Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1003987 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१० |
Translated Chapter : |
शतक-१० |
Section : | उद्देशक-४ श्यामहस्ती | Translated Section : | उद्देशक-४ श्यामहस्ती |
Sutra Number : | 487 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी– अत्थि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा- तावत्तीसगा देवा? एवं खलु सामहत्थी! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कायंदी नामं नयरी होत्था–वण्णओ! तत्थ णं कायंदीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजणस्स अपरिभूता अभिगयजीवाजीवा, उव-लद्धपुण्णपावा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया पुव्विं उग्गा उग्गविहारी, संविग्गा संविग्गविहारी भवित्ता तओ पच्छा पासत्था पासत्थविहारी, ओसन्ना ओसन्नविहारी, कुसीला कुसील-विहारी, अहाच्छंदा अहाच्छंदविहारी बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झुसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना। जप्पभिइं च णं भंते! ते कायंदगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसदेवत्ताए उववन्ना, तप्पभिइं च णं भंते! एवं वुच्चइ–चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? तए णं भगवं गोयमे सामहत्थिणा अनगारेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता सामहत्थिणा अनगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा- तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एवं तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव जप्पभिइं च णं भंते! ते कायंदगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसग-देवत्ताए उववन्ना, तप्पभिइं च णं भंते! एवं वुच्चइ –चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तावत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, अव्वोच्छित्तिनयट्ठयाए अन्ने चयंति, अन्ने उववज्जंति। अत्थि णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो तावत्तीसगा देवा- तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया परिवसंति–जहा चमरस्स जाव तावत्तीसग-देवत्ताए उववन्ना। जप्पभिइं च णं भंते! ते बेभेलगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो तावत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना, सेसं तं चेव जाव निच्चे, अव्वोच्छित्ति-नयट्ठयाए अन्ने चयंति, अन्ने उववज्जंति। अत्थि णं भंते! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं जाव तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? गोयमा! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तावत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं न कयाइ नासी जाव अन्ने चयंति, अन्ने उववज्जंति। एवं भूयानंदस्स वि, एवं जाव महाघोसस्स। अत्थि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं जाव तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालए नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं पालए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरंति। तए णं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया पुव्विं पि पच्छा वि उग्गा उग्गविहारी, संविग्गा संविग्गविहारी बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो तावत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना। जप्पभिइं च णं भंते! ते पालगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा, सेसं जहा चमरस्स जाव अन्ने उववज्जंति। अत्थि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? एवं जहा सक्कस्स, नवरं–चंपाए नयरीए जाव उववन्ना जप्पभिइं च णं भंते! ते चंपिज्जा तायत्तीसं सहाया, सेसं तं चेव जाव अन्ने उववज्जंति। अत्थि णं भंते! सणंकुमारस्स देविंदस्स देवरन्नो तावत्तीसगा देवा-तावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं? जहा धरणस्स तहेव, एवं जाव पाणयस्स, एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववज्जंति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन) वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ यावत् परीषद् आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। वे ऊर्ध्वजानु यावत् विचरण करते थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के एक अन्तेवासी थे – श्यामहस्ती नामक अनगार। वे प्रकृतिभद्र, प्रकृतिविनीत, यावत् रोह अनगार के समान ऊर्ध्वजानु, यावत् विचरण करते थे। एक दिन उन श्यामहस्ती नामक अनगार को श्रद्धा यावत् अपने स्थान से उठे और उठकर जहाँ भगवान गौतम विराजमान थे, वहाँ आए। भगवान गौतम के पास आकर वन्दना – नमस्कार कर यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछने लगे – भगवन् ! क्या असुरकुमारों के राजा, असुरकुमारों के इन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? हे श्यामहस्ती ! उस काल उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में काकन्दी नामकी नगरी थी। उस काकन्दी नगरी में सहायक तैंतीस गृहपति श्रमणोपासक रहते थे। वे धनाढ्य यावत् अपरिभूत थे। वे जीव – अजीव के ज्ञाता एवं पुण्यपाप को हृदयंगम किए हुए विचरण करते थे। एक समय था, जब वे परस्पर सहायक गृहपति श्रमणोपासक पहले उग्र, उग्र – विहारी, संविग्न, संविग्नविहारी थे, परन्तु तत्पश्चात् वे पार्श्वस्थ, पार्श्वस्थविहारी, अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील, कुशीलविहारी, यथाच्छन्द और यथाच्छन्द – विहारी हो गए। बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक – पर्याय का पालन कर, अर्धमासिक संलेखना द्वारा शरीर का कूश करके तथा तीस भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करके, उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल के अवसर पर काल कर वे असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए हैं। (श्यामहस्ती गौतमस्वामी से) – भगवन् ! जब वे काकन्दीनिवासी परस्पर सहायक तैंतीस गृहपति श्रमणो – पासक असुरराज चमर के त्रायस्त्रिंशक – देवरूप में उत्पन्न हुए हैं, क्या तभी से ऐसा कहा जाता है कि असुरराज असुरेन्द्र चमर के (ये) तैंतीस देव त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? तब गौतमस्वामी शंकित, कांक्षित एवं विचिकित्सक हो गए। वे वहाँ से उठे और श्यामहस्ती अनगार के साथ जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए। श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भगवन् ! क्या असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? इत्यादि प्रश्न। पूर्वकथित त्रायस्त्रिंशक देवों का वृत्तान्त कहना यावत् वे ही चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए। भगवन् ! जब से वे त्रायस्त्रिंशक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं क्या तभी से ऐसा कहा जाता है कि असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं; असुरराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के नाम शाश्वत कहे गए हैं। इसलिए किसी समय नहीं थे, या नहीं हैं, ऐसा नहीं है और कभी नहीं रहेंगे, ऐसा भी नहीं है। यावत् अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से वे नित्य हैं, पहले वाले च्यवते हैं और दूसरे उत्पन्न होते हैं भगवन् ! वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में बिभेल नामक एक सन्निवेश था। उस बिभेल सन्निवेश में परस्पर सहायक तैंतीस गृहस्थ श्रमणोपासक थे; इत्यादि वर्णन चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिंशकों के समान ही जानना, यावत् वे त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए। शेष पूर्ववत्। वे अव्युच्छिति – नय की अपेक्षा नित्य हैं। पुराने च्यवते रहते हैं, दूसरे उत्पन्न होते रहते हैं। भगवन् ! क्या नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के त्रायस्त्रिंशक देवों के नाम शाश्वत कहे गए हैं। वे किसी समय नहीं थे, ऐसा नहीं है; नहीं रहेंगे – ऐसा भी नहीं; यावत् पुराने च्यवते हैं और नए उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार भूतानन्द इन्द्र, यावत् महाघोष इन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों के विषय में जानना। भगवन् ! क्या देवराज देवेन्द्र शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न। हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के, भारतवर्ष में पलाशक सन्निवेश था। उस सन्निवेश में परस्पर सहायक तैंतीस गृहपति श्रमणोपासक रहते थे, इत्यादि सब वर्णन चमरेन्द्र के त्राय – स्त्रिंशकों के अनुसार करना, यावत् विचरण करते थे। वे तैंतीस परस्पर सहायक गृहस्थ श्रमणोपासक पहले भी और पीछे भी उग्र, उग्रविहारी एवं संविग्न तथा संविग्नविहारी होकर बहुत वर्षों तक श्रमणोपासकपर्याय का पालन कर, मासिक संलेखना से शरीर को कृश करके, साठ भक्त का अनशन द्वारा छेदन करके, अन्तमें आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल के अवसर पर समाधिपूर्वक काल करके यावत् शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए। भगवन् ! जब से वे बालाक निवासी परस्पर सहायक गृहपति श्रमणोपासक शक्र के त्रायस्त्रिंशकों रूप में उत्पन्न हुए, क्या तभी से शक्र के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न समग्र वर्णन पुराने च्यवते हैं और नए उत्पन्न होते हैं; तक चमरेन्द्र समान करना। भगवन् ! ईशान के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इत्यादि प्रश्न का उत्तर शक्रेन्द्र के समान जानना चाहिए। इतना विशेष है कि ये चम्पानगरी के निवासी थे, यावत् ईशानेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उत्पन्न हुए। जब से ये चम्पानगरी निवासी तैंतीस परस्पर सहायक श्रमणोपासक त्रायस्त्रिंशक बने, इत्यादि शेष समग्र वर्णन पूर्ववत् पुराने च्यवते हैं और नये उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! क्या देवराज देवेन्द्र सनत्कुमार के त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न तथा उसके उत्तर में जैसे धरणेन्द्र के विषय में कहा है, उसी प्रकार कहना चाहिए। इसी प्रकार प्राणत और अच्युतेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों के सम्बन्ध में भी कि पुराने च्यवते हैं और नये उत्पन्न होते हैं, तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam vaniyaggame nayare hottha–vannao. Dutipalasae cheie. Sami samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare java uddhamjanu ahosire jjhanakotthovagae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa amtevasi samahatthi namam anagare pagaibhaddae pagaiuvasamte pagaipayanukohamanamayalobhe miumaddavasampanne alline vinie samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte uddhamjanu ahosire jjhanakotthovagae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se samahatthi anagare jayasaddhe java utthae utthei, utthetta jeneva bhagavam goyame teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhagavam goyamam tikkhutto java pajjuvasamane evam vayasi– Atthi nam bhamte! Chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga deva- Tavattisaga deva? Evam khalu samahatthi! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase kayamdi namam nayari hottha–vannao! Tattha nam kayamdie nayarie tayattisam sahaya gahavai samanovasaya parivasamti–addha java bahujanassa aparibhuta abhigayajivajiva, uva-laddhapunnapava java ahapariggahiehim tavokammehim appanam bhavemana viharamti. Tae nam te tayattisam sahaya gahavai samanovasaya puvvim ugga uggavihari, samvigga samviggavihari bhavitta tao pachchha pasattha pasatthavihari, osanna osannavihari, kusila kusila-vihari, ahachchhamda ahachchhamdavihari bahuim vasaim samanovasagapariyagam paunitta, addhamasiyae samlehanae attanam jjhusetta, tisam bhattaim anasanae chhedetta tassa thanassa analoiyapadikkamta kalamase kalam kichcha chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisagadevattae uvavanna. Jappabhiim cha nam bhamte! Te kayamdaga tayattisam sahaya gahavai samanovasaga chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisadevattae uvavanna, tappabhiim cha nam bhamte! Evam vuchchai–chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Tae nam bhagavam goyame samahatthina anagarenam evam vutte samane samkie kamkhie vitigichchhie utthae utthei, utthetta samahatthina anagarenam saddhim jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Atthi nam bhamte! Chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga deva- tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–evam tam cheva savvam bhaniyavvam java jappabhiim cha nam bhamte! Te kayamdaga tayattisam sahaya gahavai samanovasaga chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga-devattae uvavanna, tappabhiim cha nam bhamte! Evam vuchchai –chamarassa asurimdassa asurakumararanno tavattisaga deva-tavattisaga deva? No inatthe samatthe. Goyama! Chamarassa nam asurimdassa asurakumararanno tavattisaganam devanam sasae namadhejje pannatte–jam na kayai nasi, na kayai na bhavai, na kayai na bhavissai, bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve niyae sasae akkhae avvae avatthie nichche, avvochchhittinayatthayae anne chayamti, anne uvavajjamti. Atthi nam bhamte! Balissa vairoyanimdassa vairoyanaranno tavattisaga deva- tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–balissa vairoyanimdassa vairoyanaranno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase bebhele namam sannivese hottha–vannao. Tattha nam bebhele sannivese tayattisam sahaya gahavai samanovasaya parivasamti–jaha chamarassa java tavattisaga-devattae uvavanna. Jappabhiim cha nam bhamte! Te bebhelaga tayattisam sahaya gahavai samanovasaga balissa vairoyanimdassa vairoyanaranno tavattisagadevattae uvavanna, sesam tam cheva java nichche, avvochchhitti-nayatthayae anne chayamti, anne uvavajjamti. Atthi nam bhamte! Dharanassa nagakumarimdassa nagakumararanno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam java tavattisaga deva-tavattisaga deva? Goyama! Dharanassa nagakumarimdassa nagakumararanno tavattisaganam devanam sasae namadhejje pannatte–jam na kayai nasi java anne chayamti, anne uvavajjamti. Evam bhuyanamdassa vi, evam java mahaghosassa. Atthi nam bhamte! Sakkassa devimdassa devaranno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam java tavattisaga deva-tavattisaga deva? Evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam iheva jambuddive dive bharahe vase palae namam sannivese hottha–vannao. Tattha nam palae sannivese tayattisam sahaya gahavai samanovasaya jaha chamarassa java viharamti. Tae nam te tayattisam sahaya gahavai samanovasaya puvvim pi pachchha vi ugga uggavihari, samvigga samviggavihari bahuim vasaim samanovasagapariyagam paunitta, masiyae samlehanae attanam jjhusetta, satthim bhattaim anasanae chhedetta, aloiya-padikkamta samahipatta kalamase kalam kichcha sakkassa devimdassa devaranno tavattisagadevattae uvavanna. Jappabhiim cha nam bhamte! Te palaga tayattisam sahaya gahavai samanovasaga, sesam jaha chamarassa java anne uvavajjamti. Atthi nam bhamte! Isanassa devimdassa devaranno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Evam jaha sakkassa, navaram–champae nayarie java uvavanna jappabhiim cha nam bhamte! Te champijja tayattisam sahaya, sesam tam cheva java anne uvavajjamti. Atthi nam bhamte! Sanamkumarassa devimdassa devaranno tavattisaga deva-tavattisaga deva? Hamta atthi. Se kenatthenam? Jaha dharanassa taheva, evam java panayassa, evam achchuyassa java anne uvavajjamti. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem vanijyagrama namaka nagara tha (varnana) vaham dyutipalasha namaka udyana tha. Vaham shramana bhagavana mahavira ka samavasarana hua yavat parishad ai aura vapasa lauta gai. Usa kala aura usa samaya mem, shramana bhagavana mahavirasvami ke jyeshtha antevasi indrabhuti namaka anagara the. Ve urdhvajanu yavat vicharana karate the. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke eka antevasi the – shyamahasti namaka anagara. Ve prakritibhadra, prakritivinita, yavat roha anagara ke samana urdhvajanu, yavat vicharana karate the. Eka dina una shyamahasti namaka anagara ko shraddha yavat apane sthana se uthe aura uthakara jaham bhagavana gautama virajamana the, vaham ae. Bhagavana gautama ke pasa akara vandana – namaskara kara yavat paryupasana karate hue isa prakara puchhane lage – Bhagavan ! Kya asurakumarom ke raja, asurakumarom ke indra chamara ke trayastrimshaka deva haim\? Ham, haim. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kahate haim\? He shyamahasti ! Usa kala usa samaya mem isa jambudvipa namaka dvipa ke bharatavarsha mem kakandi namaki nagari thi. Usa kakandi nagari mem sahayaka taimtisa grihapati shramanopasaka rahate the. Ve dhanadhya yavat aparibhuta the. Ve jiva – ajiva ke jnyata evam punyapapa ko hridayamgama kie hue vicharana karate the. Eka samaya tha, jaba ve paraspara sahayaka grihapati shramanopasaka pahale ugra, ugra – vihari, samvigna, samvignavihari the, parantu tatpashchat ve parshvastha, parshvasthavihari, avasanna, avasannavihari, kushila, kushilavihari, yathachchhanda aura yathachchhanda – vihari ho gae. Bahuta varshom taka shramanopasaka – paryaya ka palana kara, ardhamasika samlekhana dvara sharira ka kusha karake tatha tisa bhaktom ka anashana dvara chhedana karake, usa sthana ki alochana aura pratikramana kiye bina hi kala ke avasara para kala kara ve asurakumararaja asurendra chamara ke trayastrimshaka deva ke rupa mem utpanna hue haim. (shyamahasti gautamasvami se) – bhagavan ! Jaba ve kakandinivasi paraspara sahayaka taimtisa grihapati shramano – pasaka asuraraja chamara ke trayastrimshaka – devarupa mem utpanna hue haim, kya tabhi se aisa kaha jata hai ki asuraraja asurendra chamara ke (ye) taimtisa deva trayastrimshaka deva haim\? Taba gautamasvami shamkita, kamkshita evam vichikitsaka ho gae. Ve vaham se uthe aura shyamahasti anagara ke satha jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham ae. Shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya aura puchha – Bhagavan ! Kya asuraraja asurendra chamara ke trayastrimshaka deva haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kahate haim\? Ityadi prashna. Purvakathita trayastrimshaka devom ka vrittanta kahana yavat ve hi chamarendra ke trayastrimshaka deva ke rupa mem utpanna hue. Bhagavan ! Jaba se ve trayastrimshaka devarupa mem utpanna hue haim kya tabhi se aisa kaha jata hai ki asuraraja asurendra chamara ke trayastrimshaka deva haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim; asuraraja asurendra chamara ke trayastrimshaka deva ke nama shashvata kahe gae haim. Isalie kisi samaya nahim the, ya nahim haim, aisa nahim hai aura kabhi nahim rahemge, aisa bhi nahim hai. Yavat avyuchchhitti naya ki apeksha se ve nitya haim, pahale vale chyavate haim aura dusare utpanna hote haim Bhagavan ! Vairochanaraja vairochanendra bali trayastrimshaka deva haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kahate haim\? Gautama ! Usa kala aura usa samaya mem isi jambudvipa ke bharatavarsha mem bibhela namaka eka sannivesha tha. Usa bibhela sannivesha mem paraspara sahayaka taimtisa grihastha shramanopasaka the; ityadi varnana chamarendra ke trayastrimshakom ke samana hi janana, yavat ve trayastrimshaka deva ke rupa mem utpanna hue. Shesha purvavat. Ve avyuchchhiti – naya ki apeksha nitya haim. Purane chyavate rahate haim, dusare utpanna hote rahate haim. Bhagavan ! Kya nagakumararaja nagakumarendra dharana ke trayastrimshaka deva haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kahate haim\? Gautama ! Nagakumararaja nagakumarendra dharana ke trayastrimshaka devom ke nama shashvata kahe gae haim. Ve kisi samaya nahim the, aisa nahim hai; nahim rahemge – aisa bhi nahim; yavat purane chyavate haim aura nae utpanna hote haim. Isi prakara bhutananda indra, yavat mahaghosha indra ke trayastrimshaka devom ke vishaya mem janana. Bhagavan ! Kya devaraja devendra shakra ke trayastrimshaka deva haim\? Ityadi prashna. Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kahate haim\? Gautama ! Usa kala aura usa samaya mem isi jambudvipa ke, bharatavarsha mem palashaka sannivesha tha. Usa sannivesha mem paraspara sahayaka taimtisa grihapati shramanopasaka rahate the, ityadi saba varnana chamarendra ke traya – strimshakom ke anusara karana, yavat vicharana karate the. Ve taimtisa paraspara sahayaka grihastha shramanopasaka pahale bhi aura pichhe bhi ugra, ugravihari evam samvigna tatha samvignavihari hokara bahuta varshom taka shramanopasakaparyaya ka palana kara, masika samlekhana se sharira ko krisha karake, satha bhakta ka anashana dvara chhedana karake, antamem alochana aura pratikramana karake kala ke avasara para samadhipurvaka kala karake yavat shakra ke trayastrimshaka deva ke rupa mem utpanna hue. Bhagavan ! Jaba se ve balaka nivasi paraspara sahayaka grihapati shramanopasaka shakra ke trayastrimshakom rupa mem utpanna hue, kya tabhi se shakra ke trayastrimshaka deva haim\? Ityadi prashna samagra varnana purane chyavate haim aura nae utpanna hote haim; taka chamarendra samana karana. Bhagavan ! Ishana ke trayastrimshaka deva haim\? Ityadi prashna ka uttara shakrendra ke samana janana chahie. Itana vishesha hai ki ye champanagari ke nivasi the, yavat ishanendra ke trayastrimshaka deva ke rupa mem utpanna hue. Jaba se ye champanagari nivasi taimtisa paraspara sahayaka shramanopasaka trayastrimshaka bane, ityadi shesha samagra varnana purvavat purane chyavate haim aura naye utpanna hote haim. Bhagavan ! Kya devaraja devendra sanatkumara ke trayastrimshaka deva haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kahate haim\? Ityadi samagra prashna tatha usake uttara mem jaise dharanendra ke vishaya mem kaha hai, usi prakara kahana chahie. Isi prakara pranata aura achyutendra ke trayastrimshaka devom ke sambandha mem bhi ki purane chyavate haim aura naye utpanna hote haim, taka kahana chahie. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai. |