Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004079
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१३

Translated Chapter :

शतक-१३

Section : उद्देशक-४ पृथ्वी Translated Section : उद्देशक-४ पृथ्वी
Sutra Number : 579 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एगे भंते! जीवत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? जहन्नपदे चउहिं, उक्कोसपदे सत्तहिं। एवं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं वि। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? सत्तहिं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। एगे भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? एवं जहेव जीवत्थिकायस्स। दो भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? गोयमा! जहन्नपदे छहिं, उक्कोसपदे बारसहिं। एवं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं वि। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? बारसहिं। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। तिन्नि भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? जहन्नपदे अट्ठहिं, उक्कोसपदे सत्तर-सहिं। एवं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं वि। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? सत्तरसहिं। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। एवं एएणं गमेणं भाणियव्वा जाव दस, नवरं–जहन्नपदे दोन्निपक्खिवियव्वा, उक्कोसपदे पंच। चत्तारि पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे दसहिं, उक्कोस-पदे बावीसाए। पंच पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे बारसहिं उक्कोसपदे सत्तावीसाए। छ पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे चोद्दसहिं, उक्कोसपदे बत्तीसाए। सत्त पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे सोलसहिं, उक्कोसपदे सत्त तीसाए। अट्ठ पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे अट्ठारसहिं, उक्कोसपदे बायालीसाए। नव पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे वीसाए, उक्कोसपदे सीयालीसाए। दस पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहन्नपदे बावीसाए, उक्कोसपदे बावन्नाए। आगासत्थिकायस्स सव्वत्थ उक्कोसगं भाणियव्वं। संखेज्जा भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? जहन्नपदे तेणेव संखेज्जएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं? एवं चेव। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं? तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं? अनंतेहिं। केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायपदेसेहिं? अनंतेहिं। केवतिएहिं अद्धासमएहिं? सिय पुट्ठे, सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे नियमं अनंतेहिं। असंखेज्जा भंते! पोग्गत्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? जहन्नपदे तेणेव असंखेज्जएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेव असंखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं। सेसं जहा संखेज्जाणं जाव नियमं अनंतेहिं। अनंता भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठा? एवं जहा असंखेज्जा तहा अनंता वि निरवसेसं। एगे भंते! अद्धासमए केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? सत्तहिं। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? एवं चेव, एवं आगासत्थिकाएहिं वि। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं, एवं जाव अद्धासमएहिं। धम्मत्थिकाए णं भंते! केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? नत्थि एक्केण वि। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं? असंखेज्जेहिं। केवतिएहिं आगासत्थि-कायपदेसेहिं? असंखेज्जेहिं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं? अनंतेहिं। केवतिएहिं पोग्गलत्थि-कायपदेसेहिं? अनंतेहिं। केवतिएहिं अद्धासमएहिं? सिय पुट्ठे सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे नियमा अनंतेहिं। अधम्मत्थिकाए णं भंते! केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? असंखेज्जेहिं। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं? नत्थि एक्केण वि। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। एवं एणं गमएणं सव्वे वि सट्ठाणए नत्थि एक्केण वि पुट्ठा, परट्ठाणए आदिल्लएहिं तिहिं असंखेज्जेहिं भाणियव्वं, पच्छिल्लएसु तिसु अनंता भाणियव्वा जाव अद्धासमयो त्ति जाव केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुट्ठे? नत्थि एक्केण वि।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों में स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से और उत्कृष्टपद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। (भगवन्‌ !) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) आकाशास्तिकाय के सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। भगवन्‌ ! जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह (जीवास्तिकायिक एक प्रदेश) स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के प्रदेश के समान (समझना चाहिए)। भगवन्‌ ! एक पुद्‌गलास्तिकायिक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! जीवास्तिकाय के एक प्रदेश अनुसार जानना। भगवन्‌ ! पुद्‌गलास्तिकाय के दो प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? गौतम ! वे जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से स्पृष्ट हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे स्पृष्ट होते हैं। भगवन्‌ ! वे आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम ! वे आकाशास्ति – काय के १२ प्रदेशों से स्पृष्ट हैं। शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। भगवन्‌ ! पुद्‌गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम ! जघन्य पद में आठ प्रदेशों और उत्कृष्ट पद में १७ प्रदेशों से। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे स्पृष्ट होते हैं। भगवन् आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (वे स्पृष्ट होते हैं ?) गौतम ! सत्तरह प्रदेशों से। शेष धर्मास्तिकाय के समान जानना। इसी आलापक के समान यावत्‌ दश प्रदेशों तक कहना। विशेषता यह है कि जघन्य पद में दो और उत्कृष्ट पद में पाँच का प्रक्षेप करना। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के चार प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? जघन्य पद में दस प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बाईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के पाँच प्रदेश ? जघन्य बारह प्रदेशों से और उत्कृष्ट सत्ताईस प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के छह प्रदेश ? (गौतम !) जघन्यपद में चौदह और उत्कृष्ट पद में बत्तीस प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के सात प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में सोलह और उत्कृष्ट पद में सैंतीस प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के आठ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम ! वे) जघन्य पद में १८ और उत्कृष्ट पद में बयालीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के नौ प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में बीस और उत्कृष्ट पद में छयालीस प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के दश प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में बाईस और उत्कृष्ट पद में बावन प्रदेशों से। आकाशास्तिकाय के लिए सर्वत्र उत्कृष्ट पद ही कहना चाहिए। भगवन्‌ ! पुद्‌गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश ? गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़े और उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें, उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुणे करके उनमें दो रूप और जोड़ें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। (भगवन्‌ !) वे जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) पुद्‌गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) कदाचित्‌ स्पृष्ट होते हैं, कदाचित्‌ स्पृष्ट नहीं होते, यावत्‌ अनन्त समयों से स्पृष्ट होते हैं। भगवन्‌ ! पुद्‌गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप अधिक जोड़ दें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं और उत्कृष्ट पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को पाँच गुण करके उनमें दो रूप अधिक जोड़ दें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। शेष सभी वर्णन संख्यात प्रदेशों के समान जानना चाहिए, यावत्‌ नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए)। भगवन्‌ ! पुद्‌गलास्ति – काय के अनन्त प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) असंख्यात प्रदेशों के अनुसार कथन करना चाहिए। भगवन्‌ ! अद्धाकाल का एक समय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? सात प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से ? पूर्ववत्‌ जानना। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से भी (कहना)। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से। इसी प्रकार यावत्‌ अनन्त अद्धासमयों से स्पृष्ट होता है। भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय द्रव्य, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होता। (भगवन्‌ ! वह) धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) असंख्येय प्रदेशों से। (भगवन्‌ ! वह) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) असंख्येय प्रदेशों से। (भगवन्‌ वह) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से। (भगवन्‌ ! वह) पुद्‌गलास्ति – काय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से। (भगवन्‌ !) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है? (गौतम ! वह) कदाचित्‌ स्पृष्ट होता है, और कदाचित्‌ नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से। भगवन्‌ ! अधर्मास्तिकाय द्रव्य धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) असंख्यात प्रदेशों से। भगवन्‌ ! वह अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह उसके एक भी प्रदेश से (स्पृष्ट नहीं होता) शेष सभी (द्रव्यों के प्रदेशों) से स्पर्शना के विषय के धर्मास्तिकाय के समान (जानना चाहिए)। इसी प्रकार सभी द्रव्य स्वस्थान में एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होते, (किन्तु) परस्थान में आदि के तीनों के असंख्यात प्रदेशोंसे स्पर्शना कहना, पीछे के तीन स्थानों के अनन्तप्रदेशों से स्पर्शना अद्धासमय तक कहना। (यथा – ) ‘‘अद्धाकाल, कितने अद्धासमयों से स्पृष्ट होता है ?’’ एक भी समय से स्पृष्ट नहीं होता।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ege bhamte! Jivatthikayapadese kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Jahannapade chauhim, ukkosapade sattahim. Evam adhammatthikayapadesehim vi. Kevatiehim agasatthikayapadesehim putthe? Sattahim. Kevatiehim jivatthikayapadesehim putthe? Anamtehim. Sesam jaha dhammatthikayassa. Ege bhamte! Poggalatthikayapadese kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Evam jaheva jivatthikayassa. Do bhamte! Poggalatthikayapadesa kevatiehim dhammatthikayapadesehim puttha? Goyama! Jahannapade chhahim, ukkosapade barasahim. Evam adhammatthikayapadesehim vi. Kevatiehim agasatthikayapadesehim puttha? Barasahim. Sesam jaha dhammatthikayassa. Tinni bhamte! Poggalatthikayapadesa kevatiehim dhammatthikayapadesehim puttha? Jahannapade atthahim, ukkosapade sattara-sahim. Evam adhammatthikayapadesehim vi. Kevatiehim agasatthikayapadesehim puttha? Sattarasahim. Sesam jaha dhammatthikayassa. Evam eenam gamenam bhaniyavva java dasa, navaram–jahannapade donnipakkhiviyavva, ukkosapade pamcha. Chattari poggalatthikayassa padesa jahannapade dasahim, ukkosa-pade bavisae. Pamcha poggalatthikayassa padesa jahannapade barasahim ukkosapade sattavisae. Chha poggalatthikayassa padesa jahannapade choddasahim, ukkosapade battisae. Satta poggalatthikayassa padesa jahannapade solasahim, ukkosapade satta tisae. Attha poggalatthikayassa padesa jahannapade attharasahim, ukkosapade bayalisae. Nava poggalatthikayassa padesa jahannapade visae, ukkosapade siyalisae. Dasa poggalatthikayassa padesa jahannapade bavisae, ukkosapade bavannae. Agasatthikayassa savvattha ukkosagam bhaniyavvam. Samkhejja bhamte! Poggalatthikayapadesa kevatiehim dhammatthikayapadesehim puttha? Jahannapade teneva samkhejjaenam dugunenam duruvahienam, ukkosapade teneva samkhejjaenam pamchagunenam duruvahienam. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim? Evam cheva. Kevatiehim agasatthikayapadesehim? Teneva samkhejjaenam pamchagunenam duruvahienam. Kevatiehim jivatthikayapadesehim? Anamtehim. Kevatiehim poggalatthikayapadesehim? Anamtehim. Kevatiehim addhasamaehim? Siya putthe, siya no putthe, jai putthe niyamam anamtehim. Asamkhejja bhamte! Poggatthikayapadesa kevatiehim dhammatthikayapadesehim puttha? Jahannapade teneva asamkhejjaenam dugunenam duruvahienam, ukkosapade teneva asamkhejjaenam pamchagunenam duruvahienam. Sesam jaha samkhejjanam java niyamam anamtehim. Anamta bhamte! Poggalatthikayapadesa kevatiehim dhammatthikayapadesehim puttha? Evam jaha asamkhejja taha anamta vi niravasesam. Ege bhamte! Addhasamae kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Sattahim. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim putthe? Evam cheva, evam agasatthikaehim vi. Kevatiehim jivatthikayapadesehim putthe? Anamtehim, evam java addhasamaehim. Dhammatthikae nam bhamte! Kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Natthi ekkena vi. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim? Asamkhejjehim. Kevatiehim agasatthi-kayapadesehim? Asamkhejjehim. Kevatiehim jivatthikayapadesehim? Anamtehim. Kevatiehim poggalatthi-kayapadesehim? Anamtehim. Kevatiehim addhasamaehim? Siya putthe siya no putthe, jai putthe niyama anamtehim. Adhammatthikae nam bhamte! Kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Asamkhejjehim. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim? Natthi ekkena vi. Sesam jaha dhammatthikayassa. Evam enam gamaenam savve vi satthanae natthi ekkena vi puttha, paratthanae adillaehim tihim asamkhejjehim bhaniyavvam, pachchhillaesu tisu anamta bhaniyavva java addhasamayo tti java kevatiehim addhasamaehim putthe? Natthi ekkena vi.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Jivastikaya ka eka pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom mem sprishta hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya pada mem dharmastikaya ke chara pradeshom se aura utkrishtapada mem sata pradeshom se sprishta hota hai. Isi prakara vaha adharmastikaya ke pradeshom se sprishta hota hai. (bhagavan !) akashastikaya ke kitane pradeshom se vaha sprishta hota hai\? (gautama ! Vaha) akashastikaya ke sata pradeshom se sprishta hota hai. Bhagavan ! Jivastikaya ke kitane pradeshom se vaha (jivastikayika eka pradesha) sprishta hota hai\? (gautama !) shesha sabhi kathana dharmastikaya ke pradesha ke samana (samajhana chahie). Bhagavan ! Eka pudgalastikayika pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Gautama ! Jivastikaya ke eka pradesha anusara janana. Bhagavan ! Pudgalastikaya ke do pradesha, dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta haim\? Gautama ! Ve jaghanya pada mem dharmastikaya ke chhaha pradeshom se aura utkrishta pada mem baraha pradeshom se sprishta haim. Isi prakara adharmastikaya ke pradeshom se bhi ve sprishta hote haim. Bhagavan ! Ve akashastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? Gautama ! Ve akashasti – kaya ke 12 pradeshom se sprishta haim. Shesha sabhi varnana dharmastikaya ke samana janana chahie. Bhagavan ! Pudgalastikaya ke tina pradesha, dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? Gautama ! Jaghanya pada mem atha pradeshom aura utkrishta pada mem 17 pradeshom se. Isi prakara adharmastikaya ke pradeshom se bhi ve sprishta hote haim. Bhagavan akashastikaya ke kitane pradeshom se (ve sprishta hote haim\?) gautama ! Sattaraha pradeshom se. Shesha dharmastikaya ke samana janana. Isi alapaka ke samana yavat dasha pradeshom taka kahana. Visheshata yaha hai ki jaghanya pada mem do aura utkrishta pada mem pamcha ka prakshepa karana. (bhagavan !) pudgalastikaya ke chara pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? Jaghanya pada mem dasa pradeshom se aura utkrishta pada mem baisa pradeshom se sprishta hote haim. (bhagavan !) pudgalastikaya ke pamcha pradesha\? Jaghanya baraha pradeshom se aura utkrishta sattaisa pradeshom se. (bhagavan !) pudgalastikaya ke chhaha pradesha\? (gautama !) jaghanyapada mem chaudaha aura utkrishta pada mem battisa pradeshom se. (bhagavan !) pudgalastikaya ke sata pradesha\? (gautama !) jaghanya pada mem solaha aura utkrishta pada mem saimtisa pradeshom se. (bhagavan !) pudgalastikaya ke atha pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? (gautama ! Ve) jaghanya pada mem 18 aura utkrishta pada mem bayalisa pradeshom se (sprishta hote haim.) (bhagavan !) pudgalastikaya ke nau pradesha\? (gautama !) jaghanya pada mem bisa aura utkrishta pada mem chhayalisa pradeshom se. (bhagavan !) pudgalastikaya ke dasha pradesha\? (gautama !) jaghanya pada mem baisa aura utkrishta pada mem bavana pradeshom se. Akashastikaya ke lie sarvatra utkrishta pada hi kahana chahie. Bhagavan ! Pudgalastikaya ke samkhyata pradesha\? Gautama ! Jaghanya pada mem unhim samkhyata pradeshom ko dugune karake unamem do rupa aura adhika jore aura utkrishta pada mem unhim samkhyata pradeshom ko pamcha gune karake unamem do rupa aura adhika jorem, utane pradeshom se ve sprishta hote haim. Adharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim? Purvavat. Bhagavan ! Akashastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? (gautama !) unhim samkhyata pradeshom ko pamcha gune karake unamem do rupa aura jorem, utane pradeshom se sprishta hote haim. (bhagavan !) ve jivastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? (gautama !) ananta pradeshom se. (bhagavan !) pudgalastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? (gautama !) ananta pradeshom se. (bhagavan !) addhakala ke kitane samayom se sprishta hote haim\? (gautama !) kadachit sprishta hote haim, kadachit sprishta nahim hote, yavat ananta samayom se sprishta hote haim. Bhagavan ! Pudgalastikaya ke asamkhyata pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? Gautama ! Jaghanya pada mem unhim asamkhyata pradeshom ko dugune karake unamem do rupa adhika jora dem, utane pradeshom se sprishta hote haim aura utkrishta pada mem unhim asamkhyata pradeshom ko pamcha guna karake unamem do rupa adhika jora dem, utane pradeshom se sprishta hote haim. Shesha sabhi varnana samkhyata pradeshom ke samana janana chahie, yavat niyamatah ananta pradeshom se sprishta hote haim, (yaham taka kahana chahie). Bhagavan ! Pudgalasti – kaya ke ananta pradesha dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hote haim\? (gautama !) asamkhyata pradeshom ke anusara kathana karana chahie. Bhagavan ! Addhakala ka eka samaya dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Sata pradeshom se. (bhagavan !) adharmastikaya ke kitane pradeshom se\? Purvavat janana. Isi prakara akashastikaya ke pradeshom se bhi (kahana). Jivastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) ananta pradeshom se. Isi prakara yavat ananta addhasamayom se sprishta hota hai. Bhagavan ! Dharmastikaya dravya, dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Gautama ! Vaha eka bhi pradesha se sprishta nahim hota. (bhagavan ! Vaha) dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) asamkhyeya pradeshom se. (bhagavan ! Vaha) akashastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) asamkhyeya pradeshom se. (bhagavan vaha) jivastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) ananta pradeshom se. (bhagavan ! Vaha) pudgalasti – kaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) ananta pradeshom se. (bhagavan !) addhakala ke kitane samayom se sprishta hota hai? (gautama ! Vaha) kadachit sprishta hota hai, aura kadachit nahim hota. Yadi sprishta hota hai to niyamatah ananta samayom se. Bhagavan ! Adharmastikaya dravya dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) asamkhyata pradeshom se. Bhagavan ! Vaha adharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Gautama ! Vaha usake eka bhi pradesha se (sprishta nahim hota) shesha sabhi (dravyom ke pradeshom) se sparshana ke vishaya ke dharmastikaya ke samana (janana chahie). Isi prakara sabhi dravya svasthana mem eka bhi pradesha se sprishta nahim hote, (kintu) parasthana mem adi ke tinom ke asamkhyata pradeshomse sparshana kahana, pichhe ke tina sthanom ke anantapradeshom se sparshana addhasamaya taka kahana. (yatha – ) ‘‘addhakala, kitane addhasamayom se sprishta hota hai\?’’ eka bhi samaya se sprishta nahim hota.