Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004250 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१८ |
Translated Chapter : |
शतक-१८ |
Section : | उद्देशक-८ अनगार क्रिया | Translated Section : | उद्देशक-८ अनगार क्रिया |
Sutra Number : | 750 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे जाव उड्ढं जाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, एगंतदंडा, एगंतबाला यावि भवह? तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–केणं कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं अस्संजय जाव एगंतबाला यावि भवामो? तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेह, अभिहणह जाव उद्दवेह, तए णं तुब्भे पाणे पेच्चेमाणा जाव उद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवह। तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–नो खलु अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेमो जाव उद्दवेमो, अम्हे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा कायं च जोयं च रीयं च पडुच्च दिस्सा-दिस्सा पदिस्सा-पदिस्सा वयामो, तए णं अम्हे दिस्सा -दिस्सा वयमाणा पदिस्सा-पदिस्सा वयमाणा नो पाणे पेच्चेमो जाव नो उद्दवेमो, तए णं अम्हे पाणे अपेच्चेमाणा जाव अनोद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतपंडिया यावि भवामो। तुब्भे णं अज्जो! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी–केणं कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवामो? तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेह जाव उद्दवेह, तए णं तुब्भे पाणे पेच्चेमाणा जाव उद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवह। तए णं भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं पडिभणइ, पडिभणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे णातिदूरे जाव पज्जुवासति। गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–सुट्ठु णं तुमं गोयमा! ते अन्नउत्थिए एवं वदासी, साहु णं तुमं गोयमा! ते अन्नउत्थिए एवं वदासी। अत्थि णं गोयमा! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था, जे णं नो पभू एयं वागरणं वागरेत्तए, जहा णं तुमं। तं सुट्ठु णं तुमं गोयमा! ते अन्नउत्थिए एवं वयासी, साहु णं तुमं गोयमा! ते अन्नउत्थिए एवं वयासी। तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में यावत् पृथ्वीशिलापट्ट था। उस गुणशीलक उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक निवास करते थे। उन दिनों में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत् परीषद् वापिस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री इन्द्रभूति नामक अनगार यावत्, ऊर्ध्वजानु यावत् तप – संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे। एक दिन वे अन्यतीर्थिक, श्री गौतम स्वामी के पास आकर कहने लगे – आर्य ! तुम त्रिविध – त्रिविध से असंयत, अविरत यावत् एकान्त बाल हो। इस पर गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – ‘हे आर्यो ! किस कारण से हम तीन करण, तीन योग से असंयत, अविरत, यावत् एकान्त बाल हैं ?’ तब वे अन्यतीर्थिक, भगवान् गौतम से कहने लगे – हे आर्य ! तुम गमन करते हुए जीवों को आक्रान्त करते हो, मार देते हो, यावत् – उपद्रवित कर देते हो। इसलिए प्राणियों को आक्रान्त यावत् उपद्रुत करते हुए तुम त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्त बाल हो। यह सूनकर गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – आर्यो ! हम गमन करते हुए न तो प्राणियों को कुचलते हैं, न मारते हैं और न भयाक्रान्त करते हैं, क्योंकि आर्यो ! हम गमन करते हुए समय काया, योग को और धीमी – धीमी गति को ध्यान में रखकर देख – भाल कर विशेष रूप से निरीक्षण करके चलते हैं। अतः हम देख – देख कर एवं विशेष रूप से निरीक्षण करते हुए चलते हैं, इसलिए हम प्राणियों को न तो दबाते – कुचलते हैं, यावत् न उपद्रवित करते हैं। इस प्रकार प्राणियों को आक्रान्त न करते हुए, यावत् पीड़ित न करते हुए हम यावत् एकान्त पण्डित हैं। हे आर्यो ! तुम स्वयं ही त्रिविध – त्रिविध से असंयत, अविरत यावत् एकान्त बाल हो। इस पर वे अन्यतीर्थिक भगवान गौतम से इस प्रकार बोले – आर्य ! किस कारण से हम त्रिविध – त्रिविध से यावत् एकान्त बाल हैं ? तब भगवान गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहा – हे आर्यो ! तुम चलते हुए प्राणियों को आक्रान्त करते हो, यावत् पीड़ित करते हो। जीवों को आक्रान्त करते हुए यावत् पीड़ित करते हुए तुम त्रिविध – त्रिविध से असंयत, अविरत यावत् एकान्त बाल हो। इस प्रकार गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर कर दिया। तत्पश्चात् गौतम स्वामी श्रमण भगवान महावीर के समीप पहुँचे और उन्हें वन्दन – नमस्कार करके न तो अत्यन्त दूर और न अतीव निकट यावत् पर्युपासना करने लगे। श्रमण भगवान महावीर ने कहा – हे गौतम ! तुमने उन अन्यतीर्थिकों को अच्छा कहा, तुमने उन अन्यतीर्थिकों को यथार्थ कहा। गौतम ! मेरे बहुत – से शिष्य श्रमण निर्ग्रन्थ छद्मस्थ हैं, जो तुम्हारे उत्तर देने में समर्थ नहीं हैं। जैसा कि तुमने उन अन्यतीर्थिकों को ठीक कहा; उन अन्यतीर्थिकों को बहुत ठीक कहा। तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृष्ट – तुष्ट होकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार कर पूछा – | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare. Gunasilae cheie–vannao java pudhavisilapattao. Tassa nam gunasilassa cheiyassa adurasamamte bahave annautthiya parivasamti. Tae nam samane bhagavam mahavire java samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhuti namam anagare java uddham janu ahosire jjhanakotthovagae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam te annautthiya jeneva bhagavam goyame teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta bhagavam goyamam evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma, sakiriya, asamvuda, egamtadamda, egamtabala yavi bhavaha? Tae nam bhagavam goyame te annautthie evam vayasi–kenam karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam assamjaya java egamtabala yavi bhavamo? Tae nam te annautthiya bhagavam goyamam evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Riyam riyamana pane pechcheha, abhihanaha java uddaveha, tae nam tubbhe pane pechchemana java uddavemana tiviham tivihenam java egamtabala yavi bhavaha. Tae nam bhagavam goyame te annautthie evam vayasi–no khalu ajjo! Amhe riyam riyamana pane pechchemo java uddavemo, amhe nam ajjo! Riyam riyamana kayam cha joyam cha riyam cha paduchcha dissa-dissa padissa-padissa vayamo, tae nam amhe dissa -dissa vayamana padissa-padissa vayamana no pane pechchemo java no uddavemo, tae nam amhe pane apechchemana java anoddavemana tiviham tivihenam java egamtapamdiya yavi bhavamo. Tubbhe nam ajjo! Appana cheva tiviham tivihenam java egamtabala yavi bhavaha. Tae nam te annautthiya bhagavam goyamam evam vayasi–kenam karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam java egamtabala yavi bhavamo? Tae nam bhagavam goyame te annautthie evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Riyam riyamana pane pechcheha java uddaveha, tae nam tubbhe pane pechchemana java uddavemana tiviham tivihenam java egamtabala yavi bhavaha. Tae nam bhagavam goyame te annautthie evam padibhanai, padibhanitta jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne natidure java pajjuvasati. Goyamadi! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–sutthu nam tumam goyama! Te annautthie evam vadasi, sahu nam tumam goyama! Te annautthie evam vadasi. Atthi nam goyama! Mamam bahave amtevasi samana niggamtha chhaumattha, je nam no pabhu eyam vagaranam vagarettae, jaha nam tumam. Tam sutthu nam tumam goyama! Te annautthie evam vayasi, sahu nam tumam goyama! Te annautthie evam vayasi. Tae nam bhagavam goyame samanenam bhagavaya mahavirenam evam vutte samane hatthatutthe samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara mem yavat prithvishilapatta tha. Usa gunashilaka udyana ke samipa bahuta – se anyatirthika nivasa karate the. Una dinom mem shramana bhagavana mahavira svami vaham padhare, yavat parishad vapisa lauta gai. Usa kala aura usa samaya mem, shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha antevasi shri indrabhuti namaka anagara yavat, urdhvajanu yavat tapa – samyama se atma ko bhavita karate hue vicharate the. Eka dina ve anyatirthika, shri gautama svami ke pasa akara kahane lage – arya ! Tuma trividha – trividha se asamyata, avirata yavat ekanta bala ho. Isa para gautama svami ne una anyatirthikom se kaha – ‘he aryo ! Kisa karana se hama tina karana, tina yoga se asamyata, avirata, yavat ekanta bala haim\?’ taba ve anyatirthika, bhagavan gautama se kahane lage – he arya ! Tuma gamana karate hue jivom ko akranta karate ho, mara dete ho, yavat – upadravita kara dete ho. Isalie praniyom ko akranta yavat upadruta karate hue tuma trividha – trividha asamyata, avirata, yavat ekanta bala ho. Yaha sunakara gautama svami ne una anyatirthikom se kaha – aryo ! Hama gamana karate hue na to praniyom ko kuchalate haim, na marate haim aura na bhayakranta karate haim, kyomki aryo ! Hama gamana karate hue samaya kaya, yoga ko aura dhimi – dhimi gati ko dhyana mem rakhakara dekha – bhala kara vishesha rupa se nirikshana karake chalate haim. Atah hama dekha – dekha kara evam vishesha rupa se nirikshana karate hue chalate haim, isalie hama praniyom ko na to dabate – kuchalate haim, yavat na upadravita karate haim. Isa prakara praniyom ko akranta na karate hue, yavat pirita na karate hue hama yavat ekanta pandita haim. He aryo ! Tuma svayam hi trividha – trividha se asamyata, avirata yavat ekanta bala ho. Isa para ve anyatirthika bhagavana gautama se isa prakara bole – arya ! Kisa karana se hama trividha – trividha se yavat ekanta bala haim\? Taba bhagavana gautama svami ne una anyatirthikom se isa prakara kaha – he aryo ! Tuma chalate hue praniyom ko akranta karate ho, yavat pirita karate ho. Jivom ko akranta karate hue yavat pirita karate hue tuma trividha – trividha se asamyata, avirata yavat ekanta bala ho. Isa prakara gautama svami ne una anyatirthikom ko niruttara kara diya. Tatpashchat gautama svami shramana bhagavana mahavira ke samipa pahumche aura unhem vandana – namaskara karake na to atyanta dura aura na ativa nikata yavat paryupasana karane lage. Shramana bhagavana mahavira ne kaha – he gautama ! Tumane una anyatirthikom ko achchha kaha, tumane una anyatirthikom ko yathartha kaha. Gautama ! Mere bahuta – se shishya shramana nirgrantha chhadmastha haim, jo tumhare uttara dene mem samartha nahim haim. Jaisa ki tumane una anyatirthikom ko thika kaha; una anyatirthikom ko bahuta thika kaha. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke dvara isa prakara kahe jane para hrishta – tushta hokara gautama svami ne shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara kara puchha – |