Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003818
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-६

Translated Chapter :

शतक-६

Section : उद्देशक-९ कर्म Translated Section : उद्देशक-९ कर्म
Sutra Number : 318 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। देवे णं भंते! बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति। एवं एएणं गमेणं जाव १. एगवण्णं एगरूवं २. एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू कालगं पोग्गलं नीलगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? नीलगं पोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। परियाइत्ता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परिया-इत्ता परिणामेति। एवं एएणं गमेणं जाव १. एगवण्णं एगरूवं २. एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। एवं कालगपोग्गलं लोहियपोग्गलत्ताए। एवं कालएणं जाव सुक्किलं। एवं नीलएणं जाव सुक्किलं। एवं लोहिएणं जाव सुक्किलं। एवं हालिद्दएणं जाव सुक्किलं। एवं एयाए परिवाडीए गंध-रस-फासा।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महानभाग देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले और एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! क्या वह देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ है। भगवन्‌ ! क्या वह देव इहगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है अथवा तत्रगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है या अन्यत्रगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है ? गौतम ! वह देव यहाँ रहे हुए पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा नहीं करता, वह वहाँ के पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है, किन्तु अन्यत्र रहे हुए पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा नहीं करता। इस प्रकार इस गम द्वारा विकुर्वणा के चार भंग कहने चाहिए। एक वर्ण वाला और एक आकार वाला, एक वर्ण वाला और अनेक आकार वाला, अनेक वर्ण और एक आकार वाला तथा अनेक वर्ण वाला और अनेक आकार वाला। भगवन्‌ ! क्या महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग वाला देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना काले पुद्‌गल को नीले पुद्‌गल के रूप में और नीले पुद्‌गल को काले पुद्‌गल के रूप में परिणत करने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु बाहरी पुद्‌गलों को ग्रहण करके देव वैसा करने में समर्थ हैं। भगवन्‌ ! वह देव इहगत, तत्रगत या अन्यत्रगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके वैसा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! वह इहगत और अन्यत्रगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके वैसा नहीं कर सकता, किन्तु तत्रगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके वैसा परिणत करने में समर्थ है। [विशेष यह है कि यहाँ ‘विकुर्वित करने में’ के बदले] ‘परिणत करने में’ कहना चाहिए। इसी प्रकार काले पुद्‌गल को लाल पुद्‌गल के रूप में यावत्‌ काले पुद्‌गल के साथ शुक्ल पुद्‌गल तक समझना। इसी प्रकार नीले पुद्‌गल के साथ शुक्ल पुद्‌गल तक जानना। इसी प्रकार लाल पुद्‌गल को शुक्ल तक तथा इसी प्रकार पीले पुद्‌गल को शुक्ल तक (परिणत करने में समर्थ है।) इसी प्रकार इस क्रम के अनुसार गन्ध, रस और स्पर्श के विषय में भी समझना चाहिए। यथा – (यावत्‌) कर्कश स्पर्श वाले पुद्‌गल को मृदु स्पर्श वाले (पुद्‌गल में परिणत करने में समर्थ है)। इसी प्रकार दो – दो विरुद्ध गुणों को अर्थात्‌ गुरु और लघु, शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, वर्ण आदि को वह सर्वत्र परिणमाता है। ‘परिणमाता है’ इस क्रिया के साथ यहाँ इस प्रकार दो – दो आलापक कहने चाहिए, यथा – (१) पुद्‌गलों को ग्रहण करके परिणमाता है, (२) पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना नहीं परिणमाता।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] deve nam bhamte! Mahiddhie java mahanubhage bahirae poggale apariyaitta pabhu egavannam egaruvam viuvvittae? Goyama! No inatthe samatthe. Deve nam bhamte! Bahirae poggale pariyaitta pabhu egavannam egaruvam viuvvittae? Hamta pabhu. Se nam bhamte! Kim ihagae poggale pariyaitta viuvvati? Tatthagae poggale pariyaitta viuvvati? Annatthagae poggale pariyaitta viuvvati? Goyama! No ihagae poggale pariyaitta viuvvati, tatthagae poggale pariyaitta viuvvati, no annatthagae poggale pariyaitta viuvvati. Evam eenam gamenam java 1. Egavannam egaruvam 2. Egavannam anegaruvam 3. Anegavannam egaruvam 4. Anegavannam anegaruvam–chaubhamgo. Deve nam bhamte! Mahiddhie java mahanubhage bahirae poggale apariyaitta pabhu kalagam poggalam nilagapoggalattae parinamettae? Nilagam poggalam va kalagapoggalattae parinamettae? Goyama! No inatthe samatthe. Pariyaitta pabhu. Se nam bhamte! Kim ihagae poggale pariyaitta parinameti? Tatthagae poggale pariyaitta parinameti? Annatthagae poggale pariyaitta parinameti? Goyama! No ihagae poggale pariyaitta parinameti, tatthagae poggale pariyaitta parinameti, no annatthagae poggale pariya-itta parinameti. Evam eenam gamenam java 1. Egavannam egaruvam 2. Egavannam anegaruvam 3. Anegavannam egaruvam 4. Anegavannam anegaruvam–chaubhamgo. Evam kalagapoggalam lohiyapoggalattae. Evam kalaenam java sukkilam. Evam nilaenam java sukkilam. Evam lohienam java sukkilam. Evam haliddaenam java sukkilam. Evam eyae parivadie gamdha-rasa-phasa.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Maharddhika yavat mahanabhaga deva bahara ke pudgalom ko grahana kiye bina eka varna vale aura eka rupa ki vikurvana karane mem samartha haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Kya vaha deva bahara ke pudgalom ko grahana karake vikurvana karane mem samartha haim\? Ham, gautama ! Samartha hai. Bhagavan ! Kya vaha deva ihagata pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai athava tatragata pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai ya anyatragata pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai\? Gautama ! Vaha deva yaham rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana nahim karata, vaha vaham ke pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai, kintu anyatra rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana nahim karata. Isa prakara isa gama dvara vikurvana ke chara bhamga kahane chahie. Eka varna vala aura eka akara vala, eka varna vala aura aneka akara vala, aneka varna aura eka akara vala tatha aneka varna vala aura aneka akara vala. Bhagavan ! Kya maharddhika yavat mahanubhaga vala deva bahara ke pudgalom ko grahana kiye bina kale pudgala ko nile pudgala ke rupa mem aura nile pudgala ko kale pudgala ke rupa mem parinata karane mem samartha hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai; kintu bahari pudgalom ko grahana karake deva vaisa karane mem samartha haim. Bhagavan ! Vaha deva ihagata, tatragata ya anyatragata pudgalom ko grahana karake vaisa karane mem samartha haim\? Gautama ! Vaha ihagata aura anyatragata pudgalom ko grahana karake vaisa nahim kara sakata, kintu tatragata pudgalom ko grahana karake vaisa parinata karane mem samartha hai. [vishesha yaha hai ki yaham ‘vikurvita karane mem’ ke badale] ‘parinata karane mem’ kahana chahie. Isi prakara kale pudgala ko lala pudgala ke rupa mem yavat kale pudgala ke satha shukla pudgala taka samajhana. Isi prakara nile pudgala ke satha shukla pudgala taka janana. Isi prakara lala pudgala ko shukla taka tatha isi prakara pile pudgala ko shukla taka (parinata karane mem samartha hai.) Isi prakara isa krama ke anusara gandha, rasa aura sparsha ke vishaya mem bhi samajhana chahie. Yatha – (yavat) karkasha sparsha vale pudgala ko mridu sparsha vale (pudgala mem parinata karane mem samartha hai). Isi prakara do – do viruddha gunom ko arthat guru aura laghu, shita aura ushna, snigdha aura ruksha, varna adi ko vaha sarvatra parinamata hai. ‘parinamata hai’ isa kriya ke satha yaham isa prakara do – do alapaka kahane chahie, yatha – (1) pudgalom ko grahana karake parinamata hai, (2) pudgalom ko grahana kiye bina nahim parinamata.