Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004036
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१२

Translated Chapter :

शतक-१२

Section : उद्देशक-२ जयंति Translated Section : उद्देशक-२ जयंति
Sutra Number : 536 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरतिरति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति। कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं मुसावायवेरमणेणं अदिन्नादानवेरमणेणं मेहुणवेरमणेणं परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ- पेज्ज-दोस- कलह-अब्भक्खाण- पेसुन्न-परपरिवाय- अरतिरति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं– एवं खलु जयंती! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं आउलीकरेंति? जयंती! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा संसारं आउली-करेंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं परित्तीकरेंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं–एवं खलु जयंती! जीवा संसारं परित्तीकरेंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं दीहीकरेंति? जयंती! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा संसारं दीहीकरेंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं ह्रस्सीकरेंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं–एवं खलु जयंती! जीवा संसारं ह्रस्सीकरेंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं अनुपरियट्टंति? जयंती! पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा संसारं अनुपरियट्टंति। कहन्नं भंते! जीवा संसारं वीतिवयंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं– एवं खलु जयंती! जीवा संसारं वीतिवयंति। भवसिद्धियत्तणं भंते! जीवाणं किं सभावओ? परिणामओ? जयंती! सभावओ, नो परिणामओ। सव्वेवि णं भंते! भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति? हंता जयंती! सव्वेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति। जइ णं भंते! सव्वे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, तम्हा णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणं खाइणं अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सव्वेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ? जयंती! से जहानामए सव्वागाससेढी सिया– अनादीया अनवदग्गा परित्ता परिवुडा, सा णं परमाणुपोग्गलमेत्तेहिं खंडेहिं समए-समए अवहीरमाणी-अवहीरमाणी अनंताहिं ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। से तेणट्ठेणं जयंती! एवं वुच्चइ–सव्वेवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो चेव णं भवसिद्धिअविरहिए लोए भविस्सइ। सुत्तत्तं भंते! साहू? जागरियत्तं साहू? जयंती! अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू? जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव बित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू। एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परियावणयाए वट्टंति। एए णं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति एएसि णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू। जयंती! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मपलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू। एए णं जीवा जागरा समाणा बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपिट्टणयाए अपरियाबणयाए वट्टंति। एए णं जीवा जागरा समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एए णं जीवा जागरा समाणा धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तारो भवंति। एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू। से तेणट्ठेणं जयंती! एवं वुच्चइ–अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू। बलियत्तं भंते! साहू? दुब्बलियत्तं साहू? जयंती! अत्थेगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुब्बलियत्तंसाहू? जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। एए णं जीवा दुब्बलिया समाणा नो बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए जाव परियावणयाए वट्टंति। एए णं जीवा दुब्बलिया समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एएसि णं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। जयंती! जे इमे जीवा धम्मिया जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं बलियत्तं साहू। एए णं जीवा बलिया समाणा बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणयाए वट्टंति। एए णं जीवा बलिया समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एएसि णं जीवाणं बलियत्तं साहू। से तेणट्ठेणं जयंती! एवं वुच्चइ–अत्थेगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहू। दक्खुत्तं भंते! साहू? आलसियत्तं साहू? जयंती! अत्थेगतियाणं जीवाणं दक्खुत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतियाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू? जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया जाव अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू। एए णं जीवा आलसा समाणा नो बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए जाव परियावणयाए वट्टंति। एए णं जीवा आलसा समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एएसि णं जीवाणं आलसियत्तं साहू जयंती! जे इमे जीवा धम्मिया जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं दक्खत्तं साहू। एए णं जीवा दक्खा समाणा बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणयाए वट्टंति। एए णं जीवा दक्खा समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एए णं जीवा दक्खा समाणा बहूहिं आयरिय-वेयावच्चेहिं उवज्झाय-वेयावच्चेहिं थेर-वेयावच्चेहिं तवस्सिवेयावच्चेहिं गिलाणवेयावच्चेहिं सेहवेयावच्चेहिं कुलवेयावच्चेहिं गणवेयावच्चेहिं संघवेयावच्चेहिं साहम्मियवेयावच्चेहिं अत्ताणं संजोएत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं दक्खत्तं साहू। से तेणट्ठेणं जयंती! एवं वुच्चइ– अत्थेगतियाणं जीवाणं दक्खत्तं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं आलसियत्तं साहू। सोइंदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? जयंती! सोइंदियवसट्टे णं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वा-नुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ। चक्खिंदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? एवं चेव जाव अनुपरियट्टइ। घाणिंदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? एवं चेव जाव अनुपरियट्टइ। रसिंदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? एवं चेव जाव अनुपरियट्टइ। फासिंदियवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? एवं चेव जाव अनुपरियट्टइ। तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा सेसं जहा देवानंदा तहेव पव्वइया जाव सव्वदुक्खप्पहीणा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : वह जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान महावीर से धर्मोपदेश श्रवण कर एवं अवधारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। फिर भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन्‌ ! जीव किस कारण से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? जयन्ती ! जीव प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापस्थानों के सेवन से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं, (इत्यादि) प्रथम शतक अनुसार, यावत्‌ संसारसमुद्र से पार हो जाते हैं। भगवन्‌ ! जीवों का भवसिद्धिकत्व स्वाभाविक है या पारिणामिक है ? जयन्ती ! वह स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। भगवन्‌ ! क्या सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएंगे ? हाँ, जयन्ती ! हो जाएंगे। भगवन्‌ ! यदि भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जाएंगे, तो क्या लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित हो जाएगा ? जयन्ती ! यह अर्थ शक्य नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? जयन्ती ! जिस प्रकार कोई सर्वाकाश श्रेणी हो, जो अनादि, अनन्त हो, परित्त और परिवृत हो, उसमें से प्रतिसमय एक – एक परमाणु – पुद्‌गल जितना खण्ड निकालतेनिकालते अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी तक निकाला जाए तो भी वह श्रेणी खाली नहीं होती। इसी प्रकार, हे जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि सब भवसिद्धिक जीव सिद्ध होंगे, किन्तु लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा। भगवन्‌ ! जीवों का सुप्त रहना अच्छा है या जागृत रहना अच्छा ? जयन्ती ! कुछ जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कुछ जीवों का जागृत रहना अच्छा है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण कहते हैं ? जयन्ती ! जो ये अधार्मिक, अधर्मानुसरणकर्ता, अधर्मिष्ठ, अधर्म का कथन करने वाले, अधर्मावलोकनकर्ता, अधर्म में आसक्त, अधर्माचरणकर्ता और अधर्म से ही आजीविका करने वाले जीव हैं, उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है, क्योंकि वे जीव सुप्त रहते हैं, तो अनेक प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख, शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। ये जीव सोये रहते हैं तो अपने को, दूसरे को और स्व – पर को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं में नहीं फँसाते। ‘जयन्ती ! जो ये धार्मिक हैं, धर्मानुसारी, धर्मप्रिय, धर्म का कथन करने वाले, धर्म के अवलोकनकर्ता, धर्मासक्त, धर्माचरणी, और धर्म से ही अपनी आजीविका करने वाले जीव हैं, उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है, क्योंकि ये जीव जाग्रत हों तो बहुत से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख, शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। ऐसे (धर्मिष्ठ) जीव जागृत रहते हुए स्वयं को, दूसरे को और स्व – पर को अनेक धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते रहते हैं। इसलिए इन जीवों का जागृत रहना अच्छा है। इसी कारण से, हे जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि कईं जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कईं जीवों का जागृत रहना अच्छा है। भगवन्‌ ! जीवों की सबलता अच्छी है या दुर्बलता ? जयन्ती ! कईं जीवों की सबलता अच्छी है और कईं जीवों की दुर्बलता अच्छी है। भगवन्‌ ! जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत्‌ अधर्म से ही आजीविका करते हैं, उन जीवों की दुर्बलता अच्छी है। क्योंकि ये जीव दुर्बल होने से किसी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व को दुःख आदि नहीं पहुँचा सकते, इत्यादि सुप्त के समान दुर्बलता का भी कथन करना। और ‘जाग्रत’ के समान सबलता का कथन करना चाहिए। यावत्‌ धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं, इसलिए इन जीवों की सबलता अच्छी है। हे जयन्ती ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि कईं जीवों की सबलता अच्छी है और कईं जीवों की निर्बलता। भगवन्‌ ! जीवों का दक्षत्व (उद्यमीपन) अच्छा है, या आलसीपन ? जयन्ती ! कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत्‌ अधर्म द्वारा आजीविका करते हैं, उन जीवों का आलसीपन अच्छा है। यदि वे आलसी होंगे तो प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख, शोक और परिताप उत्पन्न करने में प्रवृत्त नहीं होंगे, इत्यादि सब सुप्त के समान कहना तथा दक्षता का कथन जाग्रत के समान कहना, यावत्‌ वे स्व, पर और उभय को धर्म के साथ संयोजित करने वाले होते हैं। ये जीव दक्ष हों तो आचार्य की वैयावृत्य, उपाध्याय की वैयावृत्य, स्थविरों की वैया – वृत्य, तपस्वीयों की वैयावृत्य, ग्लान की वैयावृत्य, शैक्ष की वैयावृत्य, कुलवैयावृत्य, गणवैयावृत्य, संघवैयावृत्य और साधर्मिकवैयावृत्य से अपने आपको संयोजित करने वाले होते हैं। हे जयन्ती ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है। भगवन्‌ ! श्रोत्रेन्द्रिय के वश – आर्त्त बना हुआ जीव क्या बाँधता है ? इत्यादि प्रश्न। जयन्ती ! जिस प्रकार क्रोध के वश – आर्त्त बने हुए जीव के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यावत्‌ वह संसार में बार – बार पर्यटन करता है, (यहाँ तक कहना)। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय – वशार्त्त बने हुए जीव के विषय में भी कहना। इसी प्रकार यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय – वशार्त्त बने हुए जीव के विषय में कहना। तदनन्तर वह जयन्ती श्रमणोपासिका, श्रमण भगवान महावीर से यह अर्थ सूनकर एवं हृदय में अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई, इत्यादि शेष समस्त वर्णन देवानन्दा के समान है, यावत्‌ जयन्ती श्रमणोपासिका प्रव्रजित हुई यावत्‌ सर्व दुःखों से रहित हुई। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam sa jayamti samanovasiya samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma hatthatuttha samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Kahannam bhamte! Jiva garuyattam havvamagachchhamti? Jayamti! Panaivaenam musavaenam adinnadanenam mehunenam pariggahenam koha-mana-maya-lobha-pejja-dosa-kalaha-abbhakkhana-pesunna-paraparivaya-aratirati-mayamosa-michchhadamsanasallenam–evam khalu jayamti! Jiva garuyattam havvamagachchhamti. Kahannam bhamte! Jiva lahuyattam havvamagachchhamti? Jayamti! Panaivayaveramanenam musavayaveramanenam adinnadanaveramanenam mehunaveramanenam pariggaha-veramanenam koha-mana-maya-lobha- pejja-dosa- kalaha-abbhakkhana- pesunna-paraparivaya- aratirati-mayamosa-michchhadamsanasallaveramanenam– evam khalu jayamti! Jiva lahuyattam havvamagachchhamti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram aulikaremti? Jayamti! Panaivaenam java michchhadamsanasallenam–evam khalu jayamti! Jiva samsaram auli-karemti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram parittikaremti? Jayamti! Panaivayaveramanenam java michchhadamsanasallaveramanenam–evam khalu jayamti! Jiva samsaram Parittikaremti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram dihikaremti? Jayamti! Panaivaenam java michchhadamsanasallenam–evam khalu jayamti! Jiva samsaram dihikaremti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram hrassikaremti? Jayamti! Panaivayaveramanenam java michchhadamsanasallaveramanenam–evam khalu jayamti! Jiva samsaram Hrassikaremti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram anupariyattamti? Jayamti! Panaivaenam java michchhadamsanasallenam–evam khalu jayamti! Jiva samsaram anupariyattamti. Kahannam bhamte! Jiva samsaram vitivayamti? Jayamti! Panaivayaveramanenam java michchhadamsanasallaveramanenam– evam khalu jayamti! Jiva samsaram vitivayamti. Bhavasiddhiyattanam bhamte! Jivanam kim sabhavao? Parinamao? Jayamti! Sabhavao, no parinamao. Savvevi nam bhamte! Bhavasiddhiya jiva sijjhissamti? Hamta jayamti! Savvevi nam bhavasiddhiya jiva sijjhissamti. Jai nam bhamte! Savve bhavasiddhiya jiva sijjhissamti, tamha nam bhavasiddhiyavirahie loe bhavissai? No inatthe samatthe. Se kenam khainam atthenam bhamte! Evam vuchchai–savvevi nam bhavasiddhiya jiva sijjhissamti, no cheva nam bhavasiddhiyavirahie loe bhavissai? Jayamti! Se jahanamae savvagasasedhi siya– anadiya anavadagga paritta parivuda, sa nam paramanupoggalamettehim khamdehim samae-samae avahiramani-avahiramani anamtahim osappini-ussappinihim avahiramti, no cheva nam avahiya siya. Se tenatthenam jayamti! Evam vuchchai–savvevi nam bhavasiddhiya jiva sijjhissamti, no cheva nam bhavasiddhiavirahie loe bhavissai. Suttattam bhamte! Sahu? Jagariyattam sahu? Jayamti! Atthegatiyanam jivanam suttattam sahu, atthegatiyanam jivanam jagariyattam sahu. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegatiyanam jivanam suttattam sahu, atthegatiyanam jivanam jagariyattam sahu? Jayamti! Je ime jiva ahammiya ahammanuya ahammittha ahammakkhai ahammapaloi ahammapalajjana ahammasamudayara ahammenam cheva bittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam suttattam sahu. Ee nam jiva sutta samana no bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam dukkhanayae soyanayae juranayae tippanayae pittanayae pariyavanayae vattamti. Ee nam jiva sutta samana appanam va param va tadubhayam va no bahuhim ahammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti eesi nam jivanam suttattam sahu. Jayamti! Je ime jiva dhammiya dhammanuya dhammittha dhammakkhai dhammapaloi dhammapalajjana dhammasamudayara dhammenam cheva vittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam jagariyattam sahu. Ee nam jiva jagara samana bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam adukkhanayae asoyanayae ajuranayae atippanayae apittanayae apariyabanayae vattamti. Ee nam jiva jagara samana appanam va param va tadubhayam va bahuhim dhammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti. Ee nam jiva jagara samana dhammajagariyae appanam jagaraittaro bhavamti. Eesi nam jivanam jagariyattam sahu. Se tenatthenam jayamti! Evam vuchchai–atthegatiyanam jivanam suttattam sahu, atthegatiyanam jivanam jagariyattam sahu. Baliyattam bhamte! Sahu? Dubbaliyattam sahu? Jayamti! Atthegatiyanam jivanam baliyattam sahu, atthegatiyanam jivanam dubbaliyattam sahu. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegatiyanam jivanam baliyattam sahu, atthegatiyanam jivanam dubbaliyattamsahu? Jayamti! Je ime jiva ahammiya java ahammenam cheva vittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam dubbaliyattam sahu. Ee nam jiva dubbaliya samana no bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam dukkhanayae java pariyavanayae vattamti. Ee nam jiva dubbaliya samana appanam va param va tadubhayam va no bahuhim ahammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti. Eesi nam jivanam dubbaliyattam sahu. Jayamti! Je ime jiva dhammiya java dhammenam cheva vittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam baliyattam sahu. Ee nam jiva baliya samana bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam adukkhanayae java apariyavanayae vattamti. Ee nam jiva baliya samana appanam va param va tadubhayam va bahuhim dhammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti. Eesi nam jivanam baliyattam sahu. Se tenatthenam jayamti! Evam vuchchai–atthegatiyanam jivanam baliyattam sahu, atthegatiyanam jivanam dubbaliyattam sahu. Dakkhuttam bhamte! Sahu? Alasiyattam sahu? Jayamti! Atthegatiyanam jivanam dakkhuttam sahu, atthegatiyanam jivanam alasiyattam sahu. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–atthegatiyanam jivanam dakkhattam sahu, atthegatiyanam jivanam alasiyattam sahu? Jayamti! Je ime jiva ahammiya java ahammenam cheva vittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam alasiyattam sahu. Ee nam jiva alasa samana no bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam dukkhanayae java pariyavanayae vattamti. Ee nam jiva alasa samana appanam va param va tadubhayam va no bahuhim ahammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti. Eesi nam jivanam alasiyattam sahu Jayamti! Je ime jiva dhammiya java dhammenam cheva vittim kappemana viharamti, eesi nam jivanam dakkhattam sahu. Ee nam jiva dakkha samana bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam adukkhanayae java apariyavanayae vattamti. Ee nam jiva dakkha samana appanam va param va tadubhayam va bahuhim dhammiyahim samjoyanahim samjoettaro bhavamti. Ee nam jiva dakkha samana bahuhim ayariya-veyavachchehim uvajjhaya-veyavachchehim thera-veyavachchehim tavassiveyavachchehim gilanaveyavachchehim sehaveyavachchehim kulaveyavachchehim ganaveyavachchehim samghaveyavachchehim sahammiyaveyavachchehim attanam samjoettaro bhavamti, eesi nam jivanam dakkhattam sahu. Se tenatthenam jayamti! Evam vuchchai– atthegatiyanam jivanam dakkhattam sahu, atthegatiyanam jivanam alasiyattam sahu. Soimdiyavasatte nam bhamte! Jive kim bamdhai? Kim pakarei? Kim chinai? Kim uvachinai? Jayamti! Soimdiyavasatte nam jive auyavajjao satta kammapagadio sidhilabamdhanabaddhao dhaniyabamdhanabaddhao pakarei, hassakalathiiyao dihakalathiiyao pakarei, mamdanubhavao tivva-nubhavao pakarei, appapaesaggao bahuppaesaggao pakarei, auyam cha nam kammam siya bamdhai, siya no bamdhai, assayaveyanijjam cha nam kammam bhujjo-bhujjo uvachinai, anaiyam cha nam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram anupariyattai. Chakkhimdiyavasatte nam bhamte! Jive kim bamdhai? Kim pakarei? Kim chinai? Kim uvachinai? Evam cheva java anupariyattai. Ghanimdiyavasatte nam bhamte! Jive kim bamdhai? Kim pakarei? Kim chinai? Kim uvachinai? Evam cheva java anupariyattai. Rasimdiyavasatte nam bhamte! Jive kim bamdhai? Kim pakarei? Kim chinai? Kim uvachinai? Evam cheva java anupariyattai. Phasimdiyavasatte nam bhamte! Jive kim bamdhai? Kim pakarei? Kim chinai? Kim uvachinai? Evam cheva java anupariyattai. Tae nam sa jayamti samanovasiya samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha sesam jaha devanamda taheva pavvaiya java savvadukkhappahina. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Vaha jayanti shramanopasika shramana bhagavana mahavira se dharmopadesha shravana kara evam avadharana karake harshita evam santushta hui. Phira bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake puchha – bhagavan ! Jiva kisa karana se shighra gurutva ko prapta hote haim\? Jayanti ! Jiva pranatipata se lekara mithyadarshanashalya taka atharaha papasthanom ke sevana se shighra gurutva ko prapta hote haim, (ityadi) prathama shataka anusara, yavat samsarasamudra se para ho jate haim. Bhagavan ! Jivom ka bhavasiddhikatva svabhavika hai ya parinamika hai\? Jayanti ! Vaha svabhavika hai, parinamika nahim. Bhagavan ! Kya sabhi bhavasiddhika jiva siddha ho jaemge\? Ham, jayanti ! Ho jaemge. Bhagavan ! Yadi bhavasiddhika jiva siddha ho jaemge, to kya loka bhavasiddhika jivom se rahita ho jaega\? Jayanti ! Yaha artha shakya nahim hai. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha jata hai\? Jayanti ! Jisa prakara koi sarvakasha shreni ho, jo anadi, ananta ho, paritta aura parivrita ho, usamem se pratisamaya eka – eka paramanu – pudgala jitana khanda nikalate – nikalate ananta utsarpini aura avasarpini taka nikala jae to bhi vaha shreni khali nahim hoti. Isi prakara, he jayanti ! Aisa kaha jata hai ki saba bhavasiddhika jiva siddha homge, kintu loka bhavasiddhika jivom se rahita nahim hoga. Bhagavan ! Jivom ka supta rahana achchha hai ya jagrita rahana achchha\? Jayanti ! Kuchha jivom ka supta rahana achchha hai aura kuchha jivom ka jagrita rahana achchha hai. Bhagavan ! Aisa kisa karana kahate haim\? Jayanti ! Jo ye adharmika, adharmanusaranakarta, adharmishtha, adharma ka kathana karane vale, adharmavalokanakarta, adharma mem asakta, adharmacharanakarta aura adharma se hi ajivika karane vale jiva haim, una jivom ka supta rahana achchha hai, kyomki ve jiva supta rahate haim, to aneka pranom, bhutom, jivom aura sattvom ko duhkha, shoka aura paritapa dene mem pravritta nahim hote. Ye jiva soye rahate haim to apane ko, dusare ko aura sva – para ko aneka adharmika samyojanaom mem nahim phamsate. ‘jayanti ! Jo ye dharmika haim, dharmanusari, dharmapriya, dharma ka kathana karane vale, dharma ke avalokanakarta, dharmasakta, dharmacharani, aura dharma se hi apani ajivika karane vale jiva haim, una jivom ka jagrata rahana achchha hai, kyomki ye jiva jagrata hom to bahuta se pranom, bhutom, jivom aura sattvom ko duhkha, shoka aura paritapa dene mem pravritta nahim hote. Aise (dharmishtha) jiva jagrita rahate hue svayam ko, dusare ko aura sva – para ko aneka dharmika samyojanaom mem samyojita karate rahate haim. Isalie ina jivom ka jagrita rahana achchha hai. Isi karana se, he jayanti ! Aisa kaha jata hai ki kaim jivom ka supta rahana achchha hai aura kaim jivom ka jagrita rahana achchha hai. Bhagavan ! Jivom ki sabalata achchhi hai ya durbalata\? Jayanti ! Kaim jivom ki sabalata achchhi hai aura kaim jivom ki durbalata achchhi hai. Bhagavan ! Jayanti ! Jo jiva adharmika yavat adharma se hi ajivika karate haim, una jivom ki durbalata achchhi hai. Kyomki ye jiva durbala hone se kisi prana, bhuta, jiva aura sattva ko duhkha adi nahim pahumcha sakate, ityadi supta ke samana durbalata ka bhi kathana karana. Aura ‘jagrata’ ke samana sabalata ka kathana karana chahie. Yavat dharmika samyojanaom mem samyojita karate haim, isalie ina jivom ki sabalata achchhi hai. He jayanti ! Isi karana se aisa kaha jata hai ki kaim jivom ki sabalata achchhi hai aura kaim jivom ki nirbalata. Bhagavan ! Jivom ka dakshatva (udyamipana) achchha hai, ya alasipana\? Jayanti ! Kuchha jivom ka dakshatva achchha hai aura kuchha jivom ka alasipana achchha hai. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kaha jata hai\? Jayanti ! Jo jiva adharmika yavat adharma dvara ajivika karate haim, una jivom ka alasipana achchha hai. Yadi ve alasi homge to pranom, bhutom, jivom aura sattvom ko duhkha, shoka aura paritapa utpanna karane mem pravritta nahim homge, ityadi saba supta ke samana kahana tatha dakshata ka kathana jagrata ke samana kahana, yavat ve sva, para aura ubhaya ko dharma ke satha samyojita karane vale hote haim. Ye jiva daksha hom to acharya ki vaiyavritya, upadhyaya ki vaiyavritya, sthavirom ki vaiya – vritya, tapasviyom ki vaiyavritya, glana ki vaiyavritya, shaiksha ki vaiyavritya, kulavaiyavritya, ganavaiyavritya, samghavaiyavritya aura sadharmikavaiyavritya se apane apako samyojita karane vale hote haim. He jayanti ! Isi karana se aisa kaha jata hai ki kuchha jivom ka dakshatva achchha hai aura kuchha jivom ka alasipana achchha hai. Bhagavan ! Shrotrendriya ke vasha – artta bana hua jiva kya bamdhata hai\? Ityadi prashna. Jayanti ! Jisa prakara krodha ke vasha – artta bane hue jiva ke vishaya mem kaha gaya hai, usi prakara yavat vaha samsara mem bara – bara paryatana karata hai, (yaham taka kahana). Isi prakara chakshurindriya – vashartta bane hue jiva ke vishaya mem bhi kahana. Isi prakara yavat sparshendriya – vashartta bane hue jiva ke vishaya mem kahana. Tadanantara vaha jayanti shramanopasika, shramana bhagavana mahavira se yaha artha sunakara evam hridaya mem avadharana karake harshita aura santushta hui, ityadi shesha samasta varnana devananda ke samana hai, yavat jayanti shramanopasika pravrajita hui yavat sarva duhkhom se rahita hui. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai, yaha isi prakara hai