Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004222
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१८

Translated Chapter :

शतक-१८

Section : उद्देशक-१ प्रथम Translated Section : उद्देशक-१ प्रथम
Sutra Number : 722 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासीजीवे णं भंते! जीवभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे एवं नेरइए जाव वेमाणिए सिद्धे णं भंते! सिद्धभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! पढमे, नो अपढमे जीवा णं भंते! जीवभावेणं किं पढमा? अपढमा? गोयमा! नो पढमा, अपढमा एवं जाव वेमाणिया सिद्धा णंपुच्छा गोयमा! पढमा, नो अपढमा आहारए णं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे एवं जाव वेमाणिए पोहत्तिए एवं चेव अनाहारए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणंपुच्छा गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे नेरइए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणंपुच्छा एवं नेरइए जाव वेमाणिए नो पढमे, अपढमे सिद्धे पढमे, नो अपढमे अनाहारगा णं भंते! जीवा अनाहारभावेणंपुच्छा गोयमा! पढमा वि, अपढमा वि नेरइया जाव वेमाणिया नो पढमा, अपढमा सिद्धा पढमा, नो अपढमाएक्केक्के पुच्छा भाणियव्वा भवसिद्धीए एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए, एवं अभवसिद्धीए वि नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीए णं भंते! जीवे नो-भवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीयभावेणंपुच्छा गोयमा! पढमे, नो अपढमे नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीए णं भंते! सिद्धे नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीयभावेणंपुच्छा एवं पुहत्तेण वि दोण्ह वि सण्णी णं भंते! जीवे सण्णीभावेणं किं पढमेपुच्छा गोयमा! नो पढमे, अपढमे एवं विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिए एवं पुहत्तेण वि असण्णी एवं चेव एगत्त-पुहत्तेणं, नवरं जाव वाणमंतरा नोसण्णी-नोअसण्णी जीवे मनुस्से सिद्धे पढमे, नो अपढमे एवं पुहत्तेण वि सलेसे णं भंते! पुच्छा गोयमा! जहा आहारए, एवं पुहत्तेण वि कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा एवं चेव, नवरंजस्स जा लेसा अत्थि अलेसे णं जीव-मनुस्स-सिद्धे जहा नोसण्णी-नो असण्णी सम्मदिट्ठीए णं भंते! जीवे सम्मदिट्ठिभावेणं किं पढमेपुच्छा गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए सिद्धे पढमे, नो अपढमे पुहत्तिया जीवा पढमा वि, अपढमा वि एवं जाव वेमाणिया सिद्धा पढमा, नो अपढमा मिच्छादिट्ठीए एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारगा सम्मामिच्छदिट्ठी एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी, नवरंजस्स अत्थि सम्मामिच्छत्तं संजए जीवे मनुस्से एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी असंजए जहा आहारए संजयासंजए जीवे पंचिंदियतिरि-क्खजोणिय-मनुस्सा एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी नोसंजए नो अस्संजए नोसंजयासंजए जीवे सिद्धे एगत्त-पुहत्तेणं पढमे, नो अपढमे सकसायी, कोहकसायी जाव लोभकसायीएए एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए अकसायी जीवे सिय पढमे, सिय अपढमे एवं मनुस्से वि सिद्धे पढमे, नो अपढमे पुहत्तेणं जीवा मनुस्सा वि पढमा वि अपढमा वि सिद्धा पढमा, नो अपढमा नाणी एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी आभिनिबोहियनाणी जाव मनपज्जवनाणी एगत्त-पुहत्तेणं एवं चेव, नवरंजस्स जं अत्थि केवलनाणी जीवे मनुस्से सिद्धे एगत्त-पुहत्तेणं पढमा, नो अपढमा अन्नाणी, मइअन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए सजोगी, मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए, नवरंजस्स जो जोगो अत्थि अजोगी जीव मनुस्स-सिद्धा एगत्त-पुहत्तेणं पढमा, नो अपढमा सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता एगत्त-पुहत्तेणं जहा अनाहारए सवेदगो जाव नपुंसगवेदगो एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए, नवरंजस्स जो वेदो अत्थि अवेदओ एगत्त-पुहत्तेणं तिसु वि पदेसु जहा अकसायी ससरीरी जहा आहारए, एवं जाव कम्मगसरीरी, जस्स जं अत्थि सरीरं, नवरंआहारगसरीरी एगत्त-पुहत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी असरीरी जीवो सिद्धो एगत्त-पुहत्तेणं पढमो, नो अपढमो पंचहिं पज्जत्तीहिं पंचहिं अपज्जत्तीहिं एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारए, नवरंजस्स जा अत्थि जाव वेमाणिया नो पढमा, अपढमा इमा लक्खणगाहा
Sutra Meaning : उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत्‌ पूछा भगवन्‌ ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना भगवन्‌ ! सिद्ध जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है भगवन्‌ ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं अथवा अप्रथम हैं ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम हैं इस प्रकार अनेक वैमानिकों तक (जानना) भगवन्‌ ! सभी सिद्ध जीव, सिद्धत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं भगवन्‌ ! आहारकजीव, आहारकभाव से प्रथम है या अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम हैं इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना चाहिए बहुवचन में भी इसी प्रकार समझना चाहिए भगवन्‌! अनाहारक जीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! कदाचित्‌ प्रथम होता है, कदाचित्‌ अप्रथम होता है भगवन्‌ ! नैरयिक जीव, अनाहारकभाव से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह प्रथम नहीं, अप्रथम है इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक प्रथम नहीं, अप्रथम जानना चाहिए सिद्धजीव, अनाहा रकभाव की अपेक्षा से प्रथम है, अप्रथम नहीं है भगवन्‌ ! अनेक अनाहारकजीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम मी हैं और अप्रथम भी हैं इसी प्रकार अनेक नैरयिक जीवों से लेकर अनेक वैमानिकों तक प्रथम नहीं, अप्रथम हैं सभी सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं इसी प्रकार प्रत्येक दण्डक के विषय में इसी प्रकार पृच्छा कहना चाहिए भवसिद्धिक जीव एकत्व अनेकत्व दोनों प्रकार से आहारक जीव के समान प्रथम नहीं, अप्रथम हैं, इत्यादि कथन करना चाहिए इसी प्रकार अभवसिद्धिक एक या अनेक जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए भगवन्‌! नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक जीव नोभवसिद्धिक नो अभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है? गौतम ! वह प्रथम है, अप्रथम नहीं है भगवन्‌ ! नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक सिद्धजीव नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? पूर्ववत्‌ समझना चाहिए इसी प्रकार (जीव और सिद्ध) दोनों के बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी समझ लेने चाहिए भगवन्‌ ! संज्ञीजीव, संज्ञीभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है इसी प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक तक जानना बहुवचन सम्बन्धी भी इसी प्रकार जानना असंज्ञीजीवों की एकवचन बहुवचन सम्बन्धी (वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए) विशेष इतना है कि यह कथन वाण व्यन्तरों तक ही (जानना) एक या अनेक नोसंज्ञी नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्ध, नोसंज्ञी नोअसंज्ञीभाव की अपेक्षा प्रथम है, अप्रथम नहीं है भगवन्‌ ! सलेश्यी जीव, सलेश्यभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! आहारकजीव के समान (वह अप्रथम है) बहुवचन की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए कृष्णलेश्यी से लेकर शुक्ललेश्यी तक के विषय में भी इसी प्रकार जानना विशेषता यह है कि जिस जीव के जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए अलेश्यी जीव, मनुष्य और सिद्ध के सम्बन्ध में नोसंज्ञी नोअसंज्ञी के समान (प्रथम) कहना चाहिए भगवन्‌ ! सम्यग्दृष्टि जीव, सम्यग्दृष्टिभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह कदाचित्‌ प्रथम होता है और कदाचित्‌ अप्रथम होता है इसी प्रकार एकेन्द्रियजीवों के सिवाय वैमानिक तक समझना चाहिए सिद्धजीव प्रथम है, अप्रथम नहीं बहुवचन से सम्यग्दृष्टिजीव प्रथम भी है, अप्रथम भी है इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना बहुवचन से (सभी) सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं मिथ्यादृष्टिजीव मिथ्यादृष्टिभाव की अपेक्षा से आहारक जीवों के समान कहना सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि जीव के विषय में सम्यग्‌मिथ्यादृष्टिभाव की अपेक्षा से सम्यग्दृष्टि के समान (कहना) विशेष यह है कि जिस जीव के सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि हो, (उसी के विषय में कहना) संयत जीव और मनुष्य के विषय में, एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा, सम्यग्दृष्टि जीव के समान, असंयत जीव के विषय में आहारक जीव के समान, संयतासंयत जीव, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक और मनुष्य में सम्यग्दृष्टि के समान समझना चाहिए नोसंयत नोअसंयत और नोसंयतासंयत जीव, तथा सिद्ध, प्रथम हैं, अप्रथम नहीं है सकषायी, क्रोधकषायी यावत्‌ लोभकषायी, ये सब एकवचन और बहुवचन से आहारक के समान जानना चाहिए (एक) अकषायी जीव कदाचित्‌ प्रथम और कदाचित्‌ अप्रथम होता है इसी प्रकार (एक अकषायी) मनुष्य भी (समझना चाहिए) (अकषायी एक) सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं बहुवचन से अकषायी जीव प्रथम भी है, अप्रथम भी है बहुवचन से अकषायी सिद्धजीव प्रथम है, अप्रथम नहीं है ज्ञानी जीव, सम्यग्दृष्टि के समान कदाचित्‌ प्रथम और कदाचित्‌ अप्रथम होते हैं आभिनिबोधिकज्ञानी यावत्‌ मनःपर्यायज्ञानी, इसी प्रकार हैं विशेष यह है जिस जीव के जो ज्ञान हो, वह कहना केवलज्ञानी जीव, मनुष्य और सिद्ध, प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं अज्ञानी जीव, मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी और विभंगज्ञानी, ये सब, एकवचन और बहुवचन से आहारक जीव के समान (जानने चाहिए) सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव, एकवचन और बहुवचन से आहारक जीवों के समान अप्रथम होते हैं विशेष यह है कि जिस जीव के जो योग हो, वह कहना चाहिए अयोगी जीव, मनुष्य और सिद्ध, प्रथम होते हैं, अप्रथम नहीं होते हैं साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, अनाहारक जीवों के समान हैं सवेदक यावत्‌ नपुंसकवेद जीव, एकवचन और बहुवचन से, आहारक जीव के समान हैं विशेष यह है कि, जिस जीव के जो वेद हो, (वह कहना चाहिए) एकवचन और बहुवचन से, अवेदक जीव, जीव, मनुष्य और सिद्ध में अकषायी जीव के समान हैं सशरीरी जीव, आहारक जीव के समान हैं इसी प्रकार यावत्‌ कार्मणशरीरी जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए किन्तु आहारक शरीरी के विषय में एकवचन और बहुवचन से, सम्यग्दृष्टि जीव के समान कहना चाहिए अशरीरी जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्त और पाँच अपर्याप्तियों से अपर्याप्त जीव, एकवचन और बहुवचन से, आहारक जीव के समान हैं विशेष यह है कि जिसके जो पर्याप्ति हो, वह कहनी चाहिए इस प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक जानना चाहिए अर्थात्‌ ये सब प्रथम नहीं, अप्रथम हैं यह लक्षण गाथा है
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe java evam vayasijive nam bhamte! Jivabhavenam kim padhame? Apadhame? Goyama! No padhame, apadhame. Evam neraie java vemanie. Siddhe nam bhamte! Siddhabhavenam kim padhame? Apadhame? Goyama! Padhame, no apadhame. Jiva nam bhamte! Jivabhavenam kim padhama? Apadhama? Goyama! No padhama, apadhama. Evam java vemaniya. Siddha nampuchchha. Goyama! Padhama, no apadhama. Aharae nam bhamte! Jive aharabhavenam kim padhame? Apadhame? Goyama! No padhame, apadhame. Evam java vemanie. Pohattie evam cheva. Anaharae nam bhamte! Jive anaharabhavenampuchchha. Goyama! Siya padhame, siya apadhame. Neraie nam bhamte! Jive anaharabhavenampuchchha. Evam neraie java vemanie no padhame, apadhame. Siddhe padhame, no apadhame. Anaharaga nam bhamte! Jiva anaharabhavenampuchchha. Goyama! Padhama vi, apadhama vi. Neraiya java vemaniya no padhama, apadhama. Siddha padhama, no apadhamaekkekke puchchha bhaniyavva. Bhavasiddhie egatta-puhattenam jaha aharae, evam abhavasiddhie vi. Nobhavasiddhiya-noabhavasiddhie nam bhamte! Jive no-bhavasiddhiya-noabhavasiddhiyabhavenampuchchha. Goyama! Padhame, no apadhame. Nobhavasiddhiya-noabhavasiddhie nam bhamte! Siddhe nobhavasiddhiya-noabhavasiddhiyabhavenampuchchha. Evam puhattena vi donha vi. Sanni nam bhamte! Jive sannibhavenam kim padhamepuchchha. Goyama! No padhame, apadhame. Evam vigalimdiyavajjam java vemanie. Evam puhattena vi. Asanni evam cheva egatta-puhattenam, navaram java vanamamtara. Nosanni-noasanni jive manusse siddhe padhame, no apadhame. Evam puhattena vi. Salese nam bhamte! puchchha. Goyama! Jaha aharae, evam puhattena vi. Kanhalessa java sukkalessa evam cheva, navaramjassa ja lesa atthi. Alese nam jiva-manussa-siddhe jaha nosanni-no asanni. Sammaditthie nam bhamte! Jive sammaditthibhavenam kim padhamepuchchha. Goyama! Siya padhame, siya apadhame. Evam egimdiyavajjam java vemanie. Siddhe padhame, no apadhame. Puhattiya jiva padhama vi, apadhama vi. Evam java vemaniya. Siddha padhama, no apadhama. Michchhaditthie egatta-puhattenam jaha aharaga. Sammamichchhaditthi egatta-puhattenam jaha sammaditthi, navaramjassa atthi sammamichchhattam. Samjae jive manusse ya egatta-puhattenam jaha sammaditthi. Asamjae jaha aharae. Samjayasamjae jive pamchimdiyatiri-kkhajoniya-manussa egatta-puhattenam jaha sammaditthi. Nosamjae no assamjae nosamjayasamjae jive siddhe ya egatta-puhattenam padhame, no apadhame. Sakasayi, kohakasayi java lobhakasayiee egatta-puhattenam jaha aharae. Akasayi jive siya padhame, siya apadhame. Evam manusse vi. Siddhe padhame, no apadhame. Puhattenam jiva manussa vi padhama vi apadhama vi. Siddha padhama, no apadhama Nani egatta-puhattenam jaha sammaditthi. Abhinibohiyanani java manapajjavanani egatta-puhattenam evam cheva, navaramjassa jam atthi. Kevalanani jive manusse siddhe ya egatta-puhattenam padhama, no apadhama. Annani, maiannani, suyaannani, vibhamganani ya egatta-puhattenam jaha aharae. Sajogi, manajogi, vaijogi, kayajogi egatta-puhattenam jaha aharae, navaramjassa jo jogo atthi. Ajogi jiva manussa-siddha egatta-puhattenam padhama, no apadhama. Sagarovautta anagarovautta egatta-puhattenam jaha anaharae. Savedago java napumsagavedago egatta-puhattenam jaha aharae, navaramjassa jo vedo atthi. Avedao egatta-puhattenam tisu vi padesu jaha akasayi. Sasariri jaha aharae, evam java kammagasariri, jassa jam atthi sariram, navaramaharagasariri egatta-puhattenam jaha sammaditthi. Asariri jivo siddho ya egatta-puhattenam padhamo, no apadhamo. Pamchahim pajjattihim pamchahim apajjattihim egatta-puhattenam jaha aharae, navaramjassa ja atthi java vemaniya no padhama, apadhama. Ima lakkhanagaha
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala usa samayamem rajagriha nagaramem yavat puchha bhagavan ! Jiva, jivabhava se prathama hai, athava aprathama hai\? Gautama ! Prathama nahim, aprathama hai. Isa prakara nairayika se lekara vaimanika taka janana. Bhagavan ! Siddha jiva, siddhabhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama hai\? Gautama ! Prathama hai, aprathama nahim hai. Bhagavan ! Aneka jiva, jivatva ki apeksha se prathama haim athava aprathama haim\? Gautama ! Prathama nahim, aprathama haim. Isa prakara aneka vaimanikom taka (janana). Bhagavan ! Sabhi siddha jiva, siddhatva ki apeksha se prathama haim ya aprathama haim\? Gautama ! Ve prathama haim, aprathama nahim haim. Bhagavan ! Aharakajiva, aharakabhava se prathama hai ya athava aprathama hai\? Gautama ! Prathama nahim, aprathama haim. Isi prakara nairayika se lekara vaimanika taka janana chahie. Bahuvachana mem bhi isi prakara samajhana chahie. Bhagavan! Anaharaka jiva, anaharakabhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama hai\? Gautama ! Kadachit prathama hota hai, kadachit aprathama hota hai. Bhagavan ! Nairayika jiva, anaharakabhava se prathama hai ya aprathama hai\? Gautama ! Vaha prathama nahim, aprathama hai. Isi prakara nairayika se lekara vaimanika taka prathama nahim, aprathama janana chahie. Siddhajiva, anaha rakabhava ki apeksha se prathama hai, aprathama nahim hai. Bhagavan ! Aneka anaharakajiva, anaharakabhava ki apeksha se prathama haim ya aprathama haim\? Gautama ! Ve prathama mi haim aura aprathama bhi haim. Isi prakara aneka nairayika jivom se lekara aneka vaimanikom taka prathama nahim, aprathama haim. Sabhi siddha prathama haim, aprathama nahim haim. Isi prakara pratyeka dandaka ke vishaya mem isi prakara prichchha kahana chahie. Bhavasiddhika jiva ekatva anekatva donom prakara se aharaka jiva ke samana prathama nahim, aprathama haim, ityadi kathana karana chahie. Isi prakara abhavasiddhika eka ya aneka jiva ke vishaya mem bhi jana lena chahie. Bhagavan! No bhavasiddhika no abhavasiddhika jiva nobhavasiddhika no abhavasiddhikabhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama hai? Gautama ! Vaha prathama hai, aprathama nahim hai. Bhagavan ! Nobhavasiddhika noabhavasiddhika siddhajiva nobhavasiddhika noabhavasiddhikabhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama hai\? Purvavat samajhana chahie. Isi prakara (jiva aura siddha) donom ke bahuvachana sambandhi prashnottara bhi samajha lene chahie. Bhagavan ! Samjnyijiva, samjnyibhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama\? Gautama ! Prathama nahim, aprathama hai. Isi prakara vikalendriya ko chhorakara vaimanika taka janana. Bahuvachana sambandhi bhi isi prakara janana. Asamjnyijivom ki ekavachana bahuvachana sambandhi (vaktavyata bhi isi prakara samajhani chahie). Vishesha itana hai ki yaha kathana vana vyantarom taka hi (janana). Eka ya aneka nosamjnyi noasamjnyi jiva, manushya aura siddha, nosamjnyi noasamjnyibhava ki apeksha prathama hai, aprathama nahim hai. Bhagavan ! Saleshyi jiva, saleshyabhava se prathama hai, athava aprathama hai\? Gautama ! Aharakajiva ke samana (vaha aprathama hai). Bahuvachana ki vaktavyata bhi isi prakara samajhani chahie. Krishnaleshyi se lekara shuklaleshyi taka ke vishaya mem bhi isi prakara janana. Visheshata yaha hai ki jisa jiva ke jo leshya ho, vahi kahani chahie. Aleshyi jiva, manushya aura siddha ke sambandha mem nosamjnyi noasamjnyi ke samana (prathama) kahana chahie. Bhagavan ! Samyagdrishti jiva, samyagdrishtibhava ki apeksha se prathama hai ya aprathama hai\? Gautama ! Vaha kadachit prathama hota hai aura kadachit aprathama hota hai. Isi prakara ekendriyajivom ke sivaya vaimanika taka samajhana chahie. Siddhajiva prathama hai, aprathama nahim. Bahuvachana se samyagdrishtijiva prathama bhi hai, aprathama bhi hai. Isi prakara vaimanikom taka kahana. Bahuvachana se (sabhi) siddha prathama haim, aprathama nahim haim. Mithyadrishtijiva mithyadrishtibhava ki apeksha se aharaka jivom ke samana kahana. Samyagmithyadrishti jiva ke vishaya mem samyagmithyadrishtibhava ki apeksha se samyagdrishti ke samana (kahana). Vishesha yaha hai ki jisa jiva ke samyagmithyadrishti ho, (usi ke vishaya mem kahana). Samyata jiva aura manushya ke vishaya mem, ekatva aura bahutva ki apeksha, samyagdrishti jiva ke samana, asamyata jiva ke vishaya mem aharaka jiva ke samana, samyatasamyata jiva, pamchendriya tiryagyonika aura manushya mem samyagdrishti ke samana samajhana chahie. Nosamyata noasamyata aura nosamyatasamyata jiva, tatha siddha, prathama haim, aprathama nahim hai. Sakashayi, krodhakashayi yavat lobhakashayi, ye saba ekavachana aura bahuvachana se aharaka ke samana janana chahie. (eka) akashayi jiva kadachit prathama aura kadachit aprathama hota hai. Isi prakara (eka akashayi) manushya bhi (samajhana chahie). (akashayi eka) siddha prathama hai, aprathama nahim. Bahuvachana se akashayi jiva prathama bhi hai, aprathama bhi hai. Bahuvachana se akashayi siddhajiva prathama hai, aprathama nahim hai. Jnyani jiva, samyagdrishti ke samana kadachit prathama aura kadachit aprathama hote haim. Abhinibodhikajnyani yavat manahparyayajnyani, isi prakara haim. Vishesha yaha hai jisa jiva ke jo jnyana ho, vaha kahana. Kevalajnyani jiva, manushya aura siddha, prathama haim, aprathama nahim haim. Ajnyani jiva, mati ajnyani, shruta ajnyani aura vibhamgajnyani, ye saba, ekavachana aura bahuvachana se aharaka jiva ke samana (janane chahie). Sayogi, manoyogi, vachanayogi aura kayayogi jiva, ekavachana aura bahuvachana se aharaka jivom ke samana aprathama hote haim. Vishesha yaha hai ki jisa jiva ke jo yoga ho, vaha kahana chahie. Ayogi jiva, manushya aura siddha, prathama hote haim, aprathama nahim hote haim. Sakaropayukta aura anakaropayukta jiva, anaharaka jivom ke samana haim. Savedaka yavat napumsakaveda jiva, ekavachana aura bahuvachana se, aharaka jiva ke samana haim. Vishesha yaha hai ki, jisa jiva ke jo veda ho, (vaha kahana chahie). Ekavachana aura bahuvachana se, avedaka jiva, jiva, manushya aura siddha mem akashayi jiva ke samana haim. Sashariri jiva, aharaka jiva ke samana haim. Isi prakara yavat karmanashariri jiva ke vishaya mem bhi jana lena chahie. Kintu aharaka shariri ke vishaya mem ekavachana aura bahuvachana se, samyagdrishti jiva ke samana kahana chahie. Ashariri jiva aura siddha, ekavachana aura bahuvachana se prathama haim, aprathama nahim. Pamcha paryaptiyom se paryapta aura pamcha aparyaptiyom se aparyapta jiva, ekavachana aura bahuvachana se, aharaka jiva ke samana haim. Vishesha yaha hai ki jisake jo paryapti ho, vaha kahani chahie. Isa prakara nairayikom se lekara vaimanikom taka janana chahie. Arthat ye saba prathama nahim, aprathama haim. yaha lakshana gatha hai.