Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003889
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-८

Translated Chapter :

शतक-८

Section : उद्देशक-२ आशिविष Translated Section : उद्देशक-२ आशिविष
Sutra Number : 389 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आसीविसा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता, तं जहा– जातिआसीविसा य, कम्मआसीविसा य। जातिआसीविसा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विच्छुयजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजाति-आसीविसे, मनुस्सजातिआसीविसे। विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विस ट्ठयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विसट्ठयाए नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। उरगजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं उरगजातिआसीविसे जंबुद्दीवप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विसट्ठ-याए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। मनुस्सजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं मनुस्सजातिआसीविसे समयखेत्तप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्ठमाणं पकरेत्तए। विसए से विस ट्ठयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। जइ कम्मआसीविसे किं नेरइयकम्मआसीविसे? तिरिक्खजोणियकम्मआसीविसे? मनुस्सकम्म-आसीविसे? देवकम्मआसीविसे? गोयमा! नो नेरइयकम्मासीविसे, तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे वि, मनुस्सकम्मासीविसे वि, देवकम्मासीविसे वि। जइ तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं एगिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे? गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव नो चउरिंदियतिरिक्खजोणिय-कम्मासीविसे, पंचिंदियतिरिक्खजोणिय-कम्मासीविसे। जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिय-कम्मासीविसे? गब्भवक्कंतियपंचिंदियतिरिक्खजोणिय कम्मासीविसे? एवं जहा वेउव्वियसरीरस्स भेदो जाव पज्जत्तासंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, नो अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय जाव कम्मासीविसे। जइ मनुस्सकम्मासीविसे किं संमुच्छिममनुस्सकम्मासीविसे? गब्भवक्कंतियमनुस्स-कम्मासीविसे? गोयमा! नो संमुच्छिममनुस्सकम्मासीविसे, गब्भवक्कंतियमनुस्सकम्मासीविसे, एवं जहा वेउव्वियसरीरं जाव पज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमागब्भवक्कंतियमनुस्सकम्मासीविसे, नो अपज्जत्ता जाव कम्मासीविसे। जइ देवकम्मासीविसे किं भवनवासिदेवकम्मासीविसे जाव वेमानियदेवकम्मासीविसे? गोयमा! भवनवासिदेवकम्मासीविसे, वाणमंतर-जोतिसिय-वेमानियदेवकम्मासीविसे वि। जइ भवनवासिदेवकम्मासीविसे किं असुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे जाव थणिय-कुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे? गोयमा! असुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे वि जाव थणियकुमारभवनवासिदेव-कम्मासीविसे वि। जइ असुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे किं पज्जत्ताअसुरकुमारभवनवासिदेव-कम्मासीविसे? अपज्जत्ताअसुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे? गोयमा! नो पज्जत्ताअसुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे, अपज्जत्ताअसुरकुमारभवन-वासिदेवकम्मासीविसे। एवं जाव थणियकुमाराणं। जइ वाणमंतरदेवकम्मासीविसे किं पिसायवाणमंतरदेवकम्मासीविसे? एवं सव्वेसिं अपज्जत्तगाणं। जोइसियाणं सव्वेसिं अपज्जत्तगाणं। जइ वेमानियदेवकम्मासीविसे किं कप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे? कप्पातीयावेमानिय-देवकम्मासीविसे? गोयमा! कप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे, नो कप्पातीयावेमानियदेवकम्मासीविसे। जइ कप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे किं सोहम्मकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे जाव अच्चुयकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे? गोयमा! सोहम्मकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे वि जाव सहस्सारकप्पोवावेमानिय-देवकम्मासीविसे वि, नो आणयकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे जाव नो अच्चुयकप्पोवावेमानिय-देवकम्मासीविसे। जइ सोहम्मकप्पो वा वेमानियदेवकम्मासीविसे किं पज्जत्तासोहम्मकप्पोवावेमानिय- देवकम्मासीविसे? अपज्जत्तासोहम्मक- प्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे? गोयमा! नो पज्जत्तासोहम्मकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे, अपज्जत्तासोहम्मकप्पोवा-वेमानियदेवकम्मासीविसे, एवं जाव नो पज्जत्तासहस्सारकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे, अपज्जत्ता-सहस्सारकप्पोवावेमानियदेवकम्मासीविसे।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं। जाति – आशीविष और कर्म – आशीविष भगवन्‌ ! जाति – आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के जैसे – वृश्चिकजाति – आशीविष, मण्डूक – जाति – आशीविष, उरगजाति – आशीविष और मनुष्यजाति – आशीविष। भगवन्‌ ! वृश्चिकजाति – आशीविष का कितना विषय है ? गौतम ! वह अर्द्धभरतक्षेत्र – प्रमाण शरीर को विषयुक्त – या विष से व्याप्त करने में समर्थ हैं। इतना उसके विष का सामर्थ्य है, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा उसने न ऐसा कभी किया है, न करता है और न कभी करेगा। भगवन्‌ ! मण्डूकजाति – आशीविष का कितना विषय है ? गौतम ! वह अपने विष से भरतक्षेत्र – प्रमाण शरीर को विषैला करने एवं व्याप्त करने में समर्थ है। शेष सब पूर्ववत्‌ जानना, यावत्‌ सम्प्राप्ति से उसने कभी ऐसा किया नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी प्रकार उरगजाति – आशीविष के सम्बन्ध में जानना। इतना विशेष है कि वह जम्बूद्वीप – प्रमाण शरीर को विष से युक्त एवं व्याप्त करने में समर्थ है। यह उसका सामर्थ्यमात्र है, किन्तु सम्प्राप्ति से यावत्‌ करेगा भी नहीं। इसी प्रकार मनुष्यजाति – आशीविष के सम्बन्ध में भी जानना। विशेष इतना है कि वह समयक्षेत्र प्रमाण शरीर को विष से व्याप्त कर सकता है, शेष कथन पूर्ववत्‌, यावत्‌, करेगा भी नहीं। भगवन्‌ ! यदि कर्म – आशीविष है तो क्या वह नैरयिक – कर्म – आशीविष है, या तिर्यंचयोनिक, अथवा मनुष्य या देव – कर्म – आशीविष है ? गौतम ! नैरयिक – कर्म – आशीविष नहीं, किन्तु तिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है, मनुष्य – कर्म – आशीविष है और देव – कर्म – आशीविष है। भगवन्‌ ! यदि तिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है, तो क्या एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है ? गौतम ! एकेन्द्रिय, यावत्‌ चतुरिन्द्रिय कर्म – आशीविष नहीं, परन्तु पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है। भगवन्‌ ! यदि पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है तो क्या सम्मूर्च्छिम है या गर्भज – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष है ? गौतम ! वैक्रिय शरीर के सम्बन्ध के समान पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयुष्य वाला गर्भज – कर्मभूमिज – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक – कर्म – आशीविष होता है; परन्तु अपर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्य वाला कर्मआशीविष नहीं होता तक कहना। भगवन्‌ ! यदि मनुष्य – कर्म – आशीविष है, तो क्या सम्मूर्च्छिम – मनुष्य – कर्माशीविष है, या गर्भज मनुष्य – कर्म – आशीविष है ? गौतम ! सम्मूर्च्छिम – मनुष्य – कर्म – आशीविष नहीं होता, किन्तु गर्भज – मनुष्यकर्म – आशीविष होता है। प्रज्ञापनासूत्र के शरीरपद में वैक्रिय – शरीर के सम्बन्ध के अनुसार यहाँ भी पर्याप्त संख्यात वर्ष का आयुष्य वाला कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य – कर्म – आशीविष होता है; परन्तु अपर्याप्त यावत्‌ कर्म – आशीविष नहीं होता तक कहना। भगवन्‌ ! यदि देव – कर्माशीविष होता है, तो क्या भवनवासीदेव – कर्माशीविष होता है यावत्‌ वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष होता है ? गौतम ! भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, ये चारों प्रकार के देव – कर्म – आशीविष होते हैं। भगवन्‌ ! यदि भवनवासीदेव – कर्म – आशीविष होता है तो क्या असुरकुमारभवनवासीदेव – कर्म – आशीविष होता है यावत्‌ स्तनितकुमार – भवनवासीदेव – कर्म – आशीविष होता है ? गौतम ! असुरकुमार – भवनवासी – देव यावत्‌ स्तनितकुमार – कर्म – आशीविष भी होता है। भगवन्‌ ! यदि असुरकुमार यावत्‌ स्तनितकुमार – भवनवासी – देव – कर्म – आशीविष है तो क्या पर्याप्त असुरकुमारादि भवनवासीदेव – कर्म – आशीविष है या अपर्याप्त हैं ? गौतम ! पर्याप्त असुरकुमार – भवनवासीदेव – कर्म – आशीविष नहीं, परन्तु अपर्याप्त असुरकुमार – भवनवासीदेव – कर्म – आशीविष है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। भगवन्‌ ! यदि वाणव्यन्तरदेव – कर्म – आशीविष हैं, तो क्या पिशाच – वाणव्यन्तरदेव – कर्माशीविष है, अथवा यावत्‌ गन्धर्व – वाणव्यन्तरदेव – कर्माशीविष हैं ? गौतम ! वे पिशाचादि सर्व वाणव्यन्तरदेव अपर्याप्तावस्था में कर्माशीविष हैं। इसी प्रकार सभी ज्योतिष्कदेव भी अपर्याप्तावस्था में कर्माशीविष होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वैमानिकदेव – कर्माशीविष है तो क्या कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – कर्माशीविष हैं, अथवा कल्पातीत – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष हैं ? गौतम ! कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष होता है, किन्तु कल्पातीत – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष नहीं होता। भगवन्‌ ! यदि कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष होता है तो क्या सौधर्म – कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष होता है, यावत्‌ अच्युत – कल्पोपपन्नक। गौतम ! सौधर्म – कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव से सहस्रार – कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – पर्यन्त कर्म – आशीविष होते हैं, परन्तु आनत, प्राणत, आरण और अच्युत – कल्पोपपन्नक – वैमानिककर्म – आशीविष नहीं होते। भगवन्‌ ! यदि सौधर्म – कल्पो पपन्नक – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष हैं तो क्या पर्याप्त सौधर्म – कल्पोपपन्न – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष है अथवा अपर्याप्त ? गौतम ! पर्याप्त सौधर्म – कल्पोपपन्न – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष नहीं, परन्तु अपर्याप्त सौधर्म – कल्पोपपन्न – कर्म – आशीविष हैं। इसी प्रकार यावत्‌ पर्याप्त सहस्रार – कल्पोपपन्न – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष नहीं, किन्तु अपर्याप्त सहस्रार – कल्पोपपन्नक – वैमानिकदेव – कर्म – आशीविष हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kativiha nam bhamte! Asivisa pannatta? Goyama! Duviha asivisa pannatta, tam jaha– jatiasivisa ya, kammaasivisa ya. Jatiasivisa nam bhamte! Kativiha pannatta? Goyama! Chauvviha pannatta, tam jaha–vichchhuyajatiasivise, mamdukkajatiasivise, uragajati-asivise, manussajatiasivise. Vichchhuyajatiasivisassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Pabhu nam vichchhuyajatiasivise addhabharahappamanamettam bomdim visenam visaparigayam visattamanam pakarettae. Visae se visa tthayae, no cheva nam sampattie karemsu va, karemti va, karissamti va. Mamdukkajatiasivisassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Pabhu nam mamdukkajatiasivise bharahappamanamettam bomdim visenam visaparigayam visattamanam pakarettae. Visae se visatthayae no cheva nam sampattie karemsu va, karemti va, karissamti va. Uragajatiasivisassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Pabhu nam uragajatiasivise jambuddivappamanamettam bomdim visenam visaparigayam visattamanam pakarettae. Visae se visattha-yae, no cheva nam sampattie karemsu va, karemti va, karissamti va. Manussajatiasivisassa nam bhamte! Kevatie visae pannatte? Goyama! Pabhu nam manussajatiasivise samayakhettappamanamettam bomdim visenam visaparigayam visatthamanam pakarettae. Visae se visa tthayae, no cheva nam sampattie karemsu va, karemti va, karissamti va. Jai kammaasivise kim neraiyakammaasivise? Tirikkhajoniyakammaasivise? Manussakamma-asivise? Devakammaasivise? Goyama! No neraiyakammasivise, tirikkhajoniyakammasivise vi, manussakammasivise vi, devakammasivise vi. Jai tirikkhajoniyakammasivise kim egimdiyatirikkhajoniyakammasivise java pamchimdiya-tirikkhajoniyakammasivise? Goyama! No egimdiyatirikkhajoniyakammasivise java no chaurimdiyatirikkhajoniya-kammasivise, pamchimdiyatirikkhajoniya-kammasivise. Jai pamchimdiyatirikkhajoniyakammasivise kim sammuchchhimapamchimdiyatirikkhajoniya-kammasivise? Gabbhavakkamtiyapamchimdiyatirikkhajoniya kammasivise? Evam jaha veuvviyasarirassa bhedo java pajjattasamkhejjavasauyagabbhavakkamtiyapamchimdiya-tirikkhajoniyakammasivise, no apajjattasamkhejjavasauya java kammasivise. Jai manussakammasivise kim sammuchchhimamanussakammasivise? Gabbhavakkamtiyamanussa-kammasivise? Goyama! No sammuchchhimamanussakammasivise, gabbhavakkamtiyamanussakammasivise, evam jaha veuvviyasariram java pajjattasamkhejjavasauyakammabhumagabbhavakkamtiyamanussakammasivise, no apajjatta java kammasivise. Jai devakammasivise kim bhavanavasidevakammasivise java vemaniyadevakammasivise? Goyama! Bhavanavasidevakammasivise, vanamamtara-jotisiya-vemaniyadevakammasivise vi. Jai bhavanavasidevakammasivise kim asurakumarabhavanavasidevakammasivise java thaniya-kumarabhavanavasidevakammasivise? Goyama! Asurakumarabhavanavasidevakammasivise vi java thaniyakumarabhavanavasideva-kammasivise vi. Jai asurakumarabhavanavasidevakammasivise kim pajjattaasurakumarabhavanavasideva-kammasivise? Apajjattaasurakumarabhavanavasidevakammasivise? Goyama! No pajjattaasurakumarabhavanavasidevakammasivise, apajjattaasurakumarabhavana-vasidevakammasivise. Evam java thaniyakumaranam. Jai vanamamtaradevakammasivise kim pisayavanamamtaradevakammasivise? Evam savvesim apajjattaganam. Joisiyanam savvesim apajjattaganam. Jai vemaniyadevakammasivise kim kappovavemaniyadevakammasivise? Kappatiyavemaniya-devakammasivise? Goyama! Kappovavemaniyadevakammasivise, no kappatiyavemaniyadevakammasivise. Jai kappovavemaniyadevakammasivise kim sohammakappovavemaniyadevakammasivise java achchuyakappovavemaniyadevakammasivise? Goyama! Sohammakappovavemaniyadevakammasivise vi java sahassarakappovavemaniya-devakammasivise vi, no anayakappovavemaniyadevakammasivise java no achchuyakappovavemaniya-devakammasivise. Jai sohammakappo va vemaniyadevakammasivise kim pajjattasohammakappovavemaniya- devakammasivise? Apajjattasohammaka- ppovavemaniyadevakammasivise? Goyama! No pajjattasohammakappovavemaniyadevakammasivise, apajjattasohammakappova-vemaniyadevakammasivise, evam java no pajjattasahassarakappovavemaniyadevakammasivise, apajjatta-sahassarakappovavemaniyadevakammasivise.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Ashivisha kitane prakara ke haim\? Gautama ! Do prakara ke haim. Jati – ashivisha aura karma – ashivisha bhagavan ! Jati – ashivisha kitane prakara ke haim\? Gautama ! Chara prakara ke jaise – vrishchikajati – ashivisha, manduka – jati – ashivisha, uragajati – ashivisha aura manushyajati – ashivisha. Bhagavan ! Vrishchikajati – ashivisha ka kitana vishaya hai\? Gautama ! Vaha arddhabharatakshetra – pramana sharira ko vishayukta – ya visha se vyapta karane mem samartha haim. Itana usake visha ka samarthya hai, kintu samprapti dvara usane na aisa kabhi kiya hai, na karata hai aura na kabhi karega. Bhagavan ! Mandukajati – ashivisha ka kitana vishaya hai\? Gautama ! Vaha apane visha se bharatakshetra – pramana sharira ko vishaila karane evam vyapta karane mem samartha hai. Shesha saba purvavat janana, yavat samprapti se usane kabhi aisa kiya nahim, karata nahim aura karega bhi nahim. Isi prakara uragajati – ashivisha ke sambandha mem janana. Itana vishesha hai ki vaha jambudvipa – pramana sharira ko visha se yukta evam vyapta karane mem samartha hai. Yaha usaka samarthyamatra hai, kintu samprapti se yavat karega bhi nahim. Isi prakara manushyajati – ashivisha ke sambandha mem bhi janana. Vishesha itana hai ki vaha samayakshetra pramana sharira ko visha se vyapta kara sakata hai, shesha kathana purvavat, yavat, karega bhi nahim. Bhagavan ! Yadi karma – ashivisha hai to kya vaha nairayika – karma – ashivisha hai, ya tiryamchayonika, athava manushya ya deva – karma – ashivisha hai\? Gautama ! Nairayika – karma – ashivisha nahim, kintu tiryamchayonika – karma – ashivisha hai, manushya – karma – ashivisha hai aura deva – karma – ashivisha hai. Bhagavan ! Yadi tiryamchayonika – karma – ashivisha hai, to kya ekendriya yavat pamchendriya – tiryamchayonika – karma – ashivisha hai\? Gautama ! Ekendriya, yavat chaturindriya karma – ashivisha nahim, parantu pamchendriyatiryamchayonika – karma – ashivisha hai. Bhagavan ! Yadi pamchendriyatiryamchayonika – karma – ashivisha hai to kya sammurchchhima hai ya garbhaja – pamchendriya – tiryamchayonika – karma – ashivisha hai\? Gautama ! Vaikriya sharira ke sambandha ke samana paryapta samkhyatavarsha ki ayushya vala garbhaja – karmabhumija – pamchendriyatiryamchayonika – karma – ashivisha hota hai; parantu aparyapta samkhyata varsha ke ayushya vala karmaashivisha nahim hota taka kahana. Bhagavan ! Yadi manushya – karma – ashivisha hai, to kya sammurchchhima – manushya – karmashivisha hai, ya garbhaja manushya – karma – ashivisha hai\? Gautama ! Sammurchchhima – manushya – karma – ashivisha nahim hota, kintu garbhaja – manushyakarma – ashivisha hota hai. Prajnyapanasutra ke sharirapada mem vaikriya – sharira ke sambandha ke anusara yaham bhi paryapta samkhyata varsha ka ayushya vala karmabhumija garbhaja manushya – karma – ashivisha hota hai; parantu aparyapta yavat karma – ashivisha nahim hota taka kahana. Bhagavan ! Yadi deva – karmashivisha hota hai, to kya bhavanavasideva – karmashivisha hota hai yavat vaimanikadeva – karma – ashivisha hota hai\? Gautama ! Bhavanavasi, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika, ye charom prakara ke deva – karma – ashivisha hote haim. Bhagavan ! Yadi bhavanavasideva – karma – ashivisha hota hai to kya asurakumarabhavanavasideva – karma – ashivisha hota hai yavat stanitakumara – bhavanavasideva – karma – ashivisha hota hai\? Gautama ! Asurakumara – bhavanavasi – deva yavat stanitakumara – karma – ashivisha bhi hota hai. Bhagavan ! Yadi asurakumara yavat stanitakumara – bhavanavasi – deva – karma – ashivisha hai to kya paryapta asurakumaradi bhavanavasideva – karma – ashivisha hai ya aparyapta haim\? Gautama ! Paryapta asurakumara – bhavanavasideva – karma – ashivisha nahim, parantu aparyapta asurakumara – bhavanavasideva – karma – ashivisha hai. Isi prakara stanitakumarom taka janana chahie. Bhagavan ! Yadi vanavyantaradeva – karma – ashivisha haim, to kya pishacha – vanavyantaradeva – karmashivisha hai, athava yavat gandharva – vanavyantaradeva – karmashivisha haim\? Gautama ! Ve pishachadi sarva vanavyantaradeva aparyaptavastha mem karmashivisha haim. Isi prakara sabhi jyotishkadeva bhi aparyaptavastha mem karmashivisha hote haim. Bhagavan ! Yadi vaimanikadeva – karmashivisha hai to kya kalpopapannaka – vaimanikadeva – karmashivisha haim, athava kalpatita – vaimanikadeva – karma – ashivisha haim\? Gautama ! Kalpopapannaka – vaimanikadeva – karma – ashivisha hota hai, kintu kalpatita – vaimanikadeva – karma – ashivisha nahim hota. Bhagavan ! Yadi kalpopapannaka – vaimanikadeva – karma – ashivisha hota hai to kya saudharma – kalpopapannaka – vaimanikadeva – karma – ashivisha hota hai, yavat achyuta – kalpopapannaka. Gautama ! Saudharma – kalpopapannaka – vaimanikadeva se sahasrara – kalpopapannaka – vaimanikadeva – paryanta karma – ashivisha hote haim, parantu anata, pranata, arana aura achyuta – kalpopapannaka – vaimanikakarma – ashivisha nahim hote. Bhagavan ! Yadi saudharma – kalpo papannaka – vaimanikadeva – karma – ashivisha haim to kya paryapta saudharma – kalpopapanna – vaimanikadeva – karma – ashivisha hai athava aparyapta\? Gautama ! Paryapta saudharma – kalpopapanna – vaimanikadeva – karma – ashivisha nahim, parantu aparyapta saudharma – kalpopapanna – karma – ashivisha haim. Isi prakara yavat paryapta sahasrara – kalpopapanna – vaimanikadeva – karma – ashivisha nahim, kintu aparyapta sahasrara – kalpopapannaka – vaimanikadeva – karma – ashivisha haim.