdala samthana? Evam java achchue. Gevejjavimane nam bhamte! Parimamdala samthana? Evam cheva. Evam anuttaravimanesu vi. Evam isipabbharae vi. Jattha nam bhamte! Ege parimamdale samthane javamajjhe tattha parimamdala samthana kim samkhejja? Asamkhejja? Anamta? Goyama! No samkhejja, no asamkhejja, anamta. Vatta nam bhamte! Samthana kim samkhejja? Evam cheva. Evam java ayata. Jattha nam bhamte! Ege vatte samthane javamajjhe tattha parimamdala samthana? Evam cheva. Vatta samthana evam cheva. Evam java ayata. Evam ekkekkenam samthanenam pamcha vi chareyavva java ayatenam. Jattha nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie ege parimamdale samthane javamajjhe tattha nam parimamdala samthana kim samkhejja–puchchha. Goyama! No samkhejja, no asamkhejja, anamta. Vatta nam bhamte! Samthana kim samkhejja? Evam cheva. Evam java ayata. Jatthi nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie ege vatte samthane javamajjhe tattha nam parimamdala samthana kim samkhejja–puchchha. Goyama! No samkhejja, no asamkhejja, anamta. Vatta samthana evam cheva. Evam java ayata. Evam punaravi ekkekkenam samthanenam pamcha vi chareyavva jaheva hetthilla java ayatenam. Evam java ahesattamae. Evam kappesu vi java isipabbharae pudhavie.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Samsthana kitane prakara ke kahe gae haim\? Gautama ! Pamcha prakara ke – parimandala (se lekara) ayata taka. Bhagavan ! Parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim, athava ananta haim\? Gautama ! Ve ananta haim. Bhagavan ! Vrittasamsthana samkhyata haim, ityadi (gautama !) ananta haim. Isi prakara ayatasamsthana taka janana chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi mem parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Ananta haim. Bhagavan ! Ratnaprabhaprithvi mem vrittasamsthana samkhyata hai, ityadi ananta haim\? Purvavat samajhana. Isi prakara ayata taka samajhana. Bhagavan ! Sharkaraprabhaprithvi mem parimandalasamsthana samkhyata haim\? Ityadi purvavat samajhana. Isi prakara age ayata paryanta (samajhana chahie.) isi prakara adhahsaptamaprithvi taka samajhana chahie. Bhagavan ! Saudharmakalpa mem parimandalasamsthana samkhyata haim\? Purvavat samajhana. Achyuta taka purvavat. Bhagavan! Graiveyaka vimanom mem parimandalasamsthana samkhyata haim\? Ityadi prashna. (gautama !) purvavat janana. Isi prakara yavat anuttaravimanom ke vishaya mem purvavat. Isi prakara yavat ishatpragbharaprithvi ke vishaya mem bhi purvavat. Bhagavan ! Jaham eka yavakara parimandalasamsthana hai, vaham anya parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Ye ananta haim. Bhagavan ! Vrittasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Purvavat. Isi prakara ayatasamsthana taka janana. Bhagavan ! Jaham yavakara eka vrittasamsthana haim, vaham parimandala – samsthana kitane haim\? Gautama ! Purvavat. Jaham yavakara aneka vrittasamsthana hom, vaham parimandalasamsthana kitane haim\? Purvavat. Isi prakara vrittasamsthana yavat ayatasamsthana bhi ananta haim. Isi prakara eka – eka samsthana ke satha pamchom samsthanom ke sambandha ka vichara karana chahie. Bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi mem jaham eka yavamadhya parimandalasamsthana hai, vaham dusare parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Ve ananta haim. Bhagavan ! Jaham yavakara eka vrittasamsthana hai vaham parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Purvavat. Isi prakara ayata paryanta samajhana. Bhagavan ! Isa ratnaprabhaprithvi mem jaham yavakara eka vrittasamsthana hai, vaham parimandalasamsthana samkhyata haim, asamkhyata haim ya ananta haim\? Gautama ! Ve ananta haim. Bhagavan ! Jaham yavakara aneka vrittasthana haim, vaham parimandala – samsthana samkhyata haim\? Ityadi. Gautama ! Purvavat. Isi prakara ayata taka janana. Yaham phira purvavat pratyeka samsthana ke satha pamchom samsthanom ka ayatasamsthana vichara karana chahie. Isi prakara adhahsaptamaprithvi taka kahana chahie. Isi prakara kalpom se ishatpragbharaprithvi paryanta ke lie janana chahie. Bhagavan ! Vrittasamsthana kitane pradesha vala hai aura kitane akashapradeshom mem avagarha raha hua hai\? Gautama ! Vrittasamsthana do prakara ka – ghanavritta aura prataravritta. Inamem jo prataravritta hai, vaha do prakara ka – oja – pradeshika aura yugma – pradeshika. Inamem se jo oja – pradeshika prataravritta jaghanya pamcha – pradeshika aura pamcha akasha – pradeshom mem avagarha hai tatha utkrishta ananta – pradeshika aura asamkhyata akasha – pradeshom mem avagarha haim aura jo yugma – pradeshika prataravritta hai, vaha jaghanya baraha pradesha vala aura baraha akasha – pradeshom mem avagarha hota hai tatha utkrishta anantapradeshika aura asamkhyata akasha – pradeshom mem avagarha hota hai. Ghanavrittasamsthana do prakara ka oja – pradeshika aura yugma – pradeshika. Oja – pradeshika jaghanya sata pradesha vala aura sata akashapradeshom mem avagarha hota hai tatha utkrishta ananta pradeshom vala aura asamkhyata akashapradeshom mem avagarha hai. Yugma – pradeshika ghanavrittasamsthana jaghanya battisa pradeshom vala aura battisa akashapradeshom mem avagarha hota hai, utkrishta ananta pradeshom vala aura asamkhyata akashapradeshom mem avagarha hai