Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004142 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Translated Chapter : |
शतक-१५ गोशालक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 642 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! अन्नदा कदायि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं कुम्मगामाओ नगराओ सिद्धत्थग्गामं नगरं संपट्ठिए विहाराए। जाहे य मो तं देसं हव्वमागया जत्थ णं से तिलथंभए। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! तदा ममं एवमाइक्खह जाव परूवेह–गोसाला! एस णं तिलथंभए निप्फज्जिस्सइ, नो न निप्फज्जिस्सइ। एते य सत्त तिलपु-प्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति, तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ–एस णं से तिलथंभए नो निप्फन्ने, अन्निप्फन्नमेव। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता नो एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। तए णं अहं गोयमा! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी–तुमं णं गोसाला! तदा ममं एवमा-इक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमट्ठं नो सद्दहसि, नो पत्तियसि, नो रोएसि, एयमट्ठं असद्दहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे, ममं पणिहाए अयन्नं मिच्छावादी भवउ त्ति कट्टु ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि, पच्चोसक्कित्ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तं तिलथंभगं सलेट्ठुयायं चेव उप्पाडेसि, उप्पाडेत्ता एगंतमंते एडेसि। तक्खणमेत्तं गोसाला! दिव्वे अब्भवद्दलए पाउब्भूए। तए णं से दिव्वे अब्भवद्दलए खिप्पामेव पतणतणाति, खिप्पामेव पविज्जुयाति, खिप्पामेव नच्चोदगं णातिमट्टियं पविरलपफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सलिलोदगं वासं वासंति, जेण से तिलथंभए आसत्थे पच्चायाते बद्धमूले, तत्थेव पतिट्ठिए। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। तं एस णं गोसाला! से तिलथंभए निप्फन्ने, नो अनिप्फन्नमेव। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभयस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। एवं खलु गोसाला! वणस्सइकाइया पउट्टपरिहारं परिहरंति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमट्ठं नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, एयमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताओ तिलथंभयाओ तं तिलसंगलियं खुड्डइ, खुड्डित्ता करयलंसि सत्त तिले पप्फोडेइ। तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ते सत्त तिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु सव्वजीवा वि पउट्टपरिहारं परिहरंति–एस णं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पउट्टे, एस णं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ममं अंतियाओ आयाए अवक्कमणे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | हे गौतम ! इसके पश्चात् किसी एक दिन मंखलिपुत्र गोशालक के साथ मैंने कूर्मग्रामनगर से सिद्धार्थग्राम – नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थान किया। जब हम उस स्थान के निकट आए, जहाँ वह तिल का पौधा था, तब गोशालक मंखलिपुत्र ने मुझसे कहा – ‘भगवन् ! आपने मुझे उस समय कहा था, यावत् प्ररूपणा की थी की हे गोशालक ! यह तिल का पौधा निष्पन्न होगा, यावत् तिलपुष्प के सप्त जीव मरकर सात तिल के रूप में पुनः उत्पन्न होंगे, किन्तु आपकी वह बात मिथ्या हुई, क्योंकि यह प्रत्यक्ष दिख रहा है कि यह तिल का पौधा उगा ही नहीं हे गौतम ! तब मैंने मंखलिपुत्र गोशालक से कहा – हे गोशालक ! जब मैंने तुझ से ऐसा कहा था, यावत् ऐसी प्ररूपणा की थी, तब तूने मेरी उस बात पर न तो श्रद्धा की, न प्रतीति की, न ही उस पर रुचि की, बल्कि उक्त कथन पर श्रद्धा, प्रतीति या रुचि न करके तू मुझे लक्ष्य करके कि ‘यह मिथ्यावादी हो जाएं’ ऐसा विचार कर यावत् उस तिल के पौधे को तूने मिट्टी सहित उखाड़ कर एकान्त में फैंक दिया। लेकिन हे गोशालक ! उसी समय आकाश में दिव्य बादल प्रकट हुए यावत् गरजने लगे, इत्यादि यावत् वे तिलपुष्प तिल के पौधे की एक तिलफली में सात तिल के रूप में उत्पन्न हो गए हैं। अतः हे गोशालक ! यही वह तिल का पौधा है, जो निष्पन्न हुआ है, अनिष्पन्न नहीं रहा है और वे ही सात तिलपुष्प के जीव मरकर इसी तिल के पौधे की एक तिलफली में सात तिल के रूप में उत्पन्न हुए हैं। हे गोशालक ! वनस्पतिकायिक जीव मर – मर कर उसी वनस्पतिकायिक के शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाते हैं। तब मंखलिपुत्र गोशालक ने मेरे इस कथन यावत् प्ररूपण पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। बल्कि उस कथन के प्रति अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करता हुआ वह उस तिल के पौधे के पास पहुँचा और उसकी तिलफली तोड़ी, फिर उसे हथेली पर मसलकर सात तिल बाहर नीकाले। उस मंखलिपुत्र गोशालक को उन सात तिलों को गिनते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ – सभी जीव इस प्रकार परिवृत्त्य – परिहार करते हैं। हे गौतम ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह परिवर्त्त हैं और हे गौतम ! मुझसे मंखलिपुत्र गोशालक का यह अपना पृथक् विचरण है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam aham goyama! Annada kadayi gosalenam mamkhaliputtenam saddhim kummagamao nagarao siddhatthaggamam nagaram sampatthie viharae. Jahe ya mo tam desam havvamagaya jattha nam se tilathambhae. Tae nam se gosale mamkhaliputte mamam evam vayasi–tubbhe nam bhamte! Tada mamam evamaikkhaha java paruveha–gosala! Esa nam tilathambhae nipphajjissai, no na nipphajjissai. Ete ya satta tilapu-pphajiva uddaitta-uddaitta eyassa cheva tilathambhagassa egae tilasamgaliyae satta tila pachchayaissamti, tannam michchha. Imam cha nam pachchakkhameva disai–esa nam se tilathambhae no nipphanne, annipphannameva. Te ya satta tilapupphajiva uddaitta-uddaitta no eyassa cheva tilathambhagassa egae tilasamgaliyae satta tila pachchayaya. Tae nam aham goyama! Gosalam mamkhaliputtam evam vayasi–tumam nam gosala! Tada mamam evama-ikkhamanassa java paruvemanassa eyamattham no saddahasi, no pattiyasi, no roesi, eyamattham asaddahamane, apattiyamane, aroemane, mamam panihae ayannam michchhavadi bhavau tti kattu mamam amtiyao saniyam-saniyam pachchosakkasi, pachchosakkitta jeneva se tilathambhae teneva uvagachchhasi, uvagachchhitta tam tilathambhagam saletthuyayam cheva uppadesi, uppadetta egamtamamte edesi. Takkhanamettam gosala! Divve abbhavaddalae paubbhue. Tae nam se divve abbhavaddalae khippameva patanatanati, khippameva pavijjuyati, khippameva nachchodagam natimattiyam paviralapaphusiyam rayarenuvinasanam divvam salilodagam vasam vasamti, jena se tilathambhae asatthe pachchayate baddhamule, tattheva patitthie. Te ya satta tilapupphajiva uddaitta-uddaitta tassa cheva tilathambhagassa egae tilasamgaliyae satta tila pachchayaya. Tam esa nam gosala! Se tilathambhae nipphanne, no anipphannameva. Te ya satta tilapupphajiva uddaitta-uddaitta eyassa cheva tilathambhayassa egae tilasamgaliyae satta tila pachchayaya. Evam khalu gosala! Vanassaikaiya pauttapariharam pariharamti. Tae nam se gosale mamkhaliputte mamam evamaikkhamanassa java paruvemanassa eyamattham no saddahai, no pattiyai, no roei, eyamattham asaddahamane apattiyamane aroemane jeneva se tilathambhae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tao tilathambhayao tam tilasamgaliyam khuddai, khudditta karayalamsi satta tile papphodei. Tae nam tassa gosalassa mamkhaliputtassa te satta tile ganamanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu savvajiva vi pauttapariharam pariharamti–esa nam goyama! Gosalassa mamkhaliputtassa pautte, esa nam goyama! Gosalassa mamkhaliputtassa mamam amtiyao ayae avakkamane pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He gautama ! Isake pashchat kisi eka dina mamkhaliputra goshalaka ke satha maimne kurmagramanagara se siddharthagrama – nagara ki ora vihara ke lie prasthana kiya. Jaba hama usa sthana ke nikata ae, jaham vaha tila ka paudha tha, taba goshalaka mamkhaliputra ne mujhase kaha – ‘bhagavan ! Apane mujhe usa samaya kaha tha, yavat prarupana ki thi ki he goshalaka ! Yaha tila ka paudha nishpanna hoga, yavat tilapushpa ke sapta jiva marakara sata tila ke rupa mem punah utpanna homge, kintu apaki vaha bata mithya hui, kyomki yaha pratyaksha dikha raha hai ki yaha tila ka paudha uga hi nahim he gautama ! Taba maimne mamkhaliputra goshalaka se kaha – he goshalaka ! Jaba maimne tujha se aisa kaha tha, yavat aisi prarupana ki thi, taba tune meri usa bata para na to shraddha ki, na pratiti ki, na hi usa para ruchi ki, balki ukta kathana para shraddha, pratiti ya ruchi na karake tu mujhe lakshya karake ki ‘yaha mithyavadi ho jaem’ aisa vichara kara yavat usa tila ke paudhe ko tune mitti sahita ukhara kara ekanta mem phaimka diya. Lekina he goshalaka ! Usi samaya akasha mem divya badala prakata hue yavat garajane lage, ityadi yavat ve tilapushpa tila ke paudhe ki eka tilaphali mem sata tila ke rupa mem utpanna ho gae haim. Atah he goshalaka ! Yahi vaha tila ka paudha hai, jo nishpanna hua hai, anishpanna nahim raha hai aura ve hi sata tilapushpa ke jiva marakara isi tila ke paudhe ki eka tilaphali mem sata tila ke rupa mem utpanna hue haim. He goshalaka ! Vanaspatikayika jiva mara – mara kara usi vanaspatikayika ke sharira mem punah utpanna ho jate haim. Taba mamkhaliputra goshalaka ne mere isa kathana yavat prarupana para shraddha, pratiti aura ruchi nahim ki. Balki usa kathana ke prati ashraddha, apratiti aura aruchi karata hua vaha usa tila ke paudhe ke pasa pahumcha aura usaki tilaphali tori, phira use hatheli para masalakara sata tila bahara nikale. Usa mamkhaliputra goshalaka ko una sata tilom ko ginate hue isa prakara ka adhyavasaya yavat samkalpa utpanna hua – sabhi jiva isa prakara parivrittya – parihara karate haim. He gautama ! Mamkhaliputra goshalaka ka yaha parivartta haim aura he gautama ! Mujhase mamkhaliputra goshalaka ka yaha apana prithak vicharana hai. |