Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004202 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१७ |
Translated Chapter : |
शतक-१७ |
Section : | उद्देशक-२ संयत | Translated Section : | उद्देशक-२ संयत |
Sutra Number : | 702 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता नो पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? गोयमा! अहमेयं जाणामि, अहमेयं पासामि, अहमेयं बुज्झामि, अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि, मए एयं नायं, मए एयं दिट्ठं, मम एयं बुद्धं, मए एयं अभिसमण्णागयं–जण्णं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स, सकम्मस्स, सरागस्स, सवेदस्स, समोहस्स, सलेसस्स, ससरीरस्स, ताओ सरीराओ अविप्पमुक्कस्स एवं पण्णायति, तं जहा–कालत्ते वा जाव सुक्किलत्ते वा, सुब्भिगंधत्ते वा, दुब्भिगंधत्ते वा, तित्तत्ते वा जाव महुरत्ते वा, कक्खडत्ते वा जाव लुक्खत्ते वा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता नो पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए। सच्चेव णं भंते! से जीवे पुव्वामेव अरूवी भवित्ता पभू रूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सच्चेव णं से जीवे पुव्वामेव अरूवी भवित्ता नो पभू रूविं विउव्वित्ता णंचिट्ठित्तए? गोयमा! अहमेयं जाणामि, अहमेयं पासामि, अहमेयं बुज्झामि, अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि, मए एयं नायं, मए एयं दिट्ठं मम एयं बुद्धं, मए एयं अभिसमण्णागयं–जण्णं तहागयस्स जीवस्स अरूविस्स, अकम्मस्स, अरागस्स, अवेदस्स, अमोहस्स, अले-सस्स, असरीरस्स, ताओ सरीराओ विप्पमुक्कस्स नो एवं पण्णायति, तं जहा–कालत्ते वा जाव सुक्किलत्ते वा, सुब्भिगंधत्ते वा, दुब्भि-गंधत्ते वा, तित्तत्ते वा जाव महुरत्ते वा, कक्खडत्ते वा जाव लुक्खत्ते वा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–सच्चेव णं से जीवे पुव्वा मेव अरूवी भवित्ता नो पभू रूवि विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या महर्द्धिक यावत् महासुख – सम्पन्न देव, पहले रूपी होकर बाद में अरूपी की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, मैं यह देखता हूँ, मैं यह निश्चित जानता हूँ, मैं यह सर्वथा जानता हूँ; मैंने यह जाना है, मैंने यह देखा है, मैंने यह निश्चित समझ लिया है और मैंने यह पूरी तरह से जाना है कि तथा प्रकार के सरूपी, सकर्म सराग, सवेद, समोह सलेश्य, सशरीर और उस शरीर से अविमुक्त जीव के विषय में ऐसा सम्प्रज्ञात होता है, यथा – उस शरीरयुक्त जीव में कालापन यावत् श्वेतपन, सुगन्धित्व या दुर्गन्धित्व, कटुत्व यावत् मधुरत्व, कर्कशत्व यावत् रूक्षत्व होता है। इस कारण, हे गौतम ! वह देव पूर्वोक्त प्रकार से यावत् विक्रिया करके रहने में समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या वही जीव पहले अरूपी होकर, फिर रूपी आकार की विकुर्वणा करके रहने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भन्ते ! क्या कारण है कि वह यावत् समर्थ नहीं है ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, यावत् कि तथा – प्रकार के अरूपी, अकर्मी, अरागी, अवेदी, अमोही, अलेश्यी, अशरीरी और उस शरीर से विप्रमुक्त जीव के विषय में ऐसा ज्ञात नहीं होता कि जीव में कालापन यावत् रूक्षपन है। इस कारण, हे वह देव पूर्वोक्त प्रकार से विकुर्वणा करने में समर्थ नहीं है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] deve nam bhamte! Mahiddhie java mahesakkhe puvvameva ruvi bhavitta pabhu aruvim viuvvitta nam chitthittae? No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–deve nam mahiddhie java mahesakkhe puvvameva ruvi bhavitta no pabhu aruvim viuvvitta nam chitthittae? Goyama! Ahameyam janami, ahameyam pasami, ahameyam bujjhami, ahameyam abhisamannagachchhami, mae eyam nayam, mae eyam dittham, mama eyam buddham, mae eyam abhisamannagayam–jannam tahagayassa jivassa saruvissa, sakammassa, saragassa, savedassa, samohassa, salesassa, sasarirassa, tao sarirao avippamukkassa evam pannayati, tam jaha–kalatte va java sukkilatte va, subbhigamdhatte va, dubbhigamdhatte va, tittatte va java mahuratte va, kakkhadatte va java lukkhatte va. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–deve nam mahiddhie java mahesakkhe puvvameva ruvi bhavitta no pabhu aruvim viuvvitta nam chitthittae. Sachcheva nam bhamte! Se jive puvvameva aruvi bhavitta pabhu ruvim viuvvitta nam chitthittae? No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–sachcheva nam se jive puvvameva aruvi bhavitta no pabhu ruvim viuvvitta namchitthittae? Goyama! Ahameyam janami, ahameyam pasami, ahameyam bujjhami, ahameyam abhisamannagachchhami, mae eyam nayam, mae eyam dittham mama eyam buddham, mae eyam abhisamannagayam–jannam tahagayassa jivassa aruvissa, akammassa, aragassa, avedassa, amohassa, ale-sassa, asarirassa, tao sarirao vippamukkassa no evam pannayati, tam jaha–kalatte va java sukkilatte va, subbhigamdhatte va, dubbhi-gamdhatte va, tittatte va java mahuratte va, kakkhadatte va java lukkhatte va. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–sachcheva nam se jive puvva meva aruvi bhavitta no pabhu ruvi viuvvitta nam chitthittae. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya maharddhika yavat mahasukha – sampanna deva, pahale rupi hokara bada mem arupi ki vikriya karane mem samartha hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Aisa kyom kahate haim\? Gautama ! Maim yaha janata hum, maim yaha dekhata hum, maim yaha nishchita janata hum, maim yaha sarvatha janata hum; maimne yaha jana hai, maimne yaha dekha hai, maimne yaha nishchita samajha liya hai aura maimne yaha puri taraha se jana hai ki tatha prakara ke sarupi, sakarma saraga, saveda, samoha saleshya, sasharira aura usa sharira se avimukta jiva ke vishaya mem aisa samprajnyata hota hai, yatha – usa sharirayukta jiva mem kalapana yavat shvetapana, sugandhitva ya durgandhitva, katutva yavat madhuratva, karkashatva yavat rukshatva hota hai. Isa karana, he gautama ! Vaha deva purvokta prakara se yavat vikriya karake rahane mem samartha nahim hai. Bhagavan ! Kya vahi jiva pahale arupi hokara, phira rupi akara ki vikurvana karake rahane mem samartha hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhante ! Kya karana hai ki vaha yavat samartha nahim hai\? Gautama ! Maim yaha janata hum, yavat ki tatha – prakara ke arupi, akarmi, aragi, avedi, amohi, aleshyi, ashariri aura usa sharira se vipramukta jiva ke vishaya mem aisa jnyata nahim hota ki jiva mem kalapana yavat rukshapana hai. Isa karana, he vaha deva purvokta prakara se vikurvana karane mem samartha nahim hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai. |