Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1003891 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-८ |
Translated Chapter : |
शतक-८ |
Section : | उद्देशक-२ आशिविष | Translated Section : | उद्देशक-२ आशिविष |
Sutra Number : | 391 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे। से किं तं आभिनिबोहियनाणे? आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे। अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे। से किं तं मइअन्नाणे? मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। से किं तं ओग्गहे? ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं तहेव, नवरं–एगट्ठियवज्जं जाव नोइंदियधारणा। सेत्तं धारणा, सेत्तं मइअन्नाणे। से किं तं सुयअन्नाणे? सुयअन्नाणे–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छादिट्ठिएहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विग्गपियं, तं जहा–भारहं, रामायणं जहा नंदीए जाव चत्तारि वेदा संगोवंगा। सेत्तं सुयअन्नाणे। से किं तं विभंगनाणे? विभंगनाणे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–गामसंठिए, नगरसंठिए, जाव सन्निवेससंठिए, दीवसंठिए, समुद्दसंठिए, वाससंठिए, वासहरसंठिए, पव्वयसंठिए, रुक्खसंठिए, थूभसंठिए, हयसंठिए, गयसंठिए, नरसंठिए, किन्नरसंठिए, किंपुरिससंठिए, महोरगसं-ठिए, गंधव्वसंठिए, उसभसंठिए, पसुसंठिए, पसयसंठिए, विहगसंठिए, वानरसंठिए–नाणासंठाणसंठिए पन्नत्ते। जीवा णं भंते! किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! जीवा नाणी वि, अन्नाणी वि। जे नाणी ते अत्थेगतिया दुन्नाणी, अत्थेगतिया तिन्नाणी, अत्थेगतिया चउनाणी, अत्थेगतिया एगनाणी। जे दुन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी य। जे तिन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, अहवा आभिनिबोहियनाणी, सुय नाणी, मनपज्जवनाणी। जे चउनाणी ते आभिनिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मनपज्जवनाणी। जे एगनाणी ते नियमा केवलनाणी। जे अन्नाणी ते अत्थेगतिया दुअन्नाणी, अत्थेगतिया तिअन्नाणी। जे दुअन्नाणी ते मइअन्नाणी सुयअन्नाणी य। जे तिअन्नाणी ते मइअन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी। नेरइया णं भंते! किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी, तं तहा–आभिनिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी। जे अन्नाणी ते अत्थेगतिया दुअन्नाणी अत्थेगतिया तिअन्नाणी। एवं तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए। असुरकुमारा णं भंते! किं नाणी? अन्नाणी? जहेव नेरइया तहेव, तिन्नि नाणाणि नियमा, तिण्णि अन्नाणाणि भयणाए। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया णं भंते! किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी-मइअन्नाणी सुयअन्नाणी य। एवं जाव वणस्सइकाइया बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! नाणी वि अन्नाणी वि। जे नाणी ते नियमा दुन्नाणी, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी य। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा–मइअन्नाणी सुयअन्नाणी य। एवं तेइंदिय-चउरिंदिया वि। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। जे नाणी ते अत्थेगतिया दुन्नाणी, अत्थेगतिया तिन्नाणी। जे अन्नाणी ते अत्थेगतिया दुअन्नाणी, अत्थेगतिया तिअन्नाणी। एवं तिन्नि नाणाणि, तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए। मनुस्सा जहा जीवा, तहेव पंच नाणाणि, तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए। वाणमंतरा जहा नेरइया। जोइसिय-वेमाणियाणं तिन्नि नाणाणि, तिन्नि अन्नाणाणि नियमा। सिद्धाणं भंते! पुच्छा। गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी; नियमा एगनाणी–केवलनाणी। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। राजप्रश्नीयसूत्र में ज्ञानों के भेद के कथनानुसार ‘यह है वह केवल – ज्ञान’; यहाँ तक कहना चाहिए। भगवन् ! अज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का – मति – अज्ञान, श्रुत – अज्ञान और विभंगज्ञान। भगवन् ! मति – अज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। भगवन् ! यह अवग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – अर्थावग्रह और व्यञ्जनावग्रह। जिस प्रकार (नन्दीसूत्र में) आभिनिबोधिकज्ञान के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना चाहिए। विशेष इतना ही है कि वहाँ आभिनिबोधिकज्ञान के प्रकरण में अवग्रह आदि के एकार्थिक शब्द कहे हैं, उन्हें छोड़कर यह ‘नोइन्द्रिय – धारणा है’ तक कहना। भगवन् ! श्रुत – अज्ञान किस प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है – ‘जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है’; इत्यादि यावत् – सांगोपांग चार वेद श्रुत – अज्ञान है। इस प्रकार श्रुत – अज्ञान का वर्णन पूर्ण हुआ। भगवन् ! विभंगज्ञान किस प्रकार का है ? अनेक प्रकार का है। – ग्रामसंस्थित, नगरसंस्थित यावत् सन्नि – वेशसंस्थित, द्वीपसंस्थित, समुद्रसंस्थित, वर्ष – संस्थित, वर्षधरसंस्थित, सामान्य पर्वत – संस्थित, वृक्षसंस्थित, स्तूप – संस्थित, हयसंस्थित, गजसंस्थित, नरसंस्थित, किन्नरसंस्थित, किम्पुरुषसंस्थित, महोरगसंस्थित, गन्धर्वसंस्थित, वृषभसंस्थित, पशु, पशय, विहग और वानर के आकार वाला है। इस प्रकार विभंगज्ञान नाना संस्थानसंस्थित है। भगवन् ! जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो जीव ज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं और कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं, जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिक – ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं, अथवा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी होते हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं, वे नियमतः केवलज्ञानी हैं जो जीव अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो अज्ञानवाले हैं, कुछ तीन अज्ञानवाले हैं। जो जीव दो अज्ञान वाले हैं, वे मति – अज्ञानी और श्रुत – अज्ञानी हैं; जो जीव तीन अज्ञानवाले हैं, वे मति – अज्ञानी, श्रुत – अज्ञानी, विभंगज्ञानी हैं भगवन् ! नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं, यथा – आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ दो अज्ञान वाले हैं, और कुछ तीन अज्ञान वाले हैं। इस प्रकार तीन अज्ञान भजना से होते हैं। भगवन् ! असुरकुमार ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! नैरयिकों समान असुरकुमारों का भी कथन करना। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं; यथा – मति – अज्ञानी और श्रुत – अज्ञानी। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः दो ज्ञान वाले हैं, यथा – मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा – मति – अज्ञानी और श्रुत – अज्ञानी। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों को भी जानना। भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कईं तीन ज्ञान वाले हैं। इस प्रकार तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। औघिक जीवों के समान मनुष्यों में पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। वाणव्यन्तर देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना। ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तीन ज्ञान, अज्ञान नियमतः होते हैं। भगवन् ! सिद्ध भगवान ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! सिद्ध भगवान ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। वे नियमतः केवल – ज्ञान वाले हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kativihe nam bhamte! Nane pannatte? Goyama! Pamchavihe nane pannatte, tam jaha–abhinibohiyanane, suyanane, ohinane, manapajjavanane, kevalanane. Se kim tam abhinibohiyanane? Abhinibohiyanane chauvvihe pannatte, tam jaha–oggaho, iha, avao, dharana. Evam jaha rayappasenaijje nananam bhedo taheva iha bhaniyavvo java settam kevalanane. Annane nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Tivihe pannatte, tam jaha–maiannane, suyaannane, vibhamganane. Se kim tam maiannane? Maiannane chauvvihe pannatte, tam jaha–oggaho, iha, avao, dharana. Se kim tam oggahe? Oggahe duvihe pannatte, tam jaha–atthoggahe ya vamjanoggahe ya. Evam jaheva abhinibohiyananam taheva, navaram–egatthiyavajjam java noimdiyadharana. Settam dharana, settam maiannane. Se kim tam suyaannane? Suyaannane–jam imam annaniehim michchhaditthiehim sachchhamdabuddhi-mai-viggapiyam, tam jaha–bharaham, ramayanam jaha namdie java chattari veda samgovamga. Settam suyaannane. Se kim tam vibhamganane? Vibhamganane anegavihe pannatte, tam jaha–gamasamthie, nagarasamthie, java sannivesasamthie, divasamthie, samuddasamthie, vasasamthie, vasaharasamthie, pavvayasamthie, rukkhasamthie, thubhasamthie, hayasamthie, gayasamthie, narasamthie, kinnarasamthie, kimpurisasamthie, mahoragasam-thie, gamdhavvasamthie, usabhasamthie, pasusamthie, pasayasamthie, vihagasamthie, vanarasamthie–nanasamthanasamthie pannatte. Jiva nam bhamte! Kim nani? Annani? Goyama! Jiva nani vi, annani vi. Je nani te atthegatiya dunnani, atthegatiya tinnani, atthegatiya chaunani, atthegatiya eganani. Je dunnani te abhinibohiyanani suyanani ya. Je tinnani te abhinibohiyanani, suyanani, ohinani, ahava abhinibohiyanani, suya nani, manapajjavanani. Je chaunani te abhinibohiyanani, suyanani, ohinani, manapajjavanani. Je eganani te niyama kevalanani. Je annani te atthegatiya duannani, atthegatiya tiannani. Je duannani te maiannani suyaannani ya. Je tiannani te maiannani, suyaannani, vibhamganani. Neraiya nam bhamte! Kim nani? Annani? Goyama! Nani vi, annani vi. Je nani te niyama tinnani, tam taha–abhinibohiyanani, suyanani, ohinani. Je annani te atthegatiya duannani atthegatiya tiannani. Evam tinni annanani bhayanae. Asurakumara nam bhamte! Kim nani? Annani? Jaheva neraiya taheva, tinni nanani niyama, tinni annanani bhayanae. Evam java thaniyakumara. Pudhavikkaiya nam bhamte! Kim nani? Annani? Goyama! No nani, annani. Je annani te niyama duannani-maiannani suyaannani ya. Evam java vanassaikaiya Beimdiyanam puchchha. Goyama! Nani vi annani vi. Je nani te niyama dunnani, tam jaha–abhinibohiyanani suyanani ya. Je annani te niyama duannani, tam jaha–maiannani suyaannani ya. Evam teimdiya-chaurimdiya vi. Pamchimdiyatirikkhajoniyanam puchchha. Goyama! Nani vi, annani vi. Je nani te atthegatiya dunnani, atthegatiya tinnani. Je annani te atthegatiya duannani, atthegatiya tiannani. Evam tinni nanani, tinni annanani bhayanae. Manussa jaha jiva, taheva pamcha nanani, tinni annanani bhayanae. Vanamamtara jaha neraiya. Joisiya-vemaniyanam tinni nanani, tinni annanani niyama. Siddhanam bhamte! Puchchha. Goyama! Nani, no annani; niyama eganani–kevalanani. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jnyana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka – abhinibodhikajnyana, shrutajnyana, avadhijnyana, manahparyavajnyana aura kevalajnyana. Bhagavan ! Abhinibodhikajnyana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Chara prakara ka. Avagraha, iha, avaya aura dharana. Rajaprashniyasutra mem jnyanom ke bheda ke kathananusara ‘yaha hai vaha kevala – jnyana’; yaham taka kahana chahie. Bhagavan ! Ajnyana kitane prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Tina prakara ka – mati – ajnyana, shruta – ajnyana aura vibhamgajnyana. Bhagavan ! Mati – ajnyana kitane prakara ka hai\? Gautama ! Chara prakara ka – avagraha, iha, avaya aura dharana. Bhagavan ! Yaha avagraha kitane prakara ka hai\? Gautama ! Do prakara ka – arthavagraha aura vyanjanavagraha. Jisa prakara (nandisutra mem) abhinibodhikajnyana ke vishaya mem kaha hai, usi prakara yaham bhi jana lena chahie. Vishesha itana hi hai ki vaham abhinibodhikajnyana ke prakarana mem avagraha adi ke ekarthika shabda kahe haim, unhem chhorakara yaha ‘noindriya – dharana hai’ taka kahana. Bhagavan ! Shruta – ajnyana kisa prakara ka kaha gaya hai\? Gautama ! Jisa prakara nandisutra mem kaha gaya hai – ‘jo ajnyani mithyadrishtiyom dvara prarupita hai’; ityadi yavat – samgopamga chara veda shruta – ajnyana hai. Isa prakara shruta – ajnyana ka varnana purna hua. Bhagavan ! Vibhamgajnyana kisa prakara ka hai\? Aneka prakara ka hai. – gramasamsthita, nagarasamsthita yavat sanni – veshasamsthita, dvipasamsthita, samudrasamsthita, varsha – samsthita, varshadharasamsthita, samanya parvata – samsthita, vrikshasamsthita, stupa – samsthita, hayasamsthita, gajasamsthita, narasamsthita, kinnarasamsthita, kimpurushasamsthita, mahoragasamsthita, gandharvasamsthita, vrishabhasamsthita, pashu, pashaya, vihaga aura vanara ke akara vala hai. Isa prakara vibhamgajnyana nana samsthanasamsthita hai. Bhagavan ! Jiva jnyani haim ya ajnyani haim\? Gautama ! Jiva jnyani bhi haim aura ajnyani bhi haim. Jo jiva jnyani haim, unamem se kuchha jiva do jnyana vale haim, kuchha jiva tina jnyana vale haim, kuchha jiva chara jnyana vale haim aura kuchha jiva eka jnyana vale haim. Jo do jnyana vale haim, ve matijnyani aura shrutajnyani hote haim, jo tina jnyana vale haim, ve abhinibodhika – jnyani, shrutajnyani aura avadhijnyani haim, athava abhinibodhikajnyani, shrutajnyani aura manahparyavajnyani hote haim. Jo chara jnyana vale haim, ve abhinibodhikajnyani, shrutajnyani, avadhijnyani aura manahparyavajnyani haim. Jo eka jnyana vale haim, ve niyamatah kevalajnyani haim Jo jiva ajnyani haim, unamem se kuchha jiva do ajnyanavale haim, kuchha tina ajnyanavale haim. Jo jiva do ajnyana vale haim, ve mati – ajnyani aura shruta – ajnyani haim; jo jiva tina ajnyanavale haim, ve mati – ajnyani, shruta – ajnyani, vibhamgajnyani haim Bhagavan ! Nairayika jiva jnyani haim ya ajnyani haim\? Gautama ! Nairayika jiva jnyani bhi haim aura ajnyani bhi haim. Unamem jo jnyani haim, ve niyamatah tina jnyana vale haim, yatha – abhinibodhikajnyani, shrutajnyani aura avadhijnyani. Jo ajnyani haim, unamem se kuchha do ajnyana vale haim, aura kuchha tina ajnyana vale haim. Isa prakara tina ajnyana bhajana se hote haim. Bhagavan ! Asurakumara jnyani haim ya ajnyani haim\? Gautama ! Nairayikom samana asurakumarom ka bhi kathana karana. Isi prakara stanitakumarom taka kahana. Bhagavan ! Prithvikayika jiva jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Ve jnyani nahim haim, ajnyani haim. Ve niyamatah do ajnyana vale haim; yatha – mati – ajnyani aura shruta – ajnyani. Isi prakara vanaspatikayika paryanta kahana. Bhagavan ! Dvindriya jiva jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Dvindriya jiva jnyani bhi haim aura ajnyani bhi. Jo jnyani haim, ve niyamatah do jnyana vale haim, yatha – matijnyani aura shrutajnyani. Jo ajnyani haim, niyamatah do ajnyana vale haim, yatha – mati – ajnyani aura shruta – ajnyani. Isi prakara trindriya aura chaturindriya jivom ko bhi janana. Bhagavan ! Pamchendriyatiryamchayonika jiva jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Ve jnyani bhi haim aura ajnyani bhi haim. Jo jnyani haim, unamem se kitane hi do jnyana vale haim aura kaim tina jnyana vale haim. Isa prakara tina jnyana aura tina ajnyana bhajana se hote haim. Aughika jivom ke samana manushyom mem pamcha jnyana aura tina ajnyana bhajana se hote haim. Vanavyantara devom ka kathana nairayikom ke samana janana. Jyotishka aura vaimanika devom mem tina jnyana, ajnyana niyamatah hote haim. Bhagavan ! Siddha bhagavana jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Siddha bhagavana jnyani haim, ajnyani nahim. Ve niyamatah kevala – jnyana vale haim. |