Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003895 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-८ |
Translated Chapter : |
शतक-८ |
Section : | उद्देशक-२ आशिविष | Translated Section : | उद्देशक-२ आशिविष |
Sutra Number : | 395 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वकालं जाणइ-पासइ। भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे जाणइ-पासइ। ओहिनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अनंताइं रूविदव्वाइं जाणइ-पासइ। उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं असंखेज्जइभागं जाणइ-पासइ। उक्कोसेणं असंखेज्जाइं अलोगे लोयमेत्ताइं खंडाइं जाणइ-पासइ। कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं जाणइ-पासइ। उक्कोसेणं असंखेज्जाओ ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ अईयमणागयं च कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अनंते भावे जाणइ-पासइ। उक्कोसेण वि अनंते भावे जाणइ-पासइ, सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ-पासइ। मनपज्जवनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं उज्जुमती अनंते अनंतपदेसिए खंधे जाणइ-पासइ। ते चेव विउलमई अब्भहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं उज्जुमई अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खड्डागपयरे, उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोमनुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पण्णए अंतरदीवगेसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तयाणं मनोगए भावे जाणइ-पासइ। तं चेव विउलमई अड्ढाइज्जेहिमंगुलेहिं अब्भहियतरं विउलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं उज्जुमई जहन्नेणं पलिओवमस्स, असंखिज्जयभागं, उवकोसेण वि पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं अतीयमनागयं वा कालं जाणइ-पासइ। तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ। भावओ णं उज्जुमई अनंते भावे जाणइ-पासइ, सव्वभावाणं अनंतभागं जाणइ-पासइ। तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ-पासइ। केवलनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ-पासइ। मइअन्नाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेतओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगयाइं दव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगयं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगयं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगए भावे जाणइ-पासइ। सुयअन्नाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयाइं दव्वाइं आघवेइ, पन्नवेइ, परूवेइ। खेत्तओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयं खेत्तं आघवेइ, पन्नवेइ, परूवेइ। कालओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयं कालं आघवेइ, पन्नवेइ, परूवेइ। भावओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगए भावे आघवेइ, पन्नवेइ, परूवेइ। विभंगनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाइं दव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणइ-पासइ। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना। भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है। द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से उपयोगयुक्त श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से सर्वक्षेत्र को जानता – देखता है। इसी प्रकार काल से भी जानना। भाव से उपयुक्त श्रुतज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है। भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है। – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपीद्रव्यों को जानता और देखता है। इत्यादि वर्णन नन्दीसूत्र के समान ‘भाव’ पर्यन्त जानना। भगवन् ! मनःपर्यवज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है, – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से ऋजुमति – मनःपर्यवज्ञानी (मनरूप में परिणत) अनन्तप्रादेशिक अनन्त (स्कन्धों) को जानता – देखता है, इत्यादि नन्दीसूत्र अनुसार ‘भावत’ तक कहना। भगवन् ! केवलज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का है। – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से केवलज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है। भगवन् ! मति – अज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से मति – अज्ञानी मति – अज्ञान – परिगत द्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव से मति – अज्ञानी मति – अज्ञानी के विषयभूत भावों को जानता और देखता है। भगवन् ! श्रुत – अज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से श्रुत – अज्ञानी श्रुत – अज्ञान के विषयभूत द्रव्यों का कथन करता है, बतलाता है, प्ररूपणा करता है। इसी प्रकार क्षेत्र से और काल से भी जान लेना। भाव की अपेक्षा श्रुत – अज्ञानी श्रुत – अज्ञान के विषयभूत भावों को कहता है, बतलाता है, प्ररूपित करता है। भगवन् ! विभंगज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत द्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत भावों को जानता और देखता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] abhinibohiyananassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam abhinibohiyanani aesenam savvadavvaim janai-pasai. Khettao nam abhinibohiyanani aesenam savvam khettam janai-pasai. Kalao nam abhinibohiyanani aesenam savvam kalam janai-pasai. Bhavao nam abhinibohiyanani aesenam savve bhave janai-pasai. Suyananassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam suyanani uvautte savvadavvaim janai-pasai. Khettao nam suyanani uvautte savvakhettam janai-pasai. Kalao nam suyanani uvautte savvakalam janai-pasai. Bhavao nam suyanani uvautte savvabhave janai-pasai. Ohinanassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam ohinani jahannenam anamtaim ruvidavvaim janai-pasai. Ukkosenam savvaim ruvidavvaim janai-pasai. Khettao nam ohinani jahannenam asamkhejjaibhagam janai-pasai. Ukkosenam asamkhejjaim aloge loyamettaim khamdaim janai-pasai. Kalao nam ohinani jahannenam avaliyae asamkhejjaibhagam janai-pasai. Ukkosenam asamkhejjao osappinio ussappinio aiyamanagayam cha kalam janai-pasai. Bhavao nam ohinani jahannenam anamte bhave janai-pasai. Ukkosena vi anamte bhave janai-pasai, savvabhavanamanamtabhagam janai-pasai. Manapajjavananassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam ujjumati anamte anamtapadesie khamdhe janai-pasai. Te cheva viulamai abbhahiyatarae viulatarae visuddhatarae vitimiratarae janai-pasai. Khettao nam ujjumai ahe java imise rayanappabhae pudhavie uvarimahetthille khaddagapayare, uddham java joisassa uvarimatale, tiriyam java amtomanussakhette addhaijjesu divasamuddesu pannarasasu kammabhumisu tisae akammabhumisu chhappannae amtaradivagesu sanninam pamchimdiyanam pajjattayanam manogae bhave janai-pasai. Tam cheva viulamai addhaijjehimamgulehim abbhahiyataram viulataram visuddhataram vitimirataram khettam janai-pasai. Kalao nam ujjumai jahannenam paliovamassa, asamkhijjayabhagam, uvakosena vi paliovamassa asamkhijjayabhagam atiyamanagayam va kalam janai-pasai. Tam cheva viulamai abbhahiyataragam viulataragam visuddhataragam vitimirataragam janai pasai. Bhavao nam ujjumai anamte bhave janai-pasai, savvabhavanam anamtabhagam janai-pasai. Tam cheva viulamai abbhahiyataragam viulataragam visuddhataragam vitimirataragam janai-pasai. Kevalananassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam kevalanani savvadavvaim janai-pasai. Khettao nam kevalanani savvam khettam janai-pasai. Kalao nam kevalanani savvam kalam janai-pasai. Bhavao nam kevalanani savve bhave janai-pasai. Maiannanassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khetao, kalao, bhavao. Davvao nam maiannani maiannanaparigayaim davvaim janai-pasai. Khettao nam maiannani maiannanaparigayam khettam janai-pasai. Kalao nam maiannani maiannanaparigayam kalam janai-pasai. Bhavao nam maiannani maiannanaparigae bhave janai-pasai. Suyaannanassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam suyaannani suyaannanaparigayaim davvaim aghavei, pannavei, paruvei. Khettao nam suyaannani suyaannanaparigayam khettam aghavei, pannavei, paruvei. Kalao nam suyaannani suyaannanaparigayam kalam aghavei, pannavei, paruvei. Bhavao nam suyaannani suyaannanaparigae bhave aghavei, pannavei, paruvei. Vibhamgananassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Se samasao chauvvihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao. Davvao nam vibhamganani vibhamgananaparigayaim davvaim janai-pasai. Khettao nam vibhamganani vibhamgananaparigayam khettam janai-pasai. Kalao nam vibhamganani vibhamgananaparigayam kalam janai-pasai. Bhavao nam vibhamganani vibhamgananaparigae bhave janai-pasai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Abhinibodhikajnyana ka vishaya kitana vyapaka hai\? Gautama ! Samkshepa mem chara prakara ka hai. Yatha – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se abhinibodhikajnyani adesha (samanya) se sarvadravyom ko janata aura dekhata hai, kshetra se samanya se sabhi kshetra ko janata aura dekhata hai, isi prakara kala se bhi aura bhava se bhi janana. Bhagavan ! Shrutajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Vaha samkshepa mem chara prakara ka hai. Dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se upayogayukta shrutajnyani sarvadravyom ko janata aura dekhata hai. Kshetra se sarvakshetra ko janata – dekhata hai. Isi prakara kala se bhi janana. Bhava se upayukta shrutajnyani sarvabhavom ko janata aura dekhata hai. Bhagavan ! Avadhijnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Vaha samkshepa mem chara prakara ka hai. – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se avadhijnyani rupidravyom ko janata aura dekhata hai. Ityadi varnana nandisutra ke samana ‘bhava’ paryanta janana. Bhagavan ! Manahparyavajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Vaha samkshepa mem chara prakara ka hai, – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se rijumati – manahparyavajnyani (manarupa mem parinata) anantapradeshika ananta (skandhom) ko janata – dekhata hai, ityadi nandisutra anusara ‘bhavata’ taka kahana. Bhagavan ! Kevalajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Vaha samkshepa mem chara prakara ka hai. – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se kevalajnyani sarvadravyom ko janata aura dekhata hai. Isi prakara yavat bhava se kevalajnyani sarvabhavom ko janata aura dekhata hai. Bhagavan ! Mati – ajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Samkshepa mem chara prakara ka – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se mati – ajnyani mati – ajnyana – parigata dravyom ko janata aura dekhata hai. Isi prakara yavat bhava se mati – ajnyani mati – ajnyani ke vishayabhuta bhavom ko janata aura dekhata hai. Bhagavan ! Shruta – ajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Samkshepa mem chara prakara ka – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya se shruta – ajnyani shruta – ajnyana ke vishayabhuta dravyom ka kathana karata hai, batalata hai, prarupana karata hai. Isi prakara kshetra se aura kala se bhi jana lena. Bhava ki apeksha shruta – ajnyani shruta – ajnyana ke vishayabhuta bhavom ko kahata hai, batalata hai, prarupita karata hai. Bhagavan ! Vibhamgajnyana ka vishaya kitana hai\? Gautama ! Samkshepa mem chara prakara ka – dravya se, kshetra se, kala se aura bhava se. Dravya ki apeksha vibhamgajnyani vibhamgajnyana ke vishayagata dravyom ko janata aura dekhata hai. Isi prakara yavat bhava ki apeksha vibhamgajnyani vibhamgajnyana ke vishayagata bhavom ko janata aura dekhata hai. |