Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004078 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१३ |
Translated Chapter : |
शतक-१३ |
Section : | उद्देशक-४ पृथ्वी | Translated Section : | उद्देशक-४ पृथ्वी |
Sutra Number : | 578 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] एगे भंते! धम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? गोयमा! जहन्नपदे तिहिं, उक्कोसपदे छहिं। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? जहन्नपदे चउहिं, उक्कोसपदे सत्तहिं। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? सत्तहिं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं। केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायप-देसेहिं पुट्ठे? अनंतेहिं। केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुट्ठे? सिय पुट्ठे सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे नियमं अनंतेहिं। एगे भंते! अधम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? गोयमा! जहन्नपदे चउहिं, उक्कोसपदे सतहिं। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? जहन्नपदे तिहिं, उक्कोसपदे छहिं। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। एगे भंते! आगासत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? गोयमा! सिय पुट्ठे सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे जहन्नपदे एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसपदे सत्तहिं। एवं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं वि। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? छहिं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं पुट्ठे? सिय पुट्ठे सिय नो पुट्ठे, जइ पुट्ठे नियमं अनंतेहिं। एवं पोग्गलत्थि-कायपदेसेहिं वि, अद्धासमएहिं वि। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, कितने धर्मास्तिकाय के प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह जघन्य पद में तीन प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) जघन्य पद में चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। वह आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) सात (आकाश – ) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? अनन्त (जीव – ) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। पुद्ग – लास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) कथंचित् स्पृष्ट होता है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना। भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में एक, दो, तीन या चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशो से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट के विषय में जानना। (भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है ?) गौतम! वह छह प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है)। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? वह कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् नहीं। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार पुद्गलास्ति – काय के प्रदेशों से तथा अद्धाकाल के समयों से स्पृष्ट होने के विषय में जानना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ege bhamte! Dhammatthikayapadese kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Goyama! Jahannapade tihim, ukkosapade chhahim. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim putthe? Jahannapade chauhim, ukkosapade sattahim. Kevatiehim agasatthikayapadesehim putthe? Sattahim. Kevatiehim jivatthikayapadesehim putthe? Anamtehim. Kevatiehim poggalatthikayapa-desehim putthe? Anamtehim. Kevatiehim addhasamaehim putthe? Siya putthe siya no putthe, jai putthe niyamam anamtehim. Ege bhamte! Adhammatthikayapadese kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Goyama! Jahannapade chauhim, ukkosapade satahim. Kevatiehim adhammatthikayapadesehim putthe? Jahannapade tihim, ukkosapade chhahim. Sesam jaha dhammatthikayassa. Ege bhamte! Agasatthikayapadese kevatiehim dhammatthikayapadesehim putthe? Goyama! Siya putthe siya no putthe, jai putthe jahannapade ekkena va dohim va tihim va, ukkosapade sattahim. Evam adhammatthikayapadesehim vi. Kevatiehim agasatthikayapadesehim putthe? Chhahim. Kevatiehim jivatthikayapadesehim putthe? Siya putthe siya no putthe, jai putthe niyamam anamtehim. Evam poggalatthi-kayapadesehim vi, addhasamaehim vi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Dharmastikaya ka eka pradesha, kitane dharmastikaya ke pradeshom dvara sprishta hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya pada mem tina pradeshom se aura utkrishta pada mem chhaha pradeshom se sprishta hota hai. Adharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama ! Vaha) jaghanya pada mem chara pradeshom se aura utkrishta pada mem sata adharmastikaya pradeshom se sprishta hota hai. Vaha akashastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama ! Vaha) sata (akasha – ) pradeshom se sprishta hota hai. Jivastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Ananta (jiva – ) pradeshom se sprishta hota hai. Pudga – lastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama ! Vaha) ananta pradeshom se sprishta hota hai. Addhakala ke kitane samayom se sprishta hota hai\? (gautama ! Vaha) kathamchit sprishta hota hai aura kathamchit sprishta nahim hota. Yadi sprishta hota hai to niyamatah ananta samayom se sprishta hota hai. Bhagavan ! Adharmastikaya ka eka pradesha, dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? (gautama !) dharmastikaya ke jaghanya pada mem chara aura utkrishta pada mem sata pradeshom se sprishta hota hai. Kitane adharmastikaya ke pradeshom se sprishta hota hai\? Jaghanya pada mem tina aura utkrishta pada mem chhaha pradeshom se sprishta hota hai. Shesha sabhi varnana dharmastikaya ke varnana ke samana samajhana. Bhagavan ! Dharmastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Kadachit sprishta hota hai, kadachit sprishta nahim hota. Yadi sprishta hota hai to jaghanya pada mem eka, do, tina ya chara pradeshom se aura utkrishta pada mem sata pradesho se sprishta hota hai. Isi prakara adharmastikaya ke pradeshom se sprishta ke vishaya mem janana. (bhagavan ! Akashastikaya ka eka pradesha) akashastikaya ke kitane pradeshom se (sprishta hota hai\?) gautama! Vaha chhaha pradeshom se (sprishta hota hai). Jivastikaya ke kitane pradeshom se sprishta hota hai\? Vaha kadachit sprishta hota hai, kadachit nahim. Yadi sprishta hota hai to niyamatah ananta pradeshom se sprishta hota hai. Isi prakara pudgalasti – kaya ke pradeshom se tatha addhakala ke samayom se sprishta hone ke vishaya mem janana chahie. |